The Lallantop
Advertisement
  • Home
  • Lallankhas
  • Sajjan Kumar Rise and fall of a Jaat leader who was master mind of 1984 anti sikh riots

सज्जन कुमार: चाय की दुकान से संसद की देहरी तक पहुंचने वाला नेता

CBI ने सिखों के सामूहिक नरसंहार की तुलना नाज़ियों द्वारा यहूदियों के नरसंहार से की है.

Advertisement
Img The Lallantop
सज्जन कुमार: 1984 के दंगों का सबसे बदनाम चेहरा
pic
विनय सुल्तान
20 मार्च 2019 (Updated: 20 मार्च 2019, 07:54 AM IST)
font-size
Small
Medium
Large
font-size
Small
Medium
Large
whatsapp share

दिल्ली के करोल बाग इलाके में एक पता पड़ता है, 'अजमल खान रोड'. दिल्ली के लोगों के लिए वीकेंड्स पर खरीददारी की जगह. किसी दौर में यहां दिल्ली के देहात से आने वाला लड़का चाय की दुकान चलाता था. कहने को यूथ कांग्रेस से जुड़ा हुआ था लेकिन यह जुड़ाव कहने भर का था. चाय की दुकान पर ही सुबह से शाम हो जाती. सबकुछ ढर्रे पर चल रहा था कि एक दिन उस पर नजर पड़ी संजय गांधी की. लंबा कद, दढ़ियल चेहरा, चाल-ढाल में गंवारूपन. संजय को ज़मीन पर ऐसे ही युवाओं की जरूरत थी जो उनके एक इशारे पर कुछ भी करने को तैयार रहे. संजय ने लड़के से पूछा कि क्या वो कांग्रेस जॉइन करेगा? ना कहना मूर्खता होती. लड़के ने ना नहीं कहा. कांग्रेस में आ गया. संजय गांधी का सूबेदार नहीं सिपाही बनकर. लड़के का नाम था सज्जन कुमार, जो आने वाले समय की कांग्रेस में कद्दावर जाट नेता के तौर पर उभरने जा रहा था.

आजादी के बाद से ही दिल्ली देहात का इलाका कांग्रेस के लिए परेशानी का सबब रहा था. हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के इलाके में लोकदल के उभार ने कांग्रेस नेतृत्व के कान खड़े कर रखे थे. संजय गांधी को अपने साथ ऐसे जाट युवा चाहिए थे जो लोकदल के खिलाफ कांग्रेस का झंडा बुलंद कर सकें. सज्जन कुमार इन्हीं जरूरतों का जवाब थे. लेकिन सज्जन कुमार कभी भी संजय गांधी के करीबी घेरे के सदस्य नहीं रहे. वो हमेशा से उन लोगों में रहे जो जमीन पर संजय गांधी के आदेश का पालन करवाते थे. पूरे आपातकाल के दौरान सज्जन इसी भूमिका में रहे.


सज्जन कुमार की कहानी किसी फ़िल्मी पटकथा जैसी है.
सज्जन कुमार की कहानी किसी फ़िल्मी पटकथा जैसी है.

साल 1977. आपातकाल विरोधी लहर. सज्जन कुमार का पहला चुनाव. मादीपुर से नगर निगम पार्षद का चुनाव जीतने में कामयाब रहे और यहां से उनके राजनीतिक करियर की कायदे से शुरुआत हुई. लेकिन सज्जन कुमार ने सबको अचम्भे में डाला तीन साल बाद. 1980 का लोकसभा चुनाव. सज्जन कुमार को बाहरी दिल्ली संसदीय क्षेत्र से कांग्रेस का टिकट मिला. सामने थे दिल्ली के पहले मुख्यमंत्री और कद्दावर जाट नेता चौधरी ब्रह्मप्रकाश. किसी को यह उम्मीद नहीं थी कि 35 साल के सज्जन कुमार इतने हैवीवेट उम्मीदवार को चित्त कर पाएंगे. लेकिन घर-घर घूमकर प्रचार करने की रणनीति काम कर गई. ब्रह्मप्रकाश को समझ में ही नहीं आया कि उनकी जमीन खिसक चुकी है. उन्हें इस चुनाव में तीसरे नंबर पर खिसकना पड़ा. वो जनता पार्टी (एस) के टिकट पर चुनाव लड़े थे.

1984 के दंगे और राजनीति पर ग्रहण

31 अक्टूबर 1984 इंदिरा गांधी की हत्या के अगले रोज पूरी दिल्ली में सिख समुदाय के खिलाफ हमले शुरू हो गए. सरकारी आंकड़ों के मुताबिक अकेले दिल्ली में सिख समुदाय के 2733 लोगों की हत्या कर दी गई. सज्जन कुमार और जगदीश टायटलर दिल्ली कांग्रेस के स्थानीय नेता थे. इन दंगों में सबसे ज्यादा बदनाम हुए. सज्जन कुमार पर दिल्ली कैंट के इलाके में सिख समुदाय के छह लोगों की हत्या में शामिल होने के आरोप लगे. इसका नतीजा यह हुआ कि 1989 के चुनाव में उनका टिकट काट लिया गया. उनकी जगह टिकट मिला भारत सिंह को और कांग्रेस को इस सीट से हाथ धोना पड़ा.


1984 की सिख विरोधी हिंसा में 2733 सिखों की हत्या कर दी गई.
1984 की सिख विरोधी हिंसा में 2733 सिखों की हत्या कर दी गई.

भले ही सज्जन कुमार का टिकट कट गया हो लेकिन कांग्रेस के भीतर वो और मजबूत होते चले गए. इस मजबूती की एक वजह थे एचकेएल भगत यानी हरी कृष्ण लाल भगत. भगत किसी दौर में इंदिरा गांधी के खासमखास हुआ करते थे. भगत सज्जन कुमार के सियासी सरगना थे. सज्जन कुमार की तरह ही वो भी 1984 के सिख विरोधी दंगों में काफी बदनाम हुए थे. कई पुराने पत्रकारों का कहना है कि भगत के इशारे पर सज्जन कुमार ने दिल्ली कैंट में हिंसा को अंजाम दिया था.

1991 के चुनाव में सज्जन कुमार को फिर से कांग्रेस का टिकट मिला. इस बार उनके सामने थे साहिब सिंह वर्मा. वर्मा बीजेपी का जाट चेहरा हुआ करते थे. जाटों के बीच काफी इज्जत थी. सज्जन कुमार सियासत के अखाड़े में वर्मा से ज्यादा मज़बूत पहलवान साबित हुए. उन्होंने आउटर दिल्ली संसदीय क्षेत्र से वर्मा को 86,791 वोटों से चुनाव हराया. यह दूसरा बड़ा सियासी उलटफेर था जिसे सज्जन कुमार ने अंजाम दिया था. लेकिन उलटफेर का शिकार होने की बारी सज्जन कुमार की थी.

साल 1996. बाहरी दिल्ली सीट पर बीजेपी ने अपनी रणनीति बदल दी. जाट उम्मीदवार के खिलाफ ब्राह्मण उम्मीदवार को उतारा. नाम कृष्ण लाल शर्मा. सज्जन कुमार के पास बीजेपी के इस दांव का जवाब नहीं था. 2,33,133 वोट के लंबे मार्जिन से चुनाव हारे. सियासी करियर पर ब्रेक लग गया. इतनी बड़ी हार ने आने वाले दो लोकसभा चुनाव में सज्जन कुमार की दावेदारी भी खत्म कर दी. 1998 और 1999 के चुनाव में कांग्रेस ने भी इस सीट से ब्राह्मण उम्मीदवार को मैदान में उतारा. नाम दीपचंद शर्मा. दीपचंद शर्मा को 1998 में बीजेपी के कृष्ण लाल शर्मा और 1999 में बीजेपी के साहिब सिंह वर्मा के खिलाफ चुनाव हारना पड़ा.


एचकेएल भगत,जगदीश टाइटलर और सज्जन कुमार.
एचकेएल भगत,जगदीश टाइटलर और सज्जन कुमार.

अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली सरकार केंद्र की सत्ता पर काबिज हुई. अपने वादे के मुताबिक अटल बिहारी वाजपेयी ने नए सिरे से 1984 के सिख विरोधी दंगों की जांच शुरू करवाई. सन 2000 में सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश जस्टिस जी.टी. नानावटी की अध्यक्षता में कमिशन बना. जांच शुरू हुई. फरवरी 2004 में इस कमिशन ने अपनी रिपोर्ट दी. कमीशन की रिपोर्ट में सिख दंगो से जुड़े हर नाम की कड़ी जांच की गई. सज्जन कुमार, जगदीश टायटलर-सज्जन कुमार से लेकर राजीव गांधी तक कांग्रेस के कई नेता इस जांच के लपेटे में आए. दिल्ली पुलिस की भूमिका पर भी सवाल खड़े किए गए. आखिरकार इस रिपोर्ट के आधार पर ही सीबीआई ने 2005 में सज्जन कुमार के ऊपर दिल्ली की कड़कड़डूमा कोर्ट में मुकदमा कायम किया.

लेकिन अब तक सज्जन कुमार के बुरे दिन लद चुके थे. 1998 और 1999 का चुनाव हारने के बाद दीपचंद शर्मा की बाहरी दिल्ली लोकसभा सीट से उम्मीदवारी कमजोर पड़ गई थी. पार्टी के पास सज्जन कुमार के अलावा कोई दूसरा विकल्प नहीं बचा था. इस तरह नानावटी कमीशन की रिपोर्ट में नाम होने के बावजूद सज्जन कुमार कांग्रेस का टिकट हासिल करने में कामयाब रहे. 2004 के लोकसभा चुनाव में उन्होंने एक बार फिर से साहिब सिंह वर्मा को पटखनी दे दी. इस मुकाबले में सज्जन कुमार ने साहिब सिंह वर्मा को 2,23,790 वोट के बड़े अंतर से चुनाव हराया. यह वर्मा का आखिरी चुनाव साबित हुआ.

जब सीबीआई के अफसरों को जान के लाले पड़ गए

अनवर कौर अपने बच्चों और पति नवीन कुमार के साथ दिल्ली के पंजाबी बाग इलाके के सुल्तान पुरी में रहा करती थीं. 1 नवंबर 1984 को भीड़ ने सज्जन कुमार के नेतृत्व में हमला किया और नवीन को मार डाला. जलाकर. घर भी जला दिया. अनवर अपनी बेटी फिल्म कौर के यहां छिपी थी. अगले दिन घर गई तो पति की लाश भी नहीं मिली. अनवर कौर मुकदमा दर्ज करवाने के भटकती रहीं. मुकदमा दर्ज हुआ छह साल बाद सितंबर 1990 में जाकर. वो भी सिख दंगो पर बनी जैन-बनर्जी कमिटी के कहने पर.

11 सितंबर 1990. कोर्ट के आदेश के बाद सीबीआई ने सज्जन कुमार के घर पर छापा डाला. इस छापे का नेतृत्व कर रहे थे डिप्टी एसपी जीएस कपिला. सुबह 6 बजकर 45 मिनट पर सीबीआई की एक टीम सज्जन कुमार के घर पर पहुंची. पता था, ए, 713, जनता फ्लैट्स, पश्चिम पुरी. यह छापा दो घंटे तक चला. सीबीआई ने यहां से 6 तलवार और कुछ जरुरी दस्तावेज बरामद किए.


1990 में घर के बाहर प्रदर्शन करते सज्जन कुमार
1990 में घर के बाहर प्रदर्शन करते सज्जन कुमार

इस दौरान सज्जन कुमार ने अपने घर के बाहर भारी भीड़ जुटा ली. सज्जन कुमार के कहने पर लोगों ने घर का दरवाजा घेर लिया. आक्रामक नारेबाजी करने लगे. सीबीआई ने मदद के लिए स्थानीय थाने में फोन किया. स्थानीय पुलिस ने कानून-व्यवस्था के बिगड़ने का तर्क दिया और हस्तक्षेप करने से इंकार कर दिया. इधर भीड़ आक्रामक होती जा रही थी. सीबीआई टीम जिस मारुती जिप्सी और एंबेसडर कार के जरिए सज्जन कुमार के घर पहुंची थी, उसे तोड़ डाला गया. सज्जन कुमार के घर छापा मारने गई टीम अब उनके घर के भीतर कैद थी. जो भी सामान जब्त किया था, सब छीन लिया गया.

ऐसी विषम परिस्थियों में सज्जन कुमार की अंतरिम जमानत पर सुनवाई हुई. कोर्ट के ऊपर यह दबाव भी था कि फंसे हुए सीबीआई अफसरों किसी तरह निकाला जाए. आखिरकार सज्जन कुमार को इस मामले में अंतरिम जमानत दी गई. कोर्ट के इस फैसले को प्लेटफार्म पर चढ़कर सुनाया गया. तब जाकर कहीं भीड़ शांत हुई. जैसे-तैसे करके सीबीआई के अफसर वहां से बाहर निकाले गए.

पत्रकार का जूता और कोर्ट का फैसला


पी. चिदंबरम पर जूता फेंकने वाले पत्रकार जरनैल सिंह
पी. चिदंबरम पर जूता फेंकने वाले पत्रकार जरनैल सिंह

2008-09 का दौर नेताओं पर जूतेबाजी का साल था. इस ट्रेंड की शुरुआत हुई थी बगदाद से. अमेरिकी राष्ट्रपति ईराक के दौरे पर थे. यहां पर एक इराकी पत्रकार मुंतजर अल जैदी ने अमेरिकी राष्ट्रपति पर जूता चला दिया. जूता चलाने के बाद इस पत्रकार ने इसे ईराक की तरफ से अमेरिका दिया जाने वाला 'फेयरवेल किस' बताया था. इसके बाद जगह-जगह से नेताओं पर जूते चलने की खबरें आने लगी. कांग्रेस नेता पी. चिदंबरम यूपीए-1 में गृहमंत्री हुआ करते थे. 2009 के लोकसभा चुनाव से ठीक पहले अप्रैल के महीने में चिदंबरम एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में 1984 के सिख विरोधी दंगों पर अपनी पार्टी का पक्ष रख रहे थे. इस दौरान एक पत्रकार जरनैल सिंह ने पी. चिदंबरम पर जूता चला दिया. पत्रकार सीबीआई जांच में जगदीश टायटलर को क्लीनचिट दिए जाने पर नाराज था. यह जूता कांड चुनाव के समय बहस का बायस बन गया. नतीजा यह हुआ कि 2009 के लोकसभा चुनाव में सज्जन कुमार का टिकट एक बार फिर से काट दिया गया. उनकी जगह उनके भाई रमेश कुमार चुनाव लड़े और लोकसभा पहुंचने में कामयाब रहे.

साल 2010 की जनवरी. सीबीआई ने पूरे मामले में अपनी चार्जशीट दायर की. सज्जन कुमार पर हत्या, हत्या के लिए उकसाने और आगजनी करवाने और दंगा भड़काने के आरोप लगे. 2013 में इस पूरे मामले में कड़कड़डूमा अदालत का फैसला आया. इस मामले में उनके अलावा बाकी के पांच अभियुक्तों को दोषी पाया गया. सज्जन कुमार सबूतों के अभाव में रिहा कर दिए गए. यहां से मामला दिल्ली उच्च न्यायलय के पास चला गया. 17 दिसंबर 2018 को, घटना के 34 बाद इस मामले में आखिरकार न्याय हुआ. सज्जन कुमार को इस मामले में अदालत ने दोषी पाया और उन्हें सश्रम उम्र कैद की सजा सुनाई गई है.

अब हाल ही में CBI ने सुप्रीम कोर्ट से कहा था कि सज्जन बाहर आकर गवाहों को आतंकित कर सकते हैं.

और अब CBI ने सिखों के सामूहिक नरसंहार की तुलना नाज़ियों द्वारा यहूदियों के नरसंहार से की है.



भूपेश बघेल: किसान का बेटा कैसे बना मुख्यमंत्री?

Advertisement