The Lallantop
Advertisement

गुलशन कुमार की हत्या की पूरी कहानी

12 अगस्त 1997 को एक शिव मंदिर में पूजा के वक्त गुलशन कुमार की गोली मारकर हत्या कर दी गई थी.

Advertisement
Gulshan Kumar
दिल्ली में एक पंजाबी परिवार में जन्मे गुलशन कुमार का पूरा नाम गुलशन कुमार दुआ था. उनके पिता चंद्रभान दुआ की दरियागंज में जूस की दुकान हुआ करती थी. (तस्वीर: इंडिया टुडे)
font-size
Small
Medium
Large
12 अगस्त 2022 (Updated: 12 अगस्त 2022, 14:10 IST)
Updated: 12 अगस्त 2022 14:10 IST
font-size
Small
Medium
Large
whatsapp share

शुरुआत एक सवाल से. T-सीरीज में T का मतलब क्या है?

जवाब है त्रिशूल.

11 जुलाई 1983 को T-सीरीज (T-Series) की स्थापना हुई. कंपनी को पहला बड़ा ब्रेक मिला 1988 में. उस साल आमिर खान और जूही चावला की एक फिल्म रिलीज हुई थी. क़यामत से क़यामत तक. फिल्म के 80 लाख कैसेट बिके. इसके बाद 1990 में आशिकी रिलीज हुई और उसकी म्यूजिक एल्बम ने तो रिकॉर्ड ही तोड़ दिए. कुमार साने नए किशोर कुमार बन चुके थे. इसी फिल्म से नदीम-श्रवण की जोड़ी को भी पहचान मिली.

इसके बाद का दशक T-सीरीज के नाम रहा. अनुराधा पौंडवाल नई लता थीं, सोनू निगम नए रफ़ी. दरियागंज में जूस की दूकान चलाने वाले एक लड़के ने म्यूजिक इंडस्ट्री की सूरत बदल कर रख दी थी. ये सब हुआ एक सात रूपये की कैसेट की बदौलत और इसी के चलते उस लड़के का नाम पड़ा कैसेट किंग गुलशन कुमार (Gulshan Kumar Murder).

Gulshan Kumar
कई लोग अक्सर कहते हैं कि 80 के दशक में हिंदी सिनेमा का संगीत नीचे गिरना शुरू हुआ जो मिड 90’s तक चला. इसके पीछे पश्चिम के डिस्को और पॉप संगीत के प्रभाव जैसे कारकों के साथ-साथ टी-सीरिज़ और गुलशन कुमार भी एक प्रभावी कारक थे (तस्वीर : आज तक).

1997 में जब गुलशन कुमार अपनी पीक पर थे. टिप्स और सारेगामा को पिछड़ते हुए T-सीरीज 65 % मार्केट पर कब्ज़ा कर चुकी थी. हर बड़ी फिल्म के म्यूजिक राइट्स टी सीरीज के पास थे. उसी साल गुलशन कुमार की हत्या कर दी गई. ये वो दौर था जब अंडरवर्ड और फिल्म इंडस्ट्री का रिश्ता जग-जाहिर था. रियल स्टेट चरमरा चुका था. और अब फिल्म इंडस्ट्री के लोग अंडरवर्ल्ड के निशाने पर थे.

गुलशन कुमार की हत्या में भी अंडरवर्ल्ड का हाथ था. हत्या की चार्जशीट में अबु सलेम का नाम भी शामिल था. लेकिन जब भी अदालत में उसका नाम आया, उसके नाम के आगे एब्सेंट लिख दिया गया. तब भी जब वो मुम्बई में ही आर्थर रोड जेल में सजा काट रहा था. गुलशन कुमार हत्या में अबु सलेम पर केस क्यों नहीं चल पाया, कैसे हुई गुलशन कुमार की हत्या की प्लानिंग, कौन -कौन लोग इसमें शामिल थे, आइये जानते हैं.

अंडरवर्ल्ड और बॉलीवुड 

12 अगस्त 1997 की तारीख. मंगलवार का दिन था. 42 साल के गुलशन कुमार पूजा की थाली लेकर अपने घर से निकलते हैं. लोखंडवाला कॉम्प्लेक्स जहां बॉम्बे फिल्म इंडस्ट्री के कई सितारे रहते थे, वहीं गुलशन कुमार का बंगला भी था. घड़ी 10 बजकर 10 मिनट बता रही थी जब सफ़ेद कुर्ता और सफ़ेद सैंडिल पहने गुलशन कुमार अपनी मैरून रंग की मारुति एस्टीम से उतरे. सामने शिव मंदिर था.

nadeem shravan
नदीम श्रवण की जोड़ी (तस्वीर: आज तक)

जीतनगर में बना ये मंदिर करीब चार साल पहले गुलशन कुमार को दिखा था. भगवान शिव-पार्वती के भक्त गुलशन कुमार ने महंगे टाइल लगाकर मंदिर को नया बनवाया. तब से हर सुबह-शाम वो इस मंदिर में दर्शन करने आते थे. रूटीन फिक्स्ड था और इस रूटीन पर नजर थी तीन लोगों की. जो उस दिन ताक लगाए गुलशन कुमार के इंतज़ार में खड़े थे. आगे क्या हुआ इससे पहले थोड़ा पीछे चलते हैं, ये समझने के लिए कि गुलशन कुमार पर नजर रखने वाले ये लोग कौन थे, और इसकी वजह क्या थी.

यहां पढ़ें- 

सिंधु घाटी सभ्यता की पूरी कहानी

भूटान भारत का हिस्सा क्यों नहीं बन पाया?

पूरी कहानी की शुरुआत होती है, जून 7, 1994 से. जावेद रियाज़ सिद्दीकी नाम के एक फिल्म प्रोड्यूसर हुआ करते थे. सिद्दीकी एक फिल्म बना रहे थे. नाम था तू विष मैं अमृत, इस फिल्म में अदाकारा थीं, ज़ेबा अख्तर. ज़ेबा एक पाकिस्तानी एक्ट्रेस थी, और कथित तौर पर उन्हें दाऊद इब्राहिम के कहने पर फिल्म में लिया गया था. लेकिन ज़ेबा को साइन करने के कुछ ही दिनों में सिद्दीकी ने उन्हें हटाने का फैसला किया. ये बात दाऊद को नागवार गुज़री को जून 7, 1994 को उनकी गोली मारकर हत्या कर दी गई.

मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार इस हत्या के बाद ही गुलशन कुमार को भी अंडरवर्ल्ड से कॉल आने शुरू हो गए थे. इसी के चलते यूपी के तत्कालीन मुख़्यमंत्री कल्याण सिंह ने उन्हें एक बॉडीगार्ड भी मुहैया कराया था. मुंबई 1994 से 1997 के बीच कई फिल्म प्रड्यूसरों को धमकियां मिली. इनमें सुभाष घई और गुप्त और मोहरा फेम राजीव राय का नाम भी शामिल था.

नदीम सैफी और गुलशन कुमार के बीच तनातनी 

फिर आया साल 1997. उस साल नदीम श्रवण जोड़ी फेम नदीम सैफी ने एक एल्मब लांच की. एल्बम का नाम था ‘हाय अजनबी’. इस एल्बम के कुछ गानों को नदीम ने खुद गाया था. नदीम चाहता था कि T-सीरीज इस एल्बम के राइट्स खरीद के इसे प्रमोट करे. लेकिन गुलशन इस बात के तैयार नहीं हुए. 

गुलशन कुमार के भाई किशन कुमार के अदालत में दिए बयान के अनुसार, गुलशन ने नदीम से कहा कि उनकी आवाज अच्छी नहीं है. लेकिन फिर किसी तरह बात बनी. टी सीरीज ने राइट्स खरीद लिए, प्रमोशन के लिए एक वीडियो भी बनाया लेकिन एल्बम फ्लॉप साबित हुई. नदीम ने इसका दोष गुलशन कुमार को दिया. उसे लगता था कि ठीक से पब्लिसिटी न होने के चलते फिल्म फ्लॉप हुई है. अदालत में किशन कुमार ने बताया कि एक मुलाक़ात के दौरान नदीम ने गुलशन को देख लेने की धमकी दी थी.

अबु सलेम का फोन 

इसके बाद 5 अगस्त 1997 को गुलशन कुमार के पास एक कॉल आया. दूसरी तरफ अंडरवर्ल्ड डॉन अबु सलेम की आवाज थी. ‘वैष्णो देवी में रोज़ लंगर खिलते हो, कुछ हमें भी खिलाओ’, सलेम ने कहा. इसके बाद सलेम ने 10 खोखे यानी 10 करोड़ की मांग की. इसी कॉल में सलेम ने पूछा कि तुमने नदीम की एल्बम को सही से प्रमोट क्यों नहीं किया. तब गुलशन कुमार ने जवाब दिया कि नदीम की आवाज अच्छी नहीं है, इसलिए एल्बम फ्लॉप हुई.

Abu salem
अबू सलेम को साल 2005 में प्रत्यर्पण कर भारत लाया गया (तस्वीर: आज तक) 

इसके बाद 9 अगस्त को एक बार दुबारा अबु सलेम का कॉल आया. किशन कुमार अदालत में बताते हैं कि इस कॉल में दुबारा पैसों की मांग दोहराई गयी. सलेम ने कहा कि तुम अंडरवर्ल्ड को हलके में ले रहे हो. ख़ास बात ये थी कि सलेम ने इसमें मुंबई पुलिस का जिक्र भी किया. बोला, तुम अभी तक पुलिस के पास नहीं गए मतलब तुम हमें सीरियसली नहीं ले रहे. आगे जो भी होगा उसकी जिम्मेदारी तुम्हारी होगी. ये कहकर सलेम ने फोन काट दिया.

यहां पढ़ें-

इंडियन साइंटिस्ट ने एक पेपर लिखा और फिजिक्स के नियम बदलने पड़ गए

इस इंडियन जासूस ने हिटलर तक को बेवक़ूफ़ बना डाला था

इन धमकियों के बावजूद गुलशन कुमार पुलिस के पास नहीं गए. उनके दोस्तों ने उन्हें पुलिस के पास जाने को कहा, लेकिन उन्हें लगता था कि पुलिस के पास जाने से कोई फायदा नहीं होगा. गुलशन कुमार गलत थे. एक महीने पहले ही निर्देशक राजीव राय पर हमला हुआ था. लेकिन उन्हें पुलिस प्रोटेकशन मिली हुई थी. जिसके चलते उनकी जान बच गयी. उससे पहले अबु सलेम ने सुभाष घई पर हमले की प्लानिंग भी की थी. लेकिन पुलिस ने उसके लड़कों को पहले ही पकड़ लिया था. इस घटना के बाद इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्टर ने अबु सलेम से बात की थी. रिपोर्टर ने सलेम से पूछा, क्या तुम्हारी धमकियां सिर्फ कोरी हैं. सलेम ने जवाब दिया, सिर्फ एक हफ्ता और इंतज़ार करो.

बहुत कर ली पूजा

वो हफ्ता आया, अगस्त में. उस दिन गुलशन कुमार का गार्ड भी उनके साथ नहीं था. तबीयत ख़राब होने के चलते वो घर पर ही रुक गया था. 10 बजकर 40 मिनट पर गुलशन कुमार मंदिर से पूजा करके अपने गाड़ी की तरफ वापिस आते हैं. कुछ कदम चलते ही कुमार को अपनी कनपट्टी पर एक रिवाल्वर महसूस होता है. कुमार देखते हैं, नीली जींस पहले लम्बे बाल वाला एक आदमी खड़ा था. कुमार कहते हैं, ये क्या कर रहे हो?

Murder plan
हत्या का पूरा घटनाक्रम (तस्वीर: इंडिया टुडे)

दूसरी तरफ से जवाब आता है, ‘बहुत कर ली पूजा, अब ऊपर जाकर करना’. एक गोली चलती है और कुमार के माथे को छूकर निकल जाती है. वो जमीन पर गिर जाते हैं. पूजा का सारा सामान भी बिखर जाता है. कुमार भागने की कोशिश करते हैं. वो पास में मौजूद एक घर में मदद की गुहार लगाते हैं. लेकिन उस घर में मौजूद औरत दरवाजा बंद कर लेती है. कुमार एक और दरवाजा खटखटाते हैं. वहां से भी कोई मदद नहीं मिलती. उनका ड्रावर रूपलाल सूरज कलश उठाकर हमलावरों की ओर फेंकता है. रूपलाल के दोनों पैरों में गोली लगती है और वो भी वहीं गिर जाता है. इसके बाद हमलावर गुलशन कुमार के पास पहुंचते हैं. कुमार अब तक एक सार्वजनिक शौचालय के पास खड़े. दो लोग कुमार पर गोली चलाते हैं. कुल 16 गोलियां उनकी पीठ और गर्दन पर लगती हैं. वो दीवार से सहारा लेने की कोशिश करते हैं. लेकिन वहीं निढाल हो जाते हैं. जिन फिल्मों के लिए कुमार संगीत देते थे, उनके किसी सीन की तरह. उनके ऊपर दीवार पर एक टाइल लगी थी, जिस पर देवी का चित्र था.

कुल दो मिनट में सारा खेल ख़त्म हो जाता है. तीनों हमलावर पास खड़ी एक टैक्सी के ड्राइवर को बाहर खींचकर निकालते हैं. और टैक्सी लेकर चम्पत हो जाते हैं. आधे घंटे बाद पुलिस आती है. गुलशन कुमार को नजदीक के कूपर हॉस्पिटल ले जाया जाता है. जहां डॉक्टर उन्हें मृत घोषित कर देते हैं. इंडिया टुडे के एक रिपोर्टर ने तब अंडरवर्ल्ड डॉन छोटा राजन से बात की थी. राजन ने बताया कि गुलशन कुमार की हत्या में सलेम का हाथ है. उसने ये भी बताया कि डायरेक्टर राजीव राय पर हमला भी सलेम ने कराया था. और ये सब दाऊद के इशारे पर हो रहा था.

नदीम सैफी और अबु सलेम पर केस क्यों नहीं चला? 

दिल्ली ले जाकर गुलशन कुमार का अंतिम संस्कार कराया जाता है. और पुलिस अपनी तहकीकात शुरू कर देती है. पुलिस की इन्वेस्टिगेशन में जो कहानी सामने आई वो इस प्रकार थी.- 
मई 1997 में दुबई में अनीस इब्राहिम के दफ्तर में एक मीटिंग हुई. अनीस इब्राहिम यानी दाऊद का छोटा भाई. इस मीटिंग में अनीस, अबु सलेम और एक और गैंगस्टर था. इस मीटिंग में तय हुआ कि गुलशन कुमार को मारकर एक नजीर पेश की जाएगी. इसके बाद तीन लोगों को हायर किया गया. इनमें से एक था असद राउफ उर्फ़ दाऊद मर्चेंट, जो अबु सलेम का ख़ास था. मर्चेंट और उसके भाई अब्दुल राशिद को पुलिस गिरफ्तार कर लेती है. इसके अलावा चार्जशीट में 19 लोगों को गुनाहगार बनाया जाता है. 

gulshan kumar death
गुलशन कुमार की हत्या के बाद बाद तमाम गिरफ्तारियां हुईं और अंडरवर्ल्ड का दबदबा इंडस्ट्री पर खत्म होने लगा (तस्वीर: आज तक)

इसमें अबु सलेम, नदीम सैफी के साथ साथ एक और नाम था जो चौंकाने वाला था, टिप्स कंपनी के मालिक रमेश तौरानी. पुलिस ने दावा किया कि नदीम के साथ साथ रमेश तौरानी ने गुलशन कुमार की 25 लाख की सुपारी दी थी. 2002 में इस केस में पहला फैसला आया. पुलिस ने दाऊद मर्चेंट को उम्र कैद की सजा सुनाई. बाकी लोगों को रिहा कर दिया गया. पुलिस रमेश तौरानी के खिलाफ सबूत पेश नहीं कर पाई, इसलिए अदालत ने उन्हें बेगुनाह माना. 

नदीम सैफी तब तक मुंबई छोड़कर लन्दन चला गया था. सरकार की तरफ से उसके प्रत्यर्पण की कोशिश की गई. लेकिन ब्रिटिश अदालत ने उसके खिलाफ पेश किए साक्ष्यों को अपर्याप्त मानते हुए प्रत्यर्पण से इंकार कर दिया. बाद में नदीम ने ब्रिटिश नागरिकता ले ली और कभी भारत नहीं लौटा. जहां तक अबु सलेम की बात है उसे 2005 में पुर्तगाल से भारत लाया गया. लेकिन उस पर कभी गुलशन कुमार ह्त्या का केस नहीं चला. इसका कारण था पुर्तगाल और भारत के बीच हुई समझौते की शर्तें. इस समझौते के अनुसार अबु सलेम पर सिर्फ वो ही केस चल सकते थे जिन पर सहमति बनी हो. और इस लिस्ट में गुलशन कुमार हत्या का केस नहीं था. इसलिए 2005 के बाद केस की सुनवाई के दौरान अबु सलेम को एब्सेंट माना गया, जबकि वो कुछ दूर आर्थर रोड जेल में बंद था.

इस केस में आख़िरी फैसला साल 2021 में आया था. तब अदालत ने अब्दुल राउफ उर्फ़ दाऊद मर्चेंट और उसके बाद अब्दुल राशिद को उम्र कैद की सजा सुनाई. फैसला सुनाते हुए अदालत ने कहा कि नदीम सैफी और अबु सलेम के कहने पर हत्या को अंजाम दिया गया था. लेकिन तकनीकी कारणों के चलते अबु सलेम पर केस चल नहीं पाया. और नदीम सैफी आज तक भारत नहीं लौटा. इसलिए इस केस में इंसाफ कितना हुआ ये तो नहीं कहा जा सकता लेकिन इतना जरूर है कि गुलशन कुमार की लेगेसी आज भी जिन्दा है. टी सीरीज़ आज भी संगीत का दुनिया का सबसे बड़ा नाम है.

वीडियो देखें- जब फूलन देवी के लिए यूपी और एमपी पुलिस आपस में भिड़ गई थी

thumbnail

Advertisement

election-iconचुनाव यात्रा
और देखे

Advertisement

Advertisement

Advertisement