काइले एबॉट 2015 में साउथ अफ्रीका की टीम इंडिया आई थी. काइले एक पारी में पांच विकेट लेने वाले एकमात्र गेंदबाज थे. काउंटी क्रिकेट खेलते हुए पिछले साल एबॉट ने 21 पारियों में 71 विकेट चटकाए. लेकिन फिलहाल वे साउथ अफ्रीकी टीम में नहीं है.
डेन विलास साउथ अफ्रीका के लिए 6 टेस्ट मैचों में विकेट कीपिंग की. लैंकशायर के लिए काउंटी क्रिकेट खेलते हैं. इस सीजन में उन्होंने 1036 रन बनाए हैं. पिछले सीजन में 879 रन बनाए थे. विलास ने हर सीजन में डबल सेंचुरी बनाई है.
डुआने ओलिवर दाहिने हाथ के तेज गेंदबाज. 2017 में डेब्यू किया. कुल दस टेस्ट मैच खेलने का मौका मिला. 48 विकेट लिए. फिलहाल डर्बीशायर के लिए काउंटी क्रिकेट खेलते हैं. काउंटी क्रिकेट में एक सीजन में उनके नाम 47 विकेट दर्ज हैं.
इसी साल सन्यास लेने वाले हाशिम अमला काउंटी क्लब सरे के साथ कोलपैक डील करने के करीब हैं. 2018 में सन्यास लेने वाले मोर्ने मोर्कल भी काउंटी खेल रहे हैं.

डुआने ओलिवर, डेन विलास, साइमन और काइले एबॉट
इन खिलाड़ियों में कुछ चीजें कॉमन हैं. 1. चारों खिलाड़ी फॉर्म में हैं. 2. चारों खिलाड़ी साउथ अफ्रीका के हैं. 3. चारों फिलहाल साउथ अफ्रीका की प्लेइंग इलेवन में नहीं हैं. 4. चारों काउंटी क्रिकेट खेलते हैं.
आप सोच रहे होंगे कि जब ये चारों काउंटी क्रिकेट में इतना अच्छा प्रदर्शन कर रहे हैं तो फिर क्यों इन्हें टीम में नहीं लिया जा रहा है? इसके लिए आपको साउथ अफ्रीका के कप्तान फॉफ डू प्लेसि का पोस्ट मैच प्रेस कॉन्फ्रेंस सुनना होगा. जो उन्होंने भारत के साथ सीरीज खत्म होने के बाद दिया.
'यह दक्षिण अफ्रीका क्रिकेट के लिए बहुत दुखद है कि उनके पास अपने सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ियों का विकल्प नहीं है. साइमन हार्मर के लिए ये सत्र अविश्वसनीय रहा. अगर वह हमारे साथ होता तो अच्छा रहता. उसने विदेशों में अच्छा प्रदर्शन किया है. उसे दौरे पर हमारे साथ लेकर आइए.'आप सोच रहे होंगे कि साउथ अफ्रीकी टीम के खेल का ब्रेग्जिट का ब्रेग्जिट से क्या संबंध है? दरअसल इसके पीछे है छठवीं कॉमन चीज. कोलपैक डील. जिसकी वजह से ये प्लेयर अपनी नेशनल टीम की ओर से नहीं खेल सकते हैं.

2018 में रिटायर होने के बाद से ही मोर्ने मोर्कल काउंटी खेल रहे हैं. जबकि इस साल रिटायर होने वाले अमला भी कोलपैक डील साइन करने के करीब हैं. (फोटो- ICC)
क्या है कोलपैक डील? यूरोपीय यूनियन में शामिल देशों के नागरिकों को यूनियन के किसी भी देश में जाकर काम करने की छूट होती है. लेकिन कोलपैक डील के अंतर्गत वे देश भी आते हैं जिनके साथ यूरोपीय यूनियन एसोसिएशन एग्रीमेंट होता है. ये यूरोपीय यूनियन और दूसरे देशों के साथ होने वाला फ्री ट्रेड समझौता है. तो होता ये है कि जिन भी देशों के साथ ये डील होती है उस देश के खिलाड़ी यूरोपीय यूनियन के देशों में जाकर क्रिकेट खेल सकते हैं. वहां उन्हें विदेशी खिलाड़ी नहीं माना जाएगा. इसे कोलपैक डील कहा जाता है.
कोलपैक नाम कैसे पड़ा? कोलपैक स्लोवाकिया के हैंडबाल प्लेयर थे. एक जर्मन क्लब के साथ उनका कॉन्ट्रैक्ट था. लेकिन क्लब के पास पहले से ही दो गैर- यूरोपीय यूनियन खिलाड़ी थे. जिसकी वजह से उन्हें अपना कॉन्ट्रैक्ट खोना पड़ा. कोलपैक कोर्ट गए. वहां उन्होंने अपील की कि उन्हें गैर-यूरोपीय यूनियन खिलाड़ी न माना जाए. क्योंकि वे जर्मनी में ही रहते हैं और उस देश के नागरिक हैं जिसके साथ यूरोपीय यूनियन का एसोसिएशन एग्रीमेंट है. कोर्ट ने कोलपैक के पक्ष में फैसला सुनाया. यहीं से कोलपैक डील की शुरुआत हुई.
कोलपैक डील की खास बातें # कोलपैक डील के दौरान खिलाड़ी अपने देश की टीम के साथ नहीं खेल सकता है. # कोलपैक प्लेयर के लिए इंग्लिश काउंटी प्रॉयरिटी होती है. काउंटी ऑफ सीजन में खिलाड़ी अपने देश के घरेलू क्रिकेट में खेल सकता है. # एक बार कोलपैक डील खत्म होने के बाद खिलाड़ी वापस अपने देश की टीम की ओर से खेल सकता है. # कोलपैक डील में साउथ अफ्रीका के अलावा ज़िम्बॉब्वे और कैरेबियन देश भी आते हैं. इसी नियम का फायदा उठाकर साउथ अफ्रीका के खिलाड़ी काउंटी क्रिकेट खेलते हैं. और अपनी टीम से बाहर हो जाते हैं. #2009 में ब्रिटिश होम ऑफिस ने एक नियम बनाया. कोलपैक डील साइन करने के लिए खिलाड़ी के पास या तो 4 साल के लिए वैलिड वर्क परमिट होना चाहिए या फिर इंटरनेशनल क्रिकेट में निश्चित संख्या में मैच खेल चुका हो. # 18 साल से अधिक उम्र के कोलपैक खिलाड़ी इंग्लैंड की टीम से नहीं खेल सकते. इंग्लैंड की ओर से खेलने के लिए उन्हें कम से कम सात साल काउंटी क्रिकेट खेलना होगा. या फिर इंग्लैंड की नागरिकता लेनी होगी.
इंटरनेशनल क्रिकेट छोड़ काउंटी खेलने क्यों जाते हैं प्लेयर? साउथ अफ्रीका क्रिकेट में कोटा सिस्टम है. ज्यादा से ज्यादा 5 व्हाइट (गोरे) क्रिकेटर ही प्लेइंग इलेवन में शामिल हो सकते हैं. ये एक बड़ा कारण है जिसकी वजह से गोरे साउथ अफ्रीकी खिलाड़ी काउंटी क्रिकेट खेलने चले जाते हैं. दूसरी बड़ी वजह है पैसा. साउथ अफ्रीका में घरेलू क्रिकेट खेलने पर उतना पैसा नहीं मिलता जितना काउंटी खेलने पर मिलता है.
हो सकता है, ब्रेग्जिट के बाद खिलाड़ी वहां जाकर खेलें. लेकिन इस दौरान उन्हें नेशनल टीम में भी लिया जा सकता है. ब्रेग्जिट ही वो एक चीज हो सकती है जो कोलपैक खिलाड़ियों को रोक सकती है. और हां, इससे साउथ अफ्रीका क्रिकेट को सीधा फायदा होगा.
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