कॉमनवेल्थ गेम्स 2022 के आखिरी दिन भारतीय बैडमिंटन स्टार्स का दबदबा देखने को मिल रहा है. पीवी सिंधु के बाद भारत के युवा स्टार लक्ष्य सेन (Lakshya Sen) ने भी गोल्ड मेडल जीत लिया है. लक्ष्य सेन ने मेन्स सिंगल्स के फाइनल में मलेशिया के ज़ी यॉन्ग (Ng Tze Yong) को हराकर भारत की गोल्ड मेडल टैली को 20 पर पहुंचा दिया है.
अकैडमी से घर लौटने के लिए परेशान लड़का ले आया CWG2022 से गोल्ड
भारतीय बैडिमिंटन स्टार लक्ष्य सेन ने देश के लिए ढेरों मेडल्स जीते हैं. जिनमें एशिन जूनियर चैम्पियनशिप्स से लेकर इंग्लैंड ओपन 2022 तक शामिल है.

20 साल के लक्ष्य के ये पहले कॉमनवेल्थ गेम्स थे. और डेब्यू में ही उन्होंने गोल्ड मेडल जीत इतिहास रच दिया. लक्ष्य ने 21-19, 9-21, 21-16 की स्कोरलाइन के साथ ये मुकाबला जीता. लक्ष्य का गोल्ड मेडल कितना मुश्किल था. इसका अंदाज़ा हम स्कोरलाइन से लगा सकते हैं, मलेशियाई खिलाड़ी ज़ी यॉन्ग ने पूरे मैच में लक्ष्य के खिलाफ़ अच्छा खेल दिखाया.
उन्होंने पहला सेट 21-19 से जीत लिया. इसके बाद दूसरे सेट में लक्ष्य ने मामला एकतरफा कर दिया और 9-21 से ज़ी को हरा दिया. आखिरी सेट में ज़ी यॉन्ग ने अच्छी वापसी की. लक्ष्य को इस सेट में और मेहनत करनी पड़ी. हालांकि आखिर में उन्होंने 21-16 से इस सेट को जीत मेडल अपने नाम कर लिया. लक्ष्य सेन की ये जीत जितनी शानदार है. उनका यहां तक का सफर उससे भी बेहतरीन है. लक्ष्य ने कैसे बचपन से ही इस खेल के प्रति जी-जान लगाई. आइये जानते हैं लक्ष्य की कहानी.
अल्मोड़ा. पहाड़ों के बीच बसा उत्तराखंड का एक खूबसूरत सा शहर. यहां सालों से एक परिवार रह रहा था. जिसने नौकरी-पेशे से अलग खेल के लिए एक सपना देखा. सपना उस खेल को अल्मोड़ा की वादियों में पहुंचाने का. इसकी शुरुआत होती है चंद्रलाल सेन से. वो चंद्रलाल सेन जो सिविल सर्वेंट थे और नेपाल बॉर्डर के पास के इलाके से बैडमिंटन सीखकर वापस पहाड़ों में लौटे थे.
उन्होंने वापस लौटकर ठान लिया कि लोकल पॉलिटिक्स से टक्कर लेनी पड़ी तो भी वो वहां बैडमिंडन का बीज ज़रूर बोएंगे. और इसमें उनका साथ दिया बेटे धीरेंद्र कुमार सेन ने. चंद्रलाल सेन का ये सपना आज देश की मेडल की उम्मीद बन गया है. क्योंकि चंद्रलाल सेन के पोते और धीरेंद्र सेन के बेटे लक्ष्य सेन कॉमनवेल्थ गेम्स (CWG 2022) बैडमिंटन में भारत की सबसे बड़ी 'उम्मीद' है. उम्मीद इसलिए भी हैं क्योंकि एक बार उनकी मां ने कहा था,
‘हारना उसके लिए कोई विकल्प नहीं है. वह रोते हुए खेलता था. बड़े लड़कों के स्कोर ज़्यादा होते तो उनकी आंखों में आंसू होते थे. लेकिन वो हारना नहीं चाहता था. क्योंकि अगर वो हारा तो वो परेशान हो जाएगा.’
भारतीय बैडमिंटन स्टार लक्ष्य सेन कोई नया नाम नहीं हैं. उन्होंने देश के लिए बहुत से मेडल्स जीते हैं. जिनमें एशियन जूनियर चैम्पियनशिप्स 2018 का गोल्ड, यूथ ओलंपिक्स 2018 का सिल्वर, डच ओपन का पहला BWF वर्ल्ड टूर टाइटल, वर्ल्ड चैम्पियनशिप्स 2021 में ब्रॉन्ज़ और ऑल इंग्लैंड ओपन 2022 में सिल्वर मेडल है.
कोचिंग के पहले दिन से शुरू हुई मुश्किल तैयारी:लक्ष्य की माताजी एक टीचर हैं. लेकिन फिर भी घर में शुरुआत से ही खेल का माहौल था. इसकी पहली वजह थे लक्ष्य के दादा चंद्रलाल सेन. लक्ष्य और उनके भाई चिराग महज़ पांच साल के थे तो वो अपने दादा के साथ अल्मोड़ा के स्टेडियम्स में जाकर खिलाड़ियों को खेलते देखते थे. बेंगलुरु जाने से पहले, महज छह साल की उम्र से ही पिता DK ने लक्ष्य को कोचिंग देना भी शुरू कर दिया. यहीं से लक्ष्य और उनके भाई को कोचिंग का वो तरीका मिल गया जो काफी एडवांस था.
DK की कोचिंग तकनीक उस वक्त ही काफी एडवांस थी. वो अपने खिलाड़ियों को सर्विस, शटल से कॉन्टेक्ट करने जैसी चीज़ों की जगह उन्हें शटल थ्रो करके प्रेक्टिस करवाते थे. जिससे कि इन दोनों का शटल पर स्ट्राइक बढ़िया से हो. इसके अलावा उन्हें ट्रेनिंग में कई और ड्रिल्स भी करवाई गईं. जैसे कोच खुद सेंटर में खड़े होकर खिलाड़ियों को कोर्ट में इधर-उधर शटल देते जिससे की वो कोर्ट के एक कॉर्नर से दूसरे कॉर्नर में तेज़ी से मूव करना सीखे. ऐसी ड्रिल्स तमाम कोच अपने खिलाड़ियों से करवाते हैं. लेकिन लक्ष्य के केस में ये इसलिए खास था क्योंकि ये सभी ड्रिल्स उनकी ट्रेनिंग के पहले दिन से ही शुरू हो गई थीं.
यहीं से पिता DK ने लक्ष्य का स्टेमिना बनाना भी शुरू किया. उनकी पहुंच से दूर शटल फेंकी जाती और उन्हें खूब दौड़ाया जाता और खूब स्ट्रैच भी कराया जाता. इतना ही नहीं उस मासूम सी उम्र में लक्ष्य को उनके पिता सुबह 4:30 बजे उठाकर ट्रेनिंग के लिए ले जाते. दोनों लगभग दो किलोमीटर तक जॉगिंग करते. और आखिरी के 200 मीटर में तेज़ दौड़ होती. पिता लक्ष्य को चैलेंज करते और वो उनसे जीतने के लिए जी-जान लगाते.
जब लक्ष्य नौ साल के हुए तो अल्मोड़ा में अंडर 13 का एक जूनियर टूर्नामेंट हुआ. जिसमें लक्ष्य ने अपनी उम्र से दो बड़े लड़कों को हराया. इसके बाद लक्ष्य ने पहली बार गुंटूर में एक अंडर-10 टूर्नामेंट जीता और यहां से उनका असली सफर शुरू हो गया. लक्ष्य इसके बाद अपने भाई चिराग के साथ 2010-11 में बेंगलुरु में एक टूर्नामेंट खेलने गए. यहां उनके बड़े भाई को जीत मिल गई और लक्ष्य सेन ने कमाल की बैडिमिंटन खेली. यहीं पर बैडमिंटन की कोचिंग की दुनिया के लेजेंड विमल कुमार और दिग्गज खिलाड़ी प्रकाश पादुकोण ने इन दोनों भाइयों को खेलते देखा. इन दोनों लड़कों का खेल इन दिग्गज़ों को पसंद आया फिर उनके पापा से दोनों की बात हुई और इन दोनों लड़कों को 1-2 महीने के ट्रायल्स के लिए बेंगलुरु बुलाया गया.
इन दो महीने के प्रेक्टिस ट्रायल्स में ही विमल और प्रकाश ने इन हीरो को तराश लिया. इसके बाद पहाड़ों के ये लड़के बेंगलुरु के हो गए. हालांकि बेंगलुरु पहुंचकर भी इन मासूम उम्र के बच्चों के लिए सबकुछ इतना आसान नहीं था. क्योंकि बड़े भाई के भरोसे लक्ष्य बेंगलुरु आ तो गए. लेकिन हर बच्चे की तरह उन्हें भी घर की याद आती. और वो भी बाकी साथियों के साथ शैतानियां करते. कोच विमल कुमार ने एक बार बताया था कि
'मुझे याद है एक बार प्रकाश(पादुकोण) ने उससे(लक्ष्य) पूछा था क्या तुम्हें घर की याद आ रही है? और लक्ष्य ने कहा था, 'हां'. फिर हमने उसे कहा कि हम कल तुम्हें तुम्हारे घर पहुंचा देंगे. इसके बाद वो चौंक गया और उसने फिर कभी घर जाने के लिए नहीं कहा.'
इस घटना के बाद से लक्ष्य ने प्रकाश पादुकोण बैडमिंडन अकैडमी में मन लगाना शुरू कर दिया. उन्होंने इसके बाद दुनियाभर में जाकर ट्रेनिंग ली. बचपन से ही विमल और प्रकाश सर उनके ट्रेनिंग प्रोग्राम का पूरा शेड्यूल बनाते. और सबसे ज़रूरी चीज़ टूर्नामेंट प्लैनिंग में भी उनकी मदद करते. यहीं से लक्ष्य को इंडोनेशिया और थाइलैंड जैसे देशों में नए-नए गुर सीखने के लिए भेजा जाता. जिससे लक्ष्य को इंटरनेशनल तरीके से भी इस गेम को समझने में मदद मिली. उन्होंने इस दौरान योंग सू यू और भारत में पुलेला गोपीचंद से भी ट्रेनिंग ली.
खास क्यों हैं Lakshya Sen?लक्ष्य से CWG गेम्स में मेडल की उम्मीद की वजह है पिछले एक साल का उनका बेहतरीन खेल. उन्होंने 2021 में BWF वर्ल्ड चैम्पियनशिप्स में ब्रॉन्ज़ मेडल अपने नाम किया. फिर 2022 में लक्ष्य ने इंडिया ओपन और थॉमस कप अपने नाम किया. वहीं ऑल इंग्लैंड ओपन और जर्मन कप में फाइनल तक का सफऱ तय किया. इतना ही नहीं वो BWF वर्ल्ड टूर रैंकिंग्स में भी नंबर आठ पर हैं. उनसे आगे भारत से सिर्फ एचएस प्रनॉय हैं. ऐसे में पिछले एक साल के उनके प्रदर्शन ने देश को उम्मीद दी है कि बैडमिंटन से लक्ष्य सेन एक मेडल लेकर आ रहे हैं.
इसके अलावा लक्ष्य ने जूनियर कैटेगरी से ही अपनी अलग पहचान बनाई. सीनियर्स में खेलने से पहले ही वो जूनियर्स में दुनिया के नंबर एक खिलाड़ी बन गए. जूनियर नेशनल चैम्पियन में लक्ष्य 2012 में अंडर-13, 2014 में अंडर 15, 2015 में अंडर 17 और 2016 में अंडर 19 चैम्पियन बने. और यहां से उन्होंने सीनियर्स का रुख किया. पहले साल बहुत अधिक सफलता नहीं मिली. लेकिन दूसरे साल में उन्होंने पूरी तरह से इस खेल पर फोकस किया और पांच टूर्नामेंट्स जीतकर आगे बढ़े.
इसके बाद लक्ष्य ने 2018 में वर्ल्ड जूनियर में ब्रॉन्ज़ और यूथ ओलंपिक्स में सिल्वर मेडल जीता. फिर वो पॉलिश ओपन, डच ओपन, सारलोरलक्स ओपन, स्कॉटिश ओपन और बांग्लादेश इंटरनेशनल में छाए रहे.
इनसे उम्मीद क्यों?लक्ष्य से मेडल की उम्मीद ऐसे ही नहीं है. पिछले कुछ महीनों में ही लक्ष्य को लेकर उम्मीदें बहुत अधिक बढ़ गई हैं. बैडमिंडन सर्किट में उनके पिछले कुछ महीने बेमिसाल रहे हैं. इसकी शुरुआत 2021 वर्ल्ड चैम्पियनशिप्स में ब्रॉन्ज़ के साथ हुई. जबकि उनकी सबसे बड़ उपलब्धि तो थॉमस कप में आई. जब उन्होंने गोल्ड मेडल जीता.
अब उनकी नज़रें पूरी तरह से कॉमनवेल्थ गेम्स बर्मिंघम पर है. जो कि उनका डेब्यू कैम्पेन भी है. वैसे भी बर्मिंघम के साथ लक्ष्य की बहुत अच्छी यादें जुड़ी हुई हैं और यहां का उनके पास अनुभव भी है. ऑल इंग्लैंड ओपन 2022 का सिल्वर मेडल भी लक्ष्य ने ही जीता है. उन्होंने अब टूर्नामेंट से पहले ये कह भी दिया है कि
'मुझे इस हॉल में खेलना पसंद है. यहां की कंडीशन्स मुझे सूट करती हैं. यहां पर मेरी काफी अच्छी यादें हैं और मुझे पूरी तरह से आत्मविश्वास से भरा हूं कि इस बार भी मैं यहां अच्छा करूंगा. ये बहुत बड़ा टूर्नामेंट है और मैं यहां पर अपना बेस्ट देने की और मेडल जीतने की पूरी कोशिश करूंगा.'
लक्ष्य हमारी उम्मीदों पर खरे उतरे और उन्होंने बर्मिंघम कॉमनवेल्थ गेम्स 2022 का गोल्ड मेडल अपने नाम कर लिया.
इंग्लैंड ओपन में हारे लक्ष्य लेकिन मोदी की किस बात ने खुश कर दिया?