समय एमबीए है. हर चीज के लिए मैनेजर चाहिए. शादी, बच्चा, मौत. सब मैनेज कर देंगे. चूंकि हम हर बुराई के लिए पश्चिम की पर्ची काटते हैं. तो इस नए के लिए भी उन्हें ही स्माइली चुम्मी और गोलू भेजो. वहां पॉलिटिक्स मैनेज करने के लिए मुखौटा होते थे. नेता जी. और पीछे हजार मुख. पीआर मैनेजर, स्ट्रैटजिस्ट वगैरह. इंडिया में ये काम कुछ दूसरे ढंग से होता था. एक साहब थे यशपाल कपूर. कांग्रेस के करीबी. इंदिरा के खास. जिस सूबे की राजधानी में अटैची लेकर पहुंच जाते, वहां विपक्षी दल में खलबली मच जाती. मगर तब ये राजनीतिक प्रबंधक नहीं कुछ और कहलाते थे. अब जमाना बदल गया है. डिग्री की बाढ़ है. मार है. और नई डिक्री ये आ गई है कि इमेज मैनेजर और प्रबंधक चुनावों में नेता जी को बताएंगे. नेता जी बस्ता ढोते, बूथ की पर्ची बनाते, जिंदाबाद करते घिस गए. जीप पर लटके लटके एक तरफ का नितंब ज्यादा गुरुत्व महसूस करने लगा. मगर नहीं. उन्हें तो कुछ नहीं पता. लैपटॉप खोलके लौंडे बैठेंगे. बताएंगे कि अमुक विधानसभा के अमुक गांव में अमुक बिरादरी की संख्या इतनी है. अतएव अमुक जाति के अमुक नेता को अमुक मुद्दे पर इत्ता मुंह खोलना चाहिए. 2014 के चुनाव हुए. हर तरफ चश्मा
पहिने प्रशांत किशोर दिखे. हालांकि शुरुआत 2009 में हो चुकी थी. आडवाणी की दावेदारी से. उनका एक हाईटेक दफ्तर था. उसमें 100 युवा बैठते थे. कोई आईआईटी का, कोई आईआईएम का. मगर उनका हौसला वेटिंग को कन्फर्म नहीं कर सका. मोदी आए तो मॉडिफिकेशन भी आया. मैनेजर नए सिरे से आजमाने लगे. बाद में कट्टी हो गई. प्रशांत और अमित में. पीके ने हड़प्पा काल का कोट पढ़ा. दुश्मन का दुश्मन दोस्त. नीतीश से सल्ली मिल्ली कर ली. बिहार में जीत गए. उनकी अगली फिलिम को रिलीज होने से पहले ही उठा लिया गया. इत्ती लंबी भूमिका काहे. क्योंकि तमाम चिलगोजों को ये लग रहा है कि अब बीजेपी को देश में विपक्षी दल नहीं. कांग्रेस नहीं, लेफ्ट नहीं. रीजनल पार्टी नहीं. प्रशांत किशोर रोकेंगे. और बीजेपी क्या करेगी. रमतूला बजाएगी. नहीं. वो और अपने और प्रबंधकों को बंकर खोद तैनात करेगी. उसमें सबसे आगे खड़े हैं हेमंत बिस्व सरमा. नए हैं. इस पलटन में. वैसे फौजी पुराने हैं. कांग्रेस के साथ रहे. उसके भी पहले असम में स्टूडेंट यूनियन की राजनीति की. तब कांग्रेस विरोधी थे. अब फिर विरोधी हैं. का है कि उनकी अपने राजनीतिक गुरु तरुण गोगोई से ठन गई. गोगोई का बालक गौरव. उसकी एंट्री हुई. वो बन गया सांसद. और राहुल गांधी का खास. हेमंत को लगा कि हम कबसे तिरपाल बिछा रहे हैं. और यहां शहजादे हैं कि ऊपर से नीचे तक चरण पखरवाते चले आ रहे हैं. उनने तय कर लिया. नहीं रहना इस देस लाडो. चले गए बीजेपी में. बांध ली चुटिया. गोगोई राज खतम करना है. पत्रकार वगैरह कहते हैं कि गोगोई को 2011 का चुनाव हेमंत की रणनीति ने ही जितवाया था. और इस बार बीजेपी को जो सत्ता मिली.
पहिली बार. उसमें भी उनका खूब योगदान है. तो हमें लगा. बालक अच्छा कर रहा है. विकीपीडिया पर इसके नाम का पन्ना भी है. और भी इधर उधर जानकारी है. सब समेट लें. आपको एक ही जगह सरल ढंग से बता दें. पर सब कहां सरल रहता है. यहीं देख लीजिए. लेख तो नन्हा सा है. और उसका इंट्रो स्वदेश प्रेम पर निबंध जैसा. अब आप फैक्ट्स का परायण करें.
सौरभ द्विवेदी
1.
1 फरवरी 1969 को गुवाहाटी के गांधी बस्ती, उलूबरी में हिमांता बिस्व शर्मा का जन्म हुआ. पापा का नाम कैलाश नाथ शर्मा है. जिनकी मौत हो चुकी है. माता मृणालिनी देवी हैं. शादी रिनिकी भुयान से की. दो बच्चे हैं.
2.
कामरूप ने अकादमी स्कूल से पढ़ाई की. 1985 में आगे की पढ़ाई के लिए कॉटन कॉलेज गुवाहाटी में दाखिला लिया. 1990 में ग्रेजुएशन और 1992 में पोस्ट ग्रेजुएशन किया. पॉलिटिकल साइंस में.
3.
1991-1992 में कॉटन कॉलेज गुवाहाटी के जनरल सेक्रेटरी रहे. सरकारी लॉ कॉलेज से एलएलबी किया. गुवाहाटी कॉलेज से पीएचडी की डिग्री ली.
4.
साल 1996 से 2001 तक शर्मा ने गुवाहाटी हाई कोर्ट में लॉ की प्रैक्टिस की.
5.
किताबें पढ़ना और ट्रैवल करना हिमांता को बहुत पसंद है. सपोर्ट्स में भी दिलचस्पी रखते हैं.
6.
15 मई 2001 को हिमांता के पॉलिटिकल करियर की शुरूआत हुई. 3 बार असम के एमएलए रहे. 2001 में असम के जालुकबरी से पहली बार जीते. 2006 में दूसरी और 2011 में तीसरी बार चुने गए.

7.
हिमांता असम सरकार में कई पदों पर काबिज रह चुके हैं. एग्रिकल्चर, प्लानिंग एंड डेवलपमेंट, फाइनांस, कैबिनेट मिनिस्टर, हेल्थ एंड फैमिली वेलफेयर जैसे पद हैं.
8.
इन सब के अलावा शर्मा असम हॉकी असोशिएसन, असम बैडमिंटन असोशिएसन के प्रेसिडेंट और असम क्रिकेट असोशिएसन के वाइस प्रेसिडेंट रहे हैं.
9.
काफी टाइम से असम के मुख्यमंत्री तरूण गोगोई से हो रहे चिक-चिक की वजह से 21 जुलाई 2014 को हिमांता ने सभी पोस्ट से इस्तीफा दे दिया था.
10.
23 अगस्त 2015 को अमित शाह के घर पर शर्मा ने बीजेपी ज्वाइन किया. 2016 में होने वाले चुनाव के लिए उन्हें पार्टी का संयोजक बनाया गया.
11.
साल 2006 में दूसरी बार एमएलए बनने के बाद हिमांता ने हेल्थ सेक्टर में कुछ अच्छे काम किए. नेशनल रुरल हेल्थ मिशन को इम्पलिमेंट इन्होंने ही किया. असम के लोगों के लिए 24 घंटे इमरजेंसी एंबुलेंस सेवा शुरु करने का क्रेडिट इन्हें ही जाता है. औरतों की सेहत को ध्यान में रखकर आशा, ममता जैसे प्लान लाए.
12. हिमांता की अगुआई में एजुकेशन सेक्टर में TET के जरिए 50 हजार टीचर्स को अप्वाइंट किया गया.
ये स्टोरी 'द लल्लनटॉप' के साथ इंटर्नशिप कर रही जागृतिक ने लिखी है Also Read: