विश्व साक्षरता दिवस, देश के सबसे फिसड्डी राज्य का नाम सुनकर आप चौंक जाएंगे
केरल हर बार की तरह सबसे साक्षर राज्य बना है. मुसलमानों में शिक्षा का स्तर चिंता का विषय है.
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केरल 96 फीसदी साक्षरता के साथ फिर से सबसे आगे रहा है. तस्वीर 2019 में केरल के कराड की है जहां बच्चों ने इंटरनैशनल लिटरेसी डे पर मानवश्रंखला बनाई.
पढ़ना-लिखना सीखो ओ मेहनत करने वालों पढ़ना-लिखना सीखो ओ भूख से मरने वालों
क ख ग घ को पहचानो अलिफ़ को पढ़ना सीखो अ आ इ ई को हथियार बनाकर लड़ना सीखो
पढ़ो, कि हर मेहनतकश को उसका हक दिलवाना है पढ़ो, अगर इस देश को अपने ढंग से चलवाना है. (सफ़दर हाशमी)
हमने आज इस स्टोरी की शुरुआत इस कविता से इसलिए की क्योंकि दुनिया को बेहतर बनाने का काम सिर्फ सरकारें नहीं करतीं. बल्कि वो लोग करते हैं, जो उन सरकारों को चुनते हैं. वो लोग जितने पढ़े और साक्षर होंगे, उतना बेहतर चुन सकेंगे. लोकतंत्र जैसी जटिल प्रक्रिया में हर रोज जो नई चुनौती आती है और उससे एक पढ़ा-लिखा नागरिक ही निपट सकता है. देश को, लोकतंत्र को अपने आसपास को, पढ़ने-समझने के लिए साक्षर होना जरूरी है और सभी को साक्षर बनाने के सपने के साथ हर साल आज ही के दिन यानी 8 सितंबर को विश्व साक्षरता दिवस या इंटरनेशनल लिटरेसी डे मनाया जाता है. आइए जानते हैं कि आखिर हम इस साक्षरता की यात्रा में कहां खड़े थे और कहां पहुंचे हैं.
सबसे पहले जानिए कि आखिर क्यों मनाते हैं इंटरनेशनल लिटरेसी डे
दो विश्व युद्ध लड़ने के बाद दुनिया भर में विज्ञान, साक्षरता, पढ़ाई और संस्कृति पर काम करने वाली संस्था यूनेस्को 1945 में बनी. सभी देशों ने मिल बैठकर सोचा कि आखिर आगे कैसे जाना है. लड़कर तो काम चल नहीं सकता था. सिर्फ पढ़कर चल सकता था. 1966 आया और यूनेस्को ने दुनिया भर में साक्षरता को बढ़ाने के लिए 8 सितंबर को विश्व साक्षरता दिवस के रूप में मनाने की घोषणा की. इस सपने के साथ कि दुनिया भर में लोग कम से कम इतना पढ़ सकें कि किताबों से निकला नूर उनके जेहन में समा सके, जिससे दुनिया और बेहतर बन सके. तब से बदस्तूर यह सिलसिला जारी है.

हर साल 8 सितंबर के दिन यूनेस्को विश्व साक्षरता दिवस मनाता है. फोटोः UNESCO
साक्षरता मतलब क्या
कई बार आपके मन में भी सवाल आता होगा कि क्या साक्षरता किसी डिग्री-डिप्लोमा से जुड़ी हुई बात है. असल में दुनियाभर में लोगों को एक समान पढ़ाई करवा पाना मुमकिन नहीं है. ऐसे में उन्हें कम से कम अक्षर ज्ञान और मूल मुद्दों की समझ तक लाने की कोशिश की जा रही है. भारत में राष्ट्रीय साक्षरता मिशन के अनुसार, किसी को साक्षर कहलाने के लिए उसे लिखने, पढ़ने और सामान्य गणित की जानकारी होनी चाहिए. कुल मिलाकर ऐसे व्यक्ति को साक्षर कहा जाता है, जो कम से कम एक भाषा में लिख, समझ ले और जिसे आम जनजीवन के काम लायक गणित भी आता हो. मतलब जोड़, घटाना आदि. आसान भाषा में समझें तो साक्षरता शिक्षा की पहली सीढ़ी कही जा सकती है. इस पर चढ़कर ही आगे की लंबी यात्रा पर निकला जा सकता है.
आजाद हुए तो 100 में सिर्फ 18 साक्षर थे
भारत जब आजाद हुआ तो साक्षरता दर सिर्फ 18 फीसदी थी. माने 100 में सिर्फ 18 लोग ऐसे थे, जो पढ़ना-लिखना जानते थे. देश की आजादी के बाद अंग्रेज चले गए और पीछे छोड़ गए देशभर को पढ़ाने का एक भगीरथ काम. इसको पूरा करने का काम अब तक चालू है. कई बड़ी सफलताएं मिलीं तो कई पर लगा कि अब भी बहुत कुछ करने को बाकी है. भारत आजाद हुआ और 1949 में संविधान बनने के बाद शिक्षा को समवर्ती सूची में रखा गया. मतलब शिक्षा पर राज्य और केंद्र सरकार दोनों को ही अपनी नीति बनाने का अधिकार है. राज्य सरकारों पर दारोमदार था कि वो अपने राज्य की भाषा के साथ अंग्रेजी भाषा को भी अपनाएं और केंद्र सरकार ने एक मूल शैक्षिक ढांचा पेश किया. 1988 में राष्ट्रीय शिक्षा मिशन भी आया, जिसमें 15 से 35 साल के लोगों को साक्षर करने पर जोर दिया गया. इसके बाद वो फैसला लिया गया, जिसे शिक्षा के क्षेत्र में अब तक का सबसे बड़ा फैसला माना जा सकता है. 2009 में 86वें संविधान संशोधन के जरिए 6-14 साल तक के बच्चों के लिए शिक्षा को मूल अधिकार बना दिया गया. इसे राइट टु एजुकेशन एक्ट कहा गया. इसका उद्देश्य था, एक तय वक्त के भीतर 6-14 साल के बच्चों को मुफ्त शिक्षा देना. भले ही इन सब प्रयासों में भारी सफलता न मिली हो लेकिन फिर भी देश की आजादी के 74 साल बाद 77.7 फीसदी लोग साक्षर हैं. इसमें पुरुष साक्षरों का प्रतिशत 84.7 और महिलाओं का प्रतिशत 70.3 है. हालांकि यह दुनिया भर में औसत से अब भी काफी कम है. दुनिया भर में साक्षरता का औसत 86.3 है.

देश की आजादी के बाद सबसे बड़ी चुनौती निरक्षरता खत्म करने की थी. (तस्वीर: विकिमीडिया कॉमन्स)
कौन राज्य कहां खड़ा है
हाल ही में जारी एनएसओ (NSO) यानी स्टैटिस्टिकल ऑफिस के सर्वे
के अनुसार एक बार फिर साक्षरता के मामले में दक्षिण के राज्य केरल ने बाजी मारी है. शुरुआत से ही इस राज्य ने साक्षरता को लेकर देशभर में एक लंबी लकीर खींची. बात चाहे पुरुषों की साक्षरता की हो या महिलाओं की, सबमें केरल नंबर एक पर रहा. एनएसओ के सर्वे के अनुसार केरल में इस साल साक्षरता दर 96.2 दर्ज की गई है. 66.4 फीसदी की साक्षरता दर के साथ आंध्र प्रदेश सबसे फिसड्डी रहा.
अगर टॉप परफॉर्मर की बात करें तो उनमें शामिल हैं-

इन राज्यों में साक्षरता को लेकर काफी काम होता दिखा है.
सबसे बुरा प्रदर्शन करने वाले राज्य हैं

इन राज्यों में साक्षरता के आंकड़े चिंता पैदा करने वाले रहे.
रैंक के हिसाब से राज्यों का लेखा-जोखा कुछ ऐसा रहा





इन पर काम करना अभी बाकी है
भारत के आजाद होने के बाद हम लंबा सफर तय कर चुके हैं लेकिन अभी भी कई मुकाम हासिल करने बाकी हैं. मिसाल के तौर पर अब भी समाज के कई ऐसे तबके हैं, जो साक्षरता के इस मिशन में पीछे छूट रहे हैं. अगस्त में नेशनल स्टैटिस्टिकल ऑफिस की एक रिपोर्ट के मुताबिक, मुसलमानों में साक्षरता का स्तर देश में दलित और पिछड़ों से भी गया बीता है. मुस्लिम महिलाओं में साक्षरता का स्तर तो किसी भी दूसरे धर्म की महिलाओं से भी कम है. गैर एससी-एसटी-ओबीसी के 91 प्रतिशत पुरुष और 81 फीसदी महिलाएं साक्षर हैं तो ओबीसी में यह प्रतिशत पुरुषों में 84 फीसदी और महिलाओं में 69 फीसदी है. एससी जनसंख्या में सिर्फ 80.3 फीसदी पुरुष साक्षर और 64 फीसदी महिलाएं साक्षर हैं. जनजातियों में पुरुषों की साक्षरता का प्रतिशत 78 और महिलाओं का 61 फीसदी है. उधर मुस्लिमों में सिर्फ 80.6 फीसदी पुरुष और 69 फीसदी महिलाओं ही साक्षर हैं. क्रिश्चियन धर्म मानने वालों में 88 फीसदी पुरुष और 82 फीसदी महिलाएं शिक्षित हैं. इसके बाद नंबर आता है सिख और हिंदू धर्म से जुड़े लोगों का.
तो कुल मिलाकर अशिक्षा के खिलाफ लड़ाई अभी खत्म नहीं हुई है. इसे कई मोर्चों पर लड़ा जाना बाकी है. इस लड़ाई को लड़ने से पहले समझना होगा कि इसको जीतने का हथियार है वो किताबें, जो अक्सर अलमारी से झांकती रहती हैं. बात खत्म करने से पहले एक बार फिर एक कविता, जिसमें बातें कर रही हैं किताबें -
किताबें करती हैं बातें बीते ज़माने की, दुनिया की,इंसानों की आज की, कल की, एक-एक पल की
किताबों में रॉकेट का राज है, किताबों में साइंस की आवाज़ है किताबों का कितना बड़ा संसार है, किताबों में ज्ञान का भंडार है क्या तुम इस संसार में नहीं जाना चाहोगे? किताबें कुछ कहना चाहती हैं, तुम्हारे पास रहना चाहती हैं। - (सफ़दर हाशमी)