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वक्फ बिल पर बहस में केरल के 'मुनंबम' का नाम BJP ने कई बार लिया, क्या है इसकी कहानी?

वक्फ संशोधन बिल लोकसभा और राज्यसभा दोनों ही सदनों में पारित हो गया है. अब इसके कानून बनने का रास्ता साफ हो गया है. केरल के एर्नाकुलम के एक गांव - मुनंबम - के लोग बिल पारित होने से खुश हो गए हैं. इस गांव का मुद्दा संसद में भी कई बार उठा था.

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Kiren Rijiju
किरेन रिजिजू | फाइल फोटो: इंडिया टुडे
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राघवेंद्र शुक्ला
4 अप्रैल 2025 (Updated: 4 अप्रैल 2025, 11:03 AM IST) कॉमेंट्स
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वक्फ संशोधन बिल (Waqf Amendement Bill 2025) बुधवार को लोकसभा (Waqf Bill In Lok sabha) में पास हो गया. गुरुवार, 03 अप्रैल की रात को राज्यसभा (Waqf Bill In Rajya Sabha) में भी ये पारित हो गया. अब इस बिल के कानून बनने का रास्ता साफ हो गया है. संसद में बिल के पास होते ही दिल्ली से तकरीबन 2500 किमी दूर केरल के एर्नाकुलम के एक गांव में खुशी की लहर दौड़ गई. यह गांव है मुनंबम. मुनंबम की 400 एकड़ जमीन देश भर में चर्चा बटोर चुकी है. संसद में कई सांसदों की स्पीच में भी इसका खूब इस्तेमाल हुआ. किरेन रिजिजू ने राज्यसभा में बिल पेश करते हुए मुनंबम का नाम लिया.

मुनंबम केरल का एक गांव है. यह एर्नाकुलम जिले में है. यहां की 400 एकड़ की जमीन पर राज्य वक्फ बोर्ड ने दावा किया है, जिस पर सैकड़ों ईसाई परिवार रहते हैं. इसका मामला कोर्ट में भी है. वक्फ बिल पर स्पीच देते हुए किरेन रिजिजू ने इस गांव का जिक्र किया और दावा किया कि वक्फ बिल से गांव के लोगों को फायदा होगा. इस पर कांग्रेस और उसकी सहयोगी इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग (आईयूएमएल) ने रिजिजू पर सवाल दागा कि वक्फ बोर्ड संशोधन बिल से इस गांव के लोगों की जमीनें कैसे वापस दिलाई जाएंगी? कांग्रेस ने आरोप लगाया कि मुनंबम का नाम लेकर सरकार लोगों को गुमराह कर रही है.

मुनंबम का क्या है मामला

मुनंबम गांव में 600 ईसाई परिवार रहते हैं. यहां की 400 एकड़ जमीन पर राज्य वक्फ बोर्ड ने अपना दावा ठोका है. इसे लेकर गांव के लोग हाई कोर्ट में केस लड़ रहे हैं. इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, साल 1900 के दशक की शुरुआत में अब्दुल सथर मूसा सैत नाम के व्यक्ति ने इस जमीन को त्रावणकोर के शाही परिवार से पट्टे पर लिया था. 1948 में उनके उत्तराधिकारी मोहम्मद सिद्दीक सैत ने इस जमीन को अपने नाम पर रजिस्टर कराया और 2 साल बाद इसे कोझिकोड के फारूक कॉलेज को दान कर दिया.

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समुंदर के किनारे की इस जमीन पर बड़ी संख्या में मछुआरे रहते थे. इनके परिवार पीढ़ियों से यहीं बसे हुए हैं. 1987 से 1993 के बीच फारूक कॉलेज प्रबंधन ने इन लोगों से पैसे लिए और उन्हें जमीन के मालिकाना हक के दस्तावेज दे दिए. लेकिन 1995 में वक्फ एक्ट लागू हुआ और मामला जटिल हो गया. राज्य वक्फ बोर्ड ने इस जमीन पर अपना दावा ठोक दिया. 2008 में तत्कालीन सीपीआई(एम) सरकार ने केरल राज्य वक्फ बोर्ड के कामकाज और वक्फ संपत्तियों के हस्तांतरण की जांच के लिए एक आयोग नियुक्त किया.

आयोग ने मुनंबम की जमीन को वक्फ संपत्ति माना और कार्रवाई की सिफारिश की. हालांकि, फारूक कॉलेज ने अपनी जमीन को वक्फ बोर्ड में रजिस्टर नहीं कराया था. 2019 में वक्फ बोर्ड ने निजी प्रेरणा से मुनंबम को वक्फ संपत्ति घोषित कर दिया. साथ ही राजस्व विभाग को जमीन का टैक्स स्वीकार न करने का निर्देश दिया. 2022 में राज्य सरकार ने मामले में हस्तक्षेप करते हुए वक्फ बोर्ड के निर्देश को खारिज कर दिया. साथ ही राजस्व विभाग से टैक्स कलेक्शन जारी रखने के लिए कहा.

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इससे गांव के लोगों को अधिकार मिल गया कि वह इस संपत्ति को गिरवी रखकर लोन ले सकते हैं. सरकार के इस आदेश के बाद केरल हाईकोर्ट में कई याचिकाएं दाखिल हुईं. एक याचिका फारूक कॉलेज की ओर से भी दाखिल की गई. इसमें गांव वालों की जमीन पर वक्फ बोर्ड के दावे को चुनौती दी गई है. कॉलेज ने कहा है कि यह उन्हें गिफ्ट में दी गई संपत्ति थी, जिसे उन्होंने अतीत में गांव के लोगों को बेच दिया था. इस मामले में सुनवाई के बाद कोर्ट ने सरकार के आदेश पर रोक लगा दी.

इस मामले ने अब सियासी मोड़ भी ले लिया है. इसकी गूंज सदन में भी सुनाई दी. वक्फ बिल पेश होने से पहले केरल कैथोलिक बिशप काउंसिल (केसीबीसी) ने प्रदेश के सांसदों से अपील की थी कि वे इसका समर्थन करें. उन्होंने उम्मीद जताई थी कि केवल कानूनी समाधान ही इस मुद्दे को सुलझा सकता है. मुनंबम भू संरक्षण समिति के तहत इस गांव के लोग 150 से ज्यादा दिनों से विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं. उनका कहना है कि वक्फ अवैध रूप से उनकी जमीनों पर दावा कर रहा है. बिल जब लोकसभा में पारित हुआ तो प्रदर्शन करने वाले लोगों ने जश्न मनाया. उनका मानना है कि बिल के कानून बनते ही मुनंबम का विवाद खत्म हो जाएगा.

वीडियो: सुप्रीम कोर्ट के जजों की संपत्ति को लेकर क्या बड़ी फैसला हो गया?

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