इंटीग्रेटेड बीएड-एमएड करने वालों के साथ सरकारी धोखा हो गया, छात्र धक्के खा रहे हैं
छात्रों ने जब पैसा, समय और मेहनत लगा दी तो पता चला डिग्री इनके किसी काम की ही नहीं है.
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इंटीग्रेटेड बीएड-एमएड के स्टूडेंट्स पिछले चार महीनों से प्रोटेस्ट कर रहे हैं.
क्यों लाया गया ये कोर्स?
बी-एड का कोर्स टीचर बनने के एंट्री-पास जैसा होता है. इस कोर्स को पूरा करने के बाद ही आप टीचर बनने के लिए जरूरी परीक्षाएं दे सकते हैं. एम-एड का उद्देश्य भी शिक्षा के क्षेत्र में लोगों को तैयार करना है. NCTE ने कोर्स जारी करते समय बड़ी-बड़ी बातें कहीं. राजपत्र में कहा कि इस कोर्स को लाने का उद्देश्य बेहतर टीचर एजुकेटर और अन्य प्रोफेशनल तैयार करना है.
अन्य प्रोफेशनल के नाम पर कुछ धांसू पदों की चर्चा की गई. जैसे कि करिकुलम डेवलपर, एजुकेशन पॉलिसी एनॉलिस्ट, एजुकेशन प्लानर्स और एडमिनिस्ट्रेटर्स आदि.
यानी वो लोग जो सिलेबस तैयार करते हैं, शिक्षा की नीति बनाते हैं. पढ़ाई के क्षेत्र में क्या होना चाहिए और क्या नहीं होना चाहिए, ये तय करते हैं. 2016 में इसे मंजूरी मिल गई और 5 विश्वविद्यालयों ने इसे पढ़ाना भी शुरु कर दिया. इनमें एक तो था महात्मा गांधी अंतर्राष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय वर्धा. बाकी 4 ओडिशा के थे, नॉर्थ उड़ीसा विश्वविद्यालय, संबलपुर विश्वविद्यालय, फ़क़ीर मोहन विश्वविद्यालय और राजेंद्र विश्वविद्यालय. इसके अलावा कई क्षेत्रीय शिक्षा संस्थानों (RIE) ने भी 2018 में इसे पढ़ाना शुरू कर दिया.

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समस्या क्या है?
समस्या तब शुरू हुई जब इस कोर्स के स्टूडेंट्स ने TET और NET के लिए अप्लाई करना चाहा. TET यानी टीचर एलिजिबिलिटी टेस्ट. कहीं भी स्कूल टीचर, चाहे प्राइमरी स्कूल हो या हाई स्कूल, इस परीक्षा को पास करके ही बना जा सकता है. ऐसे ही NET की परीक्षा पास करना प्रोफेसर बनने के लिए जरूरी होता है. लेकिन इंटीग्रेटेड बीएड-एमएड की डिग्री लेने वाले इन स्टूडेंट्स को TET के लिए अयोग्य बता दिया गया. और NET के फार्म में उनका कोर्स ऑप्शन में था ही नहीं.

Integrated Bed Med
स्टूडेंट्स ने अपनी यूनिवर्सिटीज में शिकायत की. वहां उनसे कहा गया कि हमने मामला आगे भेज दिया गया है आप एनसीटीई और यूजीसी में संपर्क करिए. स्टूडेंट्स यूजीसी और एनसीटीई के पास भी गए. कई सारी RTI भी फाइल की. प्रधानमंत्री और HRD मिनिस्टर को भी लिखा. इन सबके बावजूद उनकी कोई सुनवाई नहीं हुई. कहा यही जा रहा है कि NCTE ने टीचर्स की मिनिमम क्वालिफिकेशन में इस कोर्स को अभी तक जोड़ा नहीं है.
RIE भोपाल के छात्र सुधांशु से जब हमने बात की तो उन्होंने कहा, " इस कोर्स को अब तक सरकार ने टीचर बनने के लिए मान्यता नहीं दी है. इस कारण कोर्स में एडमिशन लेने वाले छात्र परेशान हैं और कहीं अप्लाई नहीं कर पा रहे हैं." टाइम्स ऑफ़ इंडिया की खबर के मुताबिक़ फ़क़ीर मोहन विश्वविद्यालय की वाइस चांसलर मधुमिता दास ने कहा, "NCTE के हिसाब से ये छात्र टीचर एजुकेटर बन सकते हैं, लेकिन टीचर बनने का प्रावधान इस कोर्स में नहीं है."
NCTE का क्या कहना है?
वर्धा विश्वविद्यालय के छात्रों ने जब NCTE के अध्यक्ष को पत्र लिखा. जवाब में उन्होंने साफ-साफ कह दिया कि इस मुद्दे पर उन्हें सेक्रेटरी लेवल के अधिकारियों से बात करनी होगी, छात्रों को इंतजार करना होगा. मतलब ये कि स्टूडेंट्स को गोल-गोल घुमाया जा रहा है. कभी यूजीसी तो कभी NCTE दौड़ाया जा रहा है. इसके बाद NCTE के एक अधिकारी ने उन पत्रों के जवाब में लिखा, "राजपत्र के अपेंडिक्स 15 (जहां इस कोर्स के नियमों की चर्चा की गई है) में जो भी लिखा हुआ है वह Self-explanatory है." मतलब कि सब स्पष्ट रूप से लिखा हुआ है और सब कुछ इसके अनुरूप ही हो रहा है. हमने NCTE के अधिकारियों से बात करने की कोशिश की लेकिन उनसे बात नहीं हो पाई.

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अब सवाल ये है कि अगर टीचर को शिक्षा के क्षेत्र में प्रोफेशनल नहीं मानेंगे तो पता नहीं, कौन सी डिक्शनरी इस्तेमाल कर कर रहे हैं ये लोग. इतने सारे प्रोफेशनल्स की बात प्रस्तावना में थी, पर नौकरी तो किसी भी पद की दिख नहीं रही है. अगर इस कोर्स से टीचर बनाना है तो 5 साल में कोर्स को अब तक मिनिमम क्वालिफिकेशन के लिए जोड़ा क्यों नहीं गया?
सरकार को ऐसे कोर्सेज बनाने से पहले सोचना चाहिए. छात्रों को नौकरी तो मिले. इस कोर्स में एडमिशन लेने के लिए आपके पास मास्टर्स की डिग्री होनी जरूरी है. ऐसे में कोई छात्र ग्रेजुएशन के बाद मास्टर्स पूरा करे. फिर 3 साल का एक और बी-एड एम-एड कोर्स करे, और इतना सब करने के बावजूद उसे टीचर नहीं बनने का मौका न मिले तो जाहिर सी बात है कि उनके साथ धोखा हुआ है. इतनी मेहनत करने के बावजूद इनके हाथ निराशा ही आई है.
स्टोरी हमारे साथ इंटर्नशिप कर रहे रूपक ने की है
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