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हर बार इतनी तैयारी के बाद भी त्योहारों पर रेलवे की व्यवस्था कैसे चरमरा जाती है?

लगातार हो रहे रेल हादसों पर कब एक्शन लेगा प्रशासन

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छठ के मौके पर अपने घर जाने के लिए खचाखच भरी ट्रेन में चढ़ने की कोशिश करते यात्री
16 नवंबर 2023 (Updated: 22 नवंबर 2023, 11:14 IST)
Updated: 22 नवंबर 2023 11:14 IST
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एक बार आप सोचिए कि आपने एक यात्रा प्लान की है. आपने महीनों पहले टिकट करवा लिया. लेकिन आप स्टेशन पहुंचकर दंग रह गए. आप अपने डिब्बे लोगों की भीड़ के कारण अपनी सीट पर चढ़ ही नहीं पाए. एक और सिनेरीओ सोचिए. आप त्यौहार पर घर जाना चाह रहे. आपने चालू टिकट ली, लेकिन पूरी ट्रेन इतनी भरी थी कि आप नहीं चढ़ पाए. एक और दृश्य ये भी हो सकता है कि आप इतनी ज्यादा गाढ़ी और जल्दबाज भीड़ में सवार हुए कि आपका दम घुटते-घुटते बचा, आपके बीच का कोई साथी बेहोश हो गया, या अपनी जान गंवा बैठा. ये हो रहा है. देश की ट्रेनों में. देश के व्यावसायिक केंद्रों में.

ये कोई अनजान भीड़ नहीं है. ये हमारे देश की जनता है.  ये हम हैं, ये हमारे लोग हैं. इस भीड़ को अपने घरों तक पहुंचना है. अपने परिजनों तक पहुंचना है. होली-दिवाली-छठ जैसे त्यौहार मनाने हैं. भीड़ में शामिल ये लोग अधिकतर उत्तर प्रदेश और बिहार से आते हैं. ये दिल्ली, मुंबई और सूरत में नौकरियां करते हैं. या पंजाब और हरियाणा के खेतों में मजदूरी करते हैं. साल के कुछ महीने इन कामों से पैसा जुटाने के बाद इनका रुख होता है अपने घरों की ओर. अपने मालिकों से वो चंद दिनों की छुट्टी लेते हैं.

कंधे पर कुछ जोड़ी कपड़ों-चप्पलों-ब्रश-नाश्ता सरीखी चीजें लेकर ये अपने किराये के ठिकानों से निकल पड़ते हैं अपने शहर के सबसे बड़े रेलवे स्टेशन की ओर.

जब ये रेलवे स्टेशन पहुंचते हैं तो इन लोगों का अपने ही जैसे दूसरे लोगों से सामना होता है. ये लोग पहुँच जाते हैं टिकट काउंटर. अधिकतर यूपी-बिहार से ताल्लुक रखने वाले ये लोग पूछते हैं कि उनके घर-गाँव के स्टेशन जाने वाली अगली गाड़ी कब है. नाम समय पता करके खरीद लेते हैं टिकट. इसके बाद वे प्लेटफॉर्म पर इस भरोसे के साथ पहुंचते हैं कि उन्हें एक जनरल का डिब्बा इतना खाली तो जरूर मिलेगा कि वो अगले 12-15-20 घंटों के लिए अपनी कमर टिका सकेंगे, बैठ सकेंगे. जनरल का डिब्बा यानी द्वितीय श्रेणी या सेकंड क्लास वाला डिब्बा, जिसमें बैठने के लिए सीट आरक्षित नहीं करवानी होती है.

लेकिन देश के इस विशाल वर्ग का भरोसा तब टूट जाता है, जब उसे ट्रेन के इन डिब्बों की हालत दिखती है. वो ट्रेन की खिड़कियों से मुंह बाहर निकालकर सांस लेते उन सैकड़ों लोगों को देखता है, जिन्हें अपने घर जाना है. अपने घर के लोगों के साथ त्यौहार मनाने हैं. बच्चों और बड़ों के लिए मिठाई कपड़े की खरीद करनी है. टिकट लेकर ये आदमी हारकर भी डिब्बे में नहीं चढ़ पाता है. अब वो उन डिब्बों का रुख करता है, जिसमें लोगों ने पहले से अपनी सीट पक्की करा रखी है. रिज़र्वेशन करा रखा है. वो एसी है या नहीं, वो इन डिब्बों में चढ़ना शुरू करता है. ये कोई एक व्यक्ति नहीं चढ़ता है. भारतीय समाज और भारतीय अर्थव्यवस्था का एक बहुत बड़ा हिस्सा चढ़ता है. और फिर खबरें आती हैं. कैसी खबरें? बानगी देखिए -

1. सूरत से भागलपुर जाने वाली ट्रेन में भयानक भीड़ के कारण दम घुटने से 38 साल के व्यक्ति की मौत

2. सूरत से पटना जाने वाली ट्रेन में एसी डिब्बे में भीड़, दम घुटने से कई यात्री बेहोश

3. वड़ोदरा स्टेशन पर यात्री अपने रिजर्व डिब्बे में नहीं चढ़ पाया, चालू टिकट यात्रियों ने उसे उसके डिब्बे में ही नहीं चढ़ने दिया

इन खबरों और इन जैसी तमाम खबरों को देखकर हमारी और आपकी एक तय साइकी काम करती है. साइकी गलती और जिम्मेदार को ढूंढने की. ऐसे में हम नागरिक जिम्मेदारियों की बाद में बात करेंगे. पहले हम बात करेंगे सरकारों की. सरकारें, जो त्यौहार आते ही दामों में कटौती-सब्सिडी में बढ़ोतरी करती हैं, वेतन आयोग बदलती हैं. ताकि हम सुबहा पाल जरूर लें कि हमारा त्यौहार अच्छा गुजर सकता है. और सरकार इसके लिए हमारा ध्यान रख रही है. फिर हम इस सुबहे में एक लच्छा खुद से जोड़ देते हैं. वो ये कि हमें हमारे घरों तक पहुंचाने की जिम्मेदारी भी सरकार की है. सरकार द्वारा चलाई जा रही ट्रेनों की है. क्यों न हो? यही सरकारी ट्रेनें हमें हमारे घरों से दूर इन विलायती शहरों, इन बड़ी-बड़ी बिल्डिंगों, इन फैक्ट्रियों के बीच लाई हैं.

तो सरकार की जिम्मेदारी क्या है? हम बहुत बेसिक-सी शब्दावलियों में बात करेंगे -

- सरकार की जिम्मेदारी कि देश का हर वर्ग ट्रेन में सफर कर सके. 
- ट्रेन में सफर कर रहे हर नागरिक का सफर साफ और सेफ हो. 
- आप यात्रा के लिए पैसा ले रहे हैं, तो ट्रेन को भी अपने गंतव्य पर समय से पहुंचना होगा. (क्योंकि आप स्टेशन पर लेट पहुंचे तो ट्रेन जरूर आपको छोड़ देती है. ऐसे में जरूरी है कि अगर आप लेट न हों तो ट्रेन भी न लेट हो.)

भारत के रेल मंत्रालय की और क्या जिम्मेदारियां हैं? इसको समझने के लिए रेलवे के कुछ हालिया दावों को जान लेते हैं- 
- पूरे भारत में लगभग 1700 विशेष ट्रेनें चलाई जा रही हैं. 
- भारतीय रेलवे त्योहार पर रिकॉर्ड स्तर पर 26 लाख बर्थ की उपलब्धता यात्रियों के लिए कर रहा है. 
- यात्रियों की सुविधा के लिए अतिरिक्त बुकिंग विंडो खोली गई हैं. 
- प्लेटफ़ॉर्म पर ट्रेन आने पर भगदड़ ना मचे इसलिए जीरआपी और आरपीएफ के स्टाफ को तैनात किया गया है. 
- महिलाओं की सुरक्षा के लिए महिला सहेली अभियान रेलवे चला रहा है. 
- जनरल डिब्बों में प्रवेश कराने के लिए लाइन लगवाकर एंट्री कराने का नियम बनाया गया है. 
- रेलवे हर स्थिति पर सीसीसीटी से निगरानी करके हालात को संभाले हुए है.

कुछ स्टेशनों पर प्लेटफॉर्म टिकट देना बंद कर दिया गया है, ताकि जो यात्री नहीं हैं, वो प्लेटफॉर्म पर भीड़ न लगाएं.

ध्यान रहे कि ये रेलवे के दावे हैं. ये कोई शाश्वत सत्य या सत्यापित तथ्य होता तो इन दावों के बगल में हम रेलवे के वो दृश्य नहीं चला रहे होते, जो बीते एकाध हफ्ते में देशभर से हमारे पास आए हैं. ये वही दृश्य हैं, जो एक हद तक रेलवे के दावों की पड़ताल करते हैं.

इन दावों की पड़ताल इस बात से भी की जा सकती है कि जैसे ही त्यौहार में कुछ ही दिन रह जाते हैं, उसी वक्त रेलवे नई और स्पेशल ट्रेनें क्यों चलाने का ऐलान करता है. क्योंकि रेलवे के नियमों के मुताबिक यात्रा की तयशुदा तारीख से लाभग 120 दिनों पहले ट्रेनों में रिज़र्वेशन की विंडो खुलती है. लगभग 4 महीने पहले आप अपनी यात्रा का Reservation ऑनलाइन या ऑफलाइन तरीकों से करवा सकते हैं.  तो त्यौहार के ऐन समय स्पेशल ट्रेनें होने से लाभ क्यों नहीं मिलता? इस सवाल को हमने कुछ जानकारों के सामने रखा. उन्होंने जो कहा, वो हम आपको प्वाइंटवाइस बताते हैं -

- रेलवे को स्पेशल ट्रेनों में रिज़र्वेशन भी नियमतः उन्हीं तारीखों के आसपास शुरू करना चाहिए, जब वो आम ट्रेनों में शुरू कर रहे हैं. यानी 120 दिन पहले. ऐसा करने से रेलवे को ये अंदाज लग जाएगा कि क्या वो सभी यात्रियों को यात्रा का मौका मुहैया करा पा रहे हैं? 
- अपनी स्पेशल ट्रेनों को लेकर रेलवे को भरसक प्रचार करना चाहिए. अभी बहुत सारे लोगों को समय पर स्पेशल ट्रेनों का पता नहीं चल पाता है. 
- रिज़र्वेशन का ट्रेंड देखकर ट्रेनों में बोगियों की संख्या बढ़ाने पर भी विचार किया जा सकता है, इसे आरक्षित और जनरल टिकट वाले सभी यात्रियों को सहूलियत होगी.

ये तो रेलवे के हिस्से वाले उपाय हो गए. कुछ और उपाय भी किये जा सकते हैं. जैसे? 
- यात्रियों को ब्रेक जर्नी की सुविधा दी जा सकती है. मसलन किसी को दिल्ली से बनारस जाना हो, तो वो लखनऊ-कानपुर-प्रयागराज में यात्रा को दो या दो से अधिक हिस्सों में ब्रेक कर सके. और ट्रेनें बदलकर आगे जाए. 
- अगर ट्रेनें नहीं है तो राज्य परिवहन निगम से संपर्क करके बसें चलाई जाएं. 
- कुछ स्वयंसेवी संस्थाओं से मदद ली जाए, ताकि वो इस भीड़ भरे मौसम में यात्राओं को सुगम बनाने में मदद करें

साथ ही जब हम रेलवे और सरकारों की इतनी जिम्मेदारी जवाबदेही तय कर रहे हैं, तो हम अपनी भी जिम्मेदारी तय करें. बतौर यात्री. समय से अपनी यात्रा प्लान करें. और ज्यादा विकल्प तलाशें. जिस क्लास का टिकट लिया है, वही यात्रा करने की कोशिश करें. जिन यात्रियों ने सीट आरक्षित करा रखी है, उनका भी यात्रा का बराबर का हक है. उन्हें यात्रा में कष्ट न हो, और हमें भी न हो, इसकी जिम्मेदारी निभाएं. लेकिन रेलवे की एक और तस्वीर है. हादसों की तस्वीर.

ट्रेन का नंबर है 02570. ये नई दिल्ली से दरभंगा जाने वाली क्लोन एक्सप्रेस है. 15 नवंबर को ये ट्रेन नई दिल्ली से दरभंगा की ओर चली. देर शाम इटावा के पास इस ट्रेन के S1 कोच में आग लगी. देखते ही देखते ट्रेन के दो जनरल डिब्बे भी आग की जद में आ गए. अगर आपने इंडियन रेलवे में सफर किया है तो आप  जनरल कोच के हाल बखूबी जानते होंगे. एक की जगह पर चार-पांच लोग बैठते हैं. बताया जा रहा है कि जिस वक्त आग लगी तब इस ट्रेन की तीन बोगियों में करीब 500 लोग सफर कर रहे थे. आग लगते ही डिब्बों में चीख पुकार मच गई. नतीजा क्या हुआ ट्रेन से कूदने के चक्कर में 8 यात्री घायल हो गए. उनका सामान जलकर राख हो गया वो अलग.

ट्रेन में आग लगने की शुरुआती वजह शॉर्ट सर्किट बताई जा रही है. ये तो यात्रियों की खुशकिस्मती कहेंगे कि इस हादसे ने ज्यादा गंभीर रूप नहीं लिया. आग पर काबू पाकर ट्रेन को इटावा से उसके गतंव्य की ओर रवाना कर दिया गया.

लेकिन इसके कुछ घंटों बाद यूपी का इटावा फिर से ख़बरों में फ्लैश होने लगा. वजह थी. यहां हुआ एक और ट्रेन हादसा. ये कब हुआ? नई दिल्ली-दरभंगा एक्सप्रेस में आग लगने के करीब 12 घंटे बाद. इस बार शिकार हुई ट्रेन नंबर 12554. नई दिल्ली से सहरसा जाने वाली वैशाली एक्सप्रेस. इस ट्रेन के S6 कोच में आग लग गई जिसकी वजह से करीब 19 यात्री घायल हो गए.  

अब नई दिल्ली-दरभंगा एक्सप्रेस और वैशाली एक्सप्रेस के जले हुए कोच को इटावा रेलवे स्टेशन की लूप लाइन पर खड़ा किया गया है. रेलवे के आला अधिकारी इन दो ट्रेन हादसों की जांच में जुट गए हैं.

अब आपको इन हादसों से मिलती-जुलती एक और घटना बताते हैं. लोकेशन है बिहार का समस्तीपुर. 15 नवंबर को समस्तीपुर रेलवे स्टेशन के आउटर सिग्लन के पास भागलपुर-जयनगर इंटरसिटी एक्सप्रेस में आग लग गई. आज तक के सहयोगी जहांगीर आलम की रिपोर्ट के मुताबिक समस्तीपुर रेलमंडल के डीआरएम विनय श्रीवास्तव ने बताया कि ट्रेन में गन पाउडर में से निकली चिंगारी की वजह से एक महिला यात्री समेत 2 लोग घायल हो गए. गन पाउडर यानी बारूद. घटना के बाद RPF ने ट्रेन में बारूद लेकर सफर कर रहे दो लोगों को गिरफ्तार कर लिया है. अब आप सोच रहे होंगे कि ट्रेन में कोई कैसे बारूद ले जा सकता है. सवाल बाजिब है. हम भी यही सोच रहे हैं. क्यों कि इस सवाल में रेलवे के सतर्कता अभियान की नाकामी के राज़ छिपे हैं.

अब आपको बिहार से पंजाब के सरहिंद रेलवे स्टेशन ले चलते हैं. यहां से बिहार के सहरसा तक जाने वाली एक स्पेशल ट्रेन 14 नवंबर को कैंसिल हो गई. जिससे गुस्साए यात्रियों ने स्टेशन पर ही पत्थरबाजी शुरू कर दी. इस घटना से कुछ दिनों पहले मतलब 11 नवंबर को गुजरात के सूरत से बिहार जाने वाली एक स्पेशल ट्रेन में भगदड़ मच गई थी. इसमें 1 शख्स की मौत हो गई थी. वहीं 2 लोग घायल हो गए थे.

ये इस त्योहार के सीजन में हुए हादसे हैं. अब पिछले कुछ सालों में हुए बड़े रेल हादसों पर नज़र डालते हैं

- 21 जनवरी 2017: आंध्र प्रदेश के विजयनगरम जिले में जगदलपुर-भुवनेश्वर हीराखंड एक्सप्रेस के पटरी से उतर जाने की वजह से 23 यात्रियों की मौत हो गई थी.

- 19 अगस्त 2017: उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर जिले में कलिंग उत्कल एक्सप्रेस के 14 डिब्बे पटरी से उतर जाने के कारण लगभग 23 लोगों की मौत हुई थी जबकि 150 से ज्यादा लोग घायल हुए थे

- 19 अक्टूबर 2018- पंजाब के अमृतसर में रेलवे ट्रेक पर दशहरे का मेला देख रहे लोगों को ट्रेन ने रौंद डाला था. इस हादसे में 60 से ज्यादा लोगों की मौत हो गई थी.

- 2 जून 2023- ओडिशा के बालासोर में कोरोमंडल एक्सप्रेस लूप लाइन पर गई और वहां पर खड़ी मालगाड़ी से टकरा गई. हादसे में 290 से ज्यादा लोग मारे गए.

ध्यान रहे कि ये बड़ी घटनाएं हैं. आपको पूरी लिस्ट चाहिए तो बस आप एक गूगल सर्च कर आइए. ऐसी बहुत सारी घटनाएं आपको मिलेंगी. ढेर सारे आंकड़े मिलेंगे. कुछ आंकड़े तो सदन में भी रखे गए. पिछले साल यानी 2022 में संसद में भारत के नियंत्रक एवं महालेखापरीक्षक यानी Comptroller and Auditor General (CAG) ने के रिपोर्ट पेश की थी.  इस जांच रिपोर्ट 'Performance Audit on Derailment in Indian Railways' के मुताबिक़, अप्रैल 2017 से लेकर मार्च 2021 के बीच देश में 217 ऐसे रेल हादसे हुए, जिनमें जान-माल का नुक़सान हुआ. इनमें से हर चार में से लगभग तीन रेल हादसे यानी 75 फीसदी हादसे, ट्रेन के पटरी से उतरने की वजह से हुए. और रिपोर्ट में ये भी कहा गया था कि ट्रेन के पटरी से उतरने की वजह पटरियों के रखरखाव या maintenance से जुड़ी हुई है.

बालासोर में हुए एक्सीडेंट को भारतीय रेल के इतिहास का सबसे बड़ा हादसा माना जाता है. इस हादसे के बाद रेल हादसों को रोकने का दावा करने वाली स्वदेशी तकनीक कवच पर काफी बहस हुई थी. रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव मार्च 2022 में सिकंदराबाद के पास 'कवच' के ट्रायल में ख़ुद शरीक हुए थे.  कवच को भारतीय रेल में हादसों को रोकने की सस्ती और बेहतर तकनीक है बताया गया था. रेल मंत्री ने ख़ुद ट्रेन के इंजन में सवार होकर इसके ट्रायल के वीडियो बनवाए थे. अब समझते हैं ये कवच तकनीक है क्या?

कवच एक ऑटोमैटिक ट्रेन प्रोटेक्शन सिस्टम है. जिसे भारतीय रेलवे के रिसर्च डिजाइन एंड स्टैंडर्ड ऑर्गनाइजेशन (RDSO) ने डेवलप किया है. इस पर काम 2012 में शुरू हुआ था. तब इस प्रोजेक्ट का नाम Train Collision Avoidance System (TCAS) था.

ये सिस्टम कई इलेक्ट्रॉनिक डिवाइसेज का सेट है. जिन्हें ट्रेन और ट्रैक पर एक-एक किलोमीटर की दूरी पर इंस्टॉल किया जाता है. सिग्नल आने से पहले ही लोकोपायलट को मालूम चल जाता है कि वो ग्रीन है, रेड या डबल यलो. जैसे ही कोई लोको पायलट किसी सिग्नल को जंप करता है कवच एक्टिव हो जाता है. ये लोको पायलट को अलर्ट करता है और ट्रेन के ब्रेक का कंट्रोल हासिल कर लेता है. जैसे ही सिस्टम को पता चलता है कि ट्रैक पर दूसरी ट्रेन आ रही है वो पहली ट्रेन के मूवमेंट को एक निश्चित दूरी पर रोक देता है. यानी ऑटोमैटिक ब्रेक. ताकि टकराव न हो.

अब इस कवच के सामने आने के साथ ये भरोसा हुआ कि ट्रेन हादसे नहीं होंगे. लेकिन सच ये है कि बालासोर तो हुआ ही, और भी कई हादसे हुए. सबसे ताज़ा मामला है 30 अक्टूबर 2023 को आंध्र प्रदेश के विजयनगरम में हुआ ट्रेन हादसा जिसमें विशाखापत्तनम-रायगड़ा पैसेंजर स्पेशल ट्रेन ने विशाखापत्तनम-पलासा पैसेंजर एक्सप्रेस को पीछे से टक्कर मार दी. 11 लोगों की मौत हुई, 29 लोग घायल हो गए. जांच हुई तो पता चला कि ड्राइवर ने सिग्नल जंप किया था, जिसकी वजह से वो सामने खड़ी ट्रेन में जाकर भिड़ गया. इन ट्रेनों में कवच सिस्टम लगा था? नहीं. इंडिया टुडे की मिलन शर्मा की रिपोर्ट बताती है कि इन दोनों ही ट्रेनों में कवच इंस्टॉल नहीं था. अब आप खुद अंदाज लगाइए कि यदि इन ट्रेनों में कवच जैसा एक एक्टिव सिस्टम लगा होता, तो क्या ये घटनाएं घटतीं? शायद नहीं.

अब सवाल उठता है कि ये कवच कितनी दूर पहुंचा है? दी प्रिन्ट में प्रकाशित रिपोर्ट बताती है कि 22 करोड़ की लागत से बनाया गया ये सिस्टम जून 2023 तक देश के मात्र 2 प्रतिशत ट्रेन रूट पर इंस्टॉल किया गया था. यानी 68 हजार किलोमीटर के रेल नेटवर्क के महज 1450 किलोमीटर के नेटवर्क में ही . बाकी सारा हिस्सा असुरक्षित.

इन घटनाओं और अपनी तैयारियों पर रेलवे का क्या कहना है? जो जांच प्रयास हैं, उनको लेकर हमने रेलवे के अधिकारियों से संपर्क करने की कोशिश की. इस बुलेटिन के तैयार होने तक हमारे पास कोई जवाब नहीं आया है. आएगा तो हम आप तक जरूर लेकर आएंगे. लेकिन तब तक हम कोशिश करें कि हम स्वस्थ सुरक्षित यात्रा करें और जरूरी सवाल पूछते रहें. 

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