The Lallantop
Advertisement

जब अकाल तख्त ने महाराजा रणजीत सिंह को नंगी पीठ पर कोड़े खाने की सजा दी

रणजीत सिंह ने विनम्रतापूर्वक अपने ऊपर लगे आरोपों को सुना. उन्होंने बार-बार हाथ जोड़कर क्षमा मांगी. फुला सिंह ने घोषणा की कि उन्हें पंथ के सामने नंगी पीठ पर सौ कोड़े मारे जाने चाहिए. महाराजा ने तुरंत अपनी कमीज उतार दी.

Advertisement
When Akal Takht ordered 100 lashes for Maharaja Ranjit Singh for loving Heeramandi girl
रणजीत सिंह को एक मुस्लिम लड़की से प्रेम करने के लिए कोड़ों की सजा सुनाई गई थी. (फोटो- AI)
pic
प्रशांत सिंह
5 दिसंबर 2024 (Published: 07:38 PM IST) कॉमेंट्स
font-size
Small
Medium
Large
font-size
Small
Medium
Large
whatsapp share

अकाल तख्त. जिसे सिख धर्म में धरती पर खालसा का सबसे ऊंचा स्थान माना जाता है. तख्त ने 2 दिसंबर को धार्मिक कदाचार के मामले में पंजाब के पूर्व उप मुख्यमंत्री सुखबीर सिंह बादल सहित शिरोमणि अकाली दल के कई नेताओं को सजा सुनाई. जिसके बाद से ही 'तनखैया' (धार्मिक दुराचार का दोषी) काफी चर्चा में है. लेकिन ऐसा पहली बार नहीं हुआ है जब तख्त ने ऐसी सजा सुनाई हो. ये महाराजा रणजीत सिंह के साथ भी हुआ था. उन्हें एक मुस्लिम लड़की से प्रेम करने के लिए कोड़ों की सजा सुनाई गई थी.

आज जानेंगे महाराजा रणजीत सिंह और मुस्लिम लड़की के बीच इस प्रेम कहानी के बारे में. ये भी जानेंगे कि महाराजा को क्या सजा मिली थी? लेकिन इससे पहले ये जानना होगा कि इस प्रेम कहानी से पहले की कहानी क्या थी.

लाहौर जीत ने रखी नींव

साल था 1799 का. सिखों ने लाहौर जीत लिया था. परचम महाराजा रणजीत सिंह के नेतृत्व में ही फहराया गया था. उस वक्त सिख साम्राज्य की राजधानी गुजरांवाला थी. लाहौर और गुजरांवाला दोनों अब पाकिस्तान में हैं. रणजीत सिंह ने राजधानी लाहौर ट्रांसफर तो की थी, लेकिन गुजरांवाला से उन्हें एक अलग ही लगाव था. वहीं से राज्य को चलाया और मृत्यु तक वहीं रहे. इसका एक और बड़ा कारण ‘मोरां सरकार’ से उनका प्रेम था. मोरां की कहानी बताएंगे, पर थोड़ा रुक कर.

हीरामंडी का शाही मोहल्ला

महाराजा रणजीत सिंह शुकरचकिया सिख समूह के युवा नेता थे. उन्होंने 17 वर्ष की आयु में लाहौर पर कब्जा कर लिया था. और 1801 में खुद को पंजाब का महाराजा घोषित कर दिया. वैसे तो रणजीत सिंह एक सैन्य कमांडर के रूप में प्रसिद्ध थे. लेकिन उन्हें कला और सौन्दर्य में भी खासी रुचि थी. यही कारण था कि रणजीत सिंह का ध्यान शाही मोहल्ले ने खींचा. आप सोच में पड़ गए होंगे कि कौन सा शाही मोहल्ला? इसके लिए आपको हाल में आई नेटफ्लिक्स की सीरीज हीरामंडी याद करनी होगी. लाहौर की वो जगह जो तवायफों के लिए जानी जाती थी.

अब चहल-पहल भरी इन गलियों ने महाराजा रणजीत सिंह का ध्यान तो आकर्षित किया ही, लेकिन उनका ध्यान खासतौर पर एक उभरते सितारे की ओर गया.

होली से कुछ दिन पहले दीदार हुआ

मार्च 1802 में होली के कुछ दिन पहले रणजीत सिंह को शाही मोहल्ले की एक मुस्लिम डांसर और सिंगर के बारे में पता चला. 12 वर्षीय इस लड़की का नाम था मोरां सरकार. वो अपनी सुंदरता के लिए प्रसिद्ध थी. मोरां को गायन और नृत्य में अपने सुंदर कौशल के लिए जाना जाता था. रणजीत सिंह ने उनके घर संदेश भेजा और घोषणा की कि वो वहां आ रहे हैं.

शाम ढली. रणजीत सिंह वहां पहुंचे. एक दुबली-पतली, लंबी सी लड़की उनका स्वागत करने आई. चूड़ीदार पायजामे और सफेद शर्ट में. उसने रणजीत सिंह को एक पान का पत्ता दिया. जिसमें केसर के दाने काफी नजाकत से लगाए गए थे.

मोरां ने महाराजा के लिए डांस किया. उनके साथ छह अन्य संगीतकार भी थे. यहीं से रणजीत सिंह और मोरां सरकार के रिश्ते की शुरुआत हुई. 21 साल के महाराजा, मोरां की इन अदाओं के कायल हो चुके थे. इंडिया टुडे ने हरि राम गुप्ता की किताब 'History Of The Sikhs, Vol. V The Sikh Lion of Lahore' के हवाले से लिखा कि रणजीत सिंह ने अपना अधिकांश समय मोरां के घर में बिताना शुरू कर दिया था. किताब में लिखा है,

“उनके भोजन और अन्य चीजों की व्यवस्था उन्हें वहीं कराई जाने लगी थी. सुबह की कसरत के दौरान, मोरां महाराजा के साथ ही घोड़े पर बैठकर सवारी करने निकल जाती थी. किसी भी अनुयायी को उनके साथ जाने की अनुमति नहीं थी.”

प्यार और रिश्ता तो चल पड़ा था. घोड़े की रेस की तरह ही. दोनों की शादी भी हो गई. पर जीवन में सब कुछ सीधी लकीर जितना आसान कहां होता है. 21 साल के रणजीत सिंह के लिए भी नहीं होना था. भले ही वो इतने बड़े साम्राज्य के कर्ता-धर्ता क्यों ना रहे हों.

कोड़ों का आदेश, लोगों का रोना

रणजीत सिंह को हुक्मनामा (आदेश) जारी हुआ. अकाल तख्त के जत्थेदार अकाली फूला सिंह की तरफ से. उन्हें ये आदेश सिख समुदाय के बाहर विवाह करने के कारण जारी किया गया. अकाल तख्त के समक्ष उपस्थित होने को कहा गया. रणजीत सिंह ने आदेश का पालन किया. अमृतसर आए और स्वीकार किया कि उनसे गलती हुई थी. हरि राम गुप्ता अपनी किताब में लिखते हैं,

“महाराजा ने विनम्रतापूर्वक अपने ऊपर लगे आरोपों को सुना. सभा के सामने पश्चाताप में खड़े हो गए. उन्होंने बार-बार हाथ जोड़कर क्षमा मांगी. फुला सिंह ने घोषणा की कि उन्हें पंथ के सामने नंगी पीठ पर सौ कोड़े मारे जाने चाहिए. महाराजा ने तुरंत अपनी कमीज उतार दी. उन्हें अकाल तख्त के एक किनारे पर खड़े इमली के पेड़ के तने से बांध दिया गया और हाथ उनकी पीठ पर बांध दिए गए.”

लेकिन वहां मौजूद लोग अपने राजा को कोड़े खाते हुए नहीं देख सके, और फूट-फूट कर रोने लगे. लोगों ने अकाल तख्त से उन्हें माफ किए जाने की मांग भी की. जिसके बाद महाराजा को केवल एक कोड़ा मारकर उन्हें जाने दिया गया.

हालांकि, 100 कोड़े मारे जाने वाली बात पर अलग-अलग जगह कई तरह की बातें लिखी गई हैं. maharajaranjitsingh.com नाम की वेबसाइट पर दी गई जानकारी बताती है कि तख्त द्वारा बुलाए जाने के बाद महाराजा रणजीत ने अपनी गलती मानी. पंज प्यारों को उपहार दिए, जिनके आदेश के तहत उन्हें बुलाया गया था. वेबसाइट आगे बताती है,

“उन्हें सार्वजनिक रूप से कोड़े मारे जाने थे. पंज प्यारों को महाराजा की अधीनता पर संतुष्टि हुई और उन्होंने उदार रुख अपनाया. जिसके बाद उन्होंने महाराजा द्वारा दिए गए 1 लाख 25 हजार रुपये के जुर्माने को स्वीकार कर लिया.”

रिटायर्ड IAS ने क्या लिखा?

रिटायर्ड IAS और पंजाब के पूर्व स्पेशल चीफ सेक्रेटरी केबीएस सिद्धू ने भी इससे जुड़ी एक जानकारी साझा की. उन्होंने X पर लिखे एक पोस्ट में बताया कि रणजीत सिंह के इस विवाह ने निहंगों सहित कई रूढ़िवादी सिखों को परेशान कर दिया था. सिख सिद्धांतों का सख्ती से पालन करने वाले उनसे नाराज थे. सिद्धू ने लिखा,

“अकाली फूला सिंह ने रणजीत सिंह को तनखैया घोषित कर दिया था. उन्होंने इस अपराध के लिए 50 कोड़े की सजा घोषित की. हालांकि, जब रणजीत सिंह ने विनम्रतापूर्वक फैसले को स्वीकार किया और अपनी सजा पाने के लिए तैयार हो गए, तो अकाली फूला सिंह ने सिख मंडली से महाराजा को माफ करने की अपील की. अंत में रणजीत सिंह को माफ कर दिया गया. लेकिन तब जब उन्होंने सिख धर्म के बाहर दोबारा शादी न करने का वादा किया.”

महाराजा रणजीत सिंह की ये कहानी आज भी याद की जाती है. इसके साथ ही ये इस बात की गवाह भी है कि सिख धार्मिक मामलों में अकाल तख्त कितना अधिकार रखता है. ये सिख परंपरा में जवाबदेही को उजागर करता है. जहां सर्वोच्च संस्थानों को भी धार्मिक सिद्धांतों के प्रति समर्पित होना पड़ता है.

वीडियो: दो निहंग सिख समूह भिड़े, बीच-बचाव को आई पंजाब पुलिस पर फायरिंग कर दी, 1 की मौत, 10 घायल

Subscribe

to our Newsletter

NOTE: By entering your email ID, you authorise thelallantop.com to send newsletters to your email.

Advertisement