'ये 1975 का भारत नहीं है', शशि थरूर ने इमरजेंसी, संजय गांधी पर बहुत तीखा लिख दिया
संजय गांधी द्वारा चलाए गए जबरन नसबंदी अभियान को शशि थरूर ने ‘अकल्पनीय क्रूरता’ का उदाहरण बताया. कहा कि गरीब और ग्रामीण क्षेत्रों में हिंसा और दबाव का इस्तेमाल कर मनमाने लक्ष्य पूरे किए गए.

कांग्रेस सांसद शशि थरूर ने 1975 के इमरजेंसी की 50वीं वर्षगांठ पर एक लेख में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और उनके बेटे संजय गांधी की नीतियों की कड़ी आलोचना की है. प्रोजेक्ट सिंडिकेट में प्रकाशित इस लेख में थरूर ने इमरजेंसी को भारतीय लोकतंत्र का ‘अंधेरा अध्याय’ करार दिया (Shashi Tharoor's stinging op-ed on Emergency). साथ ही कहा कि दुनिया को इस दौरान हुए मानवाधिकारों के हनन के बारे में पता नहीं चला. थरूर ने ये भी लिखा कि, ‘आज का भारत 1975 का भारत नहीं है’.
कांग्रेस सांसद ने कहा कि 25 जून, 1975 को लागू इमरजेंसी ने भारत के संवैधानिक मूल्यों, स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व को गहरी चोट पहुंचाई. इस दौरान मौलिक अधिकार निलंबित कर दिए गए, प्रेस पर सेंसरशिप लागू हुई और राजनीतिक असहमति को बेरहमी से दबाया गया. थरूर का ये लेख ऐसे समय में आया है जब मोदी सरकार की कई नीतियों को लेकर उनका समर्थन सार्वजनिक हो चुका है. इस वजह से कांग्रेस के नेतृत्व के साथ उनके मतभेद स्पष्ट हो गए हैं.
थरूर ने इंदिरा गांधी के सत्तावादी रवैये पर निशाना साधते हुए लिखा कि उन्होंने आपातकाल को आंतरिक अशांति और बाहरी खतरों से निपटने के लिए जरूरी बताया था. थरूर ने लिखा,
“इंदिरा गांधी ने इस बात पर जोर दिया कि कठोर उपाय आवश्यक थे. केवल आपातकाल की स्थिति ही आंतरिक अव्यवस्था और बाहरी खतरों से निपट सकती है, और अराजक देश में अनुशासन और दक्षता ला सकती है.”
कांग्रेस नेता ने ये भी बताया कि किस प्रकार जरूरी लोकतांत्रिक स्तंभों की आवाज दबाई गई. साथ ही हिरासत में यातनाएं दी गईं, और बड़े पैमाने पर एक्स्ट्राजूडिशियल किलिंग्स की गईं. इस प्रकार शासन की अवहेलना करने वाले लोगों को को चुप रखा गया. थरूर ने ये भी कहा कि न्यायपालिका भी भारी दबाव के आगे झुक गई. सुप्रीम कोर्ट ने बंदी प्रत्यक्षीकरण और नागरिकों के स्वतंत्रता के अधिकार तक को निलंबित कर दिया. थरूर ने लिखा,
संजय गांधी को भी घेरा“पत्रकार, कार्यकर्ता और विपक्षी नेताओं को सलाखों में डाल दिया गया. व्यापक संवैधानिक उल्लंघनों किए गए, जिससे मानवाधिकारों के हनन की एक भयावह श्रंखला देखने को मिली.”
संजय गांधी द्वारा चलाए गए जबरन नसबंदी अभियान को थरूर ने ‘अकल्पनीय क्रूरता’ का उदाहरण बताया. कहा कि गरीब और ग्रामीण क्षेत्रों में हिंसा और दबाव का इस्तेमाल कर मनमाने लक्ष्य पूरे किए गए. दिल्ली जैसे शहरों में झुग्गी-झोपड़ियों को बेरहमी से उजाड़ा गया, जिससे हजारों लोग बेघर हो गए. थरूर ने लिखा,
“अनुशासन और व्यवस्था की चाहत अक्सर अघोषित क्रूरता में तब्दील हो जाती है, जिसका उदाहरण इंदिरा गांधी के बेटे संजय गांधी द्वारा चलाया गया जबरन नसबंदी अभियान है. जो गरीब और ग्रामीण इलाकों पर केंद्रित था. जहां मनमाने लक्ष्यों को पूरा करने के लिए बल प्रयोग और हिंसा का इस्तेमाल किया जाता था.”
उन्होंने आगे कहा,
इमरजेंसी से सबक"असहमति को दबाना, लिखने और स्वतंत्र रूप से बोलने के मौलिक अधिकारों पर अंकुश लगाना, तथा संवैधानिक मानदंडों के प्रति घोर अवमानना ने भारत की राजनीति पर एक अमिट दाग छोड़ा."
हालांकि, थरूर ने ये भी कहा कि आज का भारत 1975 से अलग है. अधिक आत्मविश्वास से भरा, समृद्ध और मजबूत लोकतंत्र. फिर भी, आपातकाल के सबक आज भी प्रासंगिक हैं. थरूर ने आपातकाल से सीखे गए सबक भी गिनाए, और सत्तारूढ़ नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार पर कटाक्ष किया. उन्होंने कहा,
"सबसे पहले, सूचना की स्वतंत्रता और स्वतंत्र प्रेस अत्यंत महत्वपूर्ण हैं... दूसरा, लोकतंत्र स्वतंत्र न्यायपालिका पर निर्भर करता है, जो कार्यपालिका के विरुद्ध सुरक्षा प्रदान करने में सक्षम और इच्छुक हो."
थरूर ने लिखा,
"तीसरा सबक हमारे वर्तमान राजनीतिक माहौल में सबसे अधिक प्रासंगिक है. बहुमत द्वारा समर्थित एक अति-अभिमानी कार्यपालिका, लोकतंत्र के लिए गंभीर खतरा पैदा कर सकती है. विशेषकर तब जब वो कार्यपालिका अपनी अचूक चीजों को लेकर आश्वस्त हो. और लोकतांत्रिक प्रणालियों के लिए आवश्यक नियंत्रण और संतुलन को लेकर बेसब्र हो."
थरूर का ये लेख कांग्रेस नेता होते हुए भी उनकी स्वतंत्र छवि को और मजबूत करता है. वे एक बार फिर मोदी सरकार की कुछ नीतियों की तारीफ और पार्टी लाइन से हटकर बयान देने के चलते चर्चा में आ गए हैं.
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