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ITR में मकान के किराए वाले कागज नहीं लगाए तो 7 साल की जेल? इस वीडियो का सच पता लगा

हम आयकर रिटर्न (ITR) में HRA क्लेम को लेकर चल रहे दावों की बात कर रहे हैं. इनमें ऐसा कहा जा रहा है कि आयकर विभाग नया नियम लाया है. जिसके तहत अब कागज नहीं लगाए तो 200 फीसदी जुर्माना और 7 साल जेल की चक्की पीसनी पड़ेगी.

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इनकम टैक्स के दावों की रील का सच

सोशल मीडिया पर एक ज्ञान की आजकल बाढ़ आई हुई है जिसका संबंध सीधे आपकी इनकम से है. दावों की दौड़ और रीलों की रेल में इनकम टैक्स के नए नियम की बात हो रही है. इसमें पेनाल्टी और सजा का डर दिखाया जा रहा है. अंदाजा आपने लगा ही लिया होगा कि हम बीते वित्तीय वर्ष के आयकर रिटर्न में HRA क्लेम को लेकर चल रहे दावों की बात कर रहे हैं. ऐसा कहा जा रहा है कि आयकर विभाग ‘नया’ नियम लाया है. इसके तहत अब सबूत वाले कागज नहीं लगाए तो जेल में चक्की पीसिंग. आइए समझ ही लेते हैं कि क्या मामला है?

क्या है सोशल मीडिया का दावा?

सोशल मीडिया पर विशेषकर इंस्टाग्राम पर हर दूसरी फाइनेंस की रील में यही बात बताई जा रही है. कहा जा रहा है कि इनकम टैक्स विभाग इस बार आपके हर क्लेम का प्रूफ मांगेगा. जैसे बीमा पॉलिसी का कागज या मेडिक्लेम पॉलिसी का सबूत. ‘सबूत’ शब्द को थोड़ा और समझ लेते हैं. जब भी आप इनकम टैक्स की डिटेल भरते हैं तो वहां आपको नॉर्मल डिटेल्स ही देनी होती है. जैसे मेडिकल पॉलिसी का प्रीमियम या बीमा पॉलिसी का अमाउन्ट. पॉलिसी के कागजात अपलोड करने को नहीं कहा जाता है. ‘अब करना होगा’ ऐसा कई रील में बताया जा रहा है. लिस्ट भी लगाई जा रही है. यहां तक तो ठीक है मतलब चलो मान लिया. 

New Income Tax Rules for HRA that everyone you should know: real truth
सोशल मीडिया पर कागजात के दावे का स्क्रीन शॉट 

मगर HRA के नाम पर तो सीधे-सीधे डराया जा रहा है. इसमें भी कागज लगाने की बात कही जा रही है. मां के नाम पर या भाई के नाम पर HRA लिया तो ‘200 फीसदी जुर्माना’ और ‘7 साल की सजा’ की बात भी कही जा रही है. और ये सब ऐसे बताया जा रहा है जैसे ये कोई नया नियम है. अब हम बताते क्या सच है मगर मगर जरा HRA समझ लीजिए.

House Rent Allowance (HRA) मतलब किराये में छूट जो आयकर कि धारा Section 10(13A) के तहत दी जाती है. ये होम लोन में मिलने वाली छूट के जैसे ही है. इस छूट के लिए आयकर दाता को किराये के घर का पूरा पता, महीने का किराया जैसी डिटेल देनी होती है. अगर साल भर का किराया 1 लाख से ऊपर है तो किराये की रसीद के साथ मकान मालिक का पैन कार्ड भी चाहिए होगा. 

लेकिन ये सब कहां देना होता है. आपके नियोक्ता को. मतलब आप जहां नौकरी करते हैं वो आपसे ये रसीद मांगते हैं. मांगना बनता भी है. ताकि कोई फर्जीवाड़े की आशंका नहीं रहे. वहां तो आपको मेडिकल और बीमा के डिटेल्स भी देनी होती है. भाई क्यों नहीं देना होगा. सरकार के पास तो कई तरीके हैं आपकी जानकारी को जांचने के. उसके अधिकार की बात है कि वो बीमा कंपनी से पूछ सकती है कि फलां पॉलिसी सही है गलत. प्रीमियम कितना है वगैरा-वगैरा. लेकिन कंपनी के पास ऐसा कुछ नहीं. इसलिए उसे कागज चाहिए होते हैं. आपको लग रहा होगा कि ये सब तो पहले जैसा ही है, तो नया क्या है? अगर हम नौकरी नहीं करते तो क्या हमें पोर्टल पर कागज अपलोड करने हैं? क्या नियोक्ता ये कागज अपलोड करेगा. नहीं ना. हम बताते क्या है.  

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व्यू का चक्कर बाबू भईया

किसी एक ने कुछ कहा और उसकी रील पर आ गए व्यूज. बस फिर क्या. कोई ओर-छोर नहीं. रील बनाए जाओ और व्यूज गिनाए जाओ. कहीं जाने की जरूरत भी नहीं थी, जो अगर इनकम टैक्स का पोर्टल ओपन करके देख लेते. तस्वीर में आप देख सकते हैं कि कहीं भी किसी भी डिटेल पर डॉक्युमेंट्स लगाने का कोई ऑप्शन है ही नहीं. मतलब कागजात वाली बात तो खत्म ही हो गई.  

इनकम टैक्स पोर्टल
इनकम टैक्स पोर्टल  

अब रही बात HRA क्लेम में मां या भाई के होने की. ये व्यवस्था भी पुरानी है. लेकिन हमें लगा कि कहीं कुछ ऐसा तो नहीं जो हमसे रह गया तो हमने बात की CA पीयूष गोयल से जो साल 2013 से प्रैक्टिस कर रहे और Financial Management at Vidhyoday Education में प्रोफेसर भी हैं. बकौल पीयूष,

इनकम टैक्स में सबूत के तौर पर कोई कागज नहीं मांगा जाता है. हां इनकम टैक्स हमेशा ये सुझाव देता है कि आप जिस बेस पर क्लेम करने वाले हैं वो कागजात आपके पास होने चाहिए. डॉक्यूमेंट अपलोड का कोई ऑप्शन ही सिस्टम में नहीं है. परिवार के सदस्यों को किराया देने की बात पहले भी थी और अभी भी इसमें कोई बदलाव नहीं है. हां, अगर किराया लेने वाला आयकर के दायरे में आता है तो उसे भी रिटर्न दाखिल करना होगा और किराये से हो रही आमदनी भी बतानी होगी. 

पीयूष ने 2013 के बजरंग प्रसाद रामधरानी केस का हवाला भी दिया जिसमें परिवार के सदस्य को किराया देने की बात हुई थी. पेनाल्टी और सजा को लेकर उन्होंने बताया,

200 फीसदी का जुर्माना और 7 साल की सजा का प्रावधान तो पहले से है. और ये सिर्फ HRA के लिए नहीं है. मतलब अगर रिटर्न फ़ाइल करते समय कोई भी गड़बड़ी हुई तो अधिकतम जुर्माना 200 फीसदी होगा. मगर इसमें भी आयकर विभाग आपके दरवाजे पर नहीं धमकेगा. विभाग आपको नोटिस देगा और आपको जवाब देने का टाइम भी मिलेगा. अगर जवाब संतोषजनक नहीं तो फिर जुर्माना गड़बड़ी के हिसाब से लगेगा. सीधे 200 फीसदी नहीं लग रहा. बाकी जैसा फ्रॉड वैसी सजा का भी प्रबंध है पहले से.

कहने का मतलब बेकार में चिंता करने की जरूरत नहीं. आराम से रिटर्न भरिए. तारीख भी 15 सितंबर तक बढ़ गई है. जो आप नए वाले टैक्स रिजीम में हैं तो फिर तो कोई बात ही नहीं. उधर HRA है ही नहीं.

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