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3 नॉट 3 राइफल क्या है, जिसे यूपी पुलिस 26 जनवरी को विदाई दे रही है

ये राइफल 75 साल से यूपी पुलिस के हर ऑपरेशन में साथ रही.

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3 नॉट 3 को सबसे पहले ब्रिटिश आर्मी ने इस्तेमाल करना शुरू किया. प्रथम विश्वयुद्ध में ये राइफल इस्तेमाल हुई. फोटो: YouTube/Aaj Tak
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निखिल
26 जनवरी 2020 (Updated: 26 जनवरी 2020, 06:11 AM IST) कॉमेंट्स
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हमारी ही तरह आप तक भी ये खबर पहुंच ही गई होगी कि यूपी पुलिस 26 जनवरी, 2020 से 3 नॉट 3 राइफल को विदा करने वाली है. इनकी जगह लेंगी इंसास राइफल जो इंडियन आर्मी का स्टैंडर्ड इंफेंट्री वेपन है. इनके अलावा यूपी पुलिस कुछ और SLR's भी लेने वाली है. लेकिन उनकी बात बाद में. आज बात 303 की, जो 75 साल से यूपी पुलिस के हर ऑपरेशन में साथ रही है. इन राइफल्स का असली नाम था ली एनफील्ड. तो फिर ये 303 कहां से आया? दरअसल ज़ीरो को नॉट भी कहा जाता है. तो 3 नॉट 3 एक आंकड़ा है - 303. अब ये 303 क्या है. ये नाम मिला इस राइफल के कारतूस माने राउंड से. 303 दरअसल .303 इंच या 7.7 एमएम है. ये होता है 3 नॉट 3 के राउंड का डायामीटर. माने ली एनफील्ड के बैरल का डायामीटर. 303 एक बोल्ट एक्शन, मैगज़ीन फेड रिपीटिंग राइफल है. अब इसका मतलब क्या हुआ? एक एक करके समझते हैं. पहले बोल्ट एक्शन. बोल्ट राइफल का वो पुर्ज़ा होता है जो कारतूस के दगते वक्त नाल का पिछला हिस्सा ब्लॉक किये रहता है. पुरानी फिल्मों में आपने पुलिस वालों 303 चलाते हुए देखा होगा. उसमें वो हर बार गोली चलाने से पहले राइफल के पीछे लगे एक छोटे से हैंडल को घुमाकर आगे-पीछे करते थे. वो तब दरअसल बोल्ट को ही ऑपरेट कर रहे होते थे. जिन राइफल्स में बोल्ट को हाथ से आगे पीछे करना पड़ता है, बोल्ट एक्शन कहलाती हैं. बोल्ट जब पीछे खींचा जाता है, तो पहले से दगे कारतूस का खोल बाहर आता है. जब बोल्ट को आगे खिसकाया जाता है, तो वो अपने साथ नए कारतूस को चेंबर में ले जाता है. चेंबर में ही वो धमाका होता है, जिसके चलते बंदूक से गोली निकलती है. चेंबर में ले जाने के बाद बोल्ट को फिर लॉक किया जाता है. इसके बाद गोली चलाई जा सकती है. मैगज़ीन फेड का सीधा सा मतलब होता है, कि राइफल में गोलियों के लिए मैगज़ीन लगी है. मैगज़ीन राइफल का वो हिस्सा होता है जहां गोलियां होती हैं. रिपीटिंग राइफल या रिपीटर्स सिंगल बैरल राइफल्स को कहा जाता है, माने एक नाल वाली राइफल्स, जिनके बैरल को हर बार फायर करने के बाद लोड करना पड़ता है. याद रखिए, हम बैरल लोड करने की बात कर रहे हैं. न कि राइफल को लोड करने की. राइफल को लोड करने का मतलब होता है मैगज़ीन बदलना. बैरल लोड करने का मतलब होता है बोल्ट चलाकर मैगज़ीन में से गोली चेंबर तक पहुंचाना. 303 को सबसे पहले ब्रिटिश आर्मी ने इस्तेमाल करना शुरू किया. प्रथम विश्वयुद्ध में ये राइफल इस्तेमाल हुई. पुलिस हिस्टोरियन दीपक राव के हवाले से इंडियन एक्सप्रेस अखबार ने लिखा है कि प्रथम विश्वयुद्ध के बाद अंग्रेज़ सरकार ने भारत में पुलिस को 303 देना शुरू किया. इसका इस्तेमाल बैंक, सरकारी दफ्तर और अदालतों की सुरक्षा में किया जाता था. पुलिस जवान राइफलों का इस्तेमाल करते थे और अधिकारी पिस्टल का. यूपी में पुलिस ने 1945 से इस राइफल का इस्तेमाल शुरू किया. दुनिया के कई देश इस राइफल को दशकों पहले रिटायर कर चुके हैं. भारत में भी इन्हें फरवरी 1995 में ही obsolete करार दे दिया गया था. लेकिन अभी तक इन्हें फेज़ आउट नहीं किया गया था. मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, 63 हज़ार इंसास और 23 हज़ार SLR यूपी के अलग-अलग पुलिस स्टेशन्स पर भेजी गई हैं. यूपी पुलिस ने अपने जवानों से 303 इस्तेमाल न करने को कहा है. इतने लंबे वक्त तक इस राइफल की सर्विस के सम्मान में यूपी पुलिस ने फैसला लिया है कि इस साल सभी ज़िलों में गणतंत्र दिवस के कार्यक्रमों में गार्ड ऑफ ऑनर के लिए 303 का ही इस्तेमाल किया जाएगा.
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