Delhi Red Fort car blast को सरकार ने आतंकी हमला मान लिया है. केस की जांच कई लेवल पर हो रही है और अपडेट भी लगातार आ रहे हैं. ऐसा ही एक अपडेट आतंकियों के आपस में बात करने को लेकर भी आ रहा है. रिपोर्ट्स हैं कि आतंकी बातचीत के लिए Session App का इस्तेमाल करते थे. लेकिन क्यों, मतलब मार्केट में जब WhatsaApp और Telegram जैसे ऐप्स मौजूद हैं तो फिर Session ऐप ही क्यों. समझने की कोशिश करते हैं.
Telegram-वॉट्सऐप नहीं, आतंक की साजिश अब Session App पर रची जा रही है! दिल्ली गवाह है
Session App में लॉगिन के लिए मोबाइल नंबर या ईमेल की जरूरत नहीं होती है. ऐप हर यूजर के लिए के यूनिक यूजर नेम बनाता है जिसके जरिए बातचीत होती है. चैट का मेटाडेटा सेव नहीं होता. मेटाडेटा से मतलब डिब्बा के अंदर डिब्बा वाला मामला समझ लीजिए.


Session ऐप गूगल प्ले स्टोर और iOS पर डाउनलोड के लिए उपलब्ध है. 4.5 रेटिंग के साथ 12 लाख से ज्यादा डाउनलोड भी हैं. ऐप साल 2020 से मार्केट में उपलब्ध है और इसे Swiss बेस्ड Session Technology Foundation ने डेवलप किया है. कंपनी की वेबसाइट के मुताबिक Alexander Linton इसके प्रेसिडेंट हैं.
ये भी पढ़ें: उमर नबी ने ही किया था लाल किले के पास विस्फोट, CCTV फुटेज में दिखा धमाके का खौफनाक मंजर
परिचय की रिवायत पूरी हुई. अब जानते हैं कि ऐप में क्या खास है. ऐप में लॉगिन के लिए मोबाइल नंबर या ईमेल की जरूरत नहीं होती है. ऐप हर यूजर के लिए के युनीक यूजर नेम बनाता है जिसके जरिए बातचीत होती है. एक डिवाइस से दूसरे डिवाइस में लॉगिन करने के लिए रिकवरी पासवर्ड का ऑप्शन होता है. इस रिकवरी पासवर्ड को यूजर को सेव करके रखना होता है. अगर भूल गए तो फिर अकाउंट भी भूल जाइए. मतलब यूजर की प्राइवेसी का खूब ध्यान रखा गया है. लेकिन इस किस्म का फीचर तो टेलीग्राम में भी मिलता है तो फिर अलग क्या हुआ. इसका जवाब ऐप की टैगलाइन में मिलता है.

ऐप की टैगलाइन है Send Messages, Not Metadata. मतलब ऐप दो लोगों के मैसेज ही इधर से उधर करता है. बाकी कुछ भी नहीं. चैट का मेटाडेटा सेव नहीं होता. मेटाडेटा से मतलब डिब्बा के अंदर डिब्बा वाला मामला समझ लीजिए. उदाहरण के लिए जब आप कैमरे से फोटो खींचते हैं तो सिर्फ फोटो क्लिक नहीं होती. इसके साथ उस जगह का डिटेल, तारीख, समय, फोटो का साइज, कैमरे का मॉडल भी सेव होता है.
इसे आप मानव शरीर का डीएनए भी कह सकते हैं. अब ऊपर से भले कुछ ना दिखे मगर यही डेटा है जो डिजिटल दुनिया में इस फोटो की पहचान है. मेटाडेटा लैपटॉप की फाइल से लेकर, तस्वीर, वीडियो, ऑडियो, वेब पेज में मौजूद होता है. डीएनए के जैसे यह भी हर फाइल के लिए यूनिक होता है. जब आप व्हाट्सऐप जैसे ऐप पर बात करते हैं तो हर मैसेज का मेटाडेटा बनता है. मसलन कब भेजा, किसने भेजा, किसे भेजा, कब मिला वगैरह-वगैरह. ये बहुत जरूरी जानकारी है.
Session ऐप इस जानकारी को सेव नहीं करता है. इसे आप लैपटॉप के नोटपैड के जैसे समझ लीजिए. आप जा इस पर लिखते हैं तो वो प्लेन टेक्स्ट होता है. मतलब इसके अंदर कोई सीक्रेट डिटेल नहीं होता है. Session ऐप भी यही करता है. ऐप आपका आईपी एड्रैस भी सेव नहीं करता. माने मोबाइल नेटवर्क से लेकर वाईफाई और डिवाइस की पहचान भी सेव नहीं करता है. इसके साथ में E2E encryption भी होता है. माने दो लोगों की बातचीत बस उन दोनों के बीच में रहती है. बीच में कोई नहीं पढ़ता. ऐसा दावा किया जाता है.

साफ समझ आता है कि ऐप अपने यूजर्स की प्राइवेसी में नहीं घुसता है. इसलिए ही आतंकी आपस में बातचीत के लिए इसी ऐप का इस्तेमाल कर रहे थे. हालांकि ऐप बाकी फीचर्स में दूसरे लोकप्रिय ऐप्स के मुकाबले काफी कमजोर है. जैसे इसमें वीडियो और ऑडियो कॉल की सुविधा अभी तलक नहीं है. फाइल शेयर करने की लिमिट भी सिर्फ 10MB है. WhatsApp जैसे ऐप्स में इसकी लिमिट 2GB तक है.
इस केस में आगे जो भी अपडेट होंगे. वो हम आपसे साझा करेंगे.
वीडियो: दिल्ली कार ब्लास्ट की तबाही का सबसे साफ़ मंज़र इस सीसीटीवी वीडियो में दिखा...





















