दिल्ली में कार स्क्रैपिंग में घोटाला? किसी को पैसे नहीं मिले तो किसी की गाड़ी दूसरे राज्य में दौड़ रही
Delhi vehicle Scrapped Probe: पुरानी डीजल और पेट्रोल गाड़ियों को कई लोग स्क्रैप करा रहे हैं. लेकिन अब कई लोगों ने शिकायत की है कि उन्हें अपने वाहन स्क्रैपिंग का सही पैसा नहीं मिला. कई ने ये भी दावा किया है कि उनकी गाड़ियां कथित स्क्रैपिंग के बाद दूसरे राज्यों में आराम से सड़कों पर दौड़ रही हैं.

1 नवंबर से दिल्ली में 15 साल पुरानी पेट्रोल और 10 साल पुरानी डीजल गाड़ियों के चलने पर रोक लग जाएगी. ये फैसला एनसीआर के 5 जिलों में भी लागू होगा. ऐसे में जिन लोगों की गाड़ियां उम्र पूरी कर चुकी हैं या कगार पर हैं, वे उन्हें दूसरे राज्यों में बेचने लगे हैं. कुछ लोगों ने 1 नवंबर के इंतजार से पहले ही अपनी गाड़ियां स्क्रैप करानी शुरू कर दी हैं. वैसे स्क्रैप के अपने फायदे हैं. जैसे कि एक तो गाड़ी का पैसा मिल जाता है और नई गाड़ी खरीदते समय डिस्काउंट भी मिलता है. लेकिन अब इसमें एक झोल (Delhi vehicle Scrapped Probe) सामने आया है.
दरअसल, कई लोगों ने अपनी शिकायत में दावा किया है कि उन्हें गाड़ी स्क्रैपिंग के पैसे नहीं मिले हैं. अगर पैसे मिले भी हैं, तो वो भी काट कर. मतलब स्क्रैप के पैसों में टोइंग, पार्किंग, हैंडलिंग का चार्ज सेंटर ने खुद से काट लिया. इसके अलावा, अगर लोगों की गाड़ी स्क्रैपिंग सेंटर पहुंच गई, तो आगे का प्रोसेस नहीं बढ़ रहा. अब ये मामला सामने आया तो, दिल्ली की भाजपा सरकार ने रजिस्ट्रेशन व्हीकल स्क्रैपिंग सर्विस (RVSF) की जांच करने की बात कही.
इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, अधिकारियों ने बताया,
“कई लोगों को उनकी गाड़ी की स्क्रैपिंग वैल्यू नहीं मिली है. डिपार्टमेंट से परमिशन के बाद भी RVSF की तरफ से उनके व्हीकल को रिलीज नहीं किया गया. हमने ये भी पाया है कि जिन मालिकों को स्क्रैप का पैसा मिला, तो उसमें से भी टोइंग, पार्किंग चार्ज काट लिया गया. ये दिशानिर्देशों का उल्लंघन है.”
इस मामले पर पर्यावरण मंत्री मनजिंदर सिंह सिरसा ने कहा कि वह जल्द ही इस मामले की जांच के आदेश देंगे. रिपोर्ट के मुताबिक, इस जांच में परिवहन विभाग, यातायात पुलिस और एमसीडी से डिटेल्ड रिपोर्ट पेश करने के लिए कहा जाएगा. इसमें स्क्रैपिंग सेंटर के मिस-मैनेजमेंट, अनियमितताओं और संभावित चूक की जांच की जाएगी.

गाड़ी के स्क्रैप के बाद वाहन मालिकों को सर्टिफिकेट ऑफ डिपॉजिट (COD) दिया जाता है. अधिकारियों ने बताया,
“लोगों की शिकायत है कि उन्हें ये सर्टिफिकेट भी समय पर नहीं मिल रहा है. और उनकी गाड़ी का गलत COD तैयार कर बिना उनकी सहमति के उसका व्यापार किया जा रहा है.”
मतलब लोगों को भनक भी नहीं है और उनकी गाड़ी का डिपॉजिट सर्टिफिकेट दूसरे लोगों को दिया जा रहा है. जिसका फायदा उन्हें गाड़ी लेते समय मिल रहा है. आगे अधिकारी ने कहा कि एंड ऑफ लाइफ व्हीकल गाइडलाइन के मुताबिक, COD और व्हीकल स्क्रैपिंग सर्टिफिकेट उन लोगों को दिया जाता है, जो अपने वाहन को RVSF से स्क्रैप करवाते हैं. इन सर्टिफिकेट की मदद से लोगों को नए व्हीकल खरीदने पर छूट मिल जाती है. लेकिन स्क्रैपर अवैध तरीके से COD बेचकर व्यापार कर रहे हैं.
वैसे, COD से याद आया कि सर्टिफिकेट देने का झोल सिर्फ यहां तक सीमित नहीं है. माने जब दिल्ली में ODD-EVEN लगता है या दिल्ली में गाड़ी के पॉल्यूशन की सख्ती से जांच होती है, तब भी ऐसा सुनने को मिलता है कि फर्जी पॉल्यूशन सर्टिफिकेट बांटे जा रहे हैं.
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फिर से अपने COD पर आ जाते हैं. इस सर्टिफिकेट की मदद से नए गैर-परिवहन पेट्रोल/CNG/LPG वाहनों पर 20% छूट और डीजल व्हीकल पर 15% तक का डिस्काउंट मिल जाएगा. हालांकि, ये छूट भी COD मिलने की तारीख से 3 सालों तक ही मान्य है.

यहां तक की ऐसी शिकायतें भी सामने आई हैं, जिनमें स्क्रैप की गाड़ियां दूसरे राज्यों की सड़कों पर दिखने का दावा किया गया. इसे लेकर अधिकारी ने बताया,
“स्क्रैपिंग सेंटर ने कई गाड़ियों के रिकॉर्ड में स्क्रैप्ड दिखा दिया. लेकिन असल में उन गाड़ियों को दूसरे राज्यों में अवैध तरीके से बेच दिया गया. कई लोगों ने कहा कि उन्हें ऐसे मैसेज मिले हैं कि उनके नंबर वाली गाड़ियां दूसरे राज्यों में टोल टैक्स भर रही हैं.”
अधिकारी ने आगे बताया कि अगर लोग अपनी गाड़ियां स्क्रैप सेंटर से नहीं लेते हैं, तो RVSF को स्क्रैप की कीमत सरकारी खजाने में देनी होती है. लेकिन ऐसा नहीं हुआ. इसके बाद परिवहन विभाग ने कुछ महीने पहले 11 अधिकृत RVSF को कारण बताओ नोटिस भी जारी किया था. उन्होंने बताया, “स्क्रैपर्स ने अभी तक पैसा जमा नहीं किया है. इसमें बहुत बड़ी खामियां हैं. ये स्क्रैप उम्र पूरी कर चुके वाहनों के संचालन के दिशानिर्देशों के अनुसार ऑडिट और रिकॉर्ड भी नहीं रखते हैं.”
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