बिहार चुनाव के नतीजे आने के बाद से ही पांच राज्य- असम, पश्चिम बंगाल, केरल, पुडुचेरी और तमिलनाडु में विधानसभा चुनावों की तैयारियां हो रही हैं. इनमें बंगाल को लेकर सबसे ज्यादा गहमागहमी है. बात पार्टियों में रोमांचक मुक़ाबले की हो, राजनीतिक हिंसा की हो या फिर नेताओं के दल बदलने की, हर मायने में बंगाल चर्चा का केंद्र बना हुआ है. राज्य में कई ऐसे समुदाय और परिवार हैं, जिन पर पार्टियों की नजरें हैं. वजह है, वोटों को प्रभावित करने की उनकी ताकत. लोगों पर पकड़ रखने वालों में फ़ुरफ़ुरा शरीफ़ के पीरजादे भी हैं. हाल में AIMIM के नेता असदुद्दीन ओवैसी की इस मज़ार के छोटे पीरज़ादे अब्बास सिद्दीक़ी से हुई मुलाक़ात ने सबका ध्यान खींचा है. आइए बात करते हैं इन्हीं पीरजादों और उनके प्रभाव के बारे में. साथ ही चर्चा करेंगे बंगाल की सियासत में मुस्लिम वोटों की अहमियत पर और ममता बनर्जी के सामने खड़ी चुनौतियों पर.

फ़ुरफ़ुरा शरीफ़ के 2000 से ज्यादा मदरसे
हुगली ज़िले में फ़ुरफ़ुरा शरीफ़ मज़ार बंगाली मुसलमानों का अहम धार्मिक स्थल है. पश्चिम बंगाल सरकार की टूरिज़्म डिपार्टमेंट की वेबसाइट बताती है कि फ़ुरफ़ुरा शरीफ़ मस्जिद का निर्माण 1375 में मुखलिश खान ने किया था. फ़ुरफ़ुरा शरीफ़ में सबसे अहम जगह मज़ार शरीफ़ को माना जाता है. मज़ार शरीफ़ में हज़रत अबु बकर सिद्दीक़ी और उनके पांच बेटों की मज़ार हैं. फ़ुरफ़ुरा शरीफ़ के 32 पीरजादे हैं. पीरज़ादा मतलब धर्मगुरु या संत या आध्यात्मिक गुरू. फ़ुरफ़ुरा शरीफ़ के सबसे बड़े पीरज़ादे इब्राहिम सिद्दीक़ी ने दी लल्लनटॉप को बताया कि मज़ार के सारे पीरज़ादे हज़रत अबु बकर के वंशज हैं. हज़रत अबु बकर सामाजिक कार्यकर्ता थे. उन्होंने सामाजिक उत्थान के लिए बहुत कुछ किया था.
इब्राहिम के मुताबिक़, मज़ार पश्चिम बंगाल और अन्य राज्यों में सामाजिक उत्थान के काफ़ी कार्यों से जुड़ा है. बंगाल में 2000 से भी ज़्यादा मदरसे चलाता है. जिनमें क़ुरानिया मदरसा, हफ़ीज़िया मदरसा और ख़रीज़ी शामिल हैं. इब्राहिम का दावा है कि इन संस्थाओं में 10 लाख से ज्यादा लोग जुड़े हुए हैं. मज़ार में विश्वास करने वाले पश्चिम बंगाल के हर कोने में है. लेकिन बांग्लाभाषी मुसलमानों में इसका ख़ासा प्रभाव है.
90 सीटों पर मुस्लिम वोट निर्णायक
मजार के 32 पीरज़ादे हैं. इनमें से 4-5 ही राजनीतिक रूप में सक्रिय हैं. पश्चिम बंगाल की आबादी में क़रीब 30% मुसलमान माने जाते हैं. इस्लामिक विषयों के जानकर और पश्चिम बंगाल की मुस्लिम आबादी पर बेस्ड विशेष शोध पत्रिका “उदार आकाश” के सम्पादक फारूक अहमद की मानें तो मुसलमानों की असल आबादी इससे कहीं ज्यादा है. इनमें क़रीब 28% बंगला भाषी मुसलमान हैं. राज्य में क़रीब 125 ऐसी सीटें हैं, जिन पर मुस्लिम वोट सीधे जीत तय कर सकता है.
फारूक अहमद कहते हैं कि अगर मज़ार के प्रभाव की बात करें तो दक्षिण 24 परगना, उत्तर 24 परगना, हुग़ली, हावड़ा, बर्धमान और नादिया में इसका असर है. इन ज़िलों में 135 सीटें हैं. इनमें क़रीब 90 ऐसी सीटें हैं, जिनमें मुस्लिम वोट डिसाइडिंग फ़ैक्टर रहता है. ऐसे में मज़ार की राजनैतिक अहमियत और भी बढ़ जाती है. कहा तो यहां तक जाता है कि किसी भी राजनीतिक पार्टी का राज्य की सत्ता पर क़ाबिज़ होना इनके समर्थन के बग़ैर मुश्किल है. चाहे सीपीएम के 34 साल का शासन रहा हो या बीते लगभग 10 साल से ममता दीदी की सरकार हो, दोनों पार्टियों को अपने-अपने वक़्त में मज़ार का समर्थन मिला है. वैसे इन सभी 90 सीटों पर फ़िलहाल तृणमूल कांग्रेस का क़ब्ज़ा है.
अब बात पीरज़ादा अब्बास सिद्दीक़ी की
इस फ़ुरफ़ुरा शरीफ मज़ार के छोटे पीरज़ादे हैं अब्बास सिद्दीक़ी. 38 साल के हैं. बंगाल विधानसभा चुनाव लड़ना चाहते हैं. पिछले दिनों अब्बास सिद्दीक़ी ने एक सेक्युलर पार्टी और सेक्युलर फ़्रंट बनाने की बात कही. इससे पहले 3 जनवरी को AIMIM के नेता असदुद्दीन ओवैसी हैदराबाद से उड़ान भरकर सीधे हुग़ली पहुंचे. अब्बास सिद्दीक़ी से मुलाकात की. इसके बाद ओवैसी ने पत्रकारों के सामने कहा कि अब्बास सिद्दीक़ी के साथ आगामी चुनावों को लेकर उनकी चर्चा हुई है. हम चाहते हैं कि दोनों एक साथ मिलकर काम करें.
At Furfura Sharif, West Bengal in a meeting with Pirzada Abbas Siddiqui sb, Pirzada Naushad Siddiqui sb, Pirzada Baizid Amin sb & Janab Sabir Ghaffar sb pic.twitter.com/lptUX24JnJ
— Asaduddin Owaisi (@asadowaisi) January 3, 2021
हालांकि अंग्रेज़ी अख़बार इकनॉमिक टाइम्स से पीरज़ादा अब्बास सिद्दीक़ी ने कहा कि वह ना सिर्फ़ ओवैसी बल्कि सीपीएम, कांग्रेस और अन्य कई दलितों-पिछड़ों के संगठनों के साथ बातचीत कर रहे हैं. जल्द ही बड़ा ऐलान करेंगे. चर्चा है कि पीरज़ादा अब्बास 21 जनवरी को अपने गठबंधन का ऐलान कर सकते हैं.
ममता बनर्जी ने खोला मोर्चा
अब्बास सिद्दीक़ी के साथ ओवैसी की इस मुलाकात से सियासी गर्मी बढ़ गई. सिद्दीक़ी का सेक्युलर फ्रंट बनाने का ऐलान तृणमूल कांग्रेस को रास नही आया. ममता बनर्जी ने इसके बाद नदिया ज़िले में एक सभा में अब्बास सिद्दीक़ी की ओर इशारा करते हुए उन पर कम्यूनल होने का आरोप लगा दिया. ममता बनर्जी का भड़कना लाज़मी भी था. छोटे पीरज़ादे अब्बास सिद्दीक़ी ने पिछले एक साल में 50 से भी ज़्यादा जनसभाओं में दीदी पर खुला हमला किया है. उन्होंने ममता दीदी पर मुसलमानों का वोटों के लिए इस्तेमाल करने का आरोप तक लगाया.
मजार के सबसे बड़े पीरजादे हैं इब्राहिम. भतीजे अब्बास सिद्दीक़ी के सेक्युलर फ्रंट बनाने के फ़ैसले पर इब्राहिम ने दी लल्लनटॉप से कहा कि देश की जनता सही गलत का फैसला करना जानती है, मैं इस पर कुछ कहना नहीं चाहूंगा. जहां तक ममता बनर्जी की अब्बास पर टिप्पणी की बात है तो मैं इतना ही कह सकता हूं कि गरीब, दलित, मुसलमानों की बात करना क्या साम्प्रदायिकता है? उन्होंने कहा कि हमारे पूर्वजों ने पहले भी कांग्रेस का समर्थन किया है. अगर सच कहना, गरीब-मज़लूमों की बात करना राजनीति है तो हां हम राजनीति करते हैं.

मज़ार के एक और पीरजादे और अब्बास के चाचा पीरज़ादा तोहा सिद्दीक़ी भी काफी प्रभावशाली माने जाते रहे हैं. लेकिन उन्होंने कभी राजनीति में सीधे दखल नहीं दिया. हालांकि पिछले कुछ समय से वह ममता के समर्थक माने जाते हैं. अब्बास सिद्दीक़ी के ऐलान पर पीरज़ादा तोहा सिद्दीक़ी की राय भी अलग है. तोहा सिद्दीक़ी ने दी लल्लनटॉप से बात करते हुए कहा, “बंगाल का मुसलमान सांप्रदायिकता के ख़िलाफ़ वोट करेगा. पहले भी हम कांग्रेस, उसके बाद सीपीएम और तृणमूल के लिए करते आए हैं.”
क्या बंगाल में बिहार दोहराएंगे ओवैसी?
बहरहाल ओवैसी और पीरज़ादा अब्बास सिद्दीक़ी की मुलाकात के बाद इस तरह के सवाल उठने लगे कि क्या ओवैसी बंगाल में भी ऐसा कुछ कर दिखाने में कामयाब हो पाएंगे जैसा उन्होंने बिहार में किया था. सवाल इसलिए भी लाजमी है क्योंकि बिहार के साथ बंगाल अपनी सीमा साझा करता है. बिहार के तीन ज़िले- कटिहार, पूर्णिया और किशनगंज बिहार से सटे हुए हैं. इन्हें सीमांचल कहा जाता है. ओवैसी की पार्टी AIMIM ने हाल ही में हुए बिहार विधानसभा चुनाव में 5 सीटें इसी इलाक़े में जीती हैं. बंगाल की उन ज़िलों की बात करें, जो बिहार के साथ सीमा साझा करते हैं तो इनमें उत्तर दीनाजपुर, मालदा और दार्जीलिंग शामिल हैं. उत्तर दीनाजपुर और मालदा में मुसलमान बहुतायत हैं. मुसलमानों पर मजार का प्रभाव है. ऐसे में पीरज़ादा अब्बास सिद्दीक़ी से ओवैसी की मुलाकात को बंगाल में सियासी जमीन सेट करने के राजनीतिक दांव की तरह देखा जा रहा है.
ममता के लिए सबसे बड़ी चुनौती?
इस बार के चुनाव को ममता बनर्जी के लिए सबसे बड़ी राजनैतिक चुनौती माना जा रहा है. पिछले विधानसभा चुनाव में बीजेपी सिर्फ़ 3 सीटें और महज़ 10.3% वोट हासिल कर पाई थी, लेकिन 2019 के लोकसभा चुनावों में बीजेपी ने 40% वोट हासिल कर लिए. 18 सीटें जीतीं, जो कि सीधे 16 सीटों का इज़ाफ़ा है. जिस तरह से राजनीतिक गतिविधियां हो रही हैं, ममता के लिए बीजेपी हर बीतते दिन के साथ चुनौती बढ़ा रही है. कभी ममता के चहेते रहे नेताओं के बीजेपी में शामिल होने की लिस्ट लंबी होती जा रही है. ऐसे में अगर मुस्लिम वोटों का विभाजन हुआ तो ममता दीदी के सियासी समीकरण उलट-पुलट सकते हैं.
लेकिन भूलिए मत! राज्य में एक तीसरी ताक़त भी है– लेफ्ट-कांग्रेस गठजोड़. एक दौर में एकदूसरे की धुर विरोधी माने जाने वाली दोनों पार्टियाँ अब एकसाथ चुनाव मैदान में उतरेंगी. सीपीएम की दुर्गति का सिलसिला 2009 के लोकसभा चुनावों से थमने का नाम ही नहीं ले रहा. 2019 के लोकसभा चुनाव में सीपीएम के खाते में एक भी सीट नहीं आ सकी. 2016 में कांग्रेस के हाथों मुख्य विपक्षी पार्टी का ओहदा गंवाने वाली सीपीएम इस चुनाव में अपना औचित्य बचाने की लड़ाई लड़ती नज़र आ रही है. वहीं, कांग्रेस की हालत भी कुछ अच्छी नहीं है.
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