बर्मिंघम (Edgbaston Test) में 58 साल के इतिहास में टीम इंडिया की पहली टेस्ट जीत के दो हीरो रहे. पहले कप्तान शुभमन गिल (Shubman Gill) और दूसरे बॉलर आकाश दीप (Akash Deep). गिल ने भले ही 400 से ज्यादा रन अकेले बनाए हों, लेकिन वो आकाश दीप ही थे, जिन्होंने इस बैटिंग फ्रेंडली विकेट पर कुल 10 विकेट चटकाकर एंडरसन-तेंदुलकर ट्रॉफी (Anderson Tendulkar Trophy) में टीम इंडिया की वापसी कराई. पहले मैच में 5 विकेट हॉल लेने वाले जसप्रीत बुमराह (Jasprit Bumrah) दूसरे मैच में उपलब्ध नहीं थे. आकाश दीप को उनकी जगह मौका मिला तो ये चर्चा हो रही थी कि इससे बेहतर विकल्प अर्शदीप सिंह (Arshdeep Singh) होते. हालांकि, इंग्लैंड के खिलाफ पहली इनिंग में 4 और दूसरी में 6 विकेट लेकर उन्होंने सबकी बोलती बंद कर दी है. उन्होंने इंग्लैंड में टेस्ट क्रिकेट में इंडिया के सबसे सफल स्पेल डाला. 187 रन देकर 10 विकेट चटककर उन्होंने चेतन शर्मा (Chetan Sharma) के 188 रन देकर 10 विकेट लेने के रिकॉर्ड को अपने नाम किया. इसी के साथ उन्होंने आने वाले तीन मैचों के लिए भी अपनी जगह सुनिश्चित कर ली है. हालांकि, बिहार की गलियों से एजबेस्टन के हीरो बनने तक आकाश दीप का ये सफर बहुत आसान नहीं रहा है.
बिहार की गलियों से एजबेस्टन की पिच तक, आकाश दीप के स्टार बनने की पूरी कहानी
Edgbaston Test में 58 साल के इतिहास में टीम इंडिया की पहली टेस्ट जीत के दो हीरो रहे. कप्तान Shubman Gill और Akash Deep. आकाश ने इस बैटिंग फ्रेंडली विकेट पर कुल 10 विकेट चटकाकर Anderson Tendulkar Trophy में टीम इंडिया की वापसी कराई.

पिछले साल इंग्लैंड के खिलाफ ही रांची में टेस्ट क्रिकेट में डेब्यू करने वाले आकाश दीप ने पहले ही मैच में कमाल कर दिखाया था. पहले छह ओवर्स में ही उन्होंने इंग्लैंड के टॉप-थ्री बल्लेबाजों को वापस भेजकर दर्शा दिया था कि वो आने वाले समय में टीम इंडिया के पेस अटैक के दमदार स्तंभ बनेंगे. उनकी कहानी बहुत खास है, उन्होंने टेनिस बॉल से शुरुआत कर यहां तक का सफर तय किया है.
आकाश दीप बिहार के सासाराम के रहने वाले हैं. बिहार में क्रिकेट के सीमित अवसरों ने आकाश दीप के करियर की राह सबसे ज्यादा मुश्किल की. उस वक्त बिहार क्रिकेट एसोसिएशन (बीसीए) पर बीसीसीआई का निलंबन लागू था, जिस वजह से राज्य में उभरते क्रिकेटरों के पास कोई मंच नहीं था. बुनियादी ढांचे की कमी और प्रोफेशनल कोचिंग की अनुपस्थिति ने हालात और चुनौतीपूर्ण बना दिए.
हालांकि, मुश्किलों के बीच भी आकाश का हौसला नहीं टूटा. उनके चाचा और कुछ दोस्तों ने उन्हें लगातार प्रेरित किया और क्रिकेट को गंभीरता से लेने का सुझाव दिया. साल 2010 में आकाश ने बड़ा फैसला लिया. बिहार छोड़कर पश्चिम बंगाल के दुर्गापुर जाने का. वहां चाचा के सहयोग से उन्होंने एक लोकल क्रिकेट अकादमी में ट्रेनिंग शुरू की. शुरुआत में वह टेनिस बॉल क्रिकेट खेलकर कुछ आमदनी कर लेते थे, लेकिन दुर्गापुर में एक दोस्त के जरिए उन्हें एक क्लब टीम से जुड़ने का मौका मिला, जहां उन्होंने पहली बार लेदर बॉल क्रिकेट खेला.
धीरे-धीरे उनकी तेज़ गेंदबाजी पर लोगों की नज़र पड़ी और 2015 तक उन्होंने खुद को एक पेसर के रूप में स्थापित कर लिया था. इसके बाद आकाश दुर्गापुर से कोलकाता आ गए, जहां उन्हें क्रिकेट का कहीं अधिक कॉम्पिटिटिव माहौल और बेहतर सुविधाएं मिलीं. यहां उन्होंने यूनाइटेड क्लब और मोहन बागान एथलेटिक क्लब जैसे प्रतिष्ठित क्लबों का प्रतिनिधित्व किया. प्रोफेशनल कोचिंग, पिच और प्रतिस्पर्धा के बेहतर माहौल ने उनकी प्रतिभा को निखारने का काम किया. आखिरकार, 2016 में उनकी मेहनत रंग लाई और उन्हें बंगाल की अंडर-23 टीम में मौका मिला. इसके बाद आकाश ने पीछे मुड़कर नहीं देखा और घरेलू क्रिकेट में लगातार शानदार प्रदर्शन करते चले गए.
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काफी संघर्षपूर्ण रहा है जीवनPTI के साथ एक पुराने इंटरव्यू में आकाश ने बताया था,
बिहार BCCI से निलंबित था. ऐसे में बिहार में क्रिकेटर बनने का कोई जरिया नहीं था. ख़ासतौर पर सासाराम में तो यह गुनाह था. बहुत माता-पिता ऐसे भी थे जो अपने बच्चों से कहते थे कि आकाश से दूर रहो, उसकी संगत में बिगड़ जाओगे. लेकिन मैं उन्हें दोष नहीं देता.
मैं जहां से आता हूं, वहां क्रिकेट खेलकर कुछ हासिल होना भी नहीं था. ये बस समय की बर्बादी था. मेरे पिता कहा करते थे कि बिहार पुलिस या राज्य सरकार की ग्रुप डी भर्तियों की तैयारी कर लो, इससे कम से कम भविष्य तो सुरक्षित रहेगा. मेरे पिता खुद ही इन परीक्षाओं के फ़ॉर्म भर देते थे. लेकिन मैं परीक्षा हॉल से कॉपियां खाली ही छोड़कर आ जाता था.
लेकिन अचानक सबकुछ बदल गया. छह महीने के भीतर ही आकाश दीप ने अपने पिता और बड़े भाई को खो दिया था. आकाश दीप के बड़े भाई की दो छोटी-छोटी बेटियां भी थीं. अब आकाश पर घर की जिम्मेदारी आ गई. वह बताते हैं,
छह महीने में पापा और भैया का देहांत हो गया. मेरे पास खोने के लिए कुछ भी नहीं था. लेकिन मुझे घर की ज़िम्मेदारी भी उठानी थी. फिर एक दोस्त की मदद से मुझे पश्चिम बंगाल के दुर्गापुर में एक क्लब से खेलने का मौका मिला. शुरुआत में मैं अपने क्लब के लिए लेदर बॉल क्रिकेट खेलता. लेकिन तब पैसे की काफ़ी किल्लत थी.
इसलिए मैं महीने में तीन-चार दिन घूम-घूमकर टेनिस बॉल क्रिकेट खेलता था. इसके लिए मुझे हर दिन के छह हजार रुपये मिल जाते थे. मैं महीने में 20 हज़ार तक कमा लिया करता था. इससे मेरा महीने का ख़र्च निकल जाता था. मेरे पास कभी कोई एक कोच नहीं था. सुराशीष लाहिरी (बंगाल के मौजूदा असिस्टेंट कोच), अरुण लाल सर, रानो सर (रानादेब बोस) ने मेरी मदद की है.
पहले ही अपने दो अजीजों को खो चुके आकाश दीप ने एजबेस्टन में भी चेतेश्वर पुजारा के साथ पोस्ट मैच बातचीत के दौरान एक बड़ा खुलासा किया. उन्होंने अपना प्रदर्शन अपनी बहन को डेडिकेट करते हुए बताया कि वो पिछले दो महीने से कैंसर से जूझ रही हैं. साथ ही ये भी कहा कि मैच के दौरान बॉलिंग करते वक्त उन्हें अपनी बहन की ही स्मृति आ रही थी. ये सब बताते वक्त आकाश दीप थोड़े इमोशनल भी दिखे. अब तक 8 टेस्ट मैचों में आकाश ने 25 विकेट चटकाए हैं. 10 जुलाई को लॉर्ड्स में जब वो पहली बार खेलने उतरेंगे तो एक बार फिर सब की नजरें आकाश दीप पर ही होंगी.
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