क्या था आइरिश क्रांतिकारियों का 'गंदा प्रोटेस्ट' जिसकी तारीफ दुश्मन अंग्रेजों ने भी की?
ऑक्सफोर्ड में जो हो रहा है उसे डर्टी प्रोटेस्ट कहना आइरिश क्रांतिकारियों का अपमान है.
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आइरिश क्रांतिकारियों के डर्टी प्रोटेस्ट पर 2008 में बनी 'हंगर' का एक दृश्य.
इसके बाद यहां के टॉयलेट्स के आगे से लेडीज़-जेंट्स के साइन हटा दिए गए. उन पर लिख दिया गया - ''gender-neutral toilets with cubicles.'' ऑक्सफोर्ड के और कुछ कॉलेजों में भी ऐसा किया गया.
लेकिन इन क्यूबिकल्स से कुछ लड़के नाराज हो गए. ये मर्द-औरत दोनों की सुविधा के हिसाब से बनाए गए हैं, लेकिन कुछ लड़कों को अपने पुराने यूरिनल चाहिए थे तो उन्होंने विरोध के लिए यूरिनल की फर्श पर ही पेशाब करना शुरू कर दिया है. जैसे कोई कमोड के आजू-बाजू गंदगी कर दे, सिर्फ किसी को इरीटेट करने के लिए. किसी ने एक क्यूबिकल में लिख दिया,''we want our f****** urinals back'' मतलब - हमें हमारे टॉयलेट वापस चाहिए. जूनियर कॉमन रूम के प्रेसिडेंट ने इस प्रोटेस्ट की आलोचना की. दुनिया के अखबारों में खबरें छपी और इसे 'डर्टी प्रोटेस्ट' यानी गंदा विरोध कहा गया.

कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी में जेंडर न्यूट्रल टॉयलेट. (सांकेतिक फोटोःरॉयटर्स)
पेशाब करके प्रोटेस्ट करने वाले लड़कों की मांग को गलत कहा जा सकता है. क्योंकि ऐसा करके वो अपनी सुविधा को ट्रांसजेंडर या अन्य पहचान वालों से ज्यादा महत्वपूर्ण मान रहे थे? उनकी मांग असमानता भऱी थी. लेकिन इसे मनवाने के लिए उन्होंने जो तरीका अपनाया, कुछ लोगों ने उससे भी 'बहुत गंदा' तरीका अपनाया था लेकिन वो ज़रा भी गंदा नहीं था, अपने सही मकसद की वजह से. ये बाद में साबित भी हो गया जब उन लोगों को भी तारीफ करने के लिए मजबूर होना पड़ा जिनके खिलाफ वो 'गंदा-बदबूदार प्रोटेस्ट' किया गया था. जानेंगे कि वो लोग कौन थे औऱ उन्होंने क्या किया था?
वो आइरिश क्रांतिकारी जिन्होंने मल से ताकतवर प्रोटेस्ट करके दिखाया
भारत के तिरंगे को घड़ी की दिशा में 90 डिग्री के कोण पर घुमा दिया जाए और अशोक चक्र हटा दिया जाए तो एक दूसरा तिरंगा बनता है. ये आयरलैंड का झंडा है. दोनों मुल्कों में एक और बड़ी कॉमन बात है कि दोनों ने अपनी आज़ादी अंग्रेज़ों से ही जीती.
आयरलैंड ब्रिटेन के पश्चिम में एक द्वीप है. एक वक्त था, जब आज के आयरलैंड में अलग-अलग राजाओं का राज था. फिर अंग्रेज़ राजा हेनरी-2 के समय अंग्रेज़ों ने आयरलैंड को कब्ज़े में लेना शुरू किया. पहले वहां के राजाओं को हराकर पूरे आयरलैंड को एक किया गया और फिर एक कठपुतली राजा को सौंप दिया गया. फिर 1801 में आयरलैंड को ब्रिटेन में जोड़कर United Kingdom of Great Britain and Ireland बना दिया गया (इंग्लैंड और स्कॉटलैंड ग्रेट ब्रिटेन का ही हिस्सा हैं).

IRA के उग्रवादियों ने बीसवीं सदी के आखिर तक लड़ाई लड़ी.
लेकिन आयरलैंड (जहां की अपनी अलग भाषा और संस्कृति है) के लोगों ने खुद को पूरे दिल से कभी ब्रिटेन का हिस्सा नहीं माना. वो अलग मुल्क बने रहना चाहते थे. तो आयरिश रिपब्लिकन आर्मी (IRA) के नाम से कई गुरिल्ला संगठन बने जिन्होंने अंग्रेज़ों से लंबी लड़ाई लड़ी. आयरिश लोगों को किस्तों में आज़ादी मिली और 1937 में जाकर उनके पास अपना देश, अपना संविधान और अपनी सरकार आई. लेकिन ब्रिटेन ने पूरे आयरलैंड को आज़ाद मुल्क नहीं माना. आयरलैंड के उत्तर का इलाका नॉर्दर्न आयरलैंड नाम से ब्रिटेन का हिस्सा ही रहा और ब्रिटेन ने अपना नाम कर लिया United Kingdom of Great Britain and Northern Ireland.
आयरलैंड की आज़ादी की लड़ाई लड़ने वाले गुरिल्ला संगठन मानते थे कि पूरे आयरलैंड पर आयरिश लोगों की ही हुकूमत होनी चाहिए. तो उन्होंने नॉर्दर्न आयरलैंड को आज़ाद आयरलैंड से मिलाने के लिए लड़ाई जारी रखी. ये खुद को IRA कहते रहे. 1960 के दशक के आखिर में इसमें से एक धड़े ने टूटकर खुद की 'प्रोविज़नल आयरिश रिपब्लिकन आर्मी' (P-IRA) बनाई. इन दोनों संगठनों ने उत्तरी आयरलैंड में ब्रिटेन के खिलाफ लड़ाई जारी रखी. फौज के साथ छापामार लड़ाई लड़ी और इंग्लैंड में जगह-जगह बम धमाके भी किए. अंग्रेज़ सरकार ने इनके उग्रवादियों के खिलाफ कार्रवाई में अंग्रेज़ फौज को लगाया. IRA और PIRA के लड़ाके कभी कार्रवाई में पकड़े जाते, तो कभी गिरफ्तार होते.

उत्तरी आयरलैंड में पकड़े जाने वाले उग्रवादियों को मेज़ प्रिज़न में रखा जाता था. (फोटोःविकिमीडिया कॉमन्स)
इन उग्रवादियों को अंग्रेज़ सरकार आतंकवादी मानती थी और उनके साथ जेल में वैसा ही सलूक होता था जैसा बाकी अपराधियों के साथ. लेकिन उग्रवादी मानते थे कि वो क्रांतिकारी हैं और आज़ादी की लड़ाई लड़ रहे हैं. तो उनके साथ चोर-उचक्कों सा व्यवहार न हो. वो एक लड़ाई लड़ रहे हैं, तो उन्हें युद्धबंदी (प्रिज़नर ऑफ वॉर) माना जाए. तो 1972 में इन उग्रवादियों ने जेल में भूख हड़ताल कर दी. इसके बाद इन्हें 'स्पेशल कैटेगरी' का दर्जा दे दिया गया. 1975 में अंग्रेज़ सरकार ने नीति बदल दी और स्पेशल कैटेगरी को खत्म कर दिया.
1976 में कीरैन न्यूजेंट नाम के आइरिश क्रांतिकारी ('उग्रवादी' की जगह 'क्रांतिकारी' कैसे आ गया, आप आगे जान जाएंगे) को आतंकवाद का दोषी मानकर नॉर्दर्न आयरलैंड में बने मेज़ प्रिज़न (जेल) भेजा गया. न्यूजेंट से जब कहा गया कि वो आम कैदियों वाले कपड़े पहनें, तो उन्होंने मना कर दिया. उन्हें दूसरे कपड़े नहीं मिले तो उन्होंने कपड़े पहने ही नहीं और कंबल ही ओढ़ लिया. न्यूजेंट के बाद मेज़ प्रिज़न में बंद दूसरे आइरिश क्रांतिकारियों ने भी कपड़े पहनने बंद कर दिए. इसे 'ब्लैंकेट प्रोटेस्ट' कहा गया.

ब्लैंकेट प्रोटेस्ट में हिस्सा लेता एक क्रांतिकारी. (फोटोःआइरिश टाइम्स)
मेज़ प्रिज़न में 1978 से इन क्रांतिकारियों को दूसरा टावल मिलना बंद हो गया. इनके पास कपड़े नहीं थे. जो एक टावल था, वो बदन पोंछने के काम आता था. तो दूसरा टावल न मिलने का मतलब ये हुआ कि इन्हें दूसरे कैदियों के सामने नंगे होकर नहाना पड़ता. इस ज़िल्लत से बचने के लिए कैदियों ने ऐलान कर दिया कि वो नहाएंगे ही नहीं. इसे 'नो वॉश' प्रोटेस्ट कहा गया. लेकिन जेल प्रशासन टस से मस नहीं हुआ. तो क्रांतिकारी एक कदम आगे बढ़े. उन्होंने अपने सेल में ही पेशाब और मल करना शुरू किया. जिस चीज़ को गंदगी मानकर हम उसके पास 3 सेकंड नहीं ठहर सकते, उसी में क्रांतिकारी दिन के चौबीस घंटे बिताते थे. जेल प्रशासन तब भी नहीं माना. तो क्रांतिकारियों ने अपना मल और पेशाब सेल की दीवारों पर लगाना शुरू किया. वो अंग्रेज़ प्रहरियों पर भी फेंकते थे. इस सब की वजह ये थी कि वो अपने लिए सम्मान चाहते थे. इसलिए हमने उग्रवादी की जगह क्रांतिकारी लिखा. उग्रवादी शब्द में उनके हाथों में पड़े हथियार के बारे में तो मालूम चलता है, लेकिन उनकी दिमाग की मज़बूती 'क्रांतिकारी' शब्द से ही पकड़ में आती है.

क्रांतिकारियों ने अपनी बैरक की दीवारों पर भी मल लीप लिया था.
1980 में क्रांतिकारियों ने यूरोपियन कमीशन को बताया कि वो कैसी अमानवीय परिस्थितियों में रहने को मजबूर हैं. लेकिन यूरोपियन कमीशन ने कह दिया कि क्रांतिकारी महज़ ध्यान खींचने के लिए ऐसा कर रहे हैं. प्रोटेस्ट के दौरान जेल का दौरा करने वाले लोगों ने जो देखा, भयावह था. बीबीसी में छपी रिपोर्ट के मुताबिक अर्मा के आर्कबिशप (ईसाई धर्मगुरु) जब 1978 में मेज़ प्रिज़न गए, उन्होंने बताया,
''कोई किसी जानवर को भी ऐसी जगह छोड़ने के बारे में नहीं सोच सकता. मल, पेशाब और बासे खाने की बदबू असहनीय है. दो सेल तो ऐसे थे जहां मैंने बोलने के लिए मुंह ही नहीं खोला, इस डर से कि उल्टी हो जाएगी. क्रांतिकारियों के बदन पर कंबल के अलावा कुछ नहीं था, फिर भी उनकी बेतरह तलाशी ली जाती थी...''

आयरलैंड से बाहर ज़्यादातर ब्रिटेन IRA को उनके किए बम धमाकों के लिए याद करता है. (फोटोःरॉयटर्स)
1978 से शुरू हुआ डर्टी प्रोटेस्ट अक्टूबर 1981 के अंत तक चला. 1997 में आईआरए ने अंग्रेज़ सरकार के साथ सीज़फायर समझौता कर लिया. इसके बाद कुछ और समझौते हुए और 2005 में IRA ने हथियार डाल दिए. लेकिन आइरिश क्रांतिकारियों का संघर्ष हवा में गुम नहीं हुआ. अंग्रेज़ फौज ने जब IRA के बारे में लिखा, तो उसमें उनकी गलतियों के साथ उनकी बहादुरी के किस्से भी थे. आयरलैंड के लोग आइरिश रिपब्लिकन क्रांतिकारियों को आज भी इज़्ज़त की नज़र से देखते हैं.
दुनिया भर में क्रांतिकारियों को कई तरह की अमानवीय यातनाएं दी गई हैं. क्रांतिकारियों ने भी तकलीफ सहकर अपनी मांगें मनवाने की भरसक कोशिशें की हैं. लेकिन डर्टी प्रोटेस्ट के दौरान आइरिश क्रांतिकारियों ने जो सहा, वैसी मिसालें कम हैं.
ऑक्सफोर्ड के विरोधरत लड़कों को भी इस आइरिश प्रोटेस्ट से समझना चाहिए कि मल और पेशाब से किया जाने वाला विरोध भी कितना स्वच्छ और सार्थक हो सकता है. विरोध अहिंसक हो और जायज अधिकारों के लिए हो तो ऐसा कोई ज़रिया डर्टी नहीं हो सकता.
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