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चुनाव से पहले ECI की चिट्ठी से बिहार में खलबली, करोड़ों वोटर आईडी पर संकट का दावा, ओवैसी ने तो NRC से जोड़ दिया

इलेक्शन कमीशन ऑफ इंडिया (ECI), नवंबर में होने वाले Bihar Election से पहले वोटर लिस्ट को अपडेट करना चाहता है. इसकी प्रक्रिया क्या होगी और विपक्ष इसे लेकर इतना हंगामा क्यों कर रहा है? आइए विस्तार से समझते हैं.

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Bihar election 2025 Voter list will be revised eci says opposition linking it to NRC
(फोटो: आजतक)
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आकाश सिंह
1 जुलाई 2025 (Published: 05:07 PM IST)
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बिहार की सियासत में वोटर लिस्ट की वजह से हंगामा मचा है. नेता से लेकर आम जनता तक सबका ध्यान वोटर लिस्ट (Bihar Voter List) पर है. इन सबकी शुरुआत हुई 24 जून 2025 से. जब इलेक्शन कमीशन ऑफ इंडिया (ECI) ने बिहार के मुख्य चुनाव आयुक्त को 19 पन्नों का एक लेटर भेजा. उसमें लिखी एक लाइन ने, सबका ध्यान खींचा. ये लाइन थी- “स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन ऑफ इलेक्टोरल रोल्स”. 

सरल शब्दों में कहें तो चुनाव आयोग नवंबर में होने वाले बिहार चुनाव (Bihar Election 2025) से पहले वोटर लिस्ट को अपडेट करना चाहता है. मतलब, हर पोलिंग बूथ पर ये सुनिश्चित करना कि जो वोटर बनने के लायक हैं, उनका नाम लिस्ट में आ जाए, और जो मानकों पर खरे नहीं उतरते, उनका नाम हट जाए.

क्या करना होगा?

अब ये तो हर बार होता है, फिर बवाल क्यों? बात ऐसी है कि बिहार में करीब 7 करोड़ 90 लाख वोटर हैं. नए आदेश के बाद इनमें से 2 करोड़ 93 लाख वोटर्स को अपनी डिटेल्स वेरिफाई करवानी होंगी. कैसे? उन्हें कुछ दस्तावेज जमा करने होंगे. जैसे अपनी जन्मतिथि और जन्मस्थान से जुड़े दस्तावेज़. कई मामलों में इन्हें अपने माता-पिता के जन्मस्थान और जन्मतिथि के दस्तावेज भी देने पड़ेंगे. तब ही वोटर लिस्ट में उनका नाम जुड़ेगा. माने बिहार में 37% मतदाता, यानी करीब-करीब हर तीसरा वोटर, तब तक वोट नहीं डाल पाएगा, जब तक ये कागजी कार्रवाई पूरी नहीं हो जाती.

इस प्रक्रिया को लागू करने के लिए 28 जून से अधिकारियों ने तो फॉर्म बांटने भी शुरू कर दिए हैं. और इलेक्शन कमीशन का कहना है कि 30 सितंबर 2025 तक एक नई वोटर लिस्ट तैयार हो जाएगी.  
ये प्रक्रिया कई सवालों के घेरे में है. आखिर इतने सारे लोगों से इतने दस्तावेज मांगने का क्या मतलब? क्या ये वोटिंग को और पारदर्शी बनाने का तरीका है, या फिर कुछ और खेल चल रहा है? इसके लिए पूरी प्रोसेस को विस्तार से समझना जरूरी है.

क्या है पूरी प्रोसेस?

2003 में बिहार में पहली बार व्यापक स्तर पर वोटर लिस्ट अपडेट हुई. उसमें 4 करोड़ 96 लाख मतदाताओं का नाम था. इस बार उन वोटर्स के लिए काफी सहूलियत है. उन्हें बस एक नामांकन फॉर्म भरना है और 2003 की लिस्ट से अपने नाम का हवाला देना है. ये लिस्ट बूथ लेवल ऑफिसर (BLO) के पास हार्ड कॉपी में मौजूद होगी. या फिर इसे इलेक्शन कमीशन की वेबसाइट से भी डाउनलोड किया जा सकता है. लेकिन बाकी के करीब 3 करोड़ मतदाताओं, जिनका नाम 2003 की लिस्ट में नहीं था, उन सबके लिए प्रोसेस आसान नहीं है. क्यों? क्योंकि जिन लोगों का नाम 2003 की लिस्ट में नहीं है. उन्हें उनकी डेट ऑफ बर्थ के आधार पर 3 वर्गों में बांटा गया है.

पहला वर्ग - जिनका जन्म 1 जुलाई 1987 से पहले हुआ था. उन्हें दस्तावेजों के जरिए अपनी जन्मतिथि और जन्मस्थान का सबूत देना होगा.

दूसरा वर्ग - जिनकी जन्म तिथि 1 जुलाई 1987 से 2 दिसंबर 2004 के बीच है. इन्हें अपने जन्म स्थान और तिथि के साथ अपने माता या पिता में से किसी एक के जन्मतिथि और जन्मस्थान का दस्तावेज देना होगा.

तीसरा वर्ग  - जो लोग 2 दिसंबर 2004 के बाद जन्मे हैं. उन्हें अपनी और माता-पिता दोनों की जन्मतिथि व जन्मस्थान के कागजात जमा करने होंगे.

किन दस्तावेजों से होगा वेरिफिकेशन?

ऐसे में सवाल ये कि कौन-कौन से दस्तावेजों के जरिये वोटर्स अपना वेरिफिकेशन करवा सकते हैं. लिस्ट में कई दस्तावेज़ों का जिक्र है. जैसे- जन्म प्रमाण पत्र, पासपोर्ट, किसी मान्यता प्राप्त बोर्ड या विश्वविद्यालय से प्राप्त शैक्षिक प्रमाण पत्र, निवास प्रमाण पत्र, जाति प्रमाण पत्र वगैरह. वोटर्स को अपने या अपने माता-पिता के इन दस्तावेज़ों को फॉर्म के साथ जमा करना होगा. 

लोगों की सहूलियत के लिए 77,895 बूथ लेवल ऑफिसर (BLO) पहले से काम कर रहे हैं, और 20,603 नए BLO को भी तैनात किया जा रहा है. इसके अलावा एक लाख से ज्यादा वॉलेंटियर्स भी इस प्रक्रिया में लगाए गए है. जो बुजुर्गों, बीमार, विकलांग, और गरीब मतदाताओं की मदद करेंगे.

विपक्ष इस फैसले की आलोचना क्यों कर रहा है?

मुख्य चुनाव आयुक्त ज्ञानेश कुमार ने ‘द हिन्दू’ को बताया कि ये प्रक्रिया हर भारतीय के लिए गर्व का मौका है, क्योंकि इससे वोटर लिस्ट को और पारदर्शी बनाया जा रहा है. लेकिन विपक्ष इस बात को लेकर आक्रामक है. बिहार के नेता विपक्ष तेजस्वी यादव का कहना है कि इस प्रक्रिया से BJP-RSS बिहार के गरीबों के मतदान का अधिकार खत्म कर देना चाहती है. TMC प्रमुख और पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और CPI (ML) के नेता दीपांकर भट्टाचार्य, AIMIM प्रमुख और हैदराबाद से सांसद असदुद्दीन ओवैसी ने इस प्रक्रिया को बैकडोर से NRC लागू करने वाला कदम बताया है. 

एक्सपर्ट्स क्या कहते हैं?

अब एक्सपर्ट से जानते हैं कि आरोपों में इस आदेश को NRC से क्यों जोड़ा जा रहा है? भारत के पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त ओम प्रकाश रावत बताते हैं कि NRC अलग है. उन्होंने कहा,

NRC का मतलब है- नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटीजंस. जिसमें शत प्रतिशत सभी नागरिकों को जोड़ा जाता है. उनको लिस्ट किया जाता है. लेकिन ये वोटर लिस्ट बनाने का काम है, जिसमें वोटर बनने के लिए जरूरी है कि पहला वो 18 साल से ऊपर का हो. दूसरा वो भारत का नागरिक हो. तो इस वजह से भारत की नागरिकता की बात इसमें आ रही है. क्योंकि वोटर बनने के लिए उम्र भी जरूरी है और नागरिकता भी.

आगे उन्होंने बताया कि सबसे अच्छी बात ये है कि जिनका नाम 2003 की वोटर लिस्ट में है, उनको सीधे तौर पर ही भारत का नागरिक मान लिया जाएगा और ऐेसे लोग करीब 65 से 67 फीसदी हैं. अब जो 30-35 फीसदी बचते हैं वो उनके लिए भी इलेक्शन कमीशन ने कई विकल्प छोड़े हैं. इसलिए उनको दिक्कत नहीं होगी.

ECI का क्या पक्ष है?

इन सवालों और ऐतराज पर इलेक्शन कमीशन का भी पक्ष आया है. चुनाव आयोग ने ये भी कहा कि "प्रक्रिया सिर्फ बिहार तक सीमित नहीं है. आने वाले समय में इसे पूरे देश में लागू होगी." चुनाव आयोग की मंशा क्या है.  एक्सपर्ट्स कई तरह के तर्क देते हैं जैसे कि ये प्रक्रिया देश में पहली बार नहीं हो रही. पिछले 75 सालों में चुनाव आयोग ने 9 बार व्यापक स्तर पर वोटर लिस्ट को अपडेट की थी. इलेक्शन कमीशन के पोल पैनल की तरफ से कुछ और बातें साफ़ की गई हैं.

-पहली, इलेक्शन कमीशन ने जिन 4 करोड़ 96 लाख लोगों की लिस्ट अपनी वेबसाइट पर अपलोड की है. उन्हें किसी भी तरह के दस्तावेज दिखाने की जरुरत नहीं है. वो बस फॉर्म भर दे और लिस्ट में अपने आपने नाम का हवाला दे दें. 

-दूसरी बात उन लोगों से जुडी है जिनका जन्म 1987 के बाद हुआ है और वो 2003 की लिस्ट में शामिल नहीं है. उनके लिए कुछ सहूलियत है. अगर उनके माता पिता का नाम 2003 की लिस्ट में था तो उन्हें सिर्फ अपनी डिटेल्स देनी होंगी. माता पिता की डिटेल्स देने की जरूरत नहीं है. 

-तीसरा, अगर कोई व्यक्ति फॉर्म भरता है, पर दस्तावेज़ नहीं दिखा पाता, तो फिलहाल उसका नाम वोटर लिस्ट से डिलीट नहीं किया जायेगा. उसका नाम ड्राफ्ट में मौजूद रहेगा. और बाद में उसे अपने बात कहने का पूरा मौका भी दिया जायेगा.  

ये भी पढ़ें: बिहार में लोग डाल रहे ऑनलाइन वोट, मोबाइल के जरिए वोटिंग वाला पहला राज्य बना

विपक्ष का BJP पर निशाना

मामला इतना भी सीधा नहीं है, वोटर लिस्ट में नाम जुड़ने और काटने को लेकर कई बार विपक्ष ने चुनाव आयोग को कटघरे में खड़ा करने की कोशिश की है. इस बार भी चुनाव आयोग के साथ BJP भी विपक्ष ने निशाने पर है. द हिन्दू के मुताबिक 27 जून को कांग्रेस पार्टी ने कहा कि ये प्रक्रिया राजनीतिक रूप से प्रेरित है और इसका उद्देश्य कुछ मतदाताओं को जानबूझकर वोटर लिस्ट से बाहर करना है. माने इसको इस तरह समझ सकते हैं कि विपक्षी पार्टियां भाजपा विपक्षी पार्टियों के वोटर्स का नाम कटवाना चाहती है और अपने लोगों का नाम जुड़वाना चाहती है. 

राहुल गांधी ने इस विषय पर 7 जून को द इंडियन एक्सप्रेस में लेख भी लिखा था. इसमें उन्होंने ये आरोप लगाया कि भाजपा और चुनाव आयोग के बीच एक अवैद्य गठजोड़ है. राहुल गांधी ने अपने लेख में ये दावा किया कि 2019 में महाराष्ट्र में 8 करोड़ 98 लाख करोड़ मतदाता थे. जो मई 2024 के लोकसभा चुनाव तक बढ़कर 9 करोड़ 29 लाख हो गए. यानी पांच साल में महाराष्ट्र में करीब 31 लाख मतदाता बढ़े. लेकिन नवंबर 2024 के विधानसभा चुनाव में, यानी सिर्फ पांच महीनों में मतदाताओं की संख्या 41 लाख से बढ़कर 9 करोड़ 70 लाख हो गई. राहुल गांधी ने सवाल उठाया कि सिर्फ पांच महीनों बढ़ने वाले वोटर्स की संख्या 5 साल में बढ़े वोटर्स से भी ज्यादा है. आखिर इतने नए वोटर कहां से आ गए?

ये भी पढ़ें: 'BJP नहीं तय कर सकती कि मैं चुनाव लड़ूंगा या नहीं', चिराग के इस बयान के सियासी मायने क्या?

हालांकि, राहुल के आरोपों पर चुनाव आयोग ने लेटर लिखकर जवाब भी दिया था. आयोग ने कहा कि सभी चुनाव संसद के बनाए कानून और नियमों के तहत कराए जाते हैं. अपने पत्र में चुनाव आयोग ने कुछ आंकड़ें दिए. ये आंकड़े महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव को लेकर हैं. चुनाव आयोग का कहना है कि उसने महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में 1 लाख 186 बूथ लेवल के अधिकारियों, 288 चुनावी पंजीकरण अधिकारियों, 139 सामान्य पर्यवेक्षक, 41 पुलिस पर्यवेक्षक, 71 खर्च से जुड़े पर्यवेक्षक और 288 निर्वाचन अधिकारी को नियुक्त किया था.

इसके अलावा महाराष्ट्र में सभी पार्टियों ने कुल मिलाकर 1 लाख 8 हजार 26 बूथ लेवल एजेंट (BLA) नियुक्त किए. जिनमें अकेले कांग्रेस के 28 हजार 421 BLA थे. आयोग ने कहा कि हम मानते हैं कि चुनाव के आयोजन से जुड़ा कोई भी मुद्दा कांग्रेस उम्मीदवारों ने पहले ही कोर्ट में याचिका डालकर उठाया होगा.लेकिन अगर अभी भी आपके पास कोई और शिकायत है, तो आप हमें लिख सकते हैं. आयोग आपसे व्यक्तिगत रूप से मिलने के लिए तैयार है. बस तारीख और समय दोनों के लिए सुविधाजनक हो, ताकि सभी मुद्दों पर चर्चा हो सके. अभी तक राहुल गांधी और चुनाव आयोग के बीच मीटिंग नहीं हुई है. 

पहले भी लग चुके हैं आरोप

वोटर लिस्ट पर सवाल उठते रहते हैं, दिल्ली चुनाव 2025 के समय तत्कालीन मुख्यमंत्री आतिशी ने भी इस तरह के आरोप लगाए थे. चुनाव आयोग को चिट्ठी लिखी. नाम काटने जुड़ने पर सवाल उठाए. खासतौर पर कहा कि, 

नई दिल्ली विधानसभा में 5% वोटर्स के नाम काटे गए हैं, जबकि 10% से अधिक नए वोटर्स जोड़े गए हैं.

आप लोगों की जानकारी के लिए बता दें, नई दिल्ली की सीट से आम आदमी पार्टी सुप्रीमो अरविन्द केजरीवाल चुनाव के मैदान में थे. जो सिर्फ 4 हजार वोटों से चुनाव हारे थे. 

संविधान क्या कहता है?

इसके राजनैतिक फायदे होंगे या नहीं, ये एक पक्ष है. इसका दूसरा पक्ष और भी अहम है.जो जुड़ा है भारत के संविधान से. क्या संविधान चुनाव आयोग वोटर लिस्ट से जुड़े इतने बड़े फैसले लेने की इजाजत देता है? संविधान का आर्टिकल 324 चुनाव आयोग को संसद और राज्य विधानमंडलों के चुनावों के साथ-साथ राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति के चुनावों के लिए वोटर लिस्ट तैयार करने और चुनावों का संचालन करने की शक्ति देता है. इसके साथ ही रिप्रजेंटेशन ऑफ पीपल्स एक्ट 1950 भी चुनाव आयोग को वोटर लिस्ट बनाने से जुडी कई जिम्मेदारियां सौंपता हैं. जैसे हर चुनाव से पहले वोटर लिस्ट को अपडेट करना.

माने अधिकार तो हैं, पर सवाल ये है कि किस आधार पर चुनाव आयोग बिहार के वोटर्स को 3 अलग-अलग वर्गों में बांट दिया? संविधान का आर्टिकल 14 तो हम सबको समान अधिकार देता है. फिर कैसे एक वर्ग को सिर्फ अपने दस्तावेज देने हैं? दूसरे वर्ग को अपने साथ अपने माता या पिता में से किसी एक के दस्तावेज देने हैं? और तीसरे वर्ग को अपने साथ अपने माता और पिता दोनों के दस्तावेज जमा करने हैं? यहां आती है डीटेलिंग और नियम-कायदे. 'आर्टिकल 14' समानता का अधिकार तो देता है. लेकिन ये गुंजाईश भी छोड़ता है कि सरकार या कोई संस्था जरुरत के हिसाब से वर्गीकरण कर पाए. जैसे किसी कॉम्पिटेटिव एग्जाम में बैठने वाले सभी छात्रों को जनरल, OBC, SC, ST, EWS जैसी कैटेगरी में बांटा जाता है. ये आर्टिकल 14 का उलंघन नहीं है. क्योंकि इसके पीछे एक लॉजिक है. 

वीडियो: दी लल्लनटॉप शो: बिहार चुनाव से पहले EC ने वोटर्स लिस्ट को लेकर क्या कहा जो बवाल मच गया?

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