कभी चाय की दुकान पर तो कभी राशन के शॉप में आपने Paytm का QR कोड स्कैन करके पेमेंट किया होगा. फिर Paytm Soundbox से ये आवाज आई होगी. पेटीएम पर ....रुपये प्राप्त हुए. कभी Saregama CARVAAN पर गाने सुने होंगे. जवाब ना है तो भी इस प्रोडक्ट से परिचित होंगे. SYSKA कंपनी के हेयर केयर वाले प्रोडक्टस से भी वास्ता पड़ा होगा. घरों में पुराने एयरकंडीशनर से लेकर गीजर को स्मार्ट बनाने वाले Wi-Fi प्लग भी देखे होंगे. Sony का स्मार्ट टीवी और Google का मिनी स्पीकर भी देखा होगा. क्या इन सारे में प्रोडक्टस में कोई संबंध है? बाहर से तो पक्का नहीं मगर एक जोरदार इंडियन कनेक्शन है. वो भी कंपनी का.
White Labeling: बिजनेस का वो फंडा जिसमें काम तेरा, नाम मेरा
White Labeling मतलब बिजनेस का वो तरीका जिसमें असल कंपनी को सिर्फ मार्केटिंग और ब्रांडिंग पर फोकस करना पड़ता है. प्रोडक्शन कोई और कंपनी करती है.

भले ही ये प्रोडक्ट्स अलग अलग ब्रांड के हैं. पर इनको बनाने वाला मालिक एक है. वैसे जब भी कुछ बनाने की बात आती है, और वो भी बड़े स्तर पर तो हम क्रेडिट चाइना को दिए देते हैं. पर अब आप अपना सामान्य ज्ञान दुरुस्त कर लें. इंडिया में भी ये कमाल हो रहा है वो भी बड़े स्तर पर. अब सवाल उठता है कि इतनी बड़ी बड़ी कंपनियां हैं वो ऐसा क्यों करती हैं? थोड़ा पैसा (मतलब बहुत सारा) लगाकर अपनी प्रोडक्शन यूनिट ही क्यों नहीं सेटअप कर लेतीं. तो जनाब बिजनेस की कुछ बारीकियों में एक महीन पेंच ये भी है. और इसे white labeling के नाम से जाना जाता है. इतना पढ़कर आप पक्का गुस्से से सफेद हो चुके होंगे. गुस्सा शांत कीजिए और जानिए वाइट लेबलिंग नाम से मशहूर इस शानदार जबरदस्त जिन्दाबाद बिजनेस स्ट्रेटजी के बारे में.
क्या है white labelingबिजनेस करने का एक और तरीका. मतलब एक तरीका तो पहले से है. खुद की यूनिट बनाओ, प्रोडक्शन करो, मार्केटिंग करो, ब्रांडिंग करो वगैरा-वगैरा. दुनिया जहान की कई कंपनियां करती हैं. सोनी और गूगल भी. दूसरा तरीका है कि प्रोडक्ट किसी से बनवा लो. फीचर से लेकर क्वालिटी कंट्रोल तक सब कुछ आपका मगर बनाएगा कोई और. प्रोडक्ट बनवा लो और फिर उसपर अपनी कंपनी के नाम का लेबल चिपका दो.
इसमें भी कोई बुराई नहीं क्योंकि इस तरीके से कंपनी को सिर्फ मार्केटिंग और ब्रांडिंग पर फोकस करना पड़ता है. प्रोडक्शन से लेकर सर्विस के लिए ऐसा किया जाता है और इसे कहते हैं white labeling. लेबलिंग तो समझ आ गया मगर वाइट लिखने के पीछे भी एक वजह है. ये कोई दो नंबर का तरीका नहीं है. सब खुला खेल फर्रुखाबादी है. सब पेपर पर होता है. प्रोडक्ट किसने बनाया किसके लिए बनाया ये सब तय होता है. बनाने वाली कंपनी और बनवाने वाली कंपनी पूरा काम एक नंबर में करती हैं. इसलिए इसको वाइट लेबलिंग कहा जाता है.
आप शायद अभी भी कहोगे कि भईया हम अभी भी नहीं मानते तो जनाब हम आपको लेकर चलते हैं RIOT LABZ में. बोले तो Real internet of things labz. इस नाम से शायद संपट (आपकी समझ के लिए. अर्थ-समझ) ही पड़ेगा तो Okater नाम से जान लीजिए. स्मार्ट वाई-फाई प्लग है जो यही कंपनी बनाती है.

यही लैब बोले तो कंपनी Paytm का साउंडबॉक्स, SYSKA के लिए hair straightener और hair trimer बनाती है. Sony और गूगल के लिए स्मार्ट प्लग भी यही कंपनी बनाती है. ये सब रहने भी दें तो आपके घर में जो बिजली का मीटर है, हो सकता है इन्हीं का बनाया हो. 3 यूनिट हैं इनकी नोएडा में. फ्लिपकार्ट वाले बिन्नी भईया और स्पाइस टेलिकॉम इनके इन्वेस्टर हैं.

अब तो भरोसा हुआ ना. आखिर में एक जरूरी बात. ये कोई प्रचार-प्रसार नहीं है. हम white labeling का लेबल निकाल रहे थे. RIOT उसमें से निकल आया सो बता दिया.
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