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ईस्ट बंगाल, मोहन बागान का हिस्सा होने का क्या मतलब था, सुनील छेत्री ने बताया

Sunil Chhetri बताते हैं की जब उन्हें अकादमी से बुलावा आया था तो वो भागते हुए गए थे. उस समय मोहन बागान जैसे टॉप फुटबॉल क्लब खिलाड़ियों के लिए मक्का-मदीना के समान थे.

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सुनील छेत्री ने मोहन बागान के लिए खेलने का अनुभव बताया.

दिग्गज फुटबॉलर और भारतीय टीम के पूर्व कप्तान सुनील छेत्री (Sunil Chhetri) लल्लनटॉप के स्पेशल शो ‘गेस्ट इन द न्यूज़रूम’ में पहुंचे थे. उन्होंने अपने जीवन के तमाम अनुभवों पर बात की. इस दौरान उन्होंने फुटबॉल क्लब के किस्से भी साझा किए. सुनील छेत्री देश के उन चुनिंदा फुटबॉलर्स में से एक हैं जिन्होंने भारत के दो सबसे पुराने क्लब ईस्ट बंगाल और मोहन बागान, दोनों के लिए खेला है.

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गेस्ट इन द न्यूज़रूम में सुनील छेत्री से सवाल पूछा गया कि एक स्पोर्टिंग क्लब का कल्चर कैसा होता है? मोहन बागान जैसे लेजेंडरी क्लब कहां से खिलाड़ियों को पिक करते हैं? स्काउट कैसे करते हैं? इनका अपना फाइनेंशियल स्ट्रक्चर कैसा होता है?

इस पर सुनील ने बताया, 

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‘जब मैंने करियर की शुरुआत की थी तब मोहन बागान और ईस्ट बंगाल का एक अलग दबदबा था. इन क्लब में शामिल होना सबका सपना होता था. अगर खेलना है तो इन क्लब में खेलना है. ये फुटबॉल के लिए मक्का-मदीना के समान थे. हालांकि, अभी काफी बदलाव हो गए हैं. जब से इंडियन सुपर लीग (ISL) आया है तब से हर एक स्टेट का अपना-अपना एक बड़ा क्लब है. अभी भी मोहन बागान बड़ा नाम है, पर बाकी बड़े क्लब भी आ गए हैं. आज के समय में नाम कमाने, पैसे कमाने, इंडियन टीम में आने के लिए बाकी चीज़ें भी आ गई हैं. पर उस समय पर अगर आपको इंडिया के लिए खेलना है, बड़ा पैसा कमाना है तो इन बड़े क्लब्स में ही जाना होता था. स्ट्रक्चर के लिहाज से इन बड़े क्लब के पास उस समय मोनोपॉली थी. जो देश का बेस्ट टैलेंट था ये उन्हीं को लेते थे.’

सुनील ने बातचीत में आगे बताया कि उस समय मोहन बागान, ईस्ट बंगाल कलकत्ता में बड़े क्लब थे. मोहम्मदन स्पोर्टिंग क्लब भी बड़ा नाम था. इसके अलावा चर्चिल, जेसीटी, डेम्पो, सलगाओंकर भी बड़े क्लब में गिने जाते थे. लेकिन पैसा, रुतबा, इतिहास मोहन बागान का था.

सुनील इन फुटबॉल क्लब के स्ट्रक्चर पर आगे बताते हैं, 

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‘लोकल लेवल पर टैलेंट को देखा जाता था. इसमें बड़े क्लब का फायदा यही था कि कहीं अगर कोई लड़का अच्छा खेल रहा है, उसकी बात हो रही है तो ये उसे ले लेते थे. और सब बड़े क्लब के पीछे भागते भी थे. जैसे मैं खुद अकादमी के लिए भागते हुए गया था. मुझे तो अकादमी ने बुलाया मेरे लिए वही बड़ी बात थी. स्ट्रक्चर के मुताबिक, आप 10-11 महीने क्लब में रहोगे. अलग-अलग टूर्नामेंट्स खेलोगे. पहले बहुत सारे लोकल टूर्नामेंट्स होते थे. अब काफी स्ट्रक्चर्ड हैं चीज़ें. ISL जो 7-8 महीने चलता है. एक सुपर कप है और एक डुरंड कप है. ये ब्लूप्रिंट प्रीमियर लीग से लिया गया है. या बाकी देश जो बेहतर कर रहे हैं उनसे लिया गया है.

 

चीज़ें अब प्रोफेशनल हो गईं हैं. पहले आप 8-10 महीने क्लब के साथ अलग-अलग टूर्नामेंट्स खेलते थे. और इस दौरान जब इंटरनेशनल टूर्नामेंट्स की डेट्स आती थीं, तब देश के बेस्ट 25 खिलाडियों का नाम अखबार में आता था और कैंप की जानकारी के लिए वेट करना पड़ता था. डेट आते ही कैंप जाने के लिए ट्रेन पकड़ कर पहुंचना पड़ता था. अब तो सब ऑनलाइन हो जाता है.’

सुनील से आगे फुटबॉल क्लब की सुविधाओं जैसे हॉस्टल फैसिलिटी, क्लब में रैगिंग के बारे में भी सवाल पूछा गया. इस पर उन्होंने बताया, 

‘क्लब में रैगिंग नहीं होती है. रैगिंग अकादमी में होती है. क्लब में आप प्रोफेशनल प्लेयर के तौर पर होते हैं. लेकिन क्लब और अकादमी में जो एक चीज़ समान थी वो थी जूनियर-सीनियर का अलगाव. जो अब खत्म हो गया है. तब सीनियर मतलब सीनियर, उनसे बात-बर्ताव करने का तरीका होता था. सीनियर के पास ज्यादा नहीं जाना है. उनसे ज्यादा हंसी मजाक नहीं करनी है. लेकिन वो गैप अब खत्म हो गया है. तब ये बहुत था. अब जब आप एक प्रोफेशनल सेटअप में आते हैं तब रैगिंग और जूनियर-सीनियर के भेदभाव का सामना नहीं करना पड़ता.’

सुनील छेत्री को 2011 में अर्जुन अवार्ड, 2019 में पद्म श्री और 2021 में खेल रत्न मिला है. 

ये सभी बातें सुनील छेत्री ने लल्लनटॉप के गेस्ट इन दी न्यूज़रूम शो में बताई हैं. आप पूरा इंटरव्यू लल्लनटॉप ऐप पर 3 अगस्त को दोपहर 12 बजे देख सकते हैं.

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