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मूवी रिव्यू: महान

क्या हुआ जब पहली बार विक्रम और उनके बेटे ध्रुव विक्रम आमने-सामने आए?

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विक्रम की ये फिल्म देखनी चाहिए या नहीं, जानने के लिए रिव्यू पढ़ लीजिए. फोटो - ट्रेलर थंबनेल (यूट्यूब)
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यमन
10 फ़रवरी 2022 (Updated: 10 फ़रवरी 2022, 03:15 PM IST) कॉमेंट्स
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अमेज़न प्राइम वीडियो पर एक तमिल फिल्म रिलीज़ हुई है, ‘महान’. इस फिल्म में पहली बार विक्रम और उनके बेटे ध्रुव विक्रम आमने-सामने हैं. इसलिए फिल्म को लेकर बज़ बना हुआ था. बाकी दूसरी वजह हैं इसके डायरेक्टर कार्तिक सुब्बाराज. जो ‘जिगरठंडा’ और ‘जगमे थंडीरम’ जैसी फिल्में बना चुके हैं. बताया जा रहा है कि अक्षय कुमार की आनेवाली फिल्म ‘बच्चन पांडे’ भी ‘जिगरठंडा’ से इंस्पायर्ड है. खैर, आज के रिव्यू में बात करेंगे ‘महान’ की.
ये फिल्म कहानी बताती है गांधी महान नाम के आदमी की. गांधी नाम सुनते ही दिमाग में कैसी इमेज आती है? कोई बंदा जो एकदम शांत हो, समाज में बुरी समझी जाने वाली आदतों से दूर रहता हो. गांधी महान भी कुछ ऐसा ही है. पूर्वज गांधीवादी रहे हैं. दादा-पिता ने शराबबंदी की लड़ाई लड़ी है. महात्मा गांधी से प्रभावित होकर पिता ने अपने बेटे का नाम गांधी महान रख दिया था. गांधी महान सादा जीवन जीता है, अपनी पत्नी और बेटे के साथ. लेकिन मन में इच्छा कुलबुलाती है, वो सब करने की जिसे उसके परिवार वाले गलत मानते हैं. जैसे सिनेमा देखना, जुआ खेलना और कम-से-कम लाइफ में एक बार शराब पीना.
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गांधी महान का YOLO उसे महंगा पड़ जाता है.

अपनी इसी ‘यू ओनली लिव वन्स’ की हसरत को पूरा करने के चक्कर में उसका परिवार उससे अलग हो जाता है. गांधी कुछ दिन गम मनाता है. लेकिन फिर जिस शराब की वजह से पत्नी और बेटा दूर हुए, उसी शराब के धंधे में लग जाता है. तमिलनाडु का लिकर बैरन बन बैठता है. इस तरह की राइज़ वाली कहानी में आगे क्या घटता है, वो बताने की ज़रूरत नहीं. पर यहां किरदार का फॉल ही फिल्म का सबसे इंट्रेस्टिंग पार्ट है.
कार्तिक सुब्बाराज ने गांधी महान की दुनिया में हमें उतार दिया है. ये फिल्म न्यूट्रल पॉइंट से बताई कहानी नहीं. फिल्म की शुरुआत में ही ये बात क्लियर हो जाती है. जब स्क्रीन पर महात्मा गांधी का कोट आता है,
आज़ादी का कोई फायदा नहीं अगर आपको उसमें कुछ गलतियां करने की आज़ादी नहीं.
आगे चलकर एक पॉइंट पर गांधी महान भी ये बात दोहराता है. पूरी फिल्म कॉज़ एंड इफेक्ट पर चलती है. हो सकता है कि अगर गांधी महान का परिवार शराब को लेकर इतना सख्त न होता, तो शायद वो उसके लिए इतनी बड़ी चीज़ नहीं होती. क्योंकि पूरी कहानी का कोर्स उसके शराब पीने के बाद ही 360 डिग्री घूमता है. यहां कार्तिक सोसाइटी की तरफ पॉइंट कर रहे थे कि गांधी को माननेवालों को दूसरों की गलती माफ करने की हिम्मत तो होनी ही चाहिए. गांधी की लाइफ में चांस और किस्मत जैसे शब्दों के भी खास मायने हैं. जैसे इत्तेफाक से ही बचपन के दोस्त से मुलाकात होती है और दोनों साथ में शराब का धंधा शुरू कर देते हैं. इत्तेफाक से ही उन्हें अपने बचपन से एक और किरदार मिलता है.
चूंकि ये गांधी महान की ही कहानी है, उस लिहाज़ से फिल्म का मूड उसी के हिसाब से चलता है. जैसे जब भी उसे कोई शॉक लगता है या कुछ अनपेक्षित घटता है, तो बैकग्राउंड में मौजूद लाइट्स लगातार ब्लिंक करने लगती हैं. मैंने ये दो अलग-अलग मौकों पर नोट किया. इसका रीलिजस कनेक्शन भी हो सकता है. जैसे एक जगह गांधी के दोस्त सत्या और उसके बेटे की जान पर बन आती है. सत्या पास में मौजूद चर्च की ओर देखकर प्रार्थना करता है. तभी किसी तरह गांधी उन दोनों को बचा लेता है. आगे एक और सीन है जहां देवी की पूजा के दौरान एक किरदार गांधी से पूजा में शामिल होने को कहता है. साथ ही कहता है कि मन से शामिल होगे तो जल्दी तुम्हारा बेटा मिल जाएगा. पूजा का फंक्शन पूरा भी नहीं होता कि बेटा सामने हाज़िर होता है.
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दादा के रोल में ध्रुव विक्रम.

कार्तिक सुब्बाराज का अपना एक स्टाइल है फिल्मों को शूट करने का, जो अमेरिकी फिल्मों से खासा इंफ्लूएंस्ड लगता है. ‘महान’ भी उसमें कोई अपवाद नहीं. यहां उन्होंने सिंगल टेक में एक फाइट सीन शूट किया, जो विक्रम की एनर्जी देखकर और एक्साइटिंग लगता है. साथ ही डॉली ज़ूम शॉट भी देखने को मिलता है, वो शॉट जिसे ‘Jaws’ ने पॉपुलर किया था.
फिल्म का सबसे बड़ा एंटीसिपेशन था विक्रम और ध्रुव विक्रम का फेस ऑफ. जितने भी सीन्स में दोनों आमने-सामने आते हैं, वो सीन स्टैंड आउट करते हैं. अलग-अलग शख्सियत होने के बावजूद दोनों में एक किस्म का पागलपन है. कोई हद न समझने वाला पागलपन, जो उन्हें एक जैसा बनाता है. फिल्म ध्रुव विक्रम के कैरेक्टर के पहलू एक्सप्लोर करने में इंट्रेस्टिड नहीं दिखती. सेकंड हाफ में उनके कैरेक्टर दादा की एंट्री होती है, और उसके बाद आप उसे एक ही मूड में देखते हैं. मन में गुस्सा लिए किसी भी हद तक जाकर अपना बदला लेना है उसे बस. बल्कि इसके विपरीत गांधी महान की जवानी से लेकर बुढ़ापा तक हमें देखने को मिलता है.
विक्रम अपने कैरेक्टर में पूरी तरह इंवेस्टेड दिखाई देते हैं. फिर चाहे वो इमोशनल सीन्स हों या फिर एक्शन सीक्वेंस, उनकी एनर्जी का मीटर ज़रूरत के अनुसार डिलीवर करता है. कहना गलत नहीं होगा कि ‘महान’ को उठाने का बड़ा हिस्सा विक्रम और उनके किरदार के ज़िम्मे था, जिसे वो भली-भांति निभाते हैं. 2 घंटे 40 मिनट की ‘महान’ की लेंथ को कम किया जा सकता था. फिल्म के कुछ गाने नैरेटिव को आगे ले जाने का काम नहीं करते. उन्हें हटाया जा सकता था.
बाकी ये फिल्म विक्रम और कार्तिक सुब्बाराज, दोनों के बेस्ट कामों में से एक है. कुछ खामियों के बावजूद देखी जानी चाहिए. फिर बता दें कि ‘महान’ अमेज़न प्राइम वीडियो पर स्ट्रीम हो रही है.

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