चंद्रयान 2. चांद के लिए भारत का दूसरा मिशन. 2019 में लगभग पूरे साल चर्चा में रहा. पहले इसलिए कि ये बेहद सस्ता मिशन है. फिर इसकी लॉन्चिंग की डेट को लेकर. उसके बाद लॉन्चिंग के पूरी तरह सफल नहीं होने की वजह से. अब खबर ये है कि चंद्रयान 3 की तैयारियां शुरू हो गई हैं. और नवंबर, 2020 में ISRO चंद्रयान 3 लॉन्च होगा. ये मिशन्स चांद को छूने की एक कोशिश हैं. सिर्फ छूने की नहीं, प्यार से छूने की कोशिश. सॉफ्ट लैंडिंग करने की कोशिश.
हमारी धरती सूरज से बंधी हुई है. चांद हमारी धरती से बंधा हुआ है. दोनों को बांधने वाली अदृश्य रस्सी एक ही है – गुरुत्वाकर्षण का बल. इस गुरुत्वाकर्षण ने हमारे सौरमंडल में बहुत सारी चीज़ों को बांध रखा है. इन चीज़ों में से चांद सबसे नज़दीक वाली जगह है, जहां हम पहुंच सकते हैं.
चांद अगर सूरज के चक्कर काटता तो ग्रह कहलाता. लेकिन वो एक ग्रह के चक्कर काट रहा है, इसलिए उपग्रह कहलाता है. उपग्रह को अंग्रेज़ी में कहते हैं सैटेलाइट. हम इंसानों ने बहुत सारी सैटेलाइट्स बनाई हैं. बनाकर उन्हें ऑर्बिट में छोड़ा है. लेकिन ये सब हमारी बनाई सैटेलाइट्स हैं. चांद एक नैचुरल सैटेलाइट है. वो बहुत पहले से धरती के चक्कर काट रहा है. तब से, जब धरती पर इंसान तो क्या जीवन भी नहीं था.
आपने कभी सोचा है कि अखिर ऐसा सिस्टम कैसे बना? ऐसा आखिर कैसे हुआ कि चांद जैसी चीज़ पृथ्वी के चक्कर काटने लगी?
1969 में पहली बार इंसान चांद पर पहुंचा. मिशन का नाम था – अपोलो 11. उसके बाद अपोलो मिशन्स की झड़ी लग गई. एक के बाद एक कुल 6 सफल मिशन्स चांद तक गए. इन मिशन्स ने इंसान को चांद की सतह तक पहुंचाया. और ये सब हुआ 1969 से 1972 के बीच.

इन मिशन से एस्ट्रोनॉट चांद की सतह पर गए. और वहां से चट्टानें वापस लाए. 70 के दशक में इन चट्टानों को पढ़ा गया. और इस पढ़ाई से सुलझी चांद के जन्म की गुत्थी.
जन्म की दास्तानें
चांद के जन्म को समझाने के लिए कई थ्योरीज़ मैदान में हैं. पहले हम कुछ ऐवईं सी थ्योरीज़ देख लेते हैं. फिर उस थ्योरी पर आएंगे जो सबसे ज़्यादा मानी जाती है.
जनम-जनम का साथ है तुम्हारा हमारा – Co-formation Theory
कुछ भी हमेशा से तो है नहीं. सब कुछ किसी न किसी टाइम पर बना ही है. इस सबकुछ में पृथ्वी भी आती है. सौरमंडल में सबसे पहले सिर्फ सूरज था. और सूरज के आसपास धूल और गैस का बहुत बड़ा बादल था. बाद में गुरुत्वाकर्षण के कारण ये बादल कुछ जगहों पर सिमटने लगा. और इन सिमटन वाली जगहों पर ग्रह बने. उन्हीं ग्रहों में से एक है अपनी पृथ्वी.

आप इसे आटे की लोई बनने जैसा समझ सकते हैं. पहले धूल जैसा आटा होता है. फिर आटा गुंथता है और इस आटे से लोई बनती है. लगभग ऐसे ही एक बड़े गैस और धूल के क्लाउड से ग्रह बने हैं.
Co-formation theory के मुताबिक, पृथ्वी और चांद साथ में ही बने. जब पृथ्वी नाम की लोई बन रही थी, उसी वक्त उसके साथ एक छोटू सी चांद की लोई भी बन गई. Co-formation का मतलब होता है साथ में बनना. Co-formation Theory का सारा दम इस बात से आता है कि जिन मटेरियल्स से पृथ्वी और चांद बने हैं, वो एक जैसे हैं.
जाने नहीं देंगे तुझे – Capture Theory
दूसरी थ्योरी कहती है – पृथ्वी अलग बनी. और चांद अलग बना. एक दिन चांद पृथ्वी के करीब से गुज़र रहा था और पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण के जाल में फंस गया. इस तरह पृथ्वी ने एक अलग जगह, अलग समय पर बने चांद को अपने कब्जे में ले लिया. अंग्रेज़ी में कहेंगे – Capture कर लिया. इसलिए इस थ्योरी का नाम है कैप्चर थ्योरी.

ये दोनों थ्योरीज़ कुछ सवालों के जवाब तो देती हैं लेकिन इनके पास बहुत सारे सवालों के जवाब नहीं हैं.
जन्म की धमाकेदार दास्तान – Giant Impact Theory
एक थ्योरी जो सबसे ज़्यादा मानी जाती है, जो काफ़ी सारे सवालों के जवाब देती है, वो है जायंट इंपैक्ट थ्योरी. इसे जायंट इंपैक्ट हाइपोथीसिस भी कहते हैं.
एस्ट्रोनॉमी की भाषा में इंपैक्ट का मतलब होता है टक्कर. जायंट इंपैक्ट मतलब बहुत बड़ी टक्कर.

पहले अपना सौरमंडल इतना शांत नहीं था. जब सबकुछ बन रहा था, तब बहुत सारी चीज़ें इधर-उधर भाग रही थीं. बहुत तेज़ स्पीड से. इन में से बहुत सारी चीज़ें पृथ्वी से टकराईं. जायंट इंपैक्ट हाइपोथीसिस के मुताबिक –
अपनी पृथ्वी बनकर तैयार बैठी थी. नई-नई उमर. जवानी के दिन थे. अभी इसका लावा पूरी तरह से ठंडा भी नहीं हुआ था. इसी बीच एक ग्रह इसके पास आया. ये ग्रह लगभग मंगल जितना बड़ा था. इस ग्रह का नाम है ‘थिया’.

थिया आया और आकर पृथ्वी से टकरा गया. इस टक्कर से थिया के कई टुकड़े हो गए और पृथ्वी की बाहरी सतह के टुकड़े भी उखड़ आए. इस टक्कर से पैदा हुआ मलबा पृथ्वी के चक्कर काटने लगा. ये मलबा एक ही ऑर्बिट में था. गुरुत्वाकर्षण के प्रभाव में ये टुकड़े एक-दूसरे के पास खिंचे जाने लगे. एक टाइम ऐसा आया जब सारे टुकड़े चिपक कर एक गर्मागरम गेंद में तब्दील हो गए. इस गेंद का लावा ठंडा हुआ. और इससे कई चीज़ें टकराईं और इसमें दाग बन गए. इस गेंद को आज हम चांद के नाम से जानते हैं.
इस बात को क्यों मानें?
डायनासौर के खत्म हो जाने का कारण भी एक इंपैक्ट ही था. नासा के मुताबिक चांद बनाने वाला जायंट इंपैक्ट डायनासौर को खत्म करने वाले इंपैक्ट से 10 करोड़ गुना ज़्यादा शक्तिशाली था.
जायंट इंपैक्ट हाइपोथीसिस से हमें कई सवालों के जवाब मिलते हैं. जैसे कि –
1. चांद और पृथ्वी की चट्टानें एक जैसी ही हैं. कैमिस्ट्री में एक चीज़ होती है – आइसोटोपिक सिग्नेचर. आइसोटोपिक सिग्नेचर से खुलती है जन्म कुंडली. पृथ्वी और चांद की जन्म कुंडली काफी मैचिंग-मैचिंग है. मतलब दोनों एक ही मटेरियल की उपज हैं.

2. चांद का घनत्व पृथ्वी से कम क्यों हैं? ये इसलिए कि चांद पृथ्वी की बाहरी सतह से बना है. थिया ने टकराकर पृथ्वी की बाहरी सतह को ही उधेड़ा था. पृथ्वी के अंदर की घनी पट्टी को नहीं. पृथ्वी के बाहरी एलिमेंट्स कम घने हैं. अंदर ज़्यादा घने हैं. इसलिए चांद कम घने एलिमेंट्स से बना है.
क्या ये पक्की बात है?
ये बातें तो चलो ठीक हैं. लेकिन जायंट इंपैक्ट हाइपोथीसिस से हर सवाल का जवाब नहीं मिलता. कुछ मॉडल्स से पता चलता है कि अगर ऐसे टकराने से चांद बनना था तो उसका करीब 60% हिस्सा थिया होता. लेकिन चांद का मटेरियल तो पूरा पृथ्वी जैसा है.
सबसे बड़ा सवाल यही है कि टकराने के बाद थिया का हुआ क्या? अब थिया है एक काल्पनिक चीज़. तो हमें पता भी नहीं है कि थिया कैसा था? किस चीज़ से बना था?
थिया के आने का रास्ता पृथ्वी के सूरज वाला ऑर्बिट ही माना जाता है. (सोर्स – विकिमीडिया)
कुछ एक्सपर्ट्स मानते हैं कि थिया का हिस्सा पृथ्वी की ऊपरी सतह में जा घुला और सब जगह फैल गया. और उसका एक बड़ा हिस्सा चांद की कोर बन गया. कोर मतलब उसका सबसे अंदरूनी हिस्सा.
जो भी हो जायंट इंपैक्ट एक हाइपोथीसिस है. हाइपोथीसिस मतलब परिकल्पना. और थिया नाम का ग्रह एक काल्पनिक ग्रह है. इस हाइपोथीसिस से सभी सवालों के जवाब तो नहीं मिलते लेकिन ज़्यादातर सवालों के जवाब मिलते हैं. और चांद का अस्तित्व समझने लिए हमारे पास फिलहाल इससे बेहतर विकल्प नहीं है. चांद के बारे में हमें अभी भी बहुत कुछ समझना बाकी है.
वीडियो – चंद्रयान 2: लॉन्चिंग से लेकर अब तक की पूरी कहानी