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'वक्फ' हिंदुस्तान कैसे पहुंचा? पहले 'वक्फ' की पूरी कहानी

संसद में वक्फ संशोधन विधेयक पेश होने के दौरान खूब हंगामा हुआ. सरकार और विपक्ष के बीच जुबानी जंग चली. ऐसे में ये समझना जरूरी है कि वक्फ क्या है? ये व्यवस्था भारत में कैसे आई? इसे पूरे देश में फैलाने वाले कौन थे? और मुगलों-अंग्रेजों ने वक्फ के साथ क्या किया?

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waqf amendment bill tabled in parliament history of waqf board
देश भर में वक़्फ़ बिल का विरोध भी हो रहा है (PHOTO-AajTak)
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प्रगति चौरसिया
3 अप्रैल 2025 (Updated: 3 अप्रैल 2025, 12:59 PM IST) कॉमेंट्स
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 ‘वक्फ, ऐसी संपत्ति, जिसका इस्तेमाल पब्लिक वेलफेयर के लिए होने का प्रावधान हो. इस्लाम में ये दान करने का एक तरीका होता है. दान करने वाले शख्स को ‘वाकिफ’ कहा जाता है. वाकिफ किसी भी तरह की संपत्ति दान कर सकता है. माने हीरे-जवाहरात से लेकर बिल्डिंग तक, कुछ भी. इसके साथ दान करने वाला ये भी तय कर सकता है कि दान की गई चीज़ों से हुई आमदनी का इस्तेमाल किस काम के लिए होगा. अमूमन ऐसी प्रॉपर्टीज को ‘अल्लाह की संपत्ति’ कहा जाता है. संसद में वक्फ संशोधन विधेयक पेश होने के दौरान खूब हंगामा हुआ. सरकार और विपक्ष के बीच जुबानी जंग चली. ऐसे में ये समझना जरूरी है कि वक्फ क्या है? ये व्यवस्था भारत में कैसे आई? इसे पूरे देश में फैलाने वाले कौन थे? और मुगलों-अंग्रेजों ने वक्फ के साथ क्या किया? 

इंडिया टुडे की एक रिपोर्ट के मुताबिक इस्लाम में वक्फ का जिक्र पैगंबर मोहम्मद साहब के समय से मिलता है. मान्यताएं ऐसी हैं कि एक बार खलीफा उमर ने सऊदी अरब के खैबर नाम की जगह पर एक ज़मीन हासिल की और पैगंबर मोहम्मद साहब से पूछा कि इस जमीन का क्या किया जा सकता है? पैगंबर साहब ने कहा,

इस संपत्ति को रोक लो और इससे होने वाले फायदे को लोगों के काम में लगाओ, उनकी जरूरतों पर खर्च करो.

इस तरह उस जमीन को वक्फ किया गया. एक किस्सा और भी है कि पैगंबर मोहम्मद साहब के समय 600 खजूर के पेड़ों का एक बाग बनाया गया था, जिससे होने वाली आमदनी से मदीना के गरीब लोगों की मदद की जाती थी. ये वक्फ के सबसे पहले उदाहरणों में से एक है. वक्फ को लागू करने वाला शासक कौन था? इसे सीधा-सीधा बताना कठिन है. ये कुछ ऐसा ही सवाल है कि सबसे पहले दान किसने किया था? 

भारत की बात करें तो यहां इस्लाम के आने के साथ वक्फ के उदाहरण मिलने लगे थे. मसलन, दिल्ली सल्तनत के वक्त से वक्फ संपत्तियों का लिखित ज़िक्र मिलता है. वैसे तो 7वीं शताब्दी में ही अरब व्यापारी दक्षिण भारत खासकर मालाबार क्षेत्र में कदम रख चुके थे. लेकिन इतिहास में वक्फ का शासकीय तौर पर जिक्र दिल्ली सल्तनत के काल से ही मिलता है. पॉल डेविस अपनी किताब 100 Decisive Battles: From Ancient Times to the Present में भारत में हुए कुछ युद्धों को शामिल करते हैं. इनमें एक था तराइन का युद्ध. ये वो युद्ध था, जिसने भारतीय महाद्वीप की दशा और दिशा को हमेशा के लिए बदलकर रख दिया. 

100 Decisive Battles: From Ancient Times to the Present : Davis, Paul K
पॉल डेविस की किताब 100 Decisive Battles: From Ancient Times to the Present (PHOTO-Amazon)

तराइन के युद्ध में मुहम्मद गोरी की जीत हुई. और इसी के बाद उदय हुआ दिल्ली सल्तनत का. भारत का उत्तरी और उत्तर पश्चिम इलाका अब गोरी के हाथ में आ चुका था. मोटा माटी यहीं से हिंदुस्तान में इस्लामिक रूल की शुरुआत हुई. 1206 में गोरी की मौत के बाद, उसके गुलामों ने कमान संभाली और गुलाम वंश की शुरुआत की. उन मुस्लिम शासकों और उनके बाद दिल्ली की गद्दी पर बैठने वाले तमाम सुल्तानों ने इस व्यवस्था को और मजबूत बना दिया. अयनुल मुल्क मुल्तानी अपनी किताब इंशा-ए-महरू में लिखते हैं,

मुहम्मद गोरी ने मुल्तान की जामा मस्जिद को दो गांव तोहफे में दिए और उनके मैनेजमेंट की जिम्मेदारी शेख-अल-इस्लाम को सौंपी गई थी.

शेख-अल-इस्लाम जाने माने मज़हबी नेता को दी जाने वाली उपाधि थी. जिसका मतलब है ‘इस्लाम का शेख’ या ‘इस्लाम का प्रमुख विद्वान’. ये उपाधि आमतौर पर किसी ऐसे शख्स को दी जाती थी जो इस्लामी मज़हब, कानून (शरीयत), और मजहबी मामलों में ऊंचे स्थान पर हो.

इंशा-ए-महरू 14वीं सदी में तुग़लक वंश के दौरान लिखी गई थी. ये किताब सैकड़ों चिट्ठियों का कलेक्शन है जिसमें उस दौर का प्रशासनिक और सामाजिक जीवन समझने को मिलता है. इन्हीं में एक लेटर नंबर 16 में लिखा है कि शुरुआती वक्फ धार्मिक और चैरिटेबल उद्देश्यों के लिए बनाए गए थे. ताकि मस्जिद, मदरसा और दरगाहों की देखरेख की जा सके. हालांकि दिल्ली सल्तनत में आगे ये कॉन्सेप्ट बदला और संपत्ति को वक्फ प्रॉपर्टी में तब्दील कर दिया गया.

एक के बाद एक इल्तुतमिश, फिर मुहम्मद बिन तुगलक और कई सुल्तान आए गए. जैसे-जैसे दिल्ली सल्तनत और उसके बाद इस्लामी राजवंश भारत में फले-फूले, वक्फ संपत्तियों की संख्या बढ़ती गई. 14वीं सदी के स्कॉलर जियाउद्दीन बरनी ने फिरोज शाह तुगलक की जीवनी ‘तारीख-ए-फिरोज शाही’ में लिखा है

शासकों में ये प्रथा थी कि जब वे तख्त-नशीन होते थे तब मजहबी काम से जुड़े लोगों को गांव या ज़मीन दे देते थे ताकि वे अपने मकबरों के रख-रखाव और मरम्मत के लिए आमदनी जुटा सकें.

विपुल सिंह अपनी किताब Interpreting Medieval India में लिखते हैं

दिल्ली सल्तनत का सबसे अहम दफ्तर ‘दीवान-ए-विज़ारत’ था, जिसे वज़ीर चलाता था. वज़ीर को आप सुल्तान का प्रधानमंत्री कह सकते हैं. वो शख्स जो दरबार में सबसे ताकतवर और सुल्तान के सबसे करीब होता था. वक्फ के काम भी इसी विभाग से होते थे. वहीं दीवान-ए-रिसालत विभाग का काम धार्मिक मामलों, दान, और विदेश संबंधों से जुड़ा था. ये विभाग वक्फ प्रॉपर्टी की देख-रेख करता था. वक्फ की आमदनी से तब हौज माने तालाब, मदरसे, सड़कें और सराय जैसी पब्लिक प्रॉपर्टी का रखरखाव  होता था. हालांकि दिल्ली सल्तनत के अंत के बाद मुगल काल में वक्फ को और भी मज़बूती मिली.

मुगल काल में वक्फ 

1526 में पानीपत की लड़ाई के बाद लोधी शासकों का पतन हुआ. दौर शुरू हुआ मुगलों का. उस ज़माने में ज़्यादातर संपत्ति बादशाह के अंडर आती थी. इसलिए वही वाकिफ होते और वक्फ कायम करते जाते. जैसा पहले हमने आपको बताया दान करने वाले को ‘वाकिफ’ कहा जाता है. नतीजतन कई बादशाहों ने मस्जिदें बनवाईं जो वक्फ हुईं और उनके मैनेजमेंट की जिम्मेदारी स्थानीय कमेटियों को दी गईं. जैसे इंतज़ामिया कमेटियां. 1656 में शाहजहां की बनाई गई दिल्ली की जामा मस्जिद भी वक्फ की संपत्ति में आती है. मुगल बादशाह ने इसे बनवाने के बाद वक्फ के तहत रखा, ताकि ये जनता के लिए एक मज़हबी और सामुदायिक तौर पर काम करे. पूरे भारत में ऐसी कई इमारतें, दरगाह और मस्जिद वक्फ के अधीन हैं.

अंग्रेजों के जमाने में वक्फ

मुगलों के बाद जब ब्रिटिश शासन आया तब वक्फ संपत्तियों से जुड़ी कई शिकायतें मिल रही थीं. अंग्रेजों ने इन संपत्तियों को व्यवस्थित करने की कोशिश की. 1913 में एक कानून बनाया गया. मुसलमान वक्फ वैलिडेटिंग एक्ट. अब हर मुतवल्ली (वक्फ या मस्जिद की संपत्ति का मैनेजमेंट करने वाला व्यक्ति) के लिए पैसे का हिसाब-किताब रखना जरूरी हो गया. हर साल ऑडिट का नियम बना. 1930 में इसे और सख्त किया गया. आजादी के बाद 1954 में संसद ने वक्फ एक्ट पास किया. नतीजतन वक्फ बोर्ड की स्थापना हुई. 1995 में एक नया वक्फ बोर्ड लाया गया. जिसमें समय-समय पर संशोधन की मांग उठती रही है. हाल-फिलहाल 2 अप्रैल को अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री किरेन रिजिजू ने वक्फ संशोधन बिल 2024 लोकसभा में पेश किया. जिसे लेकर एक बार फिर पक्ष-विपक्ष की दलीलें सामने आ रही हैं.

वीडियो: तारीख: वक्फ की व्यवस्था भारत में आई कैसे? मुगलों और अंग्रेजों ने क्या बदलाव किए?

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