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तिहाड़ जेल के अंदर के ये किस्से आपने पहले कभी नहीं सुने होंगे

JNU स्टूडेंट्स एशिया की सबसे बड़ी जेल से कैसे भाग गए?

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80 के दशक में इंडियन एक्सप्रेस को तिहाड़ एक्सप्रेस कहा जाता था.
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1 जनवरी 2020 (Updated: 1 जनवरी 2020, 09:09 AM IST) कॉमेंट्स
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1. होम मिनिस्टर को तिहाड़ के गेट पर वेट क्यों करना पड़ा?
80 के दशक का तिहाड़. एशिया की सबसे बड़ी जेल जो दिल्ली में अंग्रेजों ने बनानी शुरू की थी. इंदिरा राज में रोज शिकायतें आतीं कि जेल का बुरा हाल है. कुख्यात अपराधियों का राज है. बिकिनी किलर चार्ल्स शोभराज राजा बना घूमता है. इंडियन एक्सप्रेस अखबार खास तौर पर तिहाड़ पर तीखी रिपोर्टिंग कर रहा था.
ऐसे में प्रधानमंत्री और उनकी सरकार से संसद में सवाल पूछे जाते. तब उस वक्त के गृह मंत्री ने खुद औचक दौरे की ठानी.
शाम का वक्त. करीब 8-8.30. कैदी गिनती के बाद बैरकों में भरे जा रहे थे. स्टाफ सुस्ता रहा था और जेल के मुख्य अधिकारी अपनी आरामगाह में थे.
असिस्टेंट सुपरिटेंडेंट सुनील गुप्ता के पास उन दिनों वॉरंट का जिम्मा था. यानी कैदियों के कोर्ट जाने और रिहाई का सब हिसाब किताब. वे उसी में लगे थे. तभी गेट पर तैनात सिपाही भागता हुआ अंदर आता है. असिस्टेंट सुपरिटेंडेंट से पूछता है - कोई सरदार जी आए हैं. अपने को होम मिनिस्टर बता रहे हैं. उनको अंदर आने दूं?
असिस्टेंट सुपरिटेंडेंट भौंचक रह गए.
चिल्लाए - जल्दी खोल दरवाजा.
आमतौर पर वीआईपी विजिटर्स के लिए जेल का बड़ा दरवाजा खुलता था. गेटकीपर ने सरदार जी के लिए बड़ा दरवाजा नहीं खोला. वो छोटे वाले दरवाजे से घुसे.
वारंट इंचार्ज ने तब उन सरदार जी को रिसीव किया. सरदार जी का नाम ज्ञानी जैल सिंह. उस वक्त देश के गृह मंत्री. बाद में 1982 में वह नरसिम्हाराव सरीखों की दावेदारी को किनारे कर देश के राष्ट्रपति बने.
2. क्या होम मिनिस्टर को जेल में शराब ऑफ़र की गई?
1980-82 के दौरान होम मिनिस्टर रहे ज्ञानी ज़ैल सिंह 1982 में देश के राष्ट्रपति बने.
1980-82 के दौरान होम मिनिस्टर रहे ज्ञानी ज़ैल सिंह 1982 में देश के राष्ट्रपति बने.

ज्ञानी जैल सिंह ने तिहाड़ में घुसते ही पहला सवाल पूछा - चार्ल्स शोभराज को कहां रखा है? मुझे उसके पास ले चलो.
होम मिनिस्टर ने चार्ल्स से बात शुरू की. हाल-चाल पूछा. जैल सिंह हिंदी में सवाल पूछ रहे थे. पंजाबी हिंदी. शोभराज का हाथ हिंदी में तंग था. वो इंग्लिश में जवाब दे रहा था. 5 मिनट में बात खत्म हो गई.
सब कुछ मस्त चला. जेल के अफसरों से थोड़े सवाल-जवाब हुए. और जैल सिंह चलने को हुए.
इतने में 'चाचा नेहरू जिंदाबाद' और 'ये चाचा नेहरू की जेल है' के नारे गूंजने लगे. ये नारा कौन लगा रहा था? ये थे दो कैदी. नाम भज्जी और दीना. दोनों ड्रग एडिक्ट. जैल सिंह खूब खुश थे. जेल में भी नेहरू जी जिंदाबाद.
वो खुशी-खुशी जेल से वापस लौटने लगे. मगर मंत्री के साथ आए अधिकारी का माथा ठनका. कैदियों ने उस अफसर को देसी शराब की बोतल दिखाई और पूछा, लेंगे क्या.
अगले दिन इंडियन एक्सप्रेस में खबर छपी. तिहाड़ के अंदर ज्ञानी जैल सिंह को शराब परोसी गई. हंगामा मच गया. चार दिनों के बाद असिस्टेंट सुपरिटेंडेंट के नाम एक लिफाफा आया. सीलबंद. अंदर सस्पेंशन की चिट्ठी थी. बाद में इस सफाई पर कि मैं तो दौरे में साथ था और मेरा काम बैरकों को दुरुस्त रखने का नहीं था, उस जेल अधिकारी की बहाली हुई. 
3. चार्ल्स तिहाड़ से कैसे भागा?
चार्ल्स शोभराज. कुख्यात बिकिनी किलर. इस नाम की वजह. वो विदेशी लड़कियों से दोस्ती करता था. उनको नशीली गोलियां खिलाता. बेहोश करके उनका रेप करता. और फिर मर्डर करके लड़कियों के अंडरगारमेंट्स लेकर भाग जाता.  
उसके भागने के भी कई किस्से थे. मसलन, एक बार विदेश में बंदी के दौरान चार्ल्स को पानी के जहाज से ले जाया जा रहा था. वह जहाज के ऊपरी फ्लोर पर बांधा गया था. उसने अपनी जीभ को जोर से काटा. और मुंह में खून भर लिया. जब पुलिसवाले आए तो खून की उल्टी कर दी. फिर बेहोश होने की एक्टिंग की. सिपाही उसको अस्पताल लेकर गए. शोभराज अस्पताल से चकमा देकर भाग गया.
चार्ल्स शोभराज के तिहाड़ से भागने का तरीका एकदम फ़िल्मी था.
चार्ल्स शोभराज के तिहाड़ से भागने का तरीका एकदम फ़िल्मी था.

अब बात करते हैं उसके तिहाड़ से भागने की. तारीख 16 मार्च, 1986. रविवार का दिन. शोभराज ने ऐलान किया. आज मेरा बर्थडे है. जश्न होगा. उसकी सेल में बर्फी बनी. बर्फी में नशीली गोलियां मिला दी गईं. जितना भी जेल का स्टाफ थे, सबको बर्फी बांटी गई. साथ में पचास रुपये का नया नोट भी. सब चार्ल्स को जन्मदिन की बधाइयां दे रहे थे.
ये सबकुछ पांच मिनट के अंदर हुआ. नशीली गोलियां काफी तेज थीं. थोड़े समय के अंदर जेल का सारा स्टाफ बेहोश था. शोभराज ने आराम से जेल का ताला खोला. और बाहर निकल गया. साथ में 13 और कैदी जेल से फरार हो गए.
रविवार के दिन दूरदर्शन पर शाम में फ़िल्म आती थी. जेलर टीवी पर फ़िल्म देख रहे थे. क्लाइमैक्स पर फ़िल्म रोकी गई. फ़िल्म रोककर दूरदर्शन पर ब्रेकिंग चली. तिहाड़ जेल से चार्ल्स शोभराज फरार.
जब जेलर भागकर जेल पहुंचे तो देखा, सारे संतरी बेहोश पड़े हैं. तलाशी ली गई तो सबकी जेब में पचास का नया नोट मिला. दो सेवादार भी नशे में बाहर भाग गए थे. जब उनका नशा उतरा तो वापस आए. तब तक उनके ऊपर जेल से भागने का चार्ज लग चुका था.
शोभराज भी कुछ हफ्तों के बाद गोवा में पकड़ा गया. कई लोगों ने कहा, उसने जानबूझकर पकड़वाया. पिछले मामले में उसकी सजा पूरी होने को थी. मगर वो देश से बाहर दूसरे ट्रायल्स और प्रत्यर्पण झेलने के लिए नहीं जाना चाहता था. इसलिए सब ड्रामा किया.
 4. तिहाड़ से भागी ‘हेमा मालिनी’ को जेएनयू में क्यों तलाशा गया?
साल था 1983. जेएनयू में प्रोटेस्ट चल रहा था. वीसी के खिलाफ. प्रोटेस्ट बढ़ा तो पुलिस बुलाई गई. जेएनयू में पहली बार. स्टूडेंट्स की गिरफ्तारी हुई. मर्डर जैसे चार्जेज़ में. मजिस्ट्रेट ने उनको तिहाड़ भेज दिया. गिरफ्तार स्टूडेंट्स में एक अभिजीत बनर्जी भी थे. जिनको 2019 में अर्थशास्त्र का नोबेल मिला.
जेएनयू में 1983 में भी एक प्रोटेस्ट हुआ था. वीसी के खिलाफ. कई स्टूडेंट्स को तिहाड़ भेज दिया गया था.
जेएनयू में 1983 में भी एक प्रोटेस्ट हुआ था. वीसी के खिलाफ. कई स्टूडेंट्स को तिहाड़ भेज दिया गया था.

मुद्दे पर आते हैं. जेएनयू स्टूडेंट्स को बी-क्लास में रखा गया था. उनको ये सुविधा थी कि वो अपने घरवालों से आमने-सामने बैठकर बात कर सकते थे.
जेल में जो मिलने आते थे, उनकी कलाई पर मुहर लगाई जाती थी. स्टूडेंट्स ने चालाकी की. रिश्तेदारों की कलाईयों को अपनी कलाई पर दबाया. अब मुहर इन स्टूडेंट्स की कलाईयों पर भी थी.
जब जेल में ये खबर फैली तो हंगामा मचा. जेएनयू में खोजबीन चली. किसके नाम से? बॉलीवुड की मशहूर हीरोइनों के नाम से. हेमा मालिनी, शर्मिला टैगोर, माला सिन्हा जेएनयू में तलाशी जा रही थीं. स्टूडेंट्स ने पुलिस के रिकॉर्ड में यही नाम लिखवाए थे. अपने मां-बाप का नाम भी उन्होंने गलत लिखवाया था. न ये मिलने वाले थे और न ही मिले. फिर जाकर इसकी रिपोर्ट पुलिस में की गई.
अगले दिन पूरा देश अखबारों में ये खबर पढ़ रहा था - देश में इससे बड़ा जेलब्रेक कभी नहीं हुआ.
5. कैदी को जेल के स्टाफ सलामी क्यों दे रहे थे?
जेलर का कैदियों से बाल कटवाना. मालिश करवाना. आम बात होती है. आमतौर पर कैदी ये काम खुशी-खुशी करते हैं. उनको इससे फायदा भी होता है. एक तो जेलर का करीबी होने से कोई उनपर हाथ नहीं डालता. और दूसरा, अपने दुश्मनों की मुखबिरी का मौका.
एलपी निर्मल तिहाड़ में जेलर हुआ करते थे. एक दिन उनको थकान महसूस हुई. एक कैदी को बुलाया. मालिश के लिए. जेलर साहब ने वर्दी उतार कर टांग दी. और मालिश करवाने लगे. इतना खोए कि आंख लग गई. खर्राटे वाली नींद. कैदी ने मौका ताड़ लिया. जेलर की वर्दी पहनी. और मजे से जेल से बाहर निकल लिया. 
ये सारे किस्से आपको इस किताब में मिलेंगे.
ये सारे किस्से आपको इस किताब में मिलेंगे.

शाम में कैदियों की गिनती हुई, तब जाकर भेद खुला. चारों तरफ सिपाही दौड़ाए गए. कैदी के घर. उसके रिश्तेदारों के घर. कुछ समय बाद वो मजे में सोया मिला. अपनी बहन के घर. वो भी जेलर की वर्दी में.
जेल में उससे पूछा गया -
क्यों बे, तुम्हें किसी ने रोका नहीं?
कैदी ने मजे से जवाब दिया -
कैसी बात करते हैं? आपका राइफ़लमैन मुझको देखकर सलाम कर रहा था.
6. अंत में कुछ मिथ
मौत की सजा पानेवाले से अंतिम इच्छा नहीं पूछी जाती है. पूछी जाती है तो उसकी वसीयत. अगर कोई संपत्ति हो तो वो किसे देना चाहेगा?
जज मौत की सजा सुनाकर अक्सर अपनी कलम तोड़ देते हैं.
मौत की सजा वाले वारंट को ब्लैक वारंट के नाम से जाना जाता है. कैदी को काले कपड़े पहनाए जाते हैं. और, चेहरा भी काले नकाब से ढंका जाता है. इसकी वजह है. मौत के बाद आदमी की जीभ बाहर आ जाती है. चेहरा बेढंगा हो जाता है. कोई ये देखे नहीं, इसलिए ऐसा किया जाता है.
जल्लाद को फांसी की सजा देने से पहले शराब की एक बोतल दी जाती है. एक फांसी के लिए एक जल्लाद को 150 रुपये दिए जाते हैं.

"इस लेख में लिखे किस्से सुनील गुप्ता और सुनेत्रा चौधरी की लिखी किताब ‘ब्लैक वॉरेंट-कन्फेशंस ऑफ अ तिहाड़ जेलर’ से लिए गए हैं.  सुनील गुप्ता तिहाड़ जेल के जेलर रहे हैं. सुनेत्रा चौधरी वरिष्ठ पत्रकार है. इस किताब को प्रकाशित किया है रोली पब्लिकेशन ने."




वीडियो : किताबवाला: तिहाड़ में कैदी मालिश से लेकर फांसी तक के खौफनाक सच सामने आए

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