'पैरासाइट': 2020 के ऑस्कर में सबको तहस नहस करने वाली छोटी सी फ़िल्म
सबसे ज़्यादा 4 ऑस्कर जीते. ऑस्कर का 91 साल का इतिहास तोड़ दिया.
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सुबह उठते है. कोई फुटकर काम मिलता है तो करते हैं. नहीं मिलता है तो मुफ्त की चीजें खोजते हैं. और जिंदा रहते हैं. फ़िल्म का पैरासाइट परिवार. जैसे दुनिया में अरबों हैं. (फोटोः सीजे एंटरटेनमेंट / नियोन)
“वो गंध कहां से आ रही है? मिस्टर किम की गंध. वो जो कार में बहती रहती है. कैसे डिसक्राइब करूं उसे? कैसी है वो? जैसे किसी पुरानी मूली की बास. या फिर, जब आप कोई चिथड़ा उबालते हो. ये कुछ वैसी ही बास है.”दक्षिण कोरिया में कहीं रहती है चार लोगों का एक फैमिली. किम फैमिली. एक सेमी बेसमेंट में. ऐसे बेसमेंट कोरियाई जीवन का हिस्सा हैं. घर में पिता किम की-तेक है. ऐसा आदमी जिसे हम हर गली, मोड़ पर रोज़ देखते हैं. खुश, फक्कड़. उसकी पत्नी चंग सुक है जो वर्काहॉलिक है, दिन भर काम में लगी रहती है. बेटी की-जुंग स्मार्ट और आर्टिस्टिक है. और बेटा की-वू भी टैलेंटेड है. घर में बच्चों के मैडल भी लटके हैं जो उन्होंने जीते हैं. लेकिन फिर भी सब बेरोज़गार हैं. पार्ट टाइम काम-धंधे करते हैं. जैसे कि पिज्जा बॉक्स के गत्ते मोड़ने का काम. वो भी इंटरनेट पर वीडियो देखकर सीखते हैं. चूंकि आम ज़रूरतों के लिए पैसे का सोर्स नहीं है तो फ्री पर आश्रित रहते हैं. जैसे, नेट पड़ोसी के फ्री वाई-फाई से चलाते हैं. मुहल्ले में मच्छर मारने वाली मशीन आती है तो बेटी कहती है खिड़की बंद कर दो नहीं तो ज़हरीला धुंआ अंदर आएगा. पिता कहता है – “रहने दो. हम लोगों को फ्री में सफाई मिलेगी. बदबूदार खटमल मरेंगे.” हालांकि वो धुंआ बाद में उनकी नाकें भी जलाकर जाता है.- बहुत पैसे वाले मिस्टर पार्क अपने आलीशान विला में वाइफ के साथ हॉल में, सोफे पर लेटे हैं. सोफे के सामने टेबल के ही नीचे, पैरासाइट परिवार के लोग छुपे हैं. परिवार का पिता किम इन मि. पार्क और उनकी पत्नी को बहुत ही भोले और अच्छे लोग कहता था. अब उनके मुंह से अपने बारे में ये बातें सुनते हुए वो आंखें बंद कर लेता है. गहरी पीड़ा के मारे. ऐसी, जिसे बयां नहीं किया जा सकता. इस क्षण से उसके भीतर कुछ मर जाता है. वो मुस्कराना छोड़ देता है. उसका मुफ़्लिसी में भी उम्मीदों से भरे रहने वाला एटिट्यूड खत्म हो जाता है.

एक दिन की-वू का पुराना दोस्त मिलने आता है. वो एक रईस परिवार की बेटी को ट्यूशन पढ़ाया करता है. अब बाहर जा रहा है तो की-वू से कहता है कि उन्हें नए इंग्लिश ट्यूटर की जरूरत पड़ेगी. तुम बन जाओ. मैं तुम्हारा नाम उनको रेकमेंड कर दूंगा. लेकिन की-वू के पास यूनिवर्सिटी डिग्री नहीं है. चार बार एंट्रेंस दिया है लेकिन उसे लिया नहीं गया. दोस्त कहता है अपनी कलाकार बहन से नकली डिग्री बनवा लो. वो ऐसा ही करता है. उसकी बहन फोटोशॉप पर हाथ मारती है और ओरिजिनल से भी अच्छी डिग्री बना देती है. की-वू पूछता है, “इतनी स्किल्स है फिर भी तुम आर्ट स्कूल में क्यों नहीं जा पा रही?” हालांकि जवाब वो भी जानता है कि वो आर्ट स्कूल की फीस नहीं भर सकती इसीलिए. उसकी बनाई नकली डिग्री देखकर पिता भी विस्मय में रह जाता है. कहता है – “ऑक्सफोर्ड में डॉक्यूमेंट फॉर्जरी, मतलब काग़जों की जालसाजी में कोई कोर्स होता है क्या? अगर होता तो मेरी की-जुंग अपनी क्लास में टॉप करती.”
ख़ैर, की-वू अगले दिन उस रईस फैमिली के वहां जाता है. उसमें भी चार मेंबर हैं. घर का पिता नैथन पार्क जो शायद एक आईटी फर्म में सीईओ है. एक बेटा और एक बेटी हैं. और घर का सारा काम संभालती हैं धनी हाउसवाइफ मिसेज़ पार्क. वो की-वू का इंटरव्यू लेती है. और कुछ घंटों बाद जब वो घर से जा रहा होता है तो मिसेज़ पार्क को सम्मोहित करके. यहीं से इस परिवार में उस पैरासाइट फैमिली की एंट्री होनी शुरू होती है. एक-एक करके किम के घर के सब लोग यहां आ जाते हैं. कैसे आते हैं? यही देखना मज़ेदार है. लेकिन असली कहानी इसके बाद शुरू होती है. इस घर में दरअसल एक और पैरासाइट परिवार पहले से रह रहा है जिसके बारे में किसी को नहीं पता. गटर चैंबर में बने कॉकरोच की तरह. जब वो सामने आता है तो बहुत कठोर और ह्रदयविदारक घटनाक्रम जन्म लेता है. ये कहानी देखते हुए पहले हम हंसते हैं, खिलखिलाते हैं लेकिन बाद में होश उड़ते जाते हैं, और अंत में रुआंसे हो जाते हैं.
पैरासाइट एक सुगढ़ फ़िल्म है. जिसमें क्षणिक पल भी याद रह जाने वाले हैं, और कुछ लंबे सीन भी. इसका सिनेमाई ग्रामर (सिनेमैटोग्राफी, एडिटिंग) भी और बारीक सामाजिक विवेचना भी. एक सीन है जहां ये सब आकर मिल जाते हैं.
पार्क फैमिली बेटे के बर्थडे पर कैंपिंग करने गई होती है. उनके जाने के बाद पैरासाइट परिवार उनके आलीशान बंगले में बैठकर शराब पी रहा होता है, बातें कर रहा होता है, सपने देख रहा होता है और फिर घर में एक होश उड़ाने वाली घटना उनके साथ होती है. उनमें खलबली मच जाती है. वे इस घटनाक्रम में फंसे होते हैं कि पार्क फैमिली ट्रिप कैंसल करके लौट आती है. पैरासाइट परिवार टेबल के नीचे छुप जाता है. फिर आधी रात के बाद चुपके से घर से बाहर निकलता है. पिता, बेटा, बेटी अपने घर की ओर चल पड़ते हैं. मूसलाधार बारिश हो रही होती है. ये सीन हक्का बक्का करता है. कोरिया के एक धनी परिवार के बंगले से निकलकर अपने घर यानी सेमी-बेसमेंट में जाने के लिए वे शहर में नीचे उतरते जाते हैं, उतरते जाते हैं. जैसे कि किसी नरक में उतर रहे हों. अनगिनत सीढ़ियां.



यहां पर किसी पूंजीवादी समाज में गरीब-अमीर के बीच का वर्ग भेद हथौड़े की तरह आकर लगता है. यकीनन न भूला जा सकने वाला विजुअल. जहां पार्क फैमिली का नन्हा बेटा इस घोर बारिश में अपने गार्डन में अमेरिका से मंगाए बच्चों के वॉटरप्रूफ टेंट में बैठकर, पिता से वॉकी टॉकी से बात करने का एंडवेंचर ले रहा होता है. वहीं पैरासाइट परिवार जब अपने पाताल में बने घर पहुंचता है तो उसमें नाले का पानी भर चुका होता है. उनके लिए इस बरसात के कोई रोमैंटिक या पोएटिक अहसास नहीं होते. वो प्रलय होती है. वो जान पर बन आई चीज़ होती है. घर तबाह करने वाली चीज होती है. ये वही तस्वीर है जो हर बरसात में समाज के दो वर्गों के लिए अलग अलग तरह से बनती है. एक एंजॉय करता है, दूसरा इसमें जिंदा रह जाने की कोशिशें करता है.
मूवी में एक और सीन होता है जहां दोनों परजीवी परिवार विपत्ति में होते हैं. एक परिवार के पुरुष के हाथ-मुंह बंधे होते हैं और वो सिर बल्ब के बटन पर मार-मारकर मोर्स कोड के जरिए हेल्प मी का मैसेज भेज रहा होता है और उसका मुंह ख़ून से लथपथ हो चुका होता है. वहीं दूसरे परजीवी परिवार का पिता बारिश में, नाले के पानी से भर चुके अपने सेमी-बेसमेंट को देखकर अंदर ही अंदर फट रहा होता है. ये भी न भुलाया जा सकने वाला सीन है.
पैरासाइट का मतलब होता है परजीवी. दूसरे पर आश्रित होकर जीने वाला. जैसे - खटमल या कीट या बैक्टीरिया. कहने को इस फिल्म के ये पात्र पैरासाइट हैं. लेकिन असल में काबिल लोग हैं. ज्यादातर अमीरों से ज्यादा काबिल. लेकिन उन्हें अवसर न मिले. किम कहता भी है कि आज के टाइम में (कोरिया में) जब एक सिक्योरिटी गार्ड की नौकरी का आवेदन निकलता है तो 500 यूनिवर्सिटी के ग्रेजुएट आते हैं. उसके बच्चे भी टैलेंटेड हैं लेकिन मौजूदा शिक्षा व्यवस्था, उन्हें एडमिशन नहीं दे रही. किम और उसकी पत्नी स्किल्स वाले लोग हैं लेकिन उन्हें स्किल्स मुताबिक काम धंधे भी मुहैया नहीं हैं. जिन समाजों में पूंजीवादी व्यवस्था होती है, उनमें बाद में जाकर क्या दिक्कतें होती हैं, क्या खराब नतीजे जन्म लेते हैं, उन पर टिप्पणी इस फ़िल्म में की गई है. कोरियाई समाज के परिपेक्ष्य में भी और दुनिया के भी.

किम. 'परजीवियों' का प्रतिनिधि चेहरा. वो बुरा है कि भला है ये देखने वाले को तय करना है. लेकिन वो ऐसा ज़रूर है जो अपने सेमी-बेसमेंट के बाहर पेशाब कर रहे शराबी पर हाथ नहीं उठाता, सिर्फ पानी गिराकर भगाने की कोशिश करता है. जिस ड्राइवर की नौकरी वो हड़प लेता है, शराब पीने के बाद परिवार वालों से पूछता है कि उस ड्राइवर को दूसरी नौकरी तो मिल गई होगी न. और दुनिया में जो धनी और धनी होते जा रहे हैं उनको लेकर उसका मूल सोचना होता है कि ये कितने अच्छे लोग हैं, इन पर कोई सलवटें नहीं हैं. (फोटोः सीजे एंटरटेनमेंट / नियोन)
सीधे तौर पर देखेंगे तो लगेगा कि परजीवी दूसरों का ख़ून चूसते हैं. ख़ासकर, गरीब परजीवी, अमीरों का. वे धोखेबाज़ प्रतीत होते हैं. लेकिन धोखा देते हुए भी वे वही सामान्य, मूल जीवन छीनने की कोशिश कर रहे होते हैं जो गलत नीतियों के कारण समाज में सभी को नहीं मिल पा रहा. सिर्फ समाज के 1 परसेंट लोगों को ही आर्थिक समृद्धि मिलती चली जाती है. यही बात एक्टिविस्ट समूह ऑक्सफैम की हालिया स्टडी कहती है. कि सिर्फ 2,153 अरबपतियों के पास दुनिया के 460 करोड़ लोगों (60 परसेंट आबादी) से भी ज्यादा धन है. इस स्टडी के मुताबिक भारत के 95 करोड़ लोगों के पास जितना धन है, उससे चार गुना ज्यादा दौलत देश के सिर्फ 1 परसेंट रिच लोगों के पास है. फिल्म में एक जगह किम कहता है – “लेकिन ये फैमिली बहुत भोली है. है न? ख़ासकर मदाम (मालकिन). वो बहुत निष्कपट और अच्छी है. वो अमीर है फिर भी अच्छी है.” इस पर उसकी पत्नी चुंग सुक जवाब देती है – “अमीर है इसलिए अच्छी नहीं. बल्कि अच्छी है क्योंकि वो अमीर है. मेरे पास इतना सारा पैसा होता तो मैं भी अच्छी होती. उससे भी ज़्यादा अच्छी होती.”
इस फिल्म को डायरेक्ट किया है बॉन्ग जून हो ने. उनको 21वीं सदी के बेस्ट डायरेक्टर्स में से एक माना जाता है. कॉफी शॉप्स में बैठकर लिखने वाले बॉन्ग ने 25 साल के करियर में सिर्फ 7 फीचर डायरेक्ट की हैं. हिंसा, ब्लैक ह्यूमर, व्यंग्य, समाज, इंसान और जॉनर उनकी फिल्मों के केंद्र में होते हैं. उन्हें पहली बड़ी पहचान 2003 में आई अपनी दूसरी फिल्म से मिली. नाम था – ‘मेमोरीज़ ऑफ मर्डर’. ये कोरियाई इतिहास में हुए सबसे पहले सीरियल मर्डर्स पर बेस्ड थी. दो कॉप्स की कहानी जो इसकी जांच करते हैं. इस फिल्म के बाद वो कोरिया के बाहर भी जाने गए. उनकी अन्य फिल्में रही हैं – ‘द होस्ट’, ‘मदर’, ‘स्नोपीयर्सर’ और ‘ओकजा’. ‘पैरासाइट’ का आइडिया उन्हें 2013 में स्नोपीयर्सर का पोस्ट प्रोडक्शन करते हुए आया था. जो छह साल बाद साकार हुआ.
‘पैरासाइट’ में किम का रोल कोरियन एक्टर सॉन्ग कान्ग हो ने किया है. वो थियेटर से आते हैं. उनका और बॉन्ग का साथ पुराना है. बॉन्ग की ‘मेमोरीज़ ऑफ मर्डर’ में उन्होंने ही एक कॉप का रोल किया था. बाद में भी वे उनकी द होस्ट, स्नोपीयर्सर जैसी फिल्मों में दिखते गए. ‘पैरासाइट’ में किम के बेटे का रोल एक्टर चोई वू शिक ने किया है. वो बॉन्ग की पिछली फिल्म ‘ओकजा’ (2017) में भी नजर आए थे. वो यंग एक्टर हैं और फिल्म में उनके एक्सप्रेशन लाजवाब हैं. उनकी ज़ॉम्बी हॉरर मूवी ‘ट्रेन टू बूसान’ देखिए.

जैसे 'पैरासाइट' में चोई वू शिक का ये सीन देखें. मिसेज़ पार्कर अपने लड़के दा-सॉन्ग की ड्रॉइंग दिखाते हुए कहती है - "देखो, मेरा बेटा आर्टिस्ट है." की-वू तारीफ को और आगे बढ़ाता है. कहता है - "बड़ी मेटाफॉरिकल और मज़बूत है. चिंपांज़ी बनाया है ये." तो मिसेज़ पार्क कहती है - "नहीं ख़ुद का ही चित्र बनाया है. यहां पर चोई वू शिक दंग होने का जो बारीक अभिनय करता है उसे कितनी ही बार देखें, एक्टिंग का परफेक्ट पल लगता है. इससे बेहतर किसी और तरीके से शायद ये पल न हो पाता. (फोटोः सीजे एंटरटेनमेंट / नियोन)
2019-20 के अवॉर्ड सीज़न की सबसे पॉपुलर आर्टहाउस फिल्म 'पैरासाइट' रही है. ये पहली कोरियाई फिल्म बन गई जिसने फ्रांस के नामी केन फिल्म फेस्टिवल-2019 में सबसे बड़ा अवॉर्ड 'पाम दोर' जीता. वो भी उस साल जब कोरियाई सिनेमा अपनी 100वीं जयंती मना रहा था.
इससे पहले पार्क चान-वूक ने अपनी फिल्म 'ओल्डबॉय' से दक्षिण कोरियाई सिनेमा को अंतर्राष्ट्रीय पहचान दिलाई थी और केन फेस्ट का दूसरा सबसे बड़ा अवॉर्ड ग्रां प्री जीता था. ये कोई 15 साल पहले की बात रही होगी. अब 'पैरासाइट' ने अपने देश के सिनेमा की सब हदें पार कर ली हैं. उसने बेस्ट विदेशी फिल्म का गोल्डन ग्लोब भी जीता. दो बाफ्टा जीते. करीब 150 से ज्यादा दूसरे अवॉर्ड जीते. इतने अवॉर्ड कि जब जनवरी 2020 में सैग अवॉर्ड्स (स्क्रीन एक्टर्स गिल्ड) में उसे बेस्ट मोशन पिक्चर कास्ट का अवॉर्ड मिला तो फिल्म के एक्टर ली सन-क्यन (मि. पार्क) ने प्रेस वार्ता में फन में कहा – “मैं थोड़ा शर्मिंदा हूं क्योंकि ऐसा लग रहा है जैसे हम लोग हॉलीवुड के पैरासाइट हो गए हैं”.
फिर ऑस्कर में इसे छह नॉमिनेशन मिले. वो बेस्ट इंटरनेशनल फिल्म में कोरिया की ऑफिशियल एंट्री थी. इस कैटेगरी में नॉमिनेट होने वाली ऑस्कर के 91 साल के इतिहास की वो पहली कोरियाई फिल्म बनी. और पहली विदेशी फिल्म जिसने बेस्ट पिक्चर का ऑस्कर भी जीत लिया है. ये पहले कोई फ़िल्म न कर पाई. पिछले साल एलफॉन्ज़ो क्यूरॉन की ‘रोमा’ भी नहीं जो बेस्ट डायरेक्टर, सिनेमैटोग्राफी और फॉरेन फिल्म के ऑस्कर जीती थी.
9 फरवरी (इंडिया में 10) को हुए ऑस्कर आयोजन में फिल्म ने कुल चार टॉप कैटेगरी के अवॉर्ड जीते. इतने कि डायरेक्टर बॉन्ड ने सिर पकड़ लिया. पिछले साल 'ब्लैकक्लांसमैन' के लिए बेस्ट डायरेक्टर का अवॉर्ड जीतने वाले स्पाइक ली अपने ट्रेडमार्क बैंगनी कपड़ों में इस बार के विजेता को ट्रॉफी देने आए, तो सबने बॉन्ग को स्टैंडिंग ओवेशन दिया. इस कैटेगरी में नॉमिनेट हुए बाकी डायरेक्टर्स भी खड़े हुए. बॉन्ग ने अपनी स्पीच में कहा - "मुझे लगा था बेस्ट इंटरनेशनल जीतने के बाद मेरा आज का हो गया. लेकिन. थैंक यू. सिनेमा की पढ़ाई करते हुए मैंने एक सबक अपने दिल में गोद लिया था. कि - द मोस्ट पर्सनल, इज़ द मोस्ट क्रिएटिव. जो कहानी सबसे पर्सनल है, वो सबसे अधिक रचनात्मक है." उन्होंने 'द आयरिशमैन' के लिए नॉमिनेट हुए मार्टिन स्कॉरसेज़ी को शुक्रिया बोला. भावुक होकर. सब खड़े हो गए. मार्टिन को सम्मान प्रकट करते हुए तालियां बजाने लगे. बॉन्ग ने आगे कहा - "जब सिनेमा स्कूल में था तो मार्टिन की फिल्मों को स्टडी किया. पता नहीं था कभी उनके साथ नॉमिनेट होऊंगा. जीतना तो दूर की बात है." वे यहीं नहीं रुके. बाकी नॉमिनेटेड डायरेक्टर्स केे लिए भी बातें कहीं. ख़ासकर 'वंस अपॉन अ टाइम इन हॉलीवुड' के डायरेक्टर टैरेंटीनो के लिए. बॉन्ग बोले - "जब मेरी कोरियाई फिल्मों को अमेरिका में लोग जानते नहीं थे तब क्वेंटिन ने उन्हें अपनी लिस्ट में डाला. थैंक यू." क्वेंटिन ने जवाब में विक्ट्री साइन बनाया. बॉन्ग ने 'जोकर' और '1917' के डायरेक्टर्स के लिए कहा - "टॉड और सैम ग्रेट डायरेक्टर हैं. अगर अकेडमी अनुमति दे तो मैं इस ट्रॉफी को पांच हिस्सों में बाटूंगा और आप सबसे शेयर करूंगा."
'पैरासाइट' का जादू फेस्टिवल सर्किट से अलग कमर्शियल सिनेमाघरों वाले दर्शकों के बीच भी बना है. इसने बेपनाह कमाई की है. भारतीय रुपयों के हिसाब से इसका बजट करीब 80 करोड़ का है. और ये अब तक करीब 1180 करोड़ रुपये का बिजनेस वर्ल्ड में कर चुकी है. वो भी सीमित प्रिंट में रिलीज़ होने के बाद. अपनी गोल्डन ग्लोब स्पीच में बॉन्ग ने कहा था – “एक बार जब आप सबटाइटल्स के एक इंच ऊंचे अवरोध को पार कर लेंगे तो आपका, और भी ढेर सारी अमेजिंग (गैर-अंग्रेजी भाषा की) फिल्मों से परिचय होगा".
एचबीओ इस फिल्म पर अब एक मिनी-सीरीज़ बना रहा है. उसका नाम भी ‘पैरासाइट’ है. बॉन्ग जून हो ही ‘वाइस’ और ‘द बिग शॉर्ट’ जैसी फिल्मों के डायरेक्टर एडम मकै के साथ मिलकर इसे लिख और प्रोड्यूस कर रहे हैं.
2020 के ऑस्कर में 'पैरासाइट':छह नामांकन मिले. 4 जीते.
बेस्ट पिक्चर - क्वाक शिने, बॉन्ग जून होडायरेक्टर - बॉन्ग जून होफिल्म एडिटिंग - यान्ग जीन्मो इंटरनेशनल फीचर फ़िल्म - साउथ कोरियाप्रोडक्शन डिज़ाइन - ली हा जून, चो वोन वू (सेट डेकोरेशन) राइटिंग (ओरिजिनल स्क्रीनप्ले) - बॉन्ग जून हो, हान जिन वोन
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