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बर्मा में पैदा हुआ ये आदमी दो बार गुजरात का मुख्यमंत्री बन गया

जब अमित शाह को गुजरात में घुसने की इजाज़त नहीं थी, उस समय यह शख्स उनका बड़ा मददगार था.

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नतीजे आने के चार दिन बाद विजय रूपाणी को फिर से मुख्यमंंत्री चुन लिया गया है.
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अविनाश
2 अगस्त 2020 (Updated: 1 अगस्त 2020, 04:48 IST)
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पाटीदार आंदोलन, निकाय चुनावों में बीजेपी का खराब प्रदर्शन और फिर गुजरात के ऊना से निकली दलित आंदोलन की चिंगारी ने आनंदीबेन पटेल की सरकार को पूरी तरह से कटघरे में खड़ा कर दिया था. बेटी-दामाद को राजनीतिक रसूख के जरिए मदद पहुंचाने के आरोप ने आनंदीबेन पटेल की मुसीबतों की आग में घी का काम किया. हालात बिगड़ते देख खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आनंदीबेन पटेल से मुलाकात की और लंबी बात की.

उस वक्त गांधीनगर की सियासी फिजा में इस बात की चर्चा थी कि आनंदीबेन पटेल पद छोड़ने को राजी हो गई हैं, लेकिन उनकी शर्त ये है कि गुजरात का अगला मुख्यमंत्री कोई पटेल ही हो और उसके चुनाव में वरिष्ठता का ध्यान रखा जाए. आनंदीबेन पटेल के समर्थकों का दावा था कि न तो प्रधानमंत्री मोदी और न ही पार्टी में किसी ने आनंदीबेन पटेल की बात खारिज की. अमित शाह और उनके समर्थकों ने भी किसी तरह का विरोध नहीं किया.

यही वजह थी कि जब मुख्यमंत्री के चुनाव के लिए बीजेपी के वरिष्ठ नेताओं की बैठक हो रही थी तो नितिन पटेल का नाम मुख्यमंत्री के रूप में सामने आया था. लेकिन आनंदीबेन पटेल ने जिस तरह से फेसबुक पर अपने इस्तीफे का ऐलान किया था, वो मोदी और अमित शाह दोनों में से किसी को भी पसंद नहीं आया और ऐसे में आनंदीबेन पटेल की उस शर्त को दरकिनार कर दिया गया, जो उन्होंने इस्तीफे पर राजी होने के वक्त रखी थी.


आनंदीबेन पटेल चाहती थीं कि उनकी कुर्सी पर कोई पटेल ही बैठे.
आनंदीबेन पटेल चाहती थीं कि उनकी कुर्सी पर कोई पटेल ही बैठे.

1 अगस्त 2016 को आनंदी बेन पटेल ने फेसबुक पर अपने इस्तीफे की पेशकश की. 3 अगस्त को उनका इस्तीफा स्वीकार कर लिया गया. इसके बाद फिर शुरू हुई गुजरात के मुख्यमंत्री के नाम की तलाश. नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बन गए थे और गुजरात के सबसे कद्दावर नेताओं में शामिल और मोदी के सबसे करीबियों में से एक अमित शाह 9 जुलाई 2014 को बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष बन गए थे. इससे एक चीज साफ़ हो गई थी कि गुजरात का अगला मुख्यमंत्री वही होगा, जो अमित शाह का करीबी होगा.

मुख्यमंत्री की तलाश के लिए केंद्र से बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह, केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी और गुजरात बीजेपी के कई नेता 5 अगस्त को पूरे दिन बैठक करते रहे. गहमागहमी के बीच गुजरात में बीजेपी के एक और कद्दावर नेता नितिन पटेल का नाम चर्चा में आया. नितिन पटेल कई टीवी चैनलों को इंटरव्यू भी दे रहे थे. लेकिन रात होते-होते तस्वीर बदल गई. एक बैठक में अमित शाह और नितिन गडकरी की मौजूदगी में तय किया गया कि गुजरात के अगले मुख्यमंत्री विजय रूपाणी होंगे. घनश्याम ओझा और केशुभाई पटेल के बाद विजय रूपाणी गुजरात के तीसरे ऐसे मुख्यमंत्री थे, जो सौराष्ट्र के इलाके से आते हैं. वो राजकोट वेस्ट सीट से जीतकर विधानसभा में पहुंचे थे.


अमित शाह आखिरकार नरेंद्र मोदी को रूपाणी के नाम पर सहमत करने में कामयाब रहे
अमित शाह आखिरकार नरेंद्र मोदी को रूपाणी के नाम पर सहमत करने में कामयाब रहे

मीडिया रिपोर्ट्स में दावा किया गया कि अमित शाह ने विजय रूपाणी के नाम पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को राजी करते हुए कहा था-


'जीतवानी गारंटी हूं आपू छू. बढू एकवार मारा पर छोड़ि देओ.' (साहब! अपने जीतने की गारंटी है. आप बस एक बार मेरे पर छोड़ दीजिए.)

मोदी और शाह ने बीजेपी की पार्लियामेंट्री कमेटी में इस बात को रखा कि गुजरात में जनादेश पाने के लिए गुजरात का मुख्यमंत्री चुनने की आजादी अमित शाह को ही दी जाए. मोदी-शाह की बात काटने का सवाल ही नहीं था और अमित शाह यही तो चाहते थे. शाह ने आनंदीबेन पटेल को दरकिनार कर दिया. हालांकि 2, 3 और 4 अगस्त को आनंदीबेन पटेल ने कड़वा और लेऊआ पटेल को एकजुट करने की कोशिश की, ताकि पटेल की ताकत को दिखाया जा सके, लेकिन अमित शाह ने सभी विधायकों को विजय रुपानी के नाम पर सहमत कर लिया.


 बीजेपी सत्ता पर बेहतर पकड़ के लिए प्रभावशाली जातियों के नेताओं को cm की कुर्सी से दूर रखने की नीति पर चल रही है
बीजेपी सत्ता पर बेहतर पकड़ के लिए प्रभावशाली जातियों के नेताओं को CMकी कुर्सी से दूर रखने की नीति पर चल रही है.

अमित शाह ने जिस तरह से एक गैर जाट को हरियाणा का मुख्यमंत्री बनाया, विदर्भ से एक गैर-मराठा को महाराष्ट्र का मुख्यमंत्री बनाया और गैर आदिवासी को झारखंड का मुख्यमंत्री बनाया, वैसे ही वो गैर पटेल को गुजरात का मुख्यमंत्री बनाना चाहते थे. नितिन पटेल को आनंदीबेन पहले ही कह चुकी थीं कि अगले मुख्यमंत्री वही होंगे. नितिन को भी आनंदीबेन का भरोसा था और इसी को देखते हुए नितिन मीडिया को इंटरव्यू दे रहे थे. उनके समर्थकों ने तो मिठाइयों का ऑर्डर भी दे दिया था. उनके गृहनगर में उत्सव भी शुरू हो गया था. मीडिया रिपोर्ट्स में ये बात भी सामने आई कि मोदी और शाह को नितिन और उनके समर्थकों का ये रवैया ठीक नहीं लगा. इंडियन एक्सप्रेस को दिए गए इंटरव्यू में नितिन पटेल ने कहा था-


"मुझे नहीं पता कि मैं मुख्यमंत्री क्यों नहीं बना. ये उनसे पूछिए जो फैसले लेते हैं."

विजय रूपाणी का नाम जिस दिन घोषित किया जाना था, उस दिन शाम को पांच बजे अमित शाह के पार्टी के वरिष्ठों की बैठक बुलाई. ये वही जगह थी जहां अमित शाह और आनंदीबेन पटेल पहली बार मिले थे. इस दौरान आनंदीबेन पटेल ने अमित शाह पर आरोप लगाए कि उन्होंने आनंदीबेन को बतौर मुख्यमंत्री कम करके आंका है और गुजरात की राजनीति में दखलअंदाजी की है. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक ऐसा कहते हुए आनंदीबेन पटेल भावुक भी हो गई थीं. हालांकि अमित शाह ने आनंदीबेन पटेल के आरोपों को गंभीरता से नहीं लिया और कहा कि उन्होंने बीजेपी का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने के बाद भी गुजरात में किसी तरह का हस्तक्षेप नहीं किया है.

शाह ने कहा कि उनके पास पार्टी का बहुमत है और इसलिए वो विजय रूपाणी के नाम के साथ हैं. इस मुद्दे पर संगठन के महासचिव वी सतीश सामने आए और उन्होंने संघ नेताओं और मोदी से बात की. मोदी ने साफ तौर पर कहा कि बीजेपी का बहुमत अमित शाह के पास है, इसलिए फैसला शाह का ही होगा. इसके बाद आनंदीबेन पटेल के पास कहने-सुनने को कुछ भी नहीं बचा और फैसले को मानना ही पड़ा.


सत्ता में संतुलन साधने के लिए नीतिन पटेल को उप-मुख्यमंत्री का पद दिया गया
सत्ता में संतुलन साधने के लिए नितिन पटेल को उप-मुख्यमंत्री का पद दिया गया.

आनंदीबेन पटेल ने अपने इस्तीफे की पेशकश पार्टी प्लेटफॉर्म पर बाद में की, पहले उन्होंने फेसबुक पर इसके बारे में लिखा था. अमित शाह की मंजूरी के बाद जब विजय रूपाणी का नाम मुख्यमंत्री के लिए फाइनल कर दिया गया तो मीडिया रिपोर्ट्स में दावा किया गया कि खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, विजय रुपानी के नाम से सहमत थे. हालांकि जिस तरह से आनंदीबेन पटेल का इस्तीफा हुआ, फिर नितिन पटेल का नाम मीडिया में सामने आया और फिर विजय रूपाणी के नाम पर मुहर लगी, प्रधानमंत्री उस प्रक्रिया से खुश नहीं थे. इसके अलावा पाटीदारों की नाराज़गी झेल रही पार्टी के सामने राज्य के मुखिया के तौर पर एक जैन-बनिया समुदाय के शख्स का सामने आना पार्टी के लोगों को हज़म नहीं हो रहा था. शायद यही वजह थी कि जब केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने उनके नाम का ऐलान किया तो पार्टी कार्यकर्ताओं में किसी तरह का उत्साह नहीं दिखा.

उस वक्त पार्टी के अंदर से भी आवाज़ उठी कि अमित शाह ने अपने वीटो पावर का इस्तेमाल कर विजय रूपाणी को मुख्यमंत्री बनाया है, लेकिन आवाज नक्कारखाने में तूती की तरह ही रह गई. बीजेपी के ही एक पूर्व मंत्री ने कहा था,


"विजय रूपाणी रामायण के भरत की भूमिका में हैं. वो मुख्यमंत्री की सीट पर चरण पादुका रखकर अमित शाह के नाम पर शासन चलाएंगे."

विजय रूपाणी की अमित शाह से नजदीकी बहुत पुरानी थी. सोहराबुद्दीन एनकाउंटर केस में जब कोर्ट के आदेश के बाद अमित शाह राज्य से बहिष्कार झेल रहे थे, तब वो दिल्ली में विजय रूपाणी के फिरोज शाह रोड स्थित बंगले पर ही रहते थे, जो रूपाणी को बतौर राज्यसभा सांसद मिला हुआ था.


रुपानी ने अमित शाह का बुरे दिनों में साथ दिया था.
रुपानी ने अमित शाह का बुरे दिनों में साथ दिया था.

विजय रूपाणी वैसे तो गुजरात में बीजेपी के बड़े नेता रहे हैं, लेकिन बतौर मुख्यमंत्री उनका नाम पहली बार में किसी को हज़म नहीं हुआ. इस नाम के साथ ही एक बात तय हो गई कि नरेंद्र मोदी के गुजरात से जाने के बाद इसकी कमान सीधे तौर पर अमित शाह के हाथ में रहेगी. विजय रूपाणी राजकोट पश्चिम से पहली बार विधायक बने थे. ये वही सीट थी, जहां से पहली बार नरेंद्र मोदी 2002 में चुनाव लड़े थे और जीतकर गुजरात के मुख्यमंत्री बने थे. अब रूपाणी के पास नरेंद्र मोदी की सीट के साथ ही नरेंद्र मोदी की 12 साल पुरानी मुख्यमंत्री की विरासत भी थी.

विजय रूपाणी को ये विरासत यूं ही नहीं मिली थी. इसके पीछे उनका राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़ाव, बनिया-जैन समुदाय से ताल्लुक और सौराष्ट्र की सीट से चुनाव जीतने के साथ ही अमित शाह से नजदीकी का भी हाथ था. गुजरात के सर्वेसर्वा बनने के पीछे एक वजह उनका जैन समुदाय से ताल्लुक रखना भी था, जिसे राज्य सरकार ने हाल ही में अल्पसंख्यक का दर्जा दिया था. 2 अगस्त को ही विजय रूपाणी ने अपने गृह नगर राजकोट में बीवी-बच्चों के साथ अपना 60वां जन्मदिन मनाया था. राजकोट गुजरात के सौराष्ट्र इलाके का जिला है, जहां रूपाणी का अच्छा खासा सियासी दखल है.


विजय रुपानी छात्र जीवन से ही संघ की शाखा से जुड़े हुए हैं
विजय रूपाणी छात्र जीवन से ही संघ की शाखा से जुड़े हुए हैं.

बर्मा में कैसे पैदा हुए विजय रूपाणी

विजय रूपाणी के पिता का नाम रमणीक लाल रूपाणी है. रमणीक लाल रूपाणी कारोबार के सिलसिले में म्यांमार की राजधानी रंगून (अब यांगून के नाम से इसे जाना जाता है) चले गए थे. वहीं पर 2 अगस्त 1956 में विजय रूपाणी का जन्म हुआ. विजय अपने पिता की सातवीं संतान हैं और सबसे छोटे हैं. रमणीक लाल म्यांमार में अनाज का कारोबार करते थे. अचानक से बर्मा में राजनैतिक अस्थिरता शुरू हो गई. हालात इतने खराब हो गए कि वहां रहने वाले भारतीय एक-एक करके अपने देश लौटने लगे. रमणीक लाल भी उनमें से एक थे. विजय के जन्म के कुछ ही महीने के बाद रमणीक लाल भारत लौट आए. राजकोट आकर रमणीक लाल ने बॉल बियरिंग (मैकेनिकल कामों में यूज़ होने वाला छर्रा) का कारोबार शुरू किया.

भाइयों ने तो कारोबार में पिता की मदद करनी शुरू की, लेकिन विजय रूपाणी छात्र जीवन से ही राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ के कार्यकर्ता बन गए. धर्मेंद्र सिंह जी आर्ट्स कॉलेज से बीए करने के दौरान ही रूपाणी स्टूडेंट पॉलिटिक्स में एक्टिव हो गए. बीए करने के बाद रूपाणी ने वकालत की डिग्री हासिल की. इस दौरान गुजरात में 70 के दशक में नवनिर्माण आंदोलन शुरू हो गया और विजय रूपाणी इस आंदोलन में शामिल हो गए. जब जय प्रकाश नारायण ने आंदोलन की शुरुआत की तो विजय रूपाणी उन शुरुआती छात्र नेताओं में से एक थे, जो इस आंदोलन में शामिल हो गए. जब इमरजेंसी लगी तो भुज और भावनगर की जेलों में उन्होंने एक साल का वक्त बिताया. 1987 का वक्त विजय रूपाणी की सियासी पारी के लिए बड़ा साल था. उस साल म्यूनिसिपल कॉर्पोरेशन का चुनाव था. विजय रूपाणी चुनावी मैदान में उतरे और जीत गए. रूपाणी राजकोट सिविक बॉडी के कॉर्पोरेटर चुने गए थे. बाद में उन्हें पार्टी ने उन्हें शहर अध्यक्ष बना दिया. इसके बाद विजय रूपाणी सियासत की राह पर जब आगे बढ़े, तो फिर बढ़ते ही रहे.


विजय रुपानी के सियासी करियर की शुरुआत निकाय चुनाव से हुई.
विजय रूपाणी के सियासी करियर की शुरुआत निकाय चुनाव से हुई.

1988 से 1996 के बीच विजय रूपाणी राजकोट कॉर्पोरेशन स्टैंडिंग कमेटी के चेयरमैन रहे. 1996-97 में रूपाणी राजकोट के चेयरमैन चुने गए. केशुभाई पटेल की सरकार में विजय रूपाणी को उस 20 सूत्रीय समिति का इन-चार्ज बना दिया गया, जिसके जिम्मे गुजरात विकास का खाका खींचना था. इसी दौरान सौराष्ट्र इलाके में राजकोट को औद्योगिक सेंटर के तौर पर विकसित करने के लिए विजय रूपाणी को पार्टी और पार्टी के बाहर खासी सराहना मिली. वो लगातार चार बार बीजेपी की राज्य ईकाई के महासचिव भी रहे. इसके अलावा राज्य में वो पार्टी के प्रवक्ता भी थे.


जब कांग्रेस के हौसले टूट गए

बीजेपी ने विजय रूपाणी को 2006 में राज्यसभा का सदस्य बना दिया. बतौर राज्यसभा सदस्य विजय रूपाणी कई संसदीय समितियों का हिस्सा रहे, जिनमें वाटर रिसोर्सेज, खाना, पब्लिक डिस्ट्रीब्यूशन, पब्लिक अंडरटेकिंग जैसी चीजें शामिल थीं. 2010 में बीजेपी ने राजकोट म्यूनिसिपल कॉर्पोरेशन का चुनाव फिर से जीत लिया. ये लगातार उनकी दूसरी जीत थी, जिसने कांग्रेस के हौसले तोड़ दिए थे और इसमें विजय रूपाणी की भूमिका की सराहना हुई. 2012 में जब रूपाणी का राज्यसभा का कार्यकाल खत्म हुआ तो सरकार की ओर से 2013 में उन्हें गुजरात म्यूनिसिपल फाइनेंस बोर्ड का चेयरमैन बना दिया गया. बाद में सरकार ने उन्हें स्टेट टूरिज्म कॉर्पोरेशन का चेयरमैन बना दिया. इस दौरान उन्होंने 'खुशबू गुजरात की' कैंपेन लॉन्च किया था, जिसे खूब सराहा गया था.


विजय रुपानी और आनंदीबेन
विजय रुपानी और आनंदीबेन. (वर्तमान और पूर्व)

2014 में जब लोकसभा के चुनाव हुए तो सौराष्ट्र की सभी सीटों पर जीत अकेली बीजेपी की ही हुई. इस जीत ने विजय रूपाणी के कद को पार्टी में और भी मजबूत कर दिया. 2014 में जब राजकोट पश्चिमी सीट के विधायक वजुभाई वाला को कर्नाटक का राज्यपाल बना दिया गया, तो वजुभाई ने विधायक पद से इस्तीफा दे दिया. इसके बाद राजकोट पश्चिमी सीट पर अक्टूबर 2014 में उपचुनाव हुए, जिसमें बीजेपी की ओर से विजय रूपाणी उम्मीदवार बने. उपचुनाव में विजय रूपाणी ने बड़े अंतर से जीत हासिल की. विधायक बनने के कुछ ही हफ्तों के अंदर विजय रूपाणी आनंदीबेन पटेल सरकार में कैबिनेट मंत्री बन गए. उन्हें वाटर सप्लाई, ट्रांसपोर्ट, लेबर और एम्प्लायमेंट विभाग का जिम्मा दिया गया.

सब कुछ ठीक चलता रहा, लेकिन जुलाई 2015 में हार्दिक पटेल ने पाटीदारों को ओबीसी में शामिल करने की मांग को लेकर आंदोलन छेड़ दिया. यह आंदोलन पूरे गुजरात में फैल गया, जिसकी वजह से आनंदीबेन सरकार की खासी किरकिरी हुई. अभी सरकार पाटीदार आंदोलन से उबरने की कोशिश ही कर रही थी कि गुजरात में स्थानीय निकाय चुनाव हो गए. रिजल्ट आया तो बीजेपी को ग्रामीण इलाकों में खासा नुकसान उठाना पड़ा. हालांकि शहर में बीजेपी ने पहले की ही तरह अपनी साख कायम रखी थी. गुजरात बीजेपी अभी इन दोनों ही दिक्कतों से उबरने की कोशिश ही कर रही थी कि प्रदेश अध्यक्ष रणछोड़ फाल्दू ने बतौर अध्यक्ष अपना दूसरा कार्यकाल पूरा कर लिया. तलाश शुरू हुई नए बीजेपी अध्यक्ष की और सबकी नज़र जाकर टिक गई विजय रूपाणी पर. रूपाणी उस वक्त आनंदीबेन पटेल सरकार में परिवहन मंत्री थे. केंद्रीय नेतृत्व ने 19 फरवरी 2016 को विजय रूपाणी को गुजरात बीजेपी का प्रदेश अध्यक्ष घोषित कर दिया.


पटेल आरक्षण आंदोलन के दौरान हार्दिक पटेल
पटेल आरक्षण आंदोलन के दौरान हार्दिक पटेल

बतौर बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष विजय रूपाणी के सामने तलाला का विधानसभा चुनाव था. बीजेपी चुनाव में जीत गई. फिर आए गांधीनगर म्यूनिसिपल कॉर्पोरेशन के चुनाव, जहां बीजेपी ने कांग्रेस से मेयर रहे महेंद्र सिंह राणा को हरा दिया. बीजेपी अध्यक्ष बनने के साथ ही इन दो चुनावी जीत ने गुजरात में विजय रूपाणी की स्वीकार्यता साबित कर दी थी.

जैन-बनिया समुदाय से ताल्लुक रखने वाले विजय रूपाणी का अपने पिता की बनाई फर्म रसिकलाल एंड सन्स में भी हिस्सेदारी है. वो एक स्टॉक ब्रोकर भी हैं. विजय रूपाणी की पत्नी अंजलि बीजेपी की महिला शाखा की सदस्य हैं, जबकि उनका भतीजा मेहुल भी यूनिवर्सिटी पॉलिटिक्स में एक्टिव है. रूपाणी ने खुद का एक एनजीओ भी बनाया है, जिसका नाम श्री पूजित रूपाणी मेमोरियल ट्रस्ट है. रूपाणी खुद इस ट्रस्ट के अध्यक्ष हैं, जो गरीबों के लिए काम करता है.

सत्ता के साथ विवाद भी जुड़ा

विजय रूपाणी अगस्त 2016 में गुजरात के मुख्यमंत्री बने. इससे पहले मई 2016 में शेयर बाजार नियामक संस्था सेबी ने विजय रूपाणी की कंपनी को हेर-फेर वाले ट्रांजेक्शन के आरोप में शो कॉज नोटिस भेजा था, जो जनवरी 2011 से जून 2011 तक किए गए थे. सेबी के मुताबिक रूपाणी और सारंग केमिकल्स के खिलाफ 3 जनवरी से लेकर 8 जून 2011 तक जांच की गई. यह जांच सारंग केमिकल्स के शेयर्स की खरीद-फरोख्त में हुई तथाकथित धांधली के चलते की गई थी. जांच के लगभग 4 साल बाद 13 जुलाई 2015 को न्यायिक निर्णय लेते हुए ट्रांजेक्शन करने वाली दोनों पार्टियों को हेर-फेर में लिप्त घोषित किया.


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विजय रूपाणी की कंपनी को सेबी की ओर से नोटिस भेजा गया था.

इसके बाद 6 मई 2016 को सेबी ने विजय रूपाणी की कंपनी हिंदू अविभाजित परिवार (एचयूएफ) को कारण बताओ नोटिस जारी किया. हिंदू अविभाजित परिवार (एचयूएफ) इनकम टैक्स में बचत करने का तरीका है. एचयूएफ बनाने के लिए परिवार के मुखिया के नाम पर एक बैंक खाता खुलवाया जाता है. खाते में मुखिया के नाम के आगे एचयूएफ शब्द जोड़ दिया जाता है. इस खाते के बाद एचयूएफ के नाम एक नया पैन कार्ड बनवाया जाता है जिसमें मुखिया के नाम के आगे एचयूएफ लगा रहता है.

इनकम टैक्स नियम के मुताबिक किसी हिन्दू परिवार में पिता या किसी वरिष्ठ पुरुष सदस्य को एचयूएफ का मुखिया बनाया जाता है. यह मुखिया एचयूएफ में बतौर मैनेजर परिवार की अगुवाई करता है और परिवार के दूसरे लोग पार्टनर की भूमिका में रहते हैं. इनकम टैक्स नियम के मुताबिक इस तरह बने एचयूएफ को किसी आम आदमी की तरह टैक्स में लाभ मिलता है. वहीं वसीयत में मिली बड़ी संपत्ति को एचयूएफ के जरिए रखने पर भी बड़ा लाभ उठाया जा सकता है. इस कंपनी को जब सेबी ने नोटिस दिया, तो उन्होंने जवाब नहीं दिया. जवाब न मिलने की स्थिति में 27 अक्टूबर 2017 को सेबी ने एचयूएफ पर 15 लाख रुपए के जुर्माने का आदेश जारी किया.

संघ की शाखा से निकलकर गुजरात के शीर्ष पर पहुंचने वाले इस नेता को 22 दिसंबर 2017 को दूसरी बार गुजरात का मुख्यमंंत्री चुना गया. इस पूरे चुनाव में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह के बाद पूरी बीजेपी की नज़र किसी एक शख्स पर थी, तो वो विजय रूपाणी ही थे. शुरुआती उहापोह के बीच विजय रूपाणी ने मुख्यमंंत्री बनकर एक बार फिर साबित कर दिया कि गुजरात का पूरा दारोमदार अमित शाह पर ही था, जिसके सहारे वो अपना आगे का सियासी करियर तय करने वाले हैं.



इस वीडियो में देखिए विजय रूपाणी के मुख्यमंत्री बनने की पूरी कहानी







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