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1947 के बंगाल दंगों में हुआ क्या था, जिस पर बनी विवेक अग्निहोत्री की 'बंगाल फाइल्स' विवादों में आ गई

इन दंगों ने बंगाल की सामाजिक और राजनीतिक स्थिति को प्रभावित किया. विभाजन के बाद, कई लोग अपने घरों से बेघर हो गए और शरणार्थी बन गए. दंगों ने हिंदू-मुस्लिम रिश्तों में खाई पैदा कर दी, जो विभाजन के समय और भी गहरी हो गई. अब दशकों बाद उन दंगों पर आधारित Vivek Agnihotri की फिल्म Bengal Files विवादों में आ गई है.

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bengal files controversy
1947 के बंगाल दंगों की सच्चाई: क्यों विवादों में है 'बंगाल फाइल्स'
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दिग्विजय सिंह
19 अगस्त 2025 (Updated: 19 अगस्त 2025, 10:19 AM IST)
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16 अगस्त 1946 की सुबह, कलकत्ता की सड़कों पर एक अजीब सी खामोशी थी. लेकिन जैसे ही दिन चढ़ा, यह खामोशी टूट गई और शहर की गलियां खून से सनी हुईं. यह दिन था 'डायरेक्ट एक्शन डे' का, जब मुस्लिम लीग ने पाकिस्तान के समर्थन में आंदोलन का आह्वान किया था. इस दिन की शुरुआत एक शांतिपूर्ण प्रदर्शन से हुई, लेकिन जल्द ही यह हिंसा में बदल गई. हिंदू और मुस्लिम समुदायों के बीच संघर्ष ने शहर को दहला दिया. घरों में आग लगाई गई, दुकानें लूटी गईं और सड़कों पर लाशें बिछ गईं. इस हिंसा में हजारों लोग मारे गए और सैकड़ों घायल हुए.

विवेक अग्निहोत्री की फिल्म 'द बंगाल फाइल्स' और हकीकत

विवेक अग्निहोत्री की फिल्म 'द बंगाल फाइल्स' इन दंगों की पृष्ठभूमि पर आधारित है. फिल्म में दिखाया गया है कि कैसे विभाजन के समय बंगाल में सांप्रदायिक हिंसा ने विकराल रूप लिया. हालांकि, फिल्म में कुछ घटनाओं को काल्पनिक रूप से प्रस्तुत किया गया है, लेकिन वास्तविकता में भी बंगाल दंगों ने समाज को गहरे घाव दिए थे. फिल्म और वास्तविकता के बीच अंतर को समझना जरूरी है, ताकि हम इतिहास को सही तरीके से जान सकें.

बंगाल दंगों मे कब, कहां, क्या-क्या  हुआ?

16 अगस्त 1946: मुस्लिम लीग ने 'डायरेक्ट एक्शन डे' का आह्वान किया. इस दिन की शुरुआत शांतिपूर्ण प्रदर्शन से हुई, लेकिन जल्द ही यह हिंसा में बदल गई. कलकत्ता की सड़कों पर हिंदू और मुस्लिम समुदायों के बीच संघर्ष हुआ. घरों में आग लगाई गई, दुकानें लूटी गईं और सड़कों पर लाशें बिछ गईं. इस हिंसा में हजारों लोग मारे गए और सैकड़ों घायल हुए.

17-19 अगस्त 1946: हिंसा का दायरा बढ़ता गया. पुलिस और सेना को तैनात किया गया, लेकिन स्थिति नियंत्रण से बाहर हो गई. कई इलाकों में कर्फ्यू लगाया गया, लेकिन फिर भी हिंसा जारी रही. इस दौरान कई महिलाओं के साथ दुराचार की घटनाएं भी सामने आईं.

20 अगस्त 1946: स्थिति को नियंत्रित करने के लिए महात्मा गांधी ने कलकत्ता में शांति की अपील की. उन्होंने दोनों समुदायों के नेताओं से मुलाकात की और शांति बनाए रखने की कोशिश की. गांधीजी की कोशिशों से कुछ हद तक स्थिति शांत हुई, लेकिन दंगों का असर लंबे समय तक रहा.

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दंगों का असर

इन दंगों ने बंगाल की सामाजिक और राजनीतिक स्थिति को प्रभावित किया. विभाजन के बाद, कई लोग अपने घरों से बेघर हो गए और शरणार्थी बन गए. दंगों ने हिंदू-मुस्लिम रिश्तों में खाई पैदा कर दी, जो विभाजन के समय और भी गहरी हो गई. इस हिंसा ने यह स्पष्ट कर दिया कि धार्मिक आधार पर विभाजन से समाज में असंतोष और हिंसा बढ़ सकती है.

जांच और रिपोर्ट

दंगों की जांच के लिए कोई आधिकारिक आयोग नहीं बनाया गया. हालांकि, ब्रिटिश सरकार ने स्थिति को नियंत्रित करने के लिए सैन्य बलों का उपयोग किया. इसके बावजूद, दंगों के कारणों और जिम्मेदारियों की स्पष्टता आज भी विवादित है. कुछ इतिहासकारों का मानना है कि ब्रिटिश सरकार ने विभाजन की प्रक्रिया में पक्षपाती रवैया अपनाया, जिससे दंगों की स्थिति उत्पन्न हुई. वहीं, कुछ का कहना है कि राजनीतिक नेतृत्व की विफलता और सांप्रदायिक राजनीति ने हिंसा को बढ़ावा दिया.

सद्भावना की मिसालें

दंगों के बीच भी कई ऐसे उदाहरण सामने आए, जहां हिंदू और मुस्लिम समुदायों ने एक-दूसरे की मदद की. एक मुस्लिम परिवार ने अपने घर में एक हिंदू परिवार को शरण दी और उन्हें सुरक्षित स्थान पर पहुंचाया. इसी तरह के कई किस्से हैं जो मानवता और भाईचारे की मिसाल प्रस्तुत करते हैं. इन घटनाओं ने यह सिद्ध किया कि दंगों के बावजूद, इंसानियत और सद्भावना की भावना जीवित रही.

सौ बात की एक बात

1946 के बंगाल दंगे भारतीय इतिहास का एक काला अध्याय हैं, जो विभाजन के दर्द और सांप्रदायिक हिंसा को दर्शाते हैं. हालांकि, इन दंगों के बीच भी कई ऐसे उदाहरण हैं जो हिंदू-मुस्लिम एकता और सद्भावना की ओर इशारा करते हैं. 'द बंगाल फाइल्स' जैसी फिल्में इन घटनाओं को उजागर करने का प्रयास करती हैं, लेकिन यह भी महत्वपूर्ण है कि हम इतिहास के सभी पहलुओं को समझें और समाज में भाईचारे को बढ़ावा दें.
 

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