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सिंधु घाटी सभ्यता की पूरी कहानी

दुनिया की सबसे प्राचीन मानव सभ्यताओं में से एक सिंधु घाटी सभ्यता की शुरुआत 3300 ईसा पूर्व हुई थी.

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Indus Valley Civilization
4000 पहले पनपी सिंधु घाटी सभ्यता के निशान सिंधु घाटी के किनारे खुदाई में मिले और अब तक मिल रहे हैं (तस्वीर: harappa.com)
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22 जुलाई 2022 (Updated: 20 जुलाई 2022, 17:58 IST)
Updated: 20 जुलाई 2022 17:58 IST
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1827 की बात है. ब्रिटिश फौज़ में एक सैनिक हुआ करता था. नाम था, जेम्स लुइस उर्फ़ चार्ल्स मेसन. मेसन को पुराने सिक्के इकट्ठे करने का शौक था. इसलिए उसने फौज की नौकरी छोड़ दी और पंजाब के इलाके में विचरने लगा. पंजाब के इलाके में कई जगह खुदाई में उसे पुरातन सिक्के मिले. इसी सिलसिले में 1829 के आसपास वो मोंटगॉमरी पंहुचा. आज के हिसाब से ये पाकिस्तान के हिस्से वाले पंजाब का साहीवाल जिला है. 

मोंटगॉमरी से करीब 25 किलोमीटर दूर हड़प्पा (Harappa) में मेसन को एक पुरातन शहर के अवशेष दिखाई दिए. ये शहर किसने बनाया या ये कितना पुराना था, इसका इल्म स्थानीय लोगों को भी नहीं था. मेसन ने इस शहर का ब्यौरा अपनी डायरी में दर्ज़ किया और इंग्लैंड लौट गया. वहां पहुंचकर उसने एक किताब लिखी. इस किताब में उसने बलोचिस्तान, अफ़ग़ानिस्तान और पंजाब के इलाके में अपनी यात्रा का ब्यौरा लिखा. जिसमें हड़प्पा में मिले उस पुरातन शहर का भी जिक्र था.

लगभग इसी दौर में मिश्र और मेसोपोटामिया की सभ्यता के नए-नए राज निकल रहे थे. फ्रांस ने मिश्र पर कब्ज़ा कर लिया था. और वो वहां खुदाई कर मिश्र की सभ्यता का पता लगा रहे थे. ये खबर पूरे यूरोप में फ़ैल रही थी. और इसी के चलते ब्रिटिश अफसरों पर आर्कियोलॉजी का चस्का चढ़ रहा था.

मोहनजोदाड़ो और हड़प्पा की खुदाई 

1861 में ब्रिटिश सरकार ने ईस्ट इंडिया कम्पनी से भारत का शासन अपने हाथ में लिया. और इसी साल स्थापना हुई आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया, ASI की. इसका पहला डायरेक्टर बनाया गया एलेग्जेंडर कनिंघम को. कनिंघम ब्रिटिश फौज में एक अफसर थे, और उन्हें शुरुआत से ही आर्कियोलॉजी का शौक था. 

जॉन मार्शल और एलेग्जेंडर कनिंघम (तस्वीर: Wikimedia Commons)

मेसन की किताब पढ़कर कनिंघम ने हड़प्पा का दौरा किया. कनिंघम भारत में बुद्ध स्तूपों की खोज में लगे थे. इसलिए शुरुआत में उन्हें लगा कि ये कोई खोया हुआ बौद्ध शहर है. यहां उन्हें कुछ सील्स भी मिली. उन्होंने थियोरी दी कि ये सील भारत के बाहर से लाई गई थी और हड़प्पा में मिले अवशेष एक हजार साल पुराने हैं.

1904 में ASI के डायरेक्टर बने जॉन मार्शल. जॉन मार्शन ने दया राम साहनी को हड़प्पा की खुदाई का काम सौंपा. लगभग इसी समय पर सिंध प्रान्त में एक और साइट के पास कुछ अवशेष मिले. ये मोहनजोदाड़ो था (Mohenjodaro). जॉन मार्शंल ने डी आर भंडारकर और आर डी बनर्जी को इस साइट के इंस्पेक्शन का काम सौंपा. 1923 में बनर्जी ने मार्शल को बताया कि ये अति पुरातन काल का शहर हो सकता है. बनर्जी ने ये भी नोट किया कि हड़प्पा और मोहनजोदाड़ो में कई समानताएं थीं. दयाराम सहानी और बनर्जी के नोट्स मिलाए गए.

अंत में 1924 में जॉन मार्शल ने लन्दन की एक मैगज़ीन के माध्यम से घोषणा की कि उन्होंने एक पुरातन सभ्यता की खोज की है. जिसे नाम दिया गया सिंधु घाटी सभ्यता (Indus Valley Civilization). चूंकि पहली खोज हड़प्पा में हुई थी, इसलिए इसे हड़प्पन सभ्यता (Harrapan Civilization) भी कहा जाता है.

मोहनजोदाड़ो की खुदाई का काम 1925 में शुरू हुआ. जो 1931 तक चला. 1947 में बंटवारे के बाद ये हिस्सा पाकिस्तान में चला गया. आगे चलकर हरियाणा और पंजाब के इलाके में बहने वाली घग्गर-हाकरा नदी के किनारे और कई साइट्स मिलीं. ऐसा भी माना जाता है कि घग्गर-हाकरा असल में सरस्वती नदी थी जिसका में वर्णन पौराणिक ग्रंथों में मिला है. बहरहाल साल 2002 तक हड़प्पन सभ्यता की एक हजार से ज्यादा साइट्स खोजी जा चुकी थी. 2008 की एक रिपोर्ट के अनुसार इनमें से 616 साइट्स भारत में हैं जबकि 406 पाकिस्तान के हिस्से में. सिंधु घाटी सभ्यता के पांच शहर प्रमुख है. हड़प्पा, मोहनजोदड़ो, धोलावीरा, गनेरीवाला और राखीगढ़ी.

चलिए समझते हैं सिंधु घाटी सभ्यता के शहरों से हमें तब के मनुष्यों के बारे में क्या पता चला. इसके अलावा तीन सवालों के जरिए सिंधु घाटी सभ्यता के बारे में जानने की कोशिश करेंगे. सिंधु घाटी सभ्यता की शुरुआत कैसे हुई? 
आज से करीब 5 हजार साल पहले लोग कैसे रहते थे. 
और तीसरा सवाल, सिंधु घाटी सभ्यता का अंत कैसे हुआ? क्यों ये शहर खंडरों में तब्दील हो गए.

सिंधु घाटी सभ्यता की शुरुआत कैसे हुई? 

शुरू से शुरू करते हैं. पहले सवाल से. सिंधु घाटी सभ्यता की शुरुआत कैसे हुई. सिंधु घाटी सभ्यता की खोज के लिए जिन साइट्स की खुदाई हुई, उनमें से एक काम नाम है मेहरगढ़. ये साइट बलोचिस्तान में है. इसका समय 7000 से 5500 ईसा पूर्व माना जाता है. इसी काल की एक साइट भारत में भी है. भिरड़ाना, जो फतेहाबाद जिले में पड़ती है. इन दोनों साइट्स का समय नियोलिथिक पीरियड यानी नव पाषाण काल का माना जाता है. आसान शब्दों में वो समय जब इंसान ने खेती करना शुरू कर दिया था. इसे पूर्व हड़प्पा काल भी कहा जाता है. क्योंकि इस काल में सभ्यता की शुरुआत नहीं हुई थी. बस छोटी छोटी बस्तियों का निर्माण हुआ था.

मोहनजोदाड़ो (तस्वीर: Thinkstock)

हड़प्पा या सिंधु घाटी में सभ्यता पनपी ईसा से 3300 साल पहले. जब पहाड़ी इलाकों से लोग मैदानों की तरफ आए. सिंधु घाटी की खुदाई में मिले सबसे पहली सील्स भी इसी समय की हैं. 
सिंधु और घग्गर खाकरा, सहित बाकी नदियों के किनारे का इलाका बहुत उपजाऊ था. इसीलिए इन नदियों के किनारे लोगों ने खेती करना शुरू किया. इस समय तक लोगों ने मटर, तिल, और कपास की खेती शुरू कर दी थी.

फिर 2600 ईसा पूर्व आते आते नगरों की शुरुआत हुई. इसी काल में लोगों ने बड़ी-बड़ी दीवारें और चारदीवारी बनाकर अनाज के भंडारण की प्रक्रिया शुरू की. मिट्टी के बर्तन बनना भी अब तक शुरू हो चुके थे. 2600 ईसा पूर्व से लेकर 1900 ईसा पूर्व के समय को सिंधु घाटी सभ्यता का स्वर्णिम काल माना जाता है. इस काल के जो अवशेष मोहनजोदाड़ो सहित बाकी साइट्स पर मिले, चलिए जानते हैं उनसे क्या पता चलता है.

टाउन प्लानिंग 

पुरातत्वविदों के अनुसार मानव सभ्यता 6 अलग-अलग स्थानों पर स्वतंत्र रूप से उभरी. इनमें से चार प्रमुख हैं, सिंधु घाटी सभ्यता, मेसोपोटामिया, मिश्र और चीन की सभ्यता. सिंधु घाटी सभ्यता की ख़ास बात ये है कि ये सबसे बड़ी और सबसे बड़े इलाके में फ़ैली सभ्यता थी. अपने शीर्ष पर सिंधु घाटी सभ्यता का फैलाव लगभग 10 लाख किलोमीटर के इलाके में था. जिसमें लगभग 50 लाख लोग रहते थे, ऐसा अनुमान लगाया जाता है.

हड़प्पा (तस्वीर: thoughtco)

अलग-अलग हड़प्पन इलाके एक मुख्य नगर के इर्दगिर्द बनाए गए थे. नगर का निर्माण भी एक विशेष प्लानिंग के तहत हुआ था. हर शहर के दो हिस्से थे. एक ऊपरी गढ़ और एक निचला गढ़. ऊपरी गढ़ में सभी मुख्य इमारतें होती थीं. मसलन गोदाम जिनमें अनाज का भंडार किया जाता था. इस ऊपरी गढ़ को जमीन से कुछ ऊंचाई पर बनाया जाता था. जिसमें चारों तरफ से चारदीवारी होती थी.

इसके बाद निचला गढ़ भी चारदीवारी से घिरा होता था. ये मुख्य शहर था जहां लोग रहते थे. और इसे ब्लॉक्स के आकर में बनाया जाता था. ब्लॉक्स के बीच से सड़कें निकलती थी. जिनकी चौड़ाई लगभग 10 मीटर के आसपास होती थी. लगभग दो बैलगाड़ियों के निकलने की जगह के बराबर. इसके अलावा घरों की बीच से भी छोटी-छोटी गलियां निकलती थीं. शहरों के निर्माण के लिए ईट का इस्तेमाल होता था. शहर की नींव में भट्टी में पकाई पक्की ईटें लगती थी. और दीवार पर कच्ची. 

इन ईंटों की गुणवत्ता किस कदर होती थी उसके लिए एक किस्सा सुनिए. जब हड़प्पा और मोहनजोदाड़ो की खोज की गई तो धीरे-धीरे यहां से ईंटें गायब होने लगी. पता चला कि कॉन्ट्रैक्टर ब्रिज आदि बनाने में इनका इस्तेमाल कर रहे थे. यहां तक कि स्थानीय लोग ने भी इन ईंटों को अपने घरों में लगाने के लिए ले गए. 

नगर की चारदीवारी बनाने में विशेष ध्यान दिया जाता था. विशेषज्ञ अनुमान लगाते हैं कि मोहनजोदाड़ो और धोलावीरा में बनी चार दीवारी की सिर्फ नींव बनाने में 10 हजार मजदूरों को 400 दिन तक काम करना पड़ा होगा. ये चारदीवारियां दुश्मन से बचने के लिए नहीं बनाई जाती थी. बल्कि इन्हें बनाया जाता था ताकि बाढ़ का पानी अंदर न आए. बाढ़ से बचने के लिए ही अनाज के भंडारों को ऊपर वाले गढ़ में बनाया जाता था ताकि पानी बढ़ने पर भी अनाज सूखा रहे.

एक खास बात ये भी है कि इन शहरों में राजमहल या किसी विशेष इमारत के निशान नहीं मिलते. इससे पता चलता है कि सभी लोग लगभग सामान परिस्थितियों में रहते थे.कांस्य युग की बाकी किसी सभ्यता में ऐसा नहीं दिखाई देता. मिश्र में फैरो हुआ करते थे. जिनके लिए विशेष इमारतों का निर्माण होता था. पिरामिड जैसे स्ट्रक्चर बताते हैं कि विशेष लोगों को मरने पर भी विशेष ट्रीटमेंट मिलता था.

सिंधु घाटी सभ्यता दूसरों से कैसे अलग थी?

सिंधु घाटी सभ्यता में बाकी सभ्यताओं के मुकाबले कुछ और अंतर भी हैं. मसलन बाकी सभ्यताओं में एक केंद्र या राजा के हाथ में शक्ति होती थी. क़ानून, अर्थव्यवस्था और व्यापार सब राजा के कंट्रोल में होता था. हर सभ्यता में एक क्लास हायरार्की होती थी. अभिजात्य वर्ग और सामान्य वर्ग की शक्तियों और रहन-सहन में खास अंतर होता था. इसी प्रकार हर राज्य का एक धर्म भी निश्चित था, और धर्म की भी अपनी हायरार्की होती थी. पुरोहितों के लिए भवन बने होते थे, विशालकाय मंदिरों या धार्मिक संरचनाओं का निर्माण होता था. अधिकतर सभ्यताओं में सेना होती थी और गुलामी जैसी प्रथाएं भी चलती थीं.

सिंधु घाटी सभ्यता का विस्तार (तस्वीर:Avantiputra7/ Wikimedia )

जबकि सिंधु घाटी सभ्यता में ऐसा कुछ नहीं दिखाई देता. किसी राजधर्म के कोई संकेत नहीं मिलते. ना ही किसी धार्मिक संरचना के सबूत मिलते हैं. खुदाई में मिले अवशेषों के अनुसार सिंधु घाटी सभ्यता में सबसे ज्यादा मूल्य पानी और सफाई को दिया जाता था.

सिंधु घाटी सभ्यता की पहचान उसके सीवर सिस्टम, और नालियों के नेटवर्क से होती है. हर घर में अपना एक बाथरूम होता था. जिसमें टाइल्स लगी होती थीं. दीवार और जमीन को ईंटों पर टार लगाकर वाटरप्रूफ बनाया जाता था. बाथरूम से एक नाली निकलती थी. जिससे पानी बाहर जाता था. ये पानी शहर के नीचे बने नालियों के नेटवर्क से मिलता था, और ये नालियां उस पानी को शहर से बाहर ले जाती थीं.

प्लम्बिंग और सीवर सिस्टम की ऐसी मिसाल किसी दूसरी सभ्यता में नहीं मिलती. सीवर सिस्टम इतना उन्नत था कि बहुमंजिला इमारत भी इससे कनेक्ट रहती थी. हर मंजिल से एक नाली दीवार के सहारे नीचे आती थी और अंडरग्राउडं सीवर सिस्टम से मिलती थी.

द ग्रेट बाथ 

सिंधु घाटी सभ्यता में पानी का मूल्य कितना था, इसका पता एक ख़ास संरचना से चलता है. मोहनजोदाड़ो का बड़ा जलकुंड. जिसे द ग्रेट बाथ कहा जाता है. इसकी खासियत ये है कि ये सिर्फ मोहनजोदाड़ो के अवशेषों में मिला है. और किसी साइट पर ग्रेट बाथ के निशान नहीं मिलते. इस ग्रेट बाथ की गहराई 2.4 मीटर है. जिसमें पक्की ईंटों से दीवार को वॉटरप्रूफ़ बनाया गया है. 

द ग्रेट बाथ मोहनजोदाड़ो (तस्वीर: Getty)

जलकुंड के पीछे की तरफ़ एक कुआं है, जिससे पानी भरा जाता था. और इसके सामने की तरफ़ निकासी का रास्ता है, जिससे पानी बाहर निकलता था. इस बाथ को क्यों और किसके लिए बनाया गया था, इसको लेकर ठीक ठीक कुछ नहीं कहा जा सकता, लेकिन अनुमान के तौर पर शायद इसका इस्तेमाल किसी सार्वजनिक प्रथा के रूप में होता था. 

सिंधु घाटी सभ्यता के सभी शहरों में पानी के स्टोरेज की विशेष व्यवस्था की जाती थी. धोलावीरा साइट में शहर की चारदीवारी के आसपास 16 जलकुंड बने हैं, जिनमें बाढ़ का पानी स्टोर किया जाता था. इसके अलावा हर शहर में कुओं का निर्माण किया जाता था, जिनकी दीवार पर ईंट लगाई होती थी.

सिंधु घाटी सभ्यता में लोग काम क्या करते थे?

मुख्यतः ये कृषि आधारित सभ्यता थी. इस दौरान अनाज के अलावा अदरक, हल्दी, जीरा, लहसुन ये सब भी पैदा किया जाता था. इसके अलावा बर्तन बनाने का काम भी मुख्य रूप से किया जाता था. इस दौरान लोग ऊंट, भैंस, बकरी, कुत्ता बिल्ली पालते थे. और इस पशुधन का ट्रेड भी होता था. 

सिंधु घाटी सभ्यता की खुदाई में मिली सील्स (तस्वीर: Wikimedia Commons)

ट्रेड के लिए नदियों के अलावा समुंद्री रास्तों का भी उपयोग होता था. सिंधु घाटी में की कई सील्स मेसोपोटामिया की खुदाई में भी मिली थीं. जिससे पता चलता है कि इन दोनों सभ्यताओं के बीच व्यापार होता था. मेसोपोटामिया में तब सिंधु घाटी इलाके को मेलुहा नाम से जाना जाता था.

सिंधु घाटी की खुदाई में आर्कियोलॉजिस्ट्स को हजारों सील मिली हैं. इन सील्स पर एक जानवर का चित्र और ऊपर कुछ निशान लिखे हैं. जिससे पता चलता है कि सिंधु घाटी सभ्यता में एक विशेष लिपि का उपयोग होता था. लेकिन इस लिपि का मतलब क्या है, इसका पता अब तक नहीं चल पाया है. सिंधु घाटी सभ्यता में उपयोग होने वाली भाषा को डीकोड क्यों नहीं किया जा सका, ये अपने आप में एक लम्बी कहानी है. इसके लिए आगे किसे एपिसोड में अलग से बात करेंगे.

सिंधु घाटी सभ्यता का अंत कैसे हुआ? 

700 साल तक खूब फैलने फूलने के बाद साल 1900 में सिंधु घाटी सभ्यता का पतन होना शुरू हुआ. और 1300 साल के इसके सारे निशान खो गए. सिंधु घाटी सभ्यता क्यों ख़त्म हुई इसको लेकर अलग-अलग थियोरीज़ हैं. एक थियोरी है कि इन लोगों ओर बाहर से आक्रमण हुआ, हालांकि इस थियोरी को लेकर कोई पुख्ता सबूत नहीं मिलते. 

सिंधु घाटी से खुदाई में मिले अवशेष (तस्वीर: getty)

एक दूसरी थियोरी कहती है कि क्लाइमेट चेंज के चलते नदियों का पानी कम हुआ. मानसून में कमी के चलते घग्गर-हाकरा नदी सूखने लगी. जिसके चलते उपज में कमी आई. धीरे-धीरे ट्रेड कम हुआ तो लोगों में आतंरिक कलह बढ़ने लगा. इसके बाद बीमारियों ने डेरा डाला तो लोगों ने इस इलाके को छोड़ दिया. 

ये और थियोरी भूकंप को वजह बताती है. 2200 ईसा पूर्व धोलावीरा में भूकंप के सबूत मिलते हैं. संभव है कि बढ़ते भूकम्पों के चलते लोगों ने इस इलाके को छोड़ दिया हो. इसके अलावा एक थियोरी ये भी है कि सिंधु घाटी सभ्यता एकदम से ख़त्म नहीं हुई. बल्कि लोग धीरे-धीरे पूर्व की और बढ़ते गए. यहां गंगा के मैदान खेती के लिए उपयुक्त थे. इसलिए कुछ सदियों तक लोगों के पलायन का सिलसिला चला और जब अधिकतर लोग भारत के दूसरे स्थानों में बस गए तो सिंधु घाटी के आसपास का इलाका खाली हो गया. और 1300 ईसा पूर्व सिंधु घाटी सभ्यता पूरी तरह ख़त्म हो गई.

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