कुछ समय पहले तक फालतू के ज्ञान का, बिला-वजह की सलाहों का सबसे माकूल ठिकाना WhatsApp हुआ करता था. इसे वॉट्सऐप यूनिवर्सिटी कहा गया. लेकिन आजकल ऐसे ज्ञान का सबसे बड़ा सोर्स रील और शॉर्ट्स हो गए हैं. शॉर्ट्स के शूरमा और रील के रंगबाज कुछ भी बोलते हैं. कभी-कभी तो इतना बोलते हैं कि सरकार को केस करना पड़ता है. ऐसा ही एक ज्ञान आजकल मोबाइल के स्क्रीनशॉट (Screenshot as Evidence) को लेकर दिया जा रहा है. एकदम वैसा ही जैसे कुछ सालों तक कॉल रिकॉर्डिंग को लेकर दिया जाता था. जितने शॉर्ट्स उतने लंबे ज्ञान वाला मामला लगता है.
स्क्रीनशॉट को सबूत के तौर पर पेश करने जा रहे हो तो ये गलती मत कर देना!
क्या स्क्रीनशॉट को एक कानूनी सबूत (Screenshot as Evidence) के तौर पर पेश किया जा सकता है. अगर हां तो कौन सी धारा में और किस तरीके से. क्या स्क्रीनशॉट को डिजिटल सबूत माना जाएगा. अगर हां तो क्या उसके लिए असल डिवाइस की जरूरत पड़ेगी. जवाब एक्सपर्ट से ही जानेंगे.

हमें लगा इस पर बात करना जरूरी है. माने क्या स्क्रीनशॉट को एक कानूनी सबूत के तौर पर पेश किया जा सकता है. अगर हां तो कौन सी धारा में और किस तरीके से. क्या स्क्रीनशॉट को डिजिटल सबूत माना जाएगा. अगर हां तो क्या उसके लिए असल डिवाइस की जरूरत पड़ेगी. जवाब एक्सपर्ट से ही जानेंगे.
क्या होता है स्क्रीनशॉट?फोन की स्क्रीन की फोटो जो आमतौर पर पॉवर बटन और वॉल्यूम बटन को एक साथ प्रेस करके खींची जाती है. मतलब ये पारंपरिक तरीका है लेकिन मॉडर्न स्मार्टफोन में गूगल असिस्टेंस और SIRI को बोलकर भी ऐसा किया जा सकता है. फोन की पीठ पर धप्पा मारकर भी ऐसा किया जा सकता है. पहले-पहल तो सिर्फ एक स्क्रीन शॉट लिया जा सकता था मगर आजकल पूरे पेज को कवर किया जा सकता है. बाकी देसी तरीका तो है ही. माने दूसरे फोन से फोटो खींच लो.

स्क्रीनशॉट तो ले लिया मगर क्या उसे सबूत के तौर पर इस्तेमाल कर सकते हैं विशेषकर कानूनी प्रोसेस में. ये सवाल इस लिए भी मौजू है क्योंकि AI के जमाने में स्क्रीनशॉट को एडिट करना स्क्रीन शॉट कैप्चर करने से भी आसान है. भतेरे AI टूल्स उपलब्ध हो गए हैं जो मनमाफिक टेक्स्ट स्क्रीनशॉट में भर सकते हैं. फिर असली-नकली का पैसा कैसे चलेगा. इसलिए हमने बात की सुप्रीम कोर्ट में वकील प्राची प्रताप से. प्राची लगातार साइबर अपराधों से लेकर जटिल कानूनी पचड़ों पर बात करती रहती हैं. जानते हैं उन्होंने क्या बताया.

# नाम वाला स्क्रीनशॉट किसी काम का नहीं- ये सबसे जरूरी पॉइंट है. माने आपके पास स्क्रीनशॉट है फिर वो चाहे एसएमएस का हो या वॉट्सऐप का. अगर ऊपर स्क्रीन पर सामने वाले का नाम लिखा है तो वो किसी काम का नहीं. थोड़ा आसान करते हैं. स्क्रीनशॉट अगर आपके कांटेक्ट लिस्ट में से किसी का है तो वो माना नहीं जाएगा. अरे भाई आपका फोन, आपकी कांटेक्ट लिस्ट. आप जिस नाम से सेव कर लो. गंगाधर को शक्तिमान लिख लो या शक्तिमान को गंगाधर. वही नाम स्क्रीन पर दिखेगा. इसलिए अगर आपको स्क्रीनशॉट को सबूत के तौर पर इस्तेमाल करना है तो उस नाम को फोन बुक में से हटा दीजिए. सिर्फ नम्बर सेव कीजिए जो स्क्रीनशॉट के सबसे ऊपर फड़फड़ाता नजर आयेगा.

# इलेक्ट्रॉनिक सबूत- स्क्रीनशॉट को भारतीय न्याय संहिता (BNS) के section 63 में सबूत के तौर पर मान्यता दी गई है. हालांकि इसका एक प्रोसेस है. मतलब कोर्ट में जेब से फोन निकालकर जज साहब के नहीं कह सकते कि जनाब ये रहा सबूत.
# Sec 63 (4) (C) के अन्तर्गत स्क्रीनशॉट को सर्टिफिकेट की जरूरत होगी. इसके दो पार्ट होते हैं. (A) जिसमें स्क्रीनशॉट लेने वाला बताता है कि इसे उसी ने कैप्चर किया है. किस डिवाइस पर किया है और कब किया है वगैरा-वगैरा. पार्ट (B) मतलब इस सबूत को एक्सपर्ट से ओके मिलना चाहिए. एकदम फोरेंसिक एक्सपर्ट के माफिक. इसमें भी सबूत की Hash Function Value होनी चाहिए. मतलब हर बारीक डिटेल जैसे कौन सा फोन है. मॉडल नंबर से लेकर IMEI और स्क्रीनशॉट की तारीख से लेकर समय तक. ये सारी जानकारी स्क्रीनशॉट या फोटो में होती ही है बस वो एक्सपर्ट से वेरिफाई होना चाहिए.
# एक और जरूरी बात. स्क्रीनशॉट जिस डिवाइस से लिया गया है, अगर वो सबूत के तौर पर पेश किया गया तो फिर पार्ट B सर्टिफिकेट की जरूरत नहीं. साल 2020 में Arjun Panditrao vs Gorantyal केस में सुप्रीम कोर्ट ने साफ किया था कि अगर डिवाइस जमा किया गया था तो उसे ओरिजनल रिकॉर्ड के तौर पर माना जाएगा.
तो जनाब इत्ता सब आपके पास है तो फिर कोई दिक्कत नहीं. वरना उस स्क्रीनशॉट को डस्ट बिन का रास्ता दिखा दीजिए.
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