कौन हैं डीके शिवकुमार जिनके रिज़ॉर्ट ने तीन बार कांग्रेस को जिताया?
कुमारस्वामी परिवार के वे सबसे बड़े दुश्मन थे फिर उन्हें मुख्यमंत्री क्यों बनवा दिया?
Advertisement

डीके शिवकुमार और उनका रिज़ॉर्ट. रिज़ॉर्ट जिसने "लोकतंत्र" की रक्षा की.
सिद्धारमैया सरकार में डोड्डालाहल्ली केम्पेगौड़ा शिवकुमार ऊर्जा मंत्री थे. कर्नाटक कांग्रेस में वोकालिग्गा समुदाय से आने वाले बड़े नेता हैं. कर्नाटक की राजनीति में डीकेएस के नाम से फेमस हैं. डीकेएस पिछले साल चर्चा में आए थे गुजरात में हुए राज्यसभा चुनाव के दौरान.

वोकालिग्गा समुदाय के बड़े नेता हैं शिवकुमार.
कांग्रेस के लिए लकी है इनका रिज़ॉर्ट
जब गुजरात में कांग्रेस के विधायक एक-एक कर भाजपा में शामिल होते जा रहे थे और अहमद पटेल की नैया मझधार में फंसने लगी तब कांग्रेस के बचे 44 विधायकों को बैंगलुरु के पास "ईगलटन" रिज़ॉर्ट ले जाया गया. ये रि़ज़ॉर्ट डीकेएस का ही था. यहां की गई बाड़ेबंदी से अहमद पटेल चुनाव जीत गए.

ईगलटन रिज़ॉर्ट के मालिक हैं डीके शिवकुमार.
लेकिन यह पहली बार नहीं था जब डीकेएस का रिज़ॉर्ट कांग्रेस के लिए सेवियर
बन के आया. 2002 में जब महाराष्ट्र में विलासराव देशमुख की सरकार पर खतरा आया तब वहां के विधायकों को कांग्रेस शासित कर्नाटक भेज दिया गया था. ये विधायक कर्नाटक के शहरी विकास मंत्री डीके शिवकुमार के रिज़ॉर्ट में रुके थे. और विलासराव देशमुख की सरकार बच गई थी.
इस बार फिर से डीकेएस का ईगलटन रिज़ॉर्ट कांग्रेस के लिए लकी साबित हुआ. कांग्रेस के सभी विधायकों को यहीं रखा गया था. जब विधायकों को बस से हैदराबाद ले जाया गया तो उस बस में सबसे आगे डीकेएस खुद बैठे थे.
पॉलिटिकल मैनेजमेंट में माहिर हैं डीके
डीकेएस पॉलिटिकल मैनेजमेंट में माहिर आदमी हैं. कांग्रेस के दो विधायक प्रताप गौड़ा पाटिल और आनंद सिंह दो दिन से नदारद थे. खुद शिवकुमार ने कहा कि ये दोनों विधायक लापता हैं और बीजेपी ने इन्हें अगवा कर लिया है. बीजेपी भी इन दो विधायकों से उम्मीद लगाए बैठी थी.

कर्नाटक विधानसभा के बाहर घूमते डीके.
विश्वासमत के लिए विधानसभा का विशेष सत्र बुलाया गया. सभी लोग विधानसभा के अंदर विधायकों की गिनती कर रहे थे. लेकिन डीकेएस विधानसभा के एंट्री गेट पर खड़े थे. वो इंतजार कर रहे थे कि दोनों विधायक आएं और उन्हें कांग्रेस के पाले में वापस ले आया जाए. हुआ भी ऐसा ही. एंट्री करते हुए तो ये विधायक डीके शिवकुमार का हाथ झटक रहे थे लेकिन कुछ देर बाद उनके साथ ही लंच कर रहे थे.
डीके शिवकुमार ने कांग्रेस के एक भी विधायक को अलग नहीं होने दिया. कांग्रेस में कोई टूट नहीं हुई और येदियुरप्पा को ढ़ाई दिन में इस्तीफा देने पर मजबूर होना पड़ा.#WATCH
— ANI (@ANI) May 19, 2018
: Dramatic visuals of the moment when Congress MLA Pratap Gowda Patil who was said to be missing, entered Vidhana Soudha. #KarnatakaFloorTest
pic.twitter.com/XINBGZvped
#WATCH
Congress MLA Anand Singh who was said to be missing, sits with Congress's DK Shivakumar in the assembly. #floortest
pic.twitter.com/0INIdju2fs
— ANI (@ANI) May 19, 2018
देवेगौड़ा परिवार के खिलाफ ही शुरू की थी राजनीति
आज डीके शिवकुमार भले ही कुमारस्वामी के हाथों में हाथ डाल जीत का जश्न मना रहे हों. लेकिन डीके शिवकुमार की राजनीति की शुरुआत कुमारस्वामी के पिता एच. डी. देवेगौड़ा के खिलाफ चुनाव लड़ कर हुई थी.
Bengaluru: Congress' DK Shivkumar, JD(S)'s HD Kumaraswamy & other MLAs at Vidhana Soudha after resignation of BJP's BS Yeddyurappa as Chief Minister of Karnataka. pic.twitter.com/qdGu8zGXWK
— ANI (@ANI) May 19, 2018

एचडी देवेगौड़ा के खिलाफ पहला चुनाव लड़ा शिवकुमार ने.
ये साल था 1985 का. कर्नाटक में इस साल विधानसभा चुनाव होने जा रहे थे. वोक्कालिगा लोगों के सबसे बड़े चेहरे एचडी देवेगौड़ा ने दो जगह से पर्चा दाखिल किया था. पहला अपनी गृह विधानसभा, होलानरसीपुर सीट से और दूसरा बैंगलुरु की सातनूर विधानसभा सीट से. सातनूर से कांग्रेस की टिकट पर एक 25 साल का युवक देवेगौड़ा को चुनौती दे रहा था. नाम था – डीके शिवकुमार. शिवकुमार यह चुनाव 15,803 के बड़े मार्जिन से हार गए लेकिन उनके और देवेगौड़ा के बीच दशकों तक चलने वाली सियासी रंजिश की नींव, इस चुनाव ने रख दी थी. रंजिश, जिसके केंद्र में थे – बैंगलुरु और वोक्कालिगा.
1985 में, देवेगौड़ा होलानरसीपुर और सातनूर दोनों जगह से चुनाव जीत गए. उन्होंने सातनूर की सीट छोड़ दी. यहां हुए उप-चुनाव में डीके शिवकुमार फिर मैदान में उतरे और जीत गए. उनके सियासी करियर की यह शुरुआत थी. 1989 में अपना दूसरा चुनाव भी यहीं से जीतने के बाद वो एस. बंगारप्पा की सरकार में जूनियर मिनिस्टर भी बन गए थे. शिवकुमार और देवेगौड़ा परिवार के बीच दूसरी सीधी चुनावी टक्कर 1999 में हुई. जब उन्होंने एचडी कुमारस्वामी को सातनूर से हराया था.

एचडी कुमारस्वामी को भी चुनाव हराया था डीके ने.
यह कुमारस्वामी की लगातार तीसरी हार थी. इससे पहले दो चुनाव वो हार चुके थे. 1999 में कुमारस्वामी के चुनाव हारने के बाद दोनों गुटों की रंजिश अपने चरम पर थी. शिवकुमार इस वक़्त पर देवेगौड़ा पर भारी पड़ते दिखाई दे रहे थे. वजह थी उनकी बढ़ती सियासी हैसियत. वो 1999 में बनी एस. एम. कृष्णा सरकार में कैबिनेट मिनिस्टर बन गए थे. उन्हें शहरी विकास जैसा जरूरी मंत्रालय मिला.
तीसरी टक्कर हुई 2004 में. इस साल कर्नाटक विधानसभा के चुनाव लोकसभा के साथ-साथ हो रहे थे. देवेगौड़ा फिर से, दो सीट पर चुनाव लड़ रहे थे – हासन और कनकापुरा. कृष्णा ने शिवकुमार के साथ मिलकर कनकापुरा सीट पर देवेगौड़ा का गेम सेट कर दिया. कृष्णा के कहने पर यहां से तेजस्विनी गौड़ा को टिकट दिया गया. राजनीति में आने से पहले वो कन्नड़ न्यूज़ चैनल उदया टीवी में एंकर हुआ करती थीं.

तेजस्विनी गौड़ा ने देवेगौड़ा को चुनाव हराया था.
तेजस्विनी ने कनकापुरा सीट से बड़ा उलटफेर कर दिया. वो 5,83,920 वोट के साथ इस चुनाव में अव्वल रहीं. वहीं 4,67,257 वोट के साथ बीजेपी के रामचंद्र गौड़ा दूसरे नंबर पर रहे. देवेगौड़ा को 4,62,320 वोट के साथ तीसरे नंबर पर खिसकना पड़ा. वे एक पूर्व-प्रधानमंत्री थे, और ये एक शर्मनाक हार थी. लेकिन ये सियासत है. यहां कोई दोस्ती या दुश्मनी स्थाई नहीं होती. कुमारस्वामी और डीके शिवकुमार की आज की तस्वीरों ने यह दिखा भी दिया.
गांधी परिवार से भी है करीबी
महाराष्ट्र में सरकार बचाने में शिवकुमार का योगदान उन्हें गांधी परिवार की नजरों में ले आया. वो कर्नाटक में कांग्रेस के ट्रबलशूटर बन गए. 2009 में इन्हें कर्नाटक कांग्रेस का कार्यकारी अध्यक्ष बनाया था. 2013 में चुनाव आयोग को दिए हलफनामे में उन्होंने अपनी 250 करोड़ की संपत्ति बताई थी. वो कर्नाटक के सबसे अमीर उम्मीदवारों में से थे.

सोनिया गांधी के साथ शिवकुमार.
चर्चा में बने रहते हैं
2013 में कर्नाटक में कांग्रेस सरकार आई, उसके बाद शिवकुमार मुख्यमंत्री पद की दौड़ में थे. लेकिन सिद्धारमैया की सरकार में ऊर्जा मंत्री के पद से संतोष करना पड़ा. गुजरात विधायकों को रिज़ॉर्ट में रोकने के बाद इनके यहां इनकम टैक्स का छापा पड़ा था. रिज़ॉर्ट से तो कुछ नहीं मिला लेकिन उनके दिल्ली वाले घर से 7.5 करोड़ रुपए नगद मिले थे.
Rs. 7.5 crore recovered during IT raids at two flats of Karnataka Minister DK Shivakumar in Delhi. pic.twitter.com/Au81NpKb4Nएक बार मध्य प्रदेश की दो लड़कियों की हल जोतते फोटो वायरल हुई थी, जिसके बाद शिवकुमार ने उनको 50,000 रुपए की मदद भेजी. इस कारण भी वे चर्चा में रहे.
— ANI (@ANI) August 2, 2017
I am sending a DD via the Madhya Pradesh Mahila Congress President to the Farmer in the hope that he can buy Oxen & let his daughters study. pic.twitter.com/rlLz3JMD9y
— DK Shivakumar (@DKShivakumar) July 10, 2017
शिवकुमार का रिज़ॉर्ट इस बार भी कांग्रेस के लिए लकी साबित हुआ. उनका पॉलिटिकल मैनेजमेंट काम कर गया. पहले कभी उनके राजनीतिक प्रतिद्वंदी रहे कुमारस्वामी सूबे के नए मुखिया होंगे. इस सरकार में डीके शिवकुमार का क्या रोल होगा ये दिलचस्प होगा.
ये भी पढ़ेंःकर्नाटक के मुख्यमंत्री: एच डी देवेगौड़ा – जिन्हें एक नाटकीय घटनाक्रम ने देश का प्रधानमंत्री बनाया
18वीं सदी का राजा टीपू सुल्तान क्यों 2018 के चुनाव में बन गया मुद्दा?
वो छह सीटें जहां कर्नाटक के मुख्यमंत्री रहे चार नेताओं की इज़्ज़त दांव पर लगी है
कांग्रेस के इस दलित नेता की मुख्यमंत्री बनने की हसरत फिर अधूरी रह गई!
कर्नाटक के मुख्यमंत्री: धरम सिंह – जिनको इंदिरा गांधी ने 1 लाख वोटों से जीती सीट छोड़ने को कहा
इस केस में इंदिरा गांधी जीत जातीं, तो शायद भारत पर हमेशा के लिए कांग्रेस का राज हो जाता!