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विनोद कुमार शुक्ल की एक कविता 'जो मेरे घर कभी नहीं आएंगे'

विनोद कुमार शुक्ल वो कवि जो एक जिस्म में कई हुनर लिए था

जो मेरे घर कभी नहीं आएंगे मैं उनसे मिलने उनके पास चला जाऊंगा एक उफनती नदी कभी नहीं आएगी मेरे घर नदी जैसे लोगों से मिलने नदी किनारे जाऊंगा कुछ तैरूंगा और डूब जाऊंगा