GITN: पुरुषोत्तम अग्रवाल से 'आदिपुरुष' के डायलॉग्स पर सवाल किया, जवाब बहुत कुछ सिखा गया
‘गेस्ट इन दी न्यूज़ रूम’ में इस बार हमारे गेस्ट के तौर पर आए प्रोफेसर पुरुषोत्तम अग्रवाल. उन्होंने भक्ति, साहित्य से लेकर भारतीय दर्शन के बारे में काफी कुछ बताया.

दी लल्लनटॉप के चर्चित शो ‘गेस्ट इन दी न्यूज़ रूम’ में इस बार हमारे गेस्ट के तौर पर आए प्रोफेसर पुरुषोत्तम अग्रवाल. प्रोफेसर अग्रवाल 2007-13 तक UPSC के मेंबर रहे हैं. इंटरव्यू में उन्होंने भक्ति, साहित्य से लेकर भारतीय दर्शन के बारे में काफी कुछ बताया.
हाल ही में रिलीज़ हुई फिल्म 'आदिपुरुष' पर भी प्रोफेसर अग्रवाल ने चर्चा की. फिल्म में डायलॉग और हनुमान और राम जैसे कैरेक्टर को किस तरह दिखाया जाना चाहिए, इस पर बोलते हुए प्रोफेसर ने बताया,
“पहली बात तो मैंने वो फिल्म देखी नहीं है. शायद देखूंगा भी नहीं. समय की कमी है. लेकिन आप नौजवानों की भाषा में रामायण लिख रहे हैं, बहुत अच्छी बात है. लेकिन आपको इस बात का भी ध्यान रखना चाहिए कि आप रामायण लिख रहे हैं.”
प्रोफेसर अग्रवाल ने आगे कहा कि नौजवानों की भाषा हो या बूढ़ों की भाषा हो, पात्र और प्रसंग के अनुकूल ज़बान का इस्तेमाल होता है. उन्होंने बताया,
“कई सारे नौजवान स्मोक करते होंगे. लेकिन क्या वो मंदिर में जाकर स्मोक करेंगे? क्या आप गुरुद्वारे में जिद़ करेंगे कि हम सिर पर कपड़ा नहीं रखेंगे. हर जगह का एक प्रोटोकॉल होता है. आपको जाना है तो जाइए वरना मत जाइए. अगर जा रहे हैं तो सिर पर कपड़ा रख लीजिए.”
प्रोफेसर अग्रवाल ने भाषा के बारे में बताते हुए कहा कोई भी समय हो, कैसा भी समय हो, कौन चरित्र कैसे बोलेगा इसकी एक सेंसिटिविटी तो होनी चाहिए. नौजवान तो और भी भाषा बोलते है, वो भी बुलवा दीजिए फ़िर. प्रोफेसर ने बताया,
“ये बेतुका तर्क है. इसका कोई मतलब नहीं है. पिछले चालीस-पचास साल में दुनिया भर में यूनिवर्सल ह्यूमन वैल्यूज़ और यूनिवर्सल ह्यूमन एंडेवर की धारणा थी वो बहुत कमजोर हुई है. हर एक की अपनी सांस्कृतिक पहचान का आग्रह बहुत प्रबल हुआ है. हर चीज़ सांस्कृतिक पहचान के चश्मे से जांची जा रही है. इसमें बहुत से दार्शनिकों का भी योगदान है. मिसाल के तौर पर जब ईरान में इस्लामिक रेवोल्यूशन हुआ तो फोकॉल्ट ने उसका जमकर समर्थन किया था. इस बात की परवाह किए बिना कि उसके कुछ दुष्परिणाम भी थे. खासकर औरतों के लिए.”
प्रोफेसर अग्रवाल ने बताया कि हर व्यक्ति अपनी पहचान से चिपका हुआ है. और ये पहचानें भी मनमाने ढंग से डिफेंड की जाती हैं. उन्होंने कहा,
"लोग आजकल सनातन धर्म की बहुत बात करते हैं. सनातन का शाब्दिक अर्थ ही होता है जो सतत प्रवाहमय हो. वो सनातन हो ही नहीं सकता जो 12वीं शताब्दी में रुक गया हो, या 14वीं सदी में रुक गया हो."
प्रोफेसर ने कहा कि आप किसी भी धर्म से उदाहरण ले सकते हैं. बाइबल के उदाहरणों के आधार पर अमेरिका में घनघोर डिबेट चल रही है. ये जो जड़ता है, और इसके साथ लोगों ने अपनी पहचान का मोह जोड़ लिया है, इसके कारण ये स्थितियां पैदा होती हैं कि हम पूछते हैं कि मिहिर भोज किसके हीरो हैं.
प्रोफेसर ने अंत में बताया कि इससे निपटने का एक ही तरीका है. हमें बेसिक ह्यूमन आइडेंटिटी और प्रिंसिपल का ध्यान रखना होगा. जब हम किसी बात की आलोचना करें, तो उसकी समग्रता में करें. किसी बात की प्रशंसा करें, तो भी उसी तरह करें.
नोट- Guest In The Newsroom का ये एपिसोड अभी ऑन एयर नहीं हुआ है. आप इसे रविवार, सुबह 11 बजे दी लल्लनटॉप के ऐप, वेबसाइट पर देख सकते हैं.
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