Yuvraj Birthday Special जब अपनी फील्डिंग से युवी ने दिलाई टीम इंडिया को जीत (गेटी फाइल)
इंडियन क्रिकेट दो भागों में बांटा जा सकता है. एक वो जहां इंडिया कब जीतते जीतते हार जाए, भरोसा नहीं था. जब सचिन आउट तो इंडिया आउट. जब टेल-एंडर को 1 ओवर में 2 रन बनाने होते थे तब भी जीतने का भरोसा नहीं रहता था. फिर दूसरे भाग की शुरुआत हुई. कोच जॉन राइट ने हमें जूझना सिखाया. गांगुली ने अक्खड़पना सिखाया. सचिन और सहवाग ने मिलकर सामने वाले बॉलिंग अटैक को तहस नहस करने का जिम्मा उठाया और नेहरा, ज़हीर, भज्जी ने चक्रव्यूह रचना शुरू किया. टीम में कुछ ऐसे जीव आये जो बॉल के पीछे भागने में नहीं बल्कि उस पर झपट्टा मारने में यकीन रखते थे. ये इसी दूसरे हिस्से की कहानी है. साल 2002. चैम्पियंस ट्रॉफी. ये अगले साल होने वाले वर्ल्ड कप का रिहर्सल था. टूर्नामेंट श्रीलंका में हो रहा था. इंडिया सेमी फाइनल में था. सामने था साउथ अफ्रीका. धुरंधरों से लैस टीम. गिब्स, स्मिथ, कालिस, जोंटी रोड्स, बाउचर, पॉलक, एलन डोनाल्ड, एंटिनी. ये कच्चे खिलाड़ी नहीं थे. ये विजेता टीम थी. इसके सामने कच्चे और पक्के प्लेयर्स की इंडियन टीम. इंडिया ने टॉस जीता और पहले बैटिंग की. सहवाग और गांगुली की तेज़ ओपनिंग पार्टनरशिप और मिडल ऑर्डर में द्रविड़ और युवराज की बैटिंग की बदौलत इंडिया ने 50 ओवर में साउथ अफ्रीका के सामने 261 का टार्गेट रखा. ये टार्गेट आज तेज़ पिचों और तगड़े बल्लों के सामने औसत लगता है मगर उस वक़्त ये विनिंग टार्गेट था. लिहाज़ा इंडिया बॉलिंग करने एक्स्ट्रा कॉन्फिडेंस के साथ उतरी.

साउथ अफ्रीका का पहला विकेट गिरा तीसरे ओवर की आखिरी गेंद पर . ज़हीर खान की शॉर्ट ऑफ़ द लेंथ गेंद, ऑफ स्टम्प के बाहर. स्मिथ ने बल्ला घुमाया और पॉइंट के सर के ऊपर से निकालने की कोशिश की. पॉइंट पर खड़ा युवराज सिंह हवा में उछल गया. और इसी एक कैच ने हवा का रुख समझा दिया. अपने सर के ऊपर से जाती गेंद को फुल लेंथ स्ट्रेच करते हुए अंगुलियों के बीच कैद कर ली. मोहम्मद कैफ़ कवर से दौड़ता हुआ आया और युवराज पर चढ़ गया. उसकी दौड़ में उत्साह से ज़्यादा अचरज था. स्टैंड्स में बैठी जनता उठा खड़ी हुई और कुर्सियां हवा में लहराने लगी. तब IPL का बिगुल नहीं बजता था. तब समर्थन दिखाने का यही एक तरीका था. टीवी पर देख रही जनता ने ऐसा कैच पहली बार देखा था. यहां अब तक ज़मीन पर कोई गिरने को राज़ी नहीं था. ये लड़का तो कूदा और गेंद को पकड़ भी लिया. बड़ा मैच. बड़ा कैच. साउथ अफ्रीका 14 पर 1. लेकिन इसके बाद इंडियन बॉलिंग की दुर्गति शुरू हुई. हर्शल गिब्स ने 116 रन बनाये. 119 गेंद में. आशीष नेहरा और कुम्बले महंगे साबित हुए. कालिस ने भी 97 रन बनाये. इन दोनों के बीच 178 रन की पार्टनरशिप हुई. इंडिया का मनोबल तोड़ने के लिए ये पार्टनरशिप बहुत थी. गिब्स रिटायर्ड हर्ट हुए. सहवाग ने द्रविड़ के हाथों कालिस को सेंचुरी से तीन रन पहले कैच करवाया. साउथ अफ्रीका को 71 गेंद पर 68 रन चाहिए थे. उनके सामने फाइनल मुंह बाए खड़ा था. इंडिया का वापसी का टिकट कट चुका था. हरभजन की गेंद. लूप खाती हुई गेंद, मिडल-ऑफ स्टम्प की लाइन में. रोड्स ने स्वीप किया. और युवराज सिंह ने अपने जीवन का सबसे शानदार करतब दिखाया. लेग स्लिप में खड़ा युवराज अन्दर की ओर भागा और ज़मीन से ठीक पहले गेंद को एक हाथ से पकड़ लिया. ये हतप्रभ करने वाला कैच था. ये वो करतब था जिसे पर्दे पर देखते ही लोग अपनी जेब से सिक्के निकाल कर फेंक देते हैं. ये वैसी कलाकारी थी जिसपर राजा-महाराजा अपने गले से मोतियों की माला उतारकर कलाकार के गले में डाल देते हैं. इसी बीच गांगुली का दिमाग चला. बॉलिंग पर सहवाग को लाया गया. फ़्लैट, क्विक ऑफ स्पिन. बिना रुके. एक लय में. ऐसा जैसे किसी बॉलिंग मशीन को सेट कर दिया गया हो. डेथ ओवर्स में जब साउथ अफ़्रीकी बैट्समैन हाथ खोलने की सोच रहे थे, सहवाग उन्हें बांधे हुए थे. सहवाग के 3 बड़े विकेट. 5 ओवर में 25 रन. बोएता डिप्पेनार हरभजन को स्वीप मारने के चक्कर में कुम्बले के हाथों आउट हुए. मार्क बाउचर ने विकेट के पीछे सर्कल के पास युवराज को आसान कैच दिया. अंत तक पहुंचते-पहुंचते सारा मामला कालिस के हाथों पहुंचा. ज़हीर ने 49वां ओवर बड़ी बेरहमी से ब्लाक होल में गेंदें फेंकते हुए निकाला. आखिरी ओवर और जीत के लिए 21 रन. पहली गेंद को कालिस ने बाउंड्री पार पहुंचाया. 6 रन. लेकिन दूसरी ही गेंद पर उनका कार्यक्रम द्रविड़ के ग्लव्स में संपन्न हुआ. खतरा टल चुका था. 90 गेंद में जिस साउथ अफ्रीका को 75 रन चाहिए थे वो 10 रन से मैच हार चुका था. https://www.youtube.com/watch?v=FLhGVUgnzJg उस दिन युवराज सिंह के अंदर माता आई हुई थीं. गेंद लोहे की और उसका हाथ चुम्बक था. साथ ही सहवाग ने साउथ अफ्रीका को जकड़ा था, सो अलग. अफ़्रीकी इनिंग्स के सेकंड हाफ़ में मामला उलट दिया गया था. युवराज की बेहतरीन फील्डिंग और मैन-ऑफ़-द-मैच सहवाग की बॉलिंग की बदौलत इंडिया फाइनल में पहुंच चुका था.
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