आदिवासियों के हक ले लिए लड़ने वाले बिरसा मुंडा के गांव में PM मोदी कौन सी बड़ी घोषणा करने जा रहे?
आदिवासी समुदाय में 'सिकल सेल एनीमिया' को खत्म करने के लिए मोदी सरकार क्या कर है?

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 14 नवंबर दो दिन के दौर पर झारखंड पहुंचे. 15 नवंबर को बिरसा मुंडा की जयंती है. प्रधानमंत्री भी बिरसा मुंडा के जन्मस्थान उलिहातू गांव ही जा रहे हैं. ये गांव झारखंड के खूंटी जिले में है. रांची से करीब 60 किलोमीटर दूर पड़ता है. ऐसा पहली बार होगा जब देश का कोई प्रधानमंत्री उलिहातू गांव पहुंचेगा. 15 नवंबर झारखंड के लिए खास भी है. इसी दिन झारखंड का स्थापना दिवस भी मनाया जाता है. आपमें से कई लोग बिरसा मुंडा को जानते हैं. जो नहीं जानते, उनके लिए हम उनका संक्षिप्त परिचय दे रहे हैं.
बिरसा मुंडा का जन्म हुआ था 15 नवंबर 1875 को. उनके जन्म के समय अंग्रेजों ने इस इलाके में आम लोगों को तबाह कर दिया था. कई ऐसे क़ानून थे जिनके चलते किसानों और आदिवासियों की ज़मीन छीनी जा रही थी. क्षेत्र की जनजातियों के अधिकारों को लगभग पूरी तरह से समाप्त कर दिया गया था. इसके अलावा धर्म परिवर्तन की इंतहां ये थी कि बिरसा मुंडा तक को पढ़ाई की ख़ातिर अपना धर्म बदलना पड़ा. जर्मन मिशन स्कूल में एडमिशन लेने के लिए उनका नाम बदल कर बिरसा डेविड कर दिया गया, जो बाद में बिरसा दाऊद भी हो गया. हालांकि कुछ ही सालों बाद स्वतंत्रता संग्राम से प्रभावित होकर उनकी मां ने उनको स्कूल से हटा लिया.
बहुत कम उम्र में आजादी के आंदोलन में कूद पड़े. 1895 में, बिरसा मुंडा ने ईसाई धर्म त्याग दिया. उलगुलान की शुरुआत कर दी. उलगुलान का अर्थ होता है, ‘असीम कोलाहल’- ‘द ग्रेट टमल्ट.’ वो विद्रोह, जिसमें आदिवासियों ने अपने जल, जंगल और ज़मीन पर अपनी दावेदारी के लिए विद्रोह शुरू किया. उन्होंने नारा दिया- ‘अबुआ राज एते जाना, महारानी राज टुंडू जाना.’ यानी, रानी का राज ख़त्म करो और अपना राज स्थापित करो. उन्होंने रैयतों (किराये/ठेके से खेती करने वाले किसानों) को लगान न देने का आदेश दिया. इस सबके चलते उन्हें 24 अगस्त, 1895 को गिरफ़्तार कर लिया गया और दो साल की कैद की सजा सुना दी गई.
28 जनवरी, 1898 को जेल से रिहा होने के बाद, वो फिर से उन्हीं पुराने सामाजिक कार्यों में जुट गए. धर्मांतरण को रोकने के अभियान में जुटे. कुछ समय के लिए भूमिगत भी हुए. 1899 के दिसंबर में अबुआ दिशुम का नारा दिया यानी स्वराज्य कायम होने की घोषणा की. 5 जनवरी, 1900 को बिरसा के साथियों ने खूंटी के एटकेडीह गांव में दो पुलिस कांस्टेबलों की हत्या कर दी. दो दिन बाद उन्होंने खूंटी पुलिस स्टेशन पर हमला करके एक और कांस्टेबल की हत्या कर दी. इन घटनाओं के बाद बिरसा के सिर पर 500 रुपये का इनाम रख दिया गया था, जो उस समय के हिसाब से बहुत बड़ा इनाम था. अंग्रेज़ सरकार को लगा कि इतना पैसा देखकर लोग बिरसा मुंडा की मुखबिरी करने लगेंगे. बावजूद इसके, कई बार बिरसा मुंडा अंग्रेजों से बचने में सफल रहे. अंततः उन्होंने सिंहभूम की पहाड़ियों में शरण ले ली.
लेकिन 3 फरवरी, 1900 को चक्रधरपुर के पास उनकी गिरफ्तारी हुई. गिरफ़्तारी के चार महीनों के भीतर, 9 जून, 1900 को बिरसा की जेल में मृत्यु हो गई. सुबह खून की उल्टी हुई, और उसके बाद मौत. 26 साल से भी कम उम्र में उस व्यक्ति ने अंग्रेजों से डटकर मुकाबला किया. इसलिए उन्हें झारखंड में इतना प्यार मिलता है.
इसलिए अब उनके नाम पर पहचान की राजनीति भी होती है. दो साल पहले 15 नवंबर को ही केंद्र सरकार ने जनजातीय गौरव दिवस मनाने का फैसला लिया था. सरकार ने कहा था कि ये दिन वीर आदिवासी स्वितंत्रता सेनानियों की स्मृयति को समर्पित होगा ताकि आने वाली पीढ़ियां देश के प्रति उनके बलिदानों के बारे में जान सकें. लोग प्रेरणा जरूर लेते हैं, लेकिन उसी आदिवासी समाज की हालत आज क्या है, किसी से छिपी नहीं.
आदिवासियों की जब भी बात होती है तो उनके पिछड़ेपन से जुड़ी बातें होती हैं. इसे सरकार की नीयत कहें या आधी कोशिश, इसके कारण आदिवासियों का विकास उस तरह नहीं हो पाया, जितना देश के बाकी समूहों का. भारत में आदिवासियों की संख्या कुल आबादी का 8.9 फीसदी है. यानी कुल आबादी 12 करोड़ के आसपास है. केंद्रीय आदिवासी मंत्रालय के मुताबिक, करीब 90 फीसदी आदिवासी ग्रामीण इलाकों में रहते हैं. सिर्फ 10 परसेंट शहरी क्षेत्रों में. 2011 की जनगणना के हिसाब से, आदिवासियों में साक्षरता दर सिर्फ 59 फीसदी थी. तब देश में औसत साक्षरता दर 73 फीसदी थी. जिन आदिवासियों के लिए प्रधानमंत्री 24 हजार करोड़ की योजना ला रहे हैं, उनकी साक्षरता और स्थिति के बारे में अलग से डेटा उपलब्ध नहीं है.
अब जानते हैं कि ये विशेष रूप से कमजोर जनजाति कौन हैं? सरकार ने इन आदिवासी समूहों की पहचान के लिए कुछ क्रायटेरिया बनाया है, वो हैं--
1. प्री-एग्रीकल्चरल लेवल ऑफ टेकनीक. यानी जिन समाजों में खेती का चलन नहीं आया है, ऐसे में ये जनजातियां खाने-पीने के लिए जंगलों पर ज्यादा निर्भर हैं.
2. साक्षरता का निम्न स्तर
3. आर्थिक पिछड़ापन हो
4. उनकी घटती या रुकी हुई आबादी
मौजूदा सरकार क्या करने जा रही है, उससे पहले ये बता देते हैं कि अभी तक इन समुदाय के लिए क्या किया गया है. भारत सरकार ने आदिवासियों की स्थिति का पता लगाने के लिए 1960-61 में ढेबर कमीशन का गठन किया था. इस कमीशन ने अपनी रिपोर्ट में बताया कि आदिवासियों की शिक्षा की समस्या के लिए कुछ नहीं किया गया है. आवासीय आश्रम स्कूल बनाने की सिफारिश की गई. इस कमीशन ने आदिवासियों में भी काफी पिछड़े समुदाय को प्रीमिटिव ट्राइबल ग्रुप्स (PTGs) यानी आदिम जनजाति समूह के रूप में कैटगराइज किया. ढेबर कमीशन ने कुछ सिफारिश की थीं मसलन...
1. आदिवासी बच्चों को हैंडीक्राफ्ट या प्रैक्टिकल स्किल की ट्रेनिंग दी जाय.
2. उन्हें खाना, कपड़े, किताबें मुफ्त दी जाएं
3. जो शिक्षक इन आदिवासी बच्चों को पढ़ाएं, उन्हें उनकी संस्कृति की पूरी जानकारी हो.
4. इन आदिवासी बच्चों को प्राथमिक शिक्षा उनकी मातृभाषा में दी जाए
5. इन बच्चों को पढ़ाने वाले शिक्षकों को विशेष भत्ता और आवासीय सुविधाएं दी जाए.
ढेबर कमीशन की इन सिफारिशों पर कितना अमल हुआ, इसके बारे में कोई जानकारी नहीं है. पांचवीं पंचवर्षीय योजना में ऐसे 52 समुदायों की पहचान की गई थी. बढ़ते सालों में कुछ और समुदायों को जोड़ा गया. साल 2011 की जनगणना में ऐसे 93 आदिवासी समूह थे. साल 2006 में भारत सरकार ने प्रीमिटिव ट्राइबल ग्रुप्स का नाम बदल दिया. ये 'विशेष रूप से कमजोर जनजातीय समूह' यानी PVTG कहलाने लगे. समुदाय का नाम बदला, लेकिन हालात नहीं. ये सरकार भी जानती है.
मार्च 2015 में केंद्र सरकार ने इस समुदाय के विकास के लिए राज्यों को चिट्ठी लिखी. सरकार ने खुद माना था कि इन समुदायों के पास बुनियादी शिक्षा, स्वास्थ्य सुविधाएं और आधुनिक जीवनयापन की चीजें नहीं पहुंची हैं. राज्यों से कहा गया था कि वे इन समुदायों के 'संरक्षण के साथ विकास' के लिए लॉन्ग टर्म प्लान बनाएं. इस प्लान में उनकी शिक्षा, स्वास्थ्य, सामाजिक सुरक्षा, आवास, बिजली, खेती, संस्कृति, रोजगार को शामिल करने के लिए कहा गया. इस प्लान को 'सीसीडी प्लान' का नाम दिया गया.
इसके तहत कहा गया कि PVTG इलाकों में स्पेशल हेल्थ सेंटर बनाए जाएं. उनके हेल्थ सर्वे पर जोर देने को कहा गया. खासकर इन समुदायों में सिकल सेल एनीमिया को देखते हुए हेल्थ कार्ड जारी करने की सिफारिश की गई. हम सभी जानते हैं एनीमिया, खून की कमी को बोलते हैं. थोड़ा और डिटेल में बोला जाए तो खून में पाए जाने वाले लाल रक्त कोशिकाओं (RBC) की कमी. लेकिन ये सिकल सेल एनीमिया क्या है? डॉक्टरों के मुताबिक इस तरह की बीमारी लाल रक्त कोशिकाओं में डिफेक्ट से होता है. इस स्थिति में लाल रक्त कोशिकाएं दराती के आकार के हो जाते हैं इसलिए सिकल सेल भी बोलते हैं. आकार बदलने से ये कोशिकाएं ब्लड वेसेल को ब्लॉक कर देती है, जिससे ब्लड फ्लो रुकता है. डॉक्टर इसे जेनेटिक समस्या मानते हैं. हाथ, पैर और जोड़ों की हड्डियों में दर्द इसके आम लक्षण हैं. जनजाति मंत्रालय के मुताबिक, आदिवासी समुदाय में जन्म लेने वाले 86 में से एक बच्चे सिकल सेल से ग्रसित होते हैं.
कट टू फरवरी 2023. इस साल बजट में केंद्र सरकार ने बड़ी घोषणा की. वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने बताया कि साल 2047 तक सिकल सेल एनीमिया के उन्मूलन के लिए एक मिशन शुरू किया जाएगा. इसके तहत प्रभावित आदिवासी इलाकों में शून्य से 40 साल के उम्र के 7 करोड़ लोगों की स्क्रीनिंग की जाएगी. केंद्र और राज्य सरकारों की साझेदारी से इस समस्या को दूर किया जाएगा.
इसी बजट में सरकार ने कहा कि PVTG आदिवासी समुदाय की सामाजिक-आर्थिक स्थिति में सुधार के लिए 'PM PVTG विकास मिशन' शुरू किया जाएगा. इसका उद्देश्य इन आदिवासियों के लिए मूलभूत सुविधाओं की स्थिति में सुधार करना है. मूलभूत सुविधा यानी मकान, सफाई, स्वास्थ्य सुविधा, शिक्षा और कनेक्टिविटी जैसी चीजें. इसके लिए सरकार ने अगले तीन सालों में 15 हजार करोड़ रुपये आवंटित करने की घोषणा की.
अभी देश में इन आदिवासियों की संख्या करीब 28 लाख है. 18 राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में इनकी आबादी है. अभी कुल 75 PVTG समुदाय हैं, जो देश के 220 जिलों में रहते हैं. कई ऐसे समुदाय हैं जिनकी आबादी सैकड़ों में है. जैसे 2001 की जनगणना में बिहार में बिरजिया आदिवासी सिर्फ 17 थे. तब बिहार में असुर समुदाय की संख्या 181 थी और कोरवा समुदाय की आबादी 703 थी. ये आदिवासी ज्यादातर जंगल क्षेत्रों और दुर्गम इलाकों में रहते हैं. जहां आज भी विकास नाम की गाड़ी पहुंचते-पहुंचते रुक जाती है.
इस साल जून में सरकार ने बताया कि वो इन 28 लाख PVTG समुदाय के लिए ह्यूमन डेवलपमेंट इंडेक्स डिजाइन करने पर विचार कर रही है. इसके लिए 22 हजार गांवों में सर्वे किया जाएगा. जनजाति मामलों के मंत्री अर्जुन मुंडा ने कहा कि ऐसा पहली बार होगा जब उनके जीवन में हो रहे बदलावों के बारे में जानकारी इकट्ठा की जाएगी और इसे डॉक्यूमेंट किया जाएगा.
फिर जुलाई में केंद्र सरकार ने लोकसभा में जवाब दिया कि जनजातीय कार्य मंत्रालय के अधिकारियों ने इन आदिवासी इलाकों का दौरा किया. अधिकारियों ने रिपोर्ट दी कि इन इलाकों में सड़कों और इंफ्रास्ट्रक्चर सुधार के लिए फोक्स्ड होना होगा. साथ ही स्कूल छोड़ने की दर और आजीविका के अवसर में सुधार की जरूरत है.
अब प्रधानमंत्री खुद 26 फीसदी आदिवासी आबादी वाले राज्य के दौरे पर हैं. जहां अगले साल विधानसभा चुनाव भी हैं. अभी छत्तीसगढ़ में भी विधानसभा चुनाव हो रहे हैं. जहां, लगभग 32 फीसदी आदिवासी जनसंख्या है. इसलिए इसके राजनीतिक मायने भी निकाले जा रहे हैं. प्रधानमंत्री सिर्फ PVTG मिशन को ही नहीं, बल्कि कई और योजनाओं को झारखंड से लागू करने वाले हैं. यहीं से प्रधानमंत्री किसान योजना की 15वीं किस्त जारी की जाएगी. रेल, सड़क, शिक्षा जैसे कई क्षेत्रों में 7200 करोड़ रुपये की परियोजनाओं का उद्घाटन और शिलान्यास करेंगे.