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कानून के मुताबिक अल्संख्यक कौन है? क्या कहता है सुप्रीम कोर्ट?

क्या महिलाएं माइनॉरिटी नहीं हैं? पीएम मोदी ने जब सदन में विपक्ष से पूछा कि क्या विपक्ष महिलाओं को माइनॉरिटी नहीं मानता तो माइनॉरिटी या अल्पसंख्यक किसे कहा जाए ये बहस देश में फिर से शुरू हो गई.

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minorities in india
भारत में अल्पसंख्यक
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7 फ़रवरी 2024
Updated: 7 फ़रवरी 2024 19:58 IST
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मेजॉरिटी, माइनॉरिटी, अल्पसंख्यक, बहुसंख्यक. देश के राजनीतिक हलकों में ये शब्द हमें हमेशा सुनाई देते हैं. कौन किस कैटेगरी में आएगा? ये बहस भी ज़ोरों पर है. पीएम मोदी ने भी लोकसभा में इसी मुद्दे पर विपक्ष को आड़े हाथों लिया. 

तो समझते हैं-

-अल्पसंख्यक या माइनॉरिटी का मतलब क्या है?
-संविधान में माइनॉरिटी के बारे में क्या कहा गया है?
और जिक्र करेंगे सुप्रीम कोर्ट के कुछ फैसलों का जिनकी वजह से मेजॉरिटी, माइनॉरिटी की बहस पर हमारी समझ और बेहतर होगी.


क्या महिलाएं माइनॉरिटी नहीं हैं? पीएम मोदी ने जब सदन में विपक्ष से पूछा कि क्या विपक्ष महिलाओं को माइनॉरिटी नहीं मानता तो माइनॉरिटी या अल्पसंख्यक किसे कहा जाए ये बहस देश में फिर से शुरू हो गई.  तो पहले समझते हैं कि अल्पसंख्यक या माइनॉरिटी का मतलब क्या है ?
शाब्दिक अर्थ देखें तो जो संख्या में कम हो उसे माइनॉरिटी कहा जा सकता है. अब ये संख्या या गिनती किसी समुदाय, भाषाई आधार या जेंडर के आधार पर हो सकती है. उदाहरण के लिए जब हम स्कूल में पढ़ते थे तब हमारी क्लास में लड़कों की संख्या लड़कियों से अधिक थी. इसलिए कहा जाता था कि इस क्लास में लड़कियां माइनॉरिटी में हैं. पर ये तो हुई आम बोलचाल की बात. अगर देश के पीएम इस पर बयान दे रहे हैं तो जाहिर है कि इसको लेकर संविधान में कोई प्रावधान होगा. तो समझते हैं कि भारत का संविधान अल्पसंख्यकों के बारे में क्या कहता है ? और कैसे पता चले कि किसकी संख्या कितनी है ?
तो पहले आपको यही बताते हैं कि इसकी गिनती कैसे होती है?

आपने एक शब्द अक्सर सुना होगा, Census. Census का मतलब है हमारे देश में होने वाली जनगणना. Census की शुरुआत ब्रिटिश वायसरॉय Lord Mayo ने सन् 1872 में की थी. Census का उद्देश्य था कि इससे मिली जानकारी सरकार को अपनी योजनाएं बनाने में मदद करेगी. भारत में आखिरी Census 2011 में हुआ था. उसके बाद से अब तक भारत में जनगणना नहीं हुई है. अब समझते हैं कि जनगणना से क्या-क्या पता चलता है ?
तो मुख्य रूप से जनगणना से सरकार को डेमोग्राफी, आर्थिक स्थिति, साक्षरता, शेड्यूल कास्ट, शेड्यूल ट्राइब्स की संख्या , किस भाषा को बोलने वाले कितनी जनसंख्या है आदि. इसी Census से एक चीज और पता चलती है, ये कि किस समुदाय की संख्या कितनी है.

 माइनॉरिटीज़ पर संविधान में क्या लिखा गया है ?

 कुछ अदालती कार्रवाइयों को देखेंगे जिनमें कोर्ट के सामने भी ये सवाल आया कि माइनॉरिटी किसे कहा जाए और क्या पैमाने हैं  जिनके आधार पर किसी समुदाय को माइनॉरिटी का दर्जा दिया जाए.भारत के संविधान में माइनॉरिटीज़ को लेकर कोई परिभाषा नहीं है, हालांकि संविधान के ही कुछ आर्टिकल्स में माइनॉरिटीज का जिक्र जरूर आता है. और इन्हीं आर्टिकल्स में माइनॉरिटीज के अधिकारों की बात की गई है.  जैसे कि संविधान के आर्टिकल 29 का प्रावधान कहता है कि भारत के किसी भी भाग में रहने वाले नागरिकों के किसी भी सेक्शन को अपनी बोली, भाषा, लिपि या संस्कृति को सुरक्षित रखने का अधिकार है. किसी भी नागरिक को राज्य के अंतर्गत आने वाले संस्थान या उससे सहायता प्राप्त संस्थान में धर्म, जाति या भाषा के आधार पर प्रवेश से रोका नहीं जा सकता. यानी अनुच्छेद 29 धार्मिक एवं भाषाई अल्पसंख्यकों को सुरक्षा प्रदान करता है. पर सुप्रीम कोर्ट ने ऐसी व्यवस्था दी है कि इस कानून के तहत दिए गए अधिकारों की सीमा केवल अल्पसंख्यकों तक सीमित नहीं है. एक्ट की जो भाषा है उसमें 'नागरिकों के किसी भी अनुभाग' शब्द का इस्तेमाल किया गया है. इस शब्द का मतलब मेजॉरिटी, माइनॉरिटी दोनों से है.

अगला है संविधान का आर्टिकल 30. ये आर्टिकल कहता है कि सभी अल्पसंख्यक वर्गों को अपनी रुचि की शिक्षा संस्थानों की स्थापना करने और उन्हें चलाने का अधिकार होगा. इसमें ये भी प्रावधान है कि राज्य अपनी ओर से दी जाने वाली आर्थिक सहायता में अल्पसंख्यकों द्वारा चलाए जा रहे किसी भी एजुकेशनल इंस्टीट्यूशन के साथ भेदभाव नहीं करेगा. पर अल्पसंख्यकों को अधिकार तो आर्टिकल 29 में भी है फिर ये उससे अलग कैसे है? जवाब है इसका एक प्रावधान जो ये कहता है कि आर्टिकल 30 के तहत धार्मिक, सांस्कृतिक और भाषाई अल्पसंख्यकों के अलावा नागरिकों के किसी और अनुभाग या सेक्शन पर लागू नहीं होगा. माने आर्टिकल 30 उन्हीं लोगों के लिए है जो धार्मिक, सांस्कृतिक या भाषा के आधार पर अल्पसंख्यक हैं.

माइनॉरिटीज़ के लिए एक और प्रावधान है आर्टिकल 350A में.  350 A कहता है कि ये राज्य का कर्तव्य है कि भाषाई अल्पसंख्यक वर्ग में आने वाले बच्चों को उनकी मातृभाषा में प्राथमिक शिक्षा मिले. इसके तहत भारत के राष्ट्रपति माइनॉरिटी कैटगरी के लिए  ऐसी सुविधाएं देने के लिए निर्देश जारी कर सकते हैं.

अब समझते हैं एक आर्टिकल 350B को. आर्टिकल 350B कहता है कि भारत के राष्ट्रपति भाषाई अल्पसंख्यकों के लिए एक स्पेशल ऑफिसर नियुक्त करेंगे. ऑफिसर की ये ड्यूटी होगी कि वो संविधान के तहत भाषाई अल्पसंख्यकों के लिए प्रदान किए गए सुरक्षा उपायों से संबंधित सभी मामलों की जांच करे.

पर इन सभी आर्टिकल्स में कहीं भी माइनॉरिटी या अल्पसंख्यक के लिए स्पष्ट परिभाषा नहीं दी गई है. तो हमारा बेसिक सवाल अब भी वही है कि माइनॉरिटी में कौन है ? और ये तय कौन करेगा? क्या राज्य सरकार ये तय करेगी कि कौन माइनॉरिटी है कौन नहीं ? 

भारत में केंद्र सरकार ये तय करती है कि कौन माइनॉरिटी होगा. केंद्र सरकार इसके लिए National Commission for Minorities Act, 1992 के तहत फैसला लेती है. एक्ट के तहत सिर्फ उन समुदायों को ही माइनॉरिटी कहा जाता है जिन्हें इस एक्ट के सेक्शन 2(c) में नोटिफ़ाई किया गया हो. वर्तमान में भारत सरकार के 23 अक्टूबर, 1993 को लाए गए नोटिफिकेशन के मुताबिक मुस्लिम, ईसाई, सिख, बौद्ध और पारसी समुदाय माइनॉरिटी कम्युनिटीज़ हैं. इसमें एक बदलाव आया जनवरी 2014 में जब जैन समुदाय के लोगों को भी माइनॉरिटी का दर्जा दिया गया.

 मेजॉरिटी-माइनॉरिटी के मुद्दे पर अदालतों ने क्या कहा है? 

TMA Pai Case.
इस केस में सुप्रीम कोर्ट की 11 जजों की बेंच ने संविधान के तहत अपनी पसंद के शैक्षणिक संस्थानों की स्थापना करने और उनके प्रशासन के अल्पसंख्यकों के अधिकार का दायरा क्या हो, इसपर विचार किया था. 2002 में छह जजों के बहुमत के फैसले में पंजाब के डीएवी कॉलेज से संबंधित दो अन्य मामलों का जिक्र  किया गया था.  इसमें सुप्रीम कोर्ट को इस बात पर विचार करना था कि क्या पंजाब राज्य में हिंदू धार्मिक अल्पसंख्यक थे? ये तय करने के लिए 11 में से 6 जजों ने 2002 में एक केस का जिक्र किया.

इसमें 1971 के एक केस DAV College versus State of Punjab का जिक्र किया गया. सवाल ये था कि धार्मिक या भाषाई अल्पसंख्यक का निर्धारण कैसे होता है? और ये निर्धारण किस तरह किया जाना चाहिए. फिर Kerala Education Bill 1958 का हवाला दिया गया जिसके आधार पर ये कहा गया कि पंजाब में आर्य समाज के लोग जो हिन्दू समुदाय के अंतर्गत आते हैं, निश्चित तौर पर माइनॉरिटी में हैं. भले ही पूरे देश में वो माइनॉरिटी में न हों. 
2002 में कोर्ट ने अपने फैसले में इस तर्क को खारिज कर दिया कि हिन्दू भारत में बहुसंख्यक हैं इसलिए वो पंजाब में अल्पसंख्यक नहीं हो सकते. यह तय करना राज्य की इकाई का काम है और राज्यवार देखें तो हिन्दू निश्चित तौर पर पंजाब में माइनॉरिटी में हैं. कोर्ट ने अपने फैसले में यह माना कि धार्मिक या भाषाई अल्पसंख्यक को निर्धारित करने की इकाई केवल राज्य ही हो सकती है. माने राज्य ही फैसला करेगा कि कौन अल्पसंख्यक है.


इस केस के बाद फिर एक बार ये मामला उठा 2005 के 'बाल पाटिल' केस में. इस केस में भी सुप्रीम कोर्ट ने TMA Pai केस के फैसले का हवाला दिया. कोर्ट ने कहा कि TMA Pai केस में ग्यारह जजों की बेंच के फैसले के बाद कानूनी स्थिति स्पष्ट हो गई है कि अब से भाषाई और धार्मिक अल्पसंख्यकों दोनों का फैसला राज्य स्तर पर ही होगा. कोर्ट ने आगे कहा कि इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि माइनॉरिटी के लिए कानून बनाया किसने है. इससे आर्टिकल 30 का उद्देश्य नहीं बदल जाता. आर्टिकल 30 के अनुसार राज्यों की स्थापना के लिए भाषा को आधार बनाया गया है. इसलिए उस राज्य जिसमें अल्पसंख्यकों के लिए शैक्षणिक संस्थान बनाया जाना है, उस राज्य को ही अपना भाषाई अल्पसंख्यक निर्धारित करना होगा. पर कोर्ट ने कहा कि धार्मिक अल्पसंख्यकों के मामले में स्थिति एक समान रहेगी क्योंकि आर्टिकल 30 में धार्मिक और भाषाई, दोनों तरह के माइनॉरिटीज़ को एक बराबर रखा गया है. 

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