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राजस्थान पुलिस इस चेतावनी को गंभीरता से लेती तो शायद सुखदेव सिंह गोगामेड़ी की हत्या नहीं होती

देश की सबसे सुरक्षित जेल के अंदर बैठकर पुलिस की नाक के नीचे लॉरेंस बिश्नोई एक के बाद एक हत्याएं करवा रहा है, लेकिन प्रशासन कुछ क्यों नहीं कर पा रहा?

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सूखदेव सिंह गोगामेड़ी (बाएं) और लॉरेंस बिश्नोई (दाएं)
7 दिसंबर 2023 (Updated: 7 दिसंबर 2023, 22:42 IST)
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आज यानी 7 दिसंबर 2023 को दोपहर 2 बजे के आसपास सुखदेव गोगामेड़ी का अंतिम संस्कार हनुमानगढ़ स्थित उनके पैतृक गांव गोगामेड़ी में किया गया. बता दें कि गोगामेड़ी की हत्या के बाद से ही राजस्थान में करणी सेना के लोग प्रोटेस्ट कर रहे हैं. जब रोहित गोदारा नाम के गुंडे ने गोगामेड़ी की हत्या की जिम्मेदारी ली, तो करणी सेना ने कहा कि ये हत्या राजपूत प्रतिष्ठा पर हमला है. जब तक हत्यारों को पकड़ा नहीं जाता, तब तक वो प्रोटेस्ट चालू रखेंगे. और हत्या करने पहुंचे दोनों शूटर रोहित राठोर और नितिन फौजी इस बुलेटिन के लिखे जाने तक पुलिस की पकड़ से दूर हैं.

अब बात आती है मर्डर के कारण की.

जब रोहित गोदारा ने गोगामेड़ी के मर्डर की जिम्मेदारी ली, तो कहा कि उसने बदला लिया है. बदला किस बात का? ये कहानी मर्डर के 24 घंटे बाद खुली. इंडिया टुडे के जयकिशन शर्मा की रिपोर्ट के मुताबिक, 3 दिसंबर 2022 को राजस्थान के सीकर में रोहित गोदारा ने राजू ठेहट नाम के गुंडे का मर्डर कराया था. उसके मर्डर के बाद शेखावटी इलाके में लॉरेंस बिश्नोई का गैंग एक्टिव हुआ. बिश्नोई गैंग ने इस इलाके के व्यवसायियों से पैसा लेना शुरू किया.

लेकिन इनमें से बहुत सारे बिजनेसमैन सुखदेव सिंह गोगामेड़ी के करीबी थे. लिहाजा गोगामेड़ी के छोटे भाई मंजीत पाल सिंह एक्टिव हुए. वो लॉरेंस बिश्नोई गैंग की मांग से भड़के बिजनेसमैन के साथ खड़े हुए. इधर रतनगढ़ के एक प्रॉपर्टी डीलर महिपाल सिंह के पास व्हाट्सऐप पर एक मैसेज आया. ये एक वॉयस मैसेज था, जो 8 दिसंबर 2022 को भेजा गया था. जब महिपाल सिंह ने मैसेज पर प्ले का आइकन क्लिक किया, तो उधर से आवाज आई -

"मैं रोहित गोदारा हूं. 15 दिसंबर तक 50 लाख रुपए जुटा लो. वरना तुमने सीकर में देखा ही है कि क्या अंजाम होता है. अगर भविष्य में काम करना चाहते हो, तो तुमको पैसा देना होगा."

महिपाल सिंह ने कोई एक्शन नहीं लिया. फिर 15 दिसंबर के दिन महिपाल सिंह के फोन पर 2 बजकर 50 मिनट पर एक फोन आया. फोन उठाने पर दूसरी ओर से आवाज आई -

"मैं रोहित गोदारा बोल रहा हूं. बस हां या ना में जवाब दो. हम दोबारा फोन नहीं करेंगे."

लेकिन इस समय तक महिपाल सिंह को सुखदेव गोगामेड़ी और उसके सहयोगी आनंदपाल के गैंग का समर्थन मिल चुका था. आनंदपाल को तो पहले ही राजस्थान पुलिस ने मार गिराया था. अब ये गैंग उसके भाई विक्की सिंह और मंजीत सिंह चलाते थे. तो इन गैंग का साथ मिलने के बाद महिपाल ने रंगदारी देने से मना कर दिया. और इधर गोगामेड़ी ने खुलेआम लॉरेंस गैंग के खिलाफ आवाज़ें उठाना शुरू कर दिया था. वो व्यापारियों को रंगदारी देने से रोकने लगा. इससे लॉरेंस बिश्नोई चिढ़ गया था. उसे गोगामेड़ी और उसकी करणी सेना के प्रभाव वाले इलाके में अपनी पकड़ कमजोर होती दिखाई दी. गोगामेड़ी और बिश्नोई के बीच अदावत शुरु हो चुकी थी.

लॉरेंस का मकसद अब गोगामेड़ी को सबक सिखाना था. उसने रोहित गोदारा की मदद से पंजाब की बठिंडा जेल में बैठे एक गुंडे को फोन लगाया. नाम - संपत नेहरा. उससे कहा कि वो गोगामेड़ी को सबक सिखाने की तैयारी शुरु करे. नेहरा ने हामी भरी. हथियारों का इंतजाम शुरू हो गया.

ध्यान रहे कि ये फरवरी 2023 का महीना था. इसकी भनक पंजाब पुलिस को लगी. उन्होंने मार्च के महीने में राजस्थान पुलिस को अलर्ट किया - गोगामेड़ी की जान को खतरा है. लेकिन राजस्थान पुलिस इस खतरे को भांपने में चूक गई. और गोगामेड़ी मारा गया.

चूंकि गोगामेड़ी की हत्या हो चुकी है, तो लॉरेंस बिश्नोई को क्या फायदा होगा? क्योंकि इस पूरी कहानी में एक और थ्योरी चल रही है. कहा जा रहा है कि कि सुखदेव सिंह गोगामेड़ी दूसरे गैंग के गैंगस्टर्स की मदद करते थे. जब भी किसी गैंग को लगता है कि उनके विरोधी गैंग को कोई सपोर्ट कर रहा है तो ये उसे अपना दुश्मन मान लेते हैं.

अब कहानी गैंगस्टर रोहित गोदारा के बॉस की. कैसे कॉलेज का एक स्टूडेंट नॉर्थ इंडिया का सबसे बड़ा बदमाश बन गया. उसकी गुंडागर्दी इतनी बढ़ गई कि वो देश की सबसे सुरक्षित जेल में बैठकर भी विदेशों में बैठे अपने दुश्मनों की कनपटी पर गोली चलवाता रहता है. हम बात कर रहे हैं लॉरेंस बिश्नोई की. शुरू करते हैं उसकी कहानी.

पंजाब के फाजिल्का का आबोहर. यहां पर रहते थे लविन्द्र कुमार. वो पंजाब पुलिस में कांस्टेबल थे. साल 1993 की फरवरी में उनको एक बेटा पैदा हुआ. लॉरेंस बिश्नोई. साल 1997 आते-आते लविन्द्र कुमार ने सर्विस छोड़ दी. खेतीबाड़ी करने लगे. अपने बेटे लॉरेंस को उन्होंने कक्षा 10 तक आबोहर के ही कान्वेन्ट में पढ़ाया. आगे की पढ़ाई के लिए वो चंडीगढ़ के डीएवी स्कूल में चला गया और वहां से 12वीं पास की. इसके बाद उसने चंडीगढ़ यूनिवर्सिटी में एडमिशन लिया. पढ़ाई के दौरान ही उसने अपना छात्र संगठन सोपू बनाया- स्टूडेंट ऑर्गनाइजेशन ऑफ पंजाब यूनिवर्सिटी. और उसके बैनर तले स्टूडेंट यूनियन के अध्यक्ष पद का चुनाव लड़ा. उसके सामने चुनावी मैदान में उदय सह और डग का ग्रुप था, जिससे लॉरेंस चुनाव हार गया. इस हार के बाद चंडीगढ़ के सेक्टर 11 में फरवरी 2011 में एक दिन लॉरेंस और उसके विरोधी गुट का आमना-सामना हो गया. इस दौरान लॉरेंस ने उदय सह के ग्रुप पर फायरिंग कर दी. खबरें बताती हैं कि इस फायरिंग में लॉरेंस का निजी नुकसान हुआ. इस फायरिंग में लॉरेंस की प्रेमिका मारी गई थी और प्रेमिका की मौत के दो कहानियां चलती हैं.

पहली कहानी - सामने वाली साइड ने लॉरेंस की प्रेमिका को गोली मार दी थी.

दूसरी कहानी - सामने वाली साइड ने लॉरेंस की प्रेमिका को जिंदा आग के हवाले कर दिया और इसे हादसे का रूप दे दिया.

अब लॉरेंस को अपना बदला लेना था. ये पहली बार था, जब लॉरेंस ने फायरिंग की थी. पुलिस ने जब केस दर्ज किया, तो उसमें लॉरेंस का भी नाम था. ये पहला मुकदमा था, जो लॉरेंस के नाम पर दर्ज हुआ था. पुलिस की गिरफ्त में गया. जब परीक्षा देने आया, तो हाथों में हथकड़ी थी. परीक्षा में जो भी हुआ हो. लॉरेंस ने पढ़ाई छोड़ दी. वो जग्गू भगवानपुरिया के कॉन्टेक्ट में आया और इस दलदल में धंसता ही चला गया.

लेकिन कहा जाता है कि इस घटना के काफी पहले ही लॉरेंस ने अपराध की दिशा में कदम बढ़ा दिए थे. बस घटनाओं में नाम नहीं आता था. जैसे साल 2006. पंजाब के सुखना में डिंपी नाम के एक शख्स की हत्या हुई थी. उस वक्त इस केस में रॉकी का नाम सामने आया था. लॉरेंस रॉकी का करीबी था, लेकिन केस में लॉरेंस का नाम नहीं आ पाया था.

जब 2011 में चंडीगढ़ में फायरिंग हुई, और लॉरेंस नामजद हो गया. तो उसकी गुंडागर्दी बढ़ गई. उसके नाम FIR लिखे जाने लगे. नाम मुकदमे में आना आम हो गया. अब तक उसके नाम लगभग 5 दर्जन FIR लिखे जा चुके हैं

साल 2011. फिरोजपुर में एक फाइनेंसर के साथ लूट हुई थी, जिसमें लॉरेंस का नाम तो सामने आया, लेकिन उसपर केस दर्ज नहीं हो सका था.

साल 2011 में ही उसने अपने साथी छात्रनेता पर हमला किया, तो उसपर हत्या की कोशिश का मामला दर्ज हुआ. जेल जाने के बाद वो जमानत पर रिहा हो गया था. इसके बाद फिर उसे .5 बोर की पिस्टल और कारतूस के साथ गिरफ्तार किया गया.

अगस्त 2012. लॉरेंस के खिलाफ सेक्टर 34 थाने में हत्या की कोशिश, दंगा करने और कई और धाराओं में केस दर्ज किया गया था.

लॉरेंस हत्या, लूट, रंगदारी वसूलने जैसे अपराध करता रहा, जेल जाता रहा और जमानत पर रिहा होता रहा. और एक बार बस बदला लेने के लिए-लाश गिराने के लिए उसने पुलिस को चकमा दे दिया.

17 जनवरी 2015 - पंजाब की खरड़ पुलिस उसे कोर्ट में पेशी के लिए लेकर जा रही थी, तो वो पुलिस को चकमा देकर फरार हो गया था. दरअसल उसके मामा के दो बेटों की दिसंबर 2014 में हत्या हो गई थी. ये हत्या गैंगस्टर रम्मी मशाना और हरियाणा जेल में बंद बठिंडा के हरगोबिंद सिंह ने करवाई थी. लॉरेंस इन दोनों की हत्या करना चाहता था, इसलिए वो जेल से भाग गया. वो खरड़ से दिल्ली होते हुए नेपाल पहुंचा. यहां उसने 60 लाख रुपये के विदेशी हथियार और बुलेट प्रूफ जैकेट खरीदी. अभी वो रम्मी मशाना की तलाश कर रहा था. लेकिन 4 मार्च 2015 को लॉरेंस फाजिल्का पुलिस के हत्थे चढ़ गया. गिरफ्तारी हुई तो पुलिस ने राहत की सांस ली, क्योंकि अगर लॉरेंस बाहर रहता तो उसे गैंगस्टर मशाना और हरगोबिंद सिंह की हत्या करनी थी.

लेकिन लॉरेंस के लिए जेल एक दूसरा घर थी. वो जेल में अपना नेटवर्क बनाता. फरीदकोट जेल में बंद रहने के दौरान वो फोन का इस्तेमाल करने लगा. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक उसके पास करीब 40 सिम कार्ड आ गए, जिसके जरिए वो पंजाब, हरियाणा और राजस्थान में वसूली, रंगदारी और लोगों को जान से मारने की धमकी देने के साथ ही हत्या की सुपारी भी लेने लगा. उसके पास विदेशी सिम कार्ड भी आ गए, जिनके जरिए वो वॉट्सऐप से मैसेज भेजने लगा. फरीदकोट जेल से ही मार्च 2017 में राजस्थान के जोधपुर के डॉक्टर चांडक और एक ट्रैवलर को मारने के लिए 50 लाख की सुपारी ली. उसने फोन के जरिए ही डॉक्टर की बीएमडब्ल्यू कार में आग लगवा दी. इसके बाद जोधपुर पुलिस 30 अप्रैल 2017 को लॉरेंस को प्रोडक्शन रिमांड पर जोधपुर ले गई. जोधपुर में आने के बाद भी लॉरेंस ने मोबाइल के जरिए वसूली और धमरी का खेल जारी रखा. परेशान जोधपुर प्रशासन ने उसे 23 जून को अजमेर की घूघरा घाटी हाई सिक्योरिटी जेल में भेज दिया. अजमेर जेल जाने के बाद लॉरेंस बिश्नोई की मुलाकात वहां आनंदपाल गैंग से हुई. इसके बाद से लॉरेंस की ताकत और बढ़ गई. ध्यान रहे कि ये वही आनंदपाल था, जो आगे जाकर गोगामेड़ी का करीबी बन गया, और लॉरेंस से दुश्मनी पाल ली.

अजमेर की जेल राजस्थान में काले पानी की सजा मानी जाती है, जहां पर पूरे राज्य के कुख्यात अपराधी बंद हैं. अपराधियों के लिए जेल इतनी सख्त मानी जाती है कि कुख्यात आनंदपाल इस जेल से पेशी पर जाने के दौरान फरार हो गया था. इसी जेल में राजस्थान के कुख्यात आनंदपाल के गैंग के भी शूटर थे. इस जेल में आने पर लॉरेंस की मुलाकात आनंदपाल के भाई से हुई. आनंदपाल के एनकाउंटर में मारे जाने के बाद आनंदपाल का गुट कमजोर पड़ गया था. लॉरेंस ने इस गुट को अपनी ताकत दी. जिस अजमेर जेल में जाने से अपराधी खौफ खाते थे, लॉरेंस वहां भी पूरी मौज में रहा. अजमेर जेल में आने के साथ ही उसके पास मोबाइल उपलब्ध हो गए. पुलिस को इस बात का पहले से अंदेशा था, इसलिए उसने लॉरेंस के नंबरों को सर्विलांस पर लगा रखा था. पुलिस कमिश्नर अशोक राठौड़ के कहने पर अजमेर एसपी से जेल में दबिश दी और लॉरेंस के पास से दो सिम कार्ड बरामद किए. लेकिन लॉरेंस के पास फिर सिम कार्ड और मोबाइल पहुंच गए. इस बात की पुष्टि तब हुई, जब लॉरेंस ने जेल से ही फोन करके आनंदपाल के सियासी विरोधी रहे सीकर के पूर्व सरपंच सरदार राव की अपने मोहाली के शूटर रविंदर काली को भेजकर 27 अगस्त 2017 को हत्या करवा दी. इतना ही नहीं जोधपुर में अपनी धाक जमाने के लिए लॉरेंस ने 17 सितंबर को सरेआम अपने शूटर हरेंद्र जाट और रविंदर काली से जोधपुर के कारोबारी वासुदेव इसरानी की हत्या करवा दी. इसके बाद तो आनंदपाल गैंग के लोग भी उसे अपना सरगना मानने लगे. हालांकि पुलिस लॉरेंस के गुर्गों को गिरफ्तार करने में कामयाब रही, लेकिन लॉरेंस ने फिर से नए लोग इकट्ठा कर लिए. जेल से जो भी जमानत पर बाहर जाता, वो लॉरेंस का आदमी बन जाता और उसके लिए काम करने लगता.

लेकिन जो आनंदपाल अब तक लॉरेंस का दोस्त था, वो अब दूर जाने लगा था. साल 2017 तक वो जेल से बाहर आकर अपने स्तर पर वसूली करने लगा था. वो सुखदेव गोगामेड़ी का करीबी हो गया. राजपूत पॉलिटिक्स में उतर गया. तब साल 2017 में ही राजस्थान पुलिस ने मुठभेड़ में उसे मार गिराया था. मुखबिरी में नाम आया लॉरेंस बिश्नोई का. कहा गया कि आनंदपाल सिंह ने बिश्नोई से दूर जाने की कीमत अपनी जान देकर चुकाई.

जेल में बैठकर अपनी आपराधिक सत्ता चला रहा लॉरेंस विश्नोई पुराने मामले की सुनवाई के दौरान 5 जनवरी को राजस्थान के जोधपुर में पेशी पर पहुंचा था. पेशी से लौटने के दौरान पुलिस की जीप में मीडिया के लोगों ने उससे जुड़े मुकदमों पर सवाल किया. इस दौरान उसने कहा कि उसपर लगे सभी मुकदमे गलत हैं और पुलिस उसे फंसा रही है. इस दौरान लॉरेंस ने कहा-

"पुलिस का क्या है. जो हाथ आ जाता है उस पर आरोप लगा देती है... आज मुझ पर आरोप लगाया है, कल कोई और पकड़ा जाएगा तो उस पर आरोप लगा देंगे. मैं तो एक स्टूडेंट हूं. मेरा आपराधिक मामलों से कोई लेना देना नहीं है. अपराध क्या होता है? यह तो जब सलमान खान को यही मारूंगा तो पता चलेगा."

जब अभिनेता सलमान खान का नाम काले हिरण के मर्डर में आया, तो लॉरेंस ने इसका बदला निकालने की सोची. चूंकि बिश्नोई समाज काले हिरण की पूजा करता है, तो हत्या होने पर "खून के बदले खून" का सिद्धांत लगाया गया और धमकी जारी कर दी गई. और सलमान खान को धमकी देने के बाद लॉरेंस बिश्नोई की कहानी तलाशी जाने लगी. तो ये सारा सच सामने आया.

जब साल 2022 में पंजाबी गायक सिद्धू मूसेवाला का मर्डर किया गया, तो उसके मर्डर की लॉरेंस बिश्नोई ने जिम्मेदारी ली. इसके बाद देश में हुए कई हत्याकांडों और हत्या की धमकियों की उसका नाम आता रहा. साल 2023 में जब कनाडा में खालिस्तानी समर्थक सुक्खा दूनके का मर्डर किया गया, तो आरोपी की तलाश हुई. सामने आया लॉरेंस. उसने कहा कि मर्डर मैंने करवाया है. ये सारी हत्याएं तब हो रही थीं, जब वो दिल्ली में मौजूद तिहाड़ जेल में बंद था.

अब पुलिस ने ज्यादा सख्ती दिखाई. लॉरेंस से पूछताछ की. कैसे काम करता था? खुद जवाब दिया.

उसने अपना जाल ऐसे फैलाया कि वो जेल एक अंदर रहे या बाहर. उसका काम चलता रहता था. वो देश की किसी भी जेल में रहा, उसने उत्तर भारत के कारोबारियों के करोड़ों की वसूली की. कभी राजस्थान के कारोबारियों से, कभी चंडीगढ़ के कम से कम 10 क्लब मालिकों से, कभी अंबाला के मॉल मालिकों से, कभी शराब कारोबारियों से और कभी दिल्ली और पंजाब के सटोरियों से करोड़ों की उगाही की. जेल में लॉरेंस के गुर्गे ऐसे कारोबारियों और धंधेबाज़ों के नंबर लेकर आते थे, और लॉरेंस के नाम पर जानेवाले एक एक फोन कॉल पर करोड़ों रुपये उसके बताए ठिकाने पर पहुंच जाते थे.

उसने बड़े-बड़े क्राइम सिंडीकेट और गुंडों को अपना गुर्गा रखा हुआ है. इसमें गोल्डी बराड़, काला राणा, गुरलाल बराड़ और काला जठेड़ी जैसे गैंगस्टर अक्सर ऐसे नंबर लॉरेंस को मुहैया करवाते रहे हैं. इनमें गुरलाल बराड़ का कत्ल हो चुका है, लेकिन बाकी गैंगस्टरों की ओर से ये सिलसिला अब भी जारी है.

कमाई हो गई. लेकिन ये खर्च कहां होती है? हथियारों पर. लॉरेंस के गुर्गे और खुद लॉरेंस सालों से अपने गैंग के लिए हथियारों की तस्करी करता रहा है. उसने कबूला है कि साल 2018 से 2022 तक उसने यूपी के खुर्जा से अपने करीबी गैंगस्टर रोहित चौधरी के मार्फत आर्म्स सप्लायर कुर्बान चौधरी उर्फ शहजाद से 2 करोड़ के हथियार खरीदे थे. इसमें 9 एमएम की पिस्टल भी थी, तो एके 47 राइफल भी थे. ये हथियार यूज हुए सिद्धू मूसेवाला के मर्डर में.

जैसा कि आप जानते ही हैं कि बिश्नोई का करीबी है गोल्डी बराड़, जो कनाडा में बैठकर सारी प्लानिंग और काम करता है. उसने ही मूसेवाला के मर्डर की प्लानिंग कनाडा में बैठे-बैठे की थी. पैसा लगाता है लॉरेंस. अब आप समझिए कि ये दोनों दोस्त कैसे काम करते हैं?

मई 2022 में एनआईए ने दोनों के खिलाफ आरोप पत्र दायर किया, जिसमें उन पर प्रतिबंधित संगठन बब्बर खालसा इंटरनेशनल और अन्य अलगाववादी संगठनों के साथ संबंध रखने का आरोप लगाया गया.

बिश्नोई के गैंग में बहुत सारे लोग राजस्थान, हरियाणा और पंजाब से आते हैं. उसके पास लगभग 700 शूटर हैं. शूटरों को पैसे मिलते हैं. हथियार आते हैं सीमा पार से. बाकी कामों के लिए  दिल्ली, हरियाणा, राजस्थान, पश्चिमी यूपी में बैठे छोटे-बड़े गुंडे-गैंग बिश्नोई के साथ काम करते हैं. जो साथ काम करते हैं, वो साथ रहते हैं. जो साथ काम नहीं करते हैं, उनका काम तमाम कर दिया जाता है. इन सारे गैंग के टॉप लोग फर्जी पासपोर्ट पर विदेश भाग चुके हैं. उनके साथ के कुछ लोग अभी भी भारत की जेल में बंद हैं. भारत की जेल इतनी सुरक्षित है कि वो जेल से भी अपना काम कर ले जाते हैं. गैंग फलते-फूलते रहते हैं. पुलिस कहती रह जाती है कि वो कार्रवाई कर रही है. गैंग की कामयाबी, और पुलिस की नाकामी का सिलसिला यूं ही बदस्तूर चलता रहता है.

सवाल ये भी है कि लॉरेंस पर राजस्थान में कितनी कार्रवाई हुई है? ऐसे अपराधियों से निबटने के लिए इस साल जुलाई में गहलोत सरकार विधानसभा में राजस्थान संगठित अपराध नियंत्रण विधेयक यानी राजस्थान कंट्रोल ऑफ ऑर्गेनाइज्ड क्राइम एक्ट (राकोका) लेकर आई. ये बिल बहस के बाद पारित हो गया. राकोका के प्रावधानों के मुताबिक गैंग बनाकर अपराध करने वालों की प्रॉपर्टी जब्त होगी. इसे सरकार अपने कब्जे में लेगी. गैंगस्टर्स की प्रॉपर्टी या पैसा अपने कब्जे में रखने वालों को भी सजा होगी. गिरोह बनाकर फिरौती वसूलने, पैसे के लिए धमकाने वालों को राकोका के दायरे में लिया जाएगा. इस बिल के आने के बाद राजस्थान में बड़े गैंग्स्टर्स पर क्या कार्रवाई हुई?

उम्मीद है कि जेल प्रशासनों और तमाम एजेंसियों की नींद जल्दी खुले. और लॉरेंस और तमाम गुंडों को उचित सजा दी जाए, ताकि समाज एक खुली जगह बन सके. 

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