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कहानी वर्ल्ड रिकॉर्डधारी उस मजदूर की, जो मुख्यमंत्री बना और फिर घोटाला करके जेल चला गया

झारखंड के सबसे बड़े घोटाले के दोषी की कहानी.

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बिना किसी पार्टी में रहे यह शख्स 23 महीने तक एक राज्य का मुख्यमंत्री रहा है.
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अविनाश
6 जनवरी 2018 (Updated: 6 जनवरी 2018, 06:47 AM IST) कॉमेंट्स
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2006. सितंबर का महीना था. दो महीने बाद झारखंड राज्य को बने हुए छह साल होने जा रहे थे. इन छह साल में इस राज्य ने चार बार मुख्यमंत्री बदलते देखे थे. बाबू लाल मरांडी के बाद अर्जुन मुंडा, शिबू सोरेन और फिर अर्जुन मुंडा मुख्यमंत्री बन चुके थे. उस वक्त झारखंड में सियासत चरम पर थी और अर्जुन मुंडा किसी तरह से सरकार चला रहे थे. उस सरकार में एक निर्दलीय विधायक भी था, जो अपने तीन साथियों के साथ सरकार को बाहर से समर्थन दे रहा था. सरकार चलानी थी, सो उसे खान मंत्री का पद मिला था. मंत्री रहते उस शख्स का एक सड़क के ठेके को लेकर मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा से ही विवाद हो गया.
झारखंड के कोल्हान एरिया में एक सड़क बन रही थी, जो जगन्नाथपुर विधानसभा को जोड़ती थी. इसी सीट से वो शख्स विधायक बना था. सड़क का नाम था हाट गावरिया रोड. सड़क बनाने वाली कंपनी से उस समय के मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा के अच्छे संबंध थे. इस हाट गावरिया रोड को बनाने में धांधली की बात सामने आ रही थी, जिसकी शिकायत मुख्यमंंत्री से की गई थी. बात रखने की बात आई तो जगन्नाथपुर विधानसभा का वो विधायक भरी विधानसभा में रोने लगा. कहा कि ठेकेदार जान से मारने की धमकी दे रहे हैं. विधानसभा में हंगामा हुआ और वो शख्स सरकार में मंत्री रहने के बाद भी अपना भाषण खत्म करके विपक्ष की सीट पर बैठ गया.
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अर्जुन मुंडा (बाएं) और शिबू सोरेन (दाएं) के बाद मधु कोड़ा झारखंड के मुख्यमंत्री बने थे.

फिर आया 14 सितंबर का दिन. उस शख्स ने मंत्री रहने के बावजूद अपने तीनों साथियों के साथ सरकार से हाथ खींच लिए. नतीजा हुआ कि सरकार गिर गई. एक बार फिर से राज्य में या तो चुनाव होने थे या फिर किसी को बहुमत साबित करके मुख्यमंत्री बनना था. झारखंड मुक्ति मोर्चा के सुप्रीमो शिबू सोरेन दोबारा मुख्यमंत्री बनना चाहते थे. कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ऐसा नहीं चाहती थीं. ऐसे में सामने आए लालू यादव. उन्होंने उसी शख्स का नाम बतौर मुख्यमंत्री सुझा दिया, जिसकी वजह से सरकार गिरी थी. कांग्रेस, झारखंड मुक्ति मोर्चा, राष्ट्रीय जनता दल, जअुआ मांझी ग्रुप, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी, ऑल इंडिया फॉरवर्ड ब्लॉक और तीन अन्य निर्दलीय विधायकों ने भी उस शख्स को समर्थन दे दिया. इस तरह से निर्दलीय विधायक रहते हुए भी वो शख्स झारखंड राज्य का पांचवां मुख्यमंत्री बनने में कामयाब रहा. उसका ये कारनामा लिम्का बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में दर्ज हुआ था.
इस शख्स का नाम था मधु कोड़ा, जिसने मजदूरी करने से लेकर मजदूर संघों की सियासत की, बीजेपी में शामिल हुआ, मंत्री बना, बीजेपी छोड़ी. मुख्यमंत्री बना और अब उसे कोयला घोटाले में दोषी करार दिया गया है. दिल्ली के पटियाला हाउस कोर्ट स्थित सीबीआइ की विशेष अदालत के जस्टिस भरत पराशर ने मधु कोड़ा को इस घोटाले के लिए तीन साल की सजा दी है. इसके साथ ही कोर्ट ने कोड़ा पर  25 लाख रुपये का जुर्माना भी लगाया है. कोर्ट ने राज्य के तत्कालीन मुख्य सचिव एके बसु और उस समय के केंद्रीय कोयला सचिव रहे एचसी गुप्ता को भी तीन-तीन साल की सजा दी है. एचसी गुप्ता पर एक लाख रुपये का  जुर्माना लगा है. इसके अलावा कोर्ट ने पूर्व मुख्य सचिव एके बसु पर 20 हजार रुपये का जुर्माना लगाया है. विजय जोशी को तीन साल की कैद और 45 लाख के जुर्माने की सजा दी गई है. विसुल कंपनी पर 50 लाख का जुर्माना लगा है. 
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शुरुआती दिनों में मधु कोड़ा एक कोल खदान में मजदूर थे.

मधु कोड़ा की कहानी किसी फिल्म से कम नहीं है. कोड़ा 6 जनवरी 1971 को पश्चिम सिंहभूम के जगन्नाथपुर के पाताहातू में पैदा हुए थे. पिता रसिक खान एक मजदूर थे, जिनके पास एक एकड़ जमीन थी. खुद मजदूरी करते थे, ताकि बेटा पढ़-लिख जाए तो पुलिस की नौकरी करने लगे. पिता रसिक को लगता था कि पुलिस की नौकरी सबसे अच्छी नौकरी है. सो लगे थे बेटे को पढ़ाने में. बेटा भी पढ़ने लगा, लेकिन ग्रेजुएशन के दिनों में ऑल झारखंड स्टूडेंट यूनियन (आजसू) के लोगों के साथ उठना-बैठना शुरू हो गया. फिर छात्रों के हितों से लेकर मजदूरों के हितों तक की बात शुरू हो गई. पढ़ाई पीछे चली गई और सियासत हावी हो गई. पिता का सपना पूरा नहीं हो सका तो एक खान में ठेके पर मजदूरी शुरू कर दी. उस दौरान मजदूरों की बात को लेकर मधु कोड़ा ने सवाल-जवाब शुरू किए, जिसके बाद मजदूरों ने उन्हें अपना नेता मान लिया. इसी दौरान राष्ट्रीय स्वसंसेवक संघ से जुड़ाव हो गया और फिर वो संघ के कार्यकर्ता बन गए.
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बाबू लाल मरांडी (दाएं) से मुलाकात के बाद मधु कोड़ा राजनीति में उतरे थे.

संघ का काम करने के दौरान बिहार बीजेपी के बड़े नेता रहे बाबूलाल मरांडी के संपर्क में आए. बाबू लाल मरांडी ने उन्हें बीजेपी के टिकट पर चुनाव लड़ने का ऑफर दिया. कोड़ा मान गए. अविभाजित बिहार की जगन्नाथपुर सीट से चुनाव लड़ा और जीत गए. उसी साल नवंबर में बिहार से अलग होकर झारखंड को राज्य का दर्जा दिया गया. झारखंड के हिस्सेे में आई विधानसभा सीटों पर बीजेपी का बहुमत था. झारखंड में बाबूलाल मरांडी के नेतृत्व में बीजेपी की सरकार बनी. मरांडी ने अपनी सरकार में मधु कोड़ा को पंचायती राज मंत्री बना दिया. 2003 में जब झारंखड बीजेपी में बाबू लाल मरांडी का विरोध शुरू हुआ तो मरांडी को पद से इस्तीफा देना पड़ा और अर्जुन मुंडा झारखंड के नए मुख्यमंत्री बने. इसके बाद भी मधु कोड़ा अपना मंत्री पद बचाने में कामयाब रहे.
2005 में जब झारखंड में फिर से चुनाव होने थे तो मधु कोड़ा को बीजेपी से टिकट मिलने की पूरी उम्मीद थी. हालांकि ऐसा नहीं हुआ और बीजेपी ने मधु कोड़ा को टिकट नहीं दिया. नाराज़ मधु कोड़ा ने पार्टी से इस्तीफा दे दिया और चुनाव में जगन्नाथपुर से निर्दलीय ही पर्चा भर दिया. रिजल्ट आया तो मधु कोड़ा 10 हजार वोट से वो चुनाव जीत गए थे. हालांकि किसी पार्टी को बहुमत नहीं मिलाा था. 2 मार्च 2005 को शिबू सोरेन के नेतृत्व वाले कांग्रेस-झारखंड मुक्ति मोर्चा गठबंधन को राज्यपाल ने सरकार बनाने के लिए बुलाया लेकिन सदन में बहुमत साबित नहीं हो सका और सोरेन की सरकार गिर गई. एक बार फिर अर्जुन मुंडा ने दावा पेश किया. उनके पास भी विधायकों की संख्या कम थी. कोड़ा ने अपनी शर्तों पर समर्थन दिया, अपने तीन साथियों से समर्थन दिलवाया, जिसके बाद सरकार बन गई और बहुमत साबित हो गया.
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मधु कोड़ा ने समर्थन वापस ले लिया था, जिसके बाद अर्जुन मुंडा सरकार गिर गई थी.

सितंबर 2006 में ठेकेदारी के विवाद में जब कोड़ा और उनके तीन अन्य निर्दलीय साथियों ने सरकार से समर्थन वापस ले लिया तो मुंडा सरकार गिर गई. 18 सितंबर को कोड़ा ने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली. इस सरकार को ई पार्टियों के अलावा झारखंड मुक्ति मोर्च ने भी समर्थन दिया था. अगस्त 2008 में झारंखड मुक्ति मोर्चा सुप्रीमो शिबू सोरेन ने सरकार से समर्थन वापसी का एेलान कर दिया और खुद के मुख्यमंत्री बनने का दावा पेश किया. 23 अगस्त को कोड़ा सरकार अल्पमत में आ गई और उसे इस्तीफा देना पड़ गया. 27 अगस्त 2008 को सोरेन मुख्यमंत्री तो बन गए, लेकिन उन्हें मुख्यमंत्री चुने जाने के छह महीने के अंदर किसी सीट से विधायक बनना जरूरी थी. उन्होंने तमार सीट से हुए उपचुनाव में हिस्सा लिया, लेकिन 8 जनवरी 2009 को जो रिजल्ट आया, उसमें शिबू सोरेन हार गए थे. इसके बाद सोरेने को मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा. फिर राज्य में राष्ट्रपति शासन लगा दिया गया.
साल 2009 के लोकसभा चुनाव में कोड़ा सिंहभूम जिले से निर्दलीय सांसद चुने गए. 2014 में जब झारखंड में विधानसभा चुनाव हुए तो कोड़ा को अपने पुराने दिन याद आए और एक बार फिर वो विधानसभा चुनाव में उतर गए. ऐसे में वो कोड़ा मझगांव विधानसभा से बतौर निर्दलीय चुनाव लड़े, लेकिन हार गए. हालांकि वो अपनी पत्नी को विधायक बनवाने में कामयाब रहे. इस हार के साथ ही मधु कोड़ा का सियासी कद जिस तेजी से अर्श पर पहुंचा था, उससे भी तेजी से वो फर्श पर पहुंच गया.
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कोयला खदान में काम करने के दौरान ही मधु कोड़ा ने सियासत का ककहरा सीखा था.

18 सितंबर 2006 को जब मधु कोड़ा मुख्यमंत्री बने तो उस वक्त उन्होंने खान विभाग, ऊर्जा और अन्य कई विभाग अपने पास ही रखे थे. इस दौरान झारखंड में विनोद सिन्हा नाम का एक शख्स चर्चा में आया, जो मधु कोड़ा का बेहद करीबी माना जाता था. मीडिया में इससे संबंधित खबरें छपनी शुरू हुईं तो आयकर विभाग ने मधु कोड़ा, विनोद सिन्हा और उनसे जुड़े देशभर में 167 जगहों पर छापा मारा. इस दौरान पता चला कि मधु कोड़ा ने कोयला, आयरन और खदान आवंटन के साथ ही ऊर्जा विभाग में गड़बड़ी की है.
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30 नवंबर 2009 को मधु कोड़ा को गिरफ्तार किया गया था, जिसके बाद वो 40 महीने तक जेल में रहे थे.

मधु कोड़ा कांग्रेस के समर्थन से मुख्यमंत्री थे. उस वक्त कांग्रेस नेता अजय माकन झारखंड के प्रभारी थे. उन्होंने अपनी ही समर्थन वाली सरकार के खिलाफ मुहिम शुरू कर दी, जिसके बाद 2008 में मधु कोड़ा को इस्तीफा देना पड़ गया. मधु कोड़ा और विनोद सिन्हा से जुड़ी जांच सीबीआई तक पहुंच गई. सीबीआई ने केस दर्ज कर जांच शुरू की. पता चला कि कोलकाता की जिस विनी आयरन एंड स्टील उद्योग लिमिटिड (VISUL) को राजहरा कोल ब्लॉक दिया गया है, उसमें हेराफेरी की गई है. सीबीआई ने आरोप लगाया था कि कोड़ा, राज्य के मुख्य सचिव अशोक कुमार बसु और एक अन्य ने मिलकर साजिश के तहत कोल ब्लॉक विनी आयरन को दिलवा दिया. इसके लिए सरकार और स्टील मंत्रालय से इजाज़त नहीं ली गई. तत्कालीन कोयला सचिव एचसी गुप्ता और झारखंड के तत्कालीन मुख्य सचिव अशोक कुमार बसु की सदस्यता वाली 36वीं स्क्रीनिंग कमेटी ने अपने स्तर पर ही इस ब्लॉक को आवंटित करने की सिफ़ारिश कर दी. इसी को आधार बनाकर तत्कालीन मधु कोड़ा सरकार ने यह कोयला खदान विसुल को दे दी.
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कोड़ा के खिलाफ सीबीआई के अलावा ईडी ने भी मुकदमे दर्ज किए हैं.

सीबीआई ने कहा कि साल 2007 में हुए इस कोल ब्लॉक आवंटन के बदले अरबों रुपए की रिश्वत ली गई. सीबीआई ने इस पूरे मामले में 9 लोगों को आरोपी बनाया. इनमें मधु कोड़ा, एचसी गुप्ता और कंपनी के अलावा, झारखंड के पूर्व चीफ सेक्रेटरी एके बसु, दो अन्य अफसर बसंत कुमार भट्टाचार्य, बिपिन बिहारी सिंह, वीआईएसयूएल के डायरेक्टर वैभव तुलस्यान, कोड़ा के कथित करीबी विजय जोशी और चार्टर्ड अकाउंटेंट नवीन कुमार तुलस्यान शामिल थे. 30 नवंबर 2009 को सीबीआई ने कोड़ा को गिरफ्तार कर लिया. 18 अप्रैल 2013 को करीब 40 महीने बाद हाईकोर्ट से जमानत मिली थी और तब से वो बाहर थे. वहीं पूरे मामले की सुनवाई दिल्ली में सीबीआई की विशेष अदालत में जस्टिस भरत पराशर की कोर्ट में चल रही थी. जस्टिस पाराशर ने 13 दिसंबर 2017 को सुनवाई पूरी करने के बाद मधु कोड़ा, पूर्व कोयला सचिव एचसी गुप्ता, झारखण्ड के पूर्व चीफ सेक्‍टरी अशोक कुमार बसु और एक अन्य को साजिश और आपराधिक षड़यंत्र रचने का दोषी पाया है. 16 दिसंबर को कोर्ट ने सभी को सजा सुना दी है और जेल भेज दिया है.
मनी लाउंड्रिंग मामले में ईडी के भी अभियुक्त हैं मधु कोड़ा
जब इतने बड़े रकम के घोटाले की बात सामने आई तो फिर प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) भी मामले में शामिल हो गया. 9 अक्टूबर 2009 को मधु कोड़ा और अन्य के खिलाफ ईडी ने भी केस दर्ज कर लिया. ईडी ने 6 नवंबर को मधु कोड़ा के घर छापेमारी की और फिर 30 नवंबर को कोड़ा को गिरफ्तार कर लिया गया. ईडी ने जो केस दर्ज किया है, उसमें पूर्व मंत्री कमलेश कुमार सिंह, भानु प्रताप शाही, बंधु तिर्की, सुनील सिन्हा, विकास सिन्हा, संजय चौधरी और धनंजय चौधरी का नाम शामिल है. इन सभी पर पद का दुरुपयोग करने, साजिश रचने, अवैध तरीके से पैसे कमाने और हवाला के जरिए पैसे विदेश में ले जाकर कारोबार करने का आरोप लगाया है.
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2009 में गिरफ्तारी से पहले कोड़ा से पूछताछ हुई थी, जिसमें उनकी तबीयत खराब हो गई थी. उन्हें अस्पताल में भर्ती करवाना पड़ा था.

ईडी की शुरुआती जांच के मुताबिक कोड़ा ने 17 लाख डॉलर की लागत से एक खदान खरीदी है. विनोद सिन्हा ने 200 करोड़ रुपए बनाए हैं. विनोद ने 17.5 करोड़ रुपए लगाकर शिवराम स्पंज आयरन कंपनी खरीदी है. उसने संजय चौधरी के साथ मिलकर विदेशों में मेसर्स कैम पिच मेन्यूफेक्चरिंग और ब्ल्यू टेक्नो नामक कंपनी खोली है और हवाला के जरिए इन कंपनियों में पैसा लगाया है. इसके अलावा इन दोनों ने ट्रांसपोर्ट और टूरिजम से संबंधित कई कंपनियां भी बना रखी हैं. विनोद और संजय ने मिलकर भारत के अलावा इंडोनेशिया, दुबई, थाइलैंड और सिंगापुर में पैसे लगाए हैं. इसके अलावा झारखंड के पूर्व मंत्री कमलेश कुमार सिंह ने पत्नी, भाई और रिश्तेदारों के नाम 50 करोड़ रुपए की संपत्ति खरीदी है. एक और शख्स भानु प्रताप शाही ने भी 30 एकड़ जमीन खरीदी है. कोर्ट जल्द ही इन मामलों में भी फैसला करने वाली है.


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