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मैदान पर भड़के दंगों के बीच जब मेहमान प्लेयर तिरंगा बचाने दौड़ पड़ा!

क़िस्सा कोलकाता के 'बवाली टेस्ट' का.

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कोनराड हंटे (फोटो - Getty images)

बवाल. ये शब्द कई दफ़ा क्रिकेट के साथ जुड़ चुका है. इंडिया समेत पूरी दुनिया में क्रिकेट के मैदान पर अक्सर बवाल मचा है. आपने देखा या सुना ही होगा कि कैसे किसी बात से नाराज़ हुए फ़ैन्स ने बवाल काटा और उस चक्कर में मैच की ऐसी की तैसी हो गई.

हाई सिक्यॉरिटी के बीच अब होने वाले क्रिकेट मैचेज में ऐसा नहीं होता, लेकिन पहले ऐसी चीजें बहुत आम थीं. और आज हम आपको एक ऐसा ही क़िस्सा सुनाते हैं. ये क़िस्सा है साल 1966/67 में वेस्टइंडीज़ और इंडिया के बीच कोलकाता में हुए दूसरे टेस्ट मैच का.

अब इस क़िस्से को एकदम शुरू से शुरू करते हैं. साल 1966 के दिसंबर महीने में वेस्टइंडीज़ की टीम इंडिया के साथ तीन मैच की टेस्ट सीरीज़ खेलने के लिए आई थी. मुंबई के ब्रेबॉर्न स्टेडियम में पहला मुकाबला हुआ. और पूरे तरीके से डॉमिनेट करते हुए वेस्टइंडीज़ ने ये मैच छह विकेट से जीत लिया.

इसके बाद दूसरा मुकाबला 31 दिसंबर से कोलकाता में होना था. इंडियन फ़ैन्स को उम्मीद थी कि इस मैच में उनकी टीम वापसी करेगी. और तीसरे मैच से पहले सीरीज़ को बराबरी पर ले आएगी. लेकिन माइटी वेस्टइंडीज़ को उस दौर में हराना इतना आसान थोड़ी था. खैर, रिज़ल्ट पर बाद में आएंगे. पहले इस मैच के बवाल की चर्चा कर लेते हैं.

# Kolkata Test Brawl

तय दिन, तय समय पर मैच शुरू हुआ. वेस्टइंडीज़ ने टॉस जीता और पहले बल्लेबाजी करने का फैसला कर लिया. पहले दिन के खत्म होने तक इनकी टीम ने चार विकेट के नुकसान पर 212 रन बना दिए. वेस्टइंडीज़ के लिए ये दिन अच्छा गुज़रा, क्योंकि टीम इंडिया ने इस रोज कुछ कैच गिरा दिए गए.

इससे अलग स्टेडियम में दर्शकों को भीड़ के चक्कर में थोड़ी बहुत परेशानी हुई, लेकिन कुछ बड़ा बवाल नहीं हुआ. अब 1 जनवरी को खेल का दूसरा दिन आया. और दर्शकों की समस्या बढ़ गई. उस समय कोलकाता के ईडन गार्डन में 59 हजार लोगों को बैठाने की जगह थी.

लेकिन वहां पहुंच गए 80 हजार लोग. अब ये कैसे हुआ? दरअसल इस मैच की टिकट्स जमकर ब्लैक की गई. हाल इतना खराब था कि जनता ने ब्लैक में VIP टिकट्स तक खरीदी थी. और क्रिकेट कंट्री नाम की वेबसाइट की मानें तो CAB (क्रिकेट एसोसिएशन ऑफ बंगाल) के ऑफिशल्स ने ही ब्लैक मॉर्केट में टिकट बेचे थे.

फोटो - प्रोटेस्ट (Getty images) 

और ये टिकट खरीदने वाले लोगों ने स्टेडियम भरना शुरू कर दिया. इतनी भीड़ आई कि दर्शक ग्राउंड तक पहुंच गए. और धीरे-धीरे मामला इतना बढ़ गया कि पुलिस ने लाठीचार्ज शुरू कर दिया. और इसी लाठीचार्ज में एक दर्शक लहू-लुहान हो गया. और इसके बाद शुरू हुआ तांडव.

अब दर्शकों ने पुलिसवालों को मारना शुरू कर दिया. बांस उखाड़ लिए गए. स्टैंड्स में आग लगा दी. जवाब में पुलिसवालों ने टियर-गैस छोड़ दी. मैदान पर भगदड़ बच गई. अमृत बाज़ार पत्रिका के मुताबिक,

‘दर्शक मैदान से बाहर भागे. और वहां पहुंचकर उन्होंने पुलिसवालों और उनकी गाड़ियों पर अटैक करना शुरू कर दिया. ऑल इंडिया रेडियो (AIR) की बिल्डिंग के सामने पुलिस जीप जला दी गई. दंगाइयों ने पुलिस बाइक में आग लगाई. अधिकारियों पर हमले किए. सरकारी बस जला दी गई. बंद दुकानों को खोलने की कोशिश की गई.’

इन शॉर्ट, मामला बहुत आगे बढ़ गया. और इन सबके बीच खिलाड़ियों को सुरक्षित उनके होटल पहुंचाया गया. लेकिन इस बीच एक खिलाड़ी ऐसा भी था, जिसने दोनों देशों के झंडे को आग की चपेट में आता हुआ देखा और अपनी जान पर खेलकर उसको बचाने चल दिया. इस प्लेयर का नाम था कोनराड हंटे.

वेस्टइंडीज़ के ओपनिंग बैटर. कोनराड ने देखा कि झंडों तक आग पहुंचने वाली है. इनको बचाने के लिए वो आग के बीच छत पर चढ़ गए और झंडे निकालकर ले आए. हालांकि, इसके पीछे एक और कहानी है जो कि खुद कोनराड ने सुनाई है, अपनी ऑटोबायोग्रॉफी ‘प्लेइंग टू विन’ में.

इस किताब में उन्होंने बताया,

‘मैंने देखा कि हमारे राष्ट्रीय ध्वज हवा में लहरा रहे थे, पविलियन की ओर आ रही आग से डरकर मैंने, हमारे दोनों देशों की संप्रभुता के प्रतीक को 'भीड़' के हवाले होने से बचाने के लिए ऊपर चढ़ना शुरू किया. तभी सादे कपड़ों वाले पुलिसवाले ने कहा, तुम मत जाओ. मैं उन्हें लेकर आता हूं. वो गए और झंडे उतारकर लाए. और मुझे दिए.’

दर्शकों ने ये सब बहुत दूर से देखा था. उन्होंने देखा था कि एक डार्क स्किन टोन वाला आदमी झंडे उतार रहा है. और यहीं से ये स्टोरी लोगों के बीच पहुंच गई कि झंडे मैंने उतारे.

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