The Lallantop
लल्लनटॉप का चैनलJOINकरें

ED वाले खोल ही लेंगे अरविंद केजरीवाल का iPhone, Apple वाले भी कुछ नहीं कर पाएंगे?

ED ने दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल के iPhone को ओपन करने के लिए Apple से मदद मांगी है. कंपनी ने हाल-फिलहाल तो कोई हेल्प नहीं की है लेकिन क्या भविष्य में भी ऐसा ही होगा. क्या कहता है भारत का कानून और सरकारी एजेंसियों के पास और क्या विकल्प हैं.

post-main-image
अरविंद केजरीवाल के आईफोन को लेकर ED एप्पल से मदद मांग रही है

दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल का iPhone आजकल (Arvind Kejriwal iPhone) खूब चर्चा में है. ED ने उनसे फोन का पासवर्ड मांगा और उन्होंने शेयर करने से मना कर दिया. ED मदद के लिए पहुंच गई Apple के पास जहां से फिलहाल के लिए तो लिए तो कोई माकूल जवाब नहीं मिला. ये खबर आपने अभी तक पढ़ ली होगी. इसलिए इसको अल्पविराम देते और बात करते हैं आईफोन की. क्योंकि ऐसा कोई पहली बार नहीं हुआ है जब एप्पल ने आईफोन का पासवर्ड क्रैक करने या डेटा देने से मना किया हो. इसके पहले भी दो बार ऐसा हुआ है और खूब बवाल कटा है.

पहली बार साल 2015-16 में San Bernardino गोलीबारी के केस के सिलसिले में अमेरिका की केन्द्रीय जांच एजेंसी FBI ने आईफोन के डेटा के लिए एप्पल से कहा. साल 2019-20 में भी Pensacola गोलीबारी के अपराधियों के आईफोन डेटा के लिए FBI एप्पल से हेल्प चाह रही थी लेकिन कंपनी ने यूजर्स की निजता का हवाला देते हुए मना कर दिया. साल 2020 वाले मामले में अमेरिकी सरकार और एप्पल के बीच तनातनी इतनी ज्यादा बढ़ गई कि तब के राष्ट्रपति Donald Trump ने कंपनी को खूब खरी खोटी सुना दी थी. ऐसे में ये समझना जरूरी हो जाता है कि आखिर ऐसा क्या ही कर रखा है एप्पल ने जो आईफोन ओपन करना असंभव जैसा है.

Data Encryption प्लस डेटा प्रोटेक्शन

आईफोन में एक फीचर होता है जिसे कहते हैं Erase Data. ये फीचर ऑन है और अगर किसी ने 10 बार से ज्यादा पासवर्ड डाला तो फोन रीसेट हो जाएगा और सारा डेटा साफ. इसके साथ में जितने बार गलत पासवर्ड डाला जाता है उतनी बार उस आईफोन को ओपन करने का टाइम बढ़ता जाता है. ये टाइम कुछ मिनट से लेकर कई सालों तक का हो सकता है. इसके साथ कंपनी डेटा को एन्क्रिप्ट भी करती है. एन्क्रिप्ट मतलब डेटा अपने ओरिजनल फॉर्मेट में नहीं बल्कि ciphertext फॉर्मेट में सेव होता है. कंपनी के मुताबिक, इस डेटा को वो खुद भी Decrypt नहीं कर सकती है. हालांकि, सॉफ्टवेयर वर्जन iOS 7 से पहले डेटा का सिर्फ बैकअप होता था मगर IOS 9 से कंपनी ने इसको एन्क्रिप्ट कर दिया. इतना पढ़कर तो लगेगा कि आईफोन का डेटा मिलना असंभव होगा मगर ऐसा है नहीं. दो तरीके हैं.

आईफोन
हैकिंग और legacy कॉन्टेक्ट

हैकिंग शब्द से अचंभित नहीं होना है क्योंकि साइबर क्राइम से इतर एक काम की हैकिंग भी होती है. एथिकल हैकिंग, जिसका इस्तेमाल ऐसे ही अपराधियों के डेटा को निकालने के लिए होता है. हालांकि, ये बहुत महंगा है. साल 2015-16 में San Bernardino गोलीबारी में जब एप्पल ने आईफोन ओपन करने के लिए “back door” नाम का सॉफ्टवेयर बनाने से मना किया तो एफ़बीआई ने हैकर्स का सहारा लिया. ऑस्ट्रेलिया की सुरक्षा फर्म Azimuth ने आईफोन ओपन करके दिया. एफ़बीआई को इसके लिए तब के 1 मिलियन डॉलर लगभग 7 करोड़ रुपये खर्च करने पड़े थे. वैसे फोन ओपन कैसे हुआ उसको लेकर आज भी सवाल है. Azimuth ने कहा कि उसने फोन के चार्जिंग पोर्ट में कुछ खामी तलाशी और फिर एक प्रोग्राम रन करके लाखों कॉम्बिनेशन से पासवर्ड पता लगाया था. मतलब Azimuth भी फोन के अंदर नहीं घुस पाई. ये एक अकेला मामला है जो अभी तक सामने आया है.

legacy कॉन्टेक्ट

हैकिंग से इतर एप्पल आईफोन ओपन करने के लिए एक आधिकारिक जुगाड़ भी देती है. दरअसल, कंपनी के पास हर साल लाखों लोग फोन ओपन करने की फ़रियाद लेकर आते हैं. तंग आकर कंपनी ने साल 2021 में iOS 17 के साथ legacy कॉन्टैक्ट फीचर लॉन्च किया. इस फीचर की मदद से अगर यूजर ने अपने आईफोन में जिसका भी नंबर रजिस्टर किया होगा. वो तय शुदा प्रोसेस के साथ उस आईफोन को ओपन कर सकता है. ये फीचर उन लोगों के लिए बहुत मददगार है जिनके अपनों की किसी भी वजह से मौत हो जाती है. इतना पढ़कर आपके मन में फिर सवाल होगा कि अरविंद केजरीवाल के आईफोन का क्या होगा. बताते हैं क्योंकि स्टोरी की शुरुवात में हमने इसी के लिए तो अल्पविराम लिया था. क्योंकि ये एक कानूनी मामला है इसलिए हमने रुख किया सुप्रीम कोर्ट में वकील प्राची प्रताप का. उनसे हमें कुछ जरूरी बातें पता चलीं.

# सरकारी एजेंसियां किसी से भी पासवर्ड नहीं मांग सकती हैं. कहने का मतलब ये तो अपने खिलाफ सबूत देने जैसा हुआ. Sanket Bhadresh Modi v. CBI के केस में दिल्ली हाईकोर्ट ने इस मामले पर टिप्पणी करते हुए कहा था कि सीबीआई किसी आरोपी को पासवर्ड या इसी प्रकार की जानकारी देने के लिए मजबूर नहीं कर सकती है. संविधान का Article 20(3) आरोपी को इसके लिए सुरक्षा देता है. Article 20(3) के मुताबिक किसी भी अपराध के आरोपी व्यक्ति को अपने खिलाफ गवाह बनने के लिए मजबूर नहीं किया जाएगा. 

लेकिन इसका ये मतलब बिल्कुल नहीं कि एजेंसी के हाथ बंधे हुए हैं. संबंधित एजेंसी किसी भी एक्सपर्ट या एजेंसी की मदद से फोन या दूसरे इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस को ओपन करवा सकती है.

कुछ ऐसा ही कानून अमेरिका में भी है. अमेरिका के 5th Amendment के मुताबिक, एजेंसियां आरोपी से पासवर्ड नहीं मांग सकती हैं. वहां का संविधान आरोपी को चुप रहने की आजादी देता है. संशोधन किसी आपराधिक मामले में खुद के ख़िलाफ़ गवाह बनने के लिए मजबूर करने से भी रोकता है.  

लेकिन इसमें भी एक लेकिन है. कुछ केस में 5th Amendment फेस आईडी और फिंगरप्रिन्ट स्कैन पर लागू नहीं होता. मतलब वहां भी एजेंसी के पास विकल्प हैं.

इसके इतर प्राची से हमें एक और दिलचस्प बात का पता चला. US Senator Ron Wyden ने अमेरिकी सरकार को पत्र लिखकर बताया था कि एप्पल और गूगल जैसी कंपनियों को कई देशों की सरकारें डेटा देने के लिए फोर्स करती हैं. Ron Wyden इसी प्रैक्टिस को अमेरिका में अपनाने की बात अपने पत्र में कर रहे थे.

Ron Wyden के पत्र के जवाब में कंपनियों ने भी इस बात को माना था. कहने का मतलब यूजर की निजता और एजेंसियों की जरूरत को लेकर विकल्प बराबर खुले हुए हैं.

आगे इस केस में जो भी अपडेट होगा. वो हम आपसे साझा करते रहेंगे.

ये भी पढ़ें:- केजरीवाल ने मना किया, तो ED उनका iPhone खुलवाने Apple के पास पहुंची, एप्पल वाले क्या बोले?

वीडियो: मोदी सरकार पर विपक्ष ने iPhone हैकिंग का आरोप लगाया, अब एप्पल ने बड़ा बयान दिया है