कोहली की बैटिंग, कप्तानी. बैट्समेन का फेल होना. बोलर्स का क्षमता से कमतर प्रदर्शन करना. इस तरह की तमाम बातें हुईं. लेकिन इन सबके बीच एक बात ऐसी है, जिस पर कम ही लोगों का ध्यान गया. पूर्व क्रिकेटर्स ने भले ही इस पर सोचा हो, लेकिन आम क्रिकेट फैंस का ध्यान इधर नहीं गया होगा. बात है मैच फीस की. कम ही लोगों को पता होगा कि कई साल पहले न्यूज़ीलैंड में एक टेस्ट मैच पांच दिन से कम वक्त में खत्म करने वाली भारतीय टीम नुकसान उठा चुकी है.
चलिए फिर चलते हैं उस दौर में, जब भारतीय टीम को हार-जीत से ज्यादा चिंता टेस्ट मैच पांच दिन के अंदर खत्म होने की होती थी.
# जीतने का नुकसान
साल 1967-68 में भारतीय टीम न्यूज़ीलैंड टूर पर गई. उस टूर पर टीम को चार टेस्ट मैच खेलने थे. पहले टेस्ट में भारत ने आसानी से जीत दर्ज की. 1968 में 15-20 फरवरी तक हुए इस मैच में न्यूज़ीलैंड ने 350 और 208 रन बनाए. जवाब में भारत ने पहली पारी में 359 और दूसरी में पांच विकेट खोकर 200 रन बनाए और मैच जीत लिया.दूसरा टेस्ट क्राइस्टचर्च में हुआ. न्यूज़ीलैंड ने पहली पारी में 502 रन बना डाले. भारतीय टीम पहले 288 और फिर 301 पर आउट हो गई. न्यूज़ीलैंड ने जीत के लिए जरूरी 88 रन सिर्फ चार विकेट खोकर बना लिए.
न्यूज़ीलैंड अपनी दूसरी पारी में भी बड़ा स्कोर नहीं बना पाया. बापू नादकर्णी ने छह, जबकि प्रसन्ना ने तीन विकेट लेते हुए कीवीज को 199 पर समेट दिया. इसके बाद भारत ने सिर्फ दो विकेट खोकर 59 रन बनाए और मैच चार दिन में खत्म कर दिया.
अब टेस्ट मैच चार दिन में खत्म हो, तो प्लेयर्स को तो खुश होना चाहिए. चलो, प्रैक्टिस के लिए, घूमने-फिरने या आराम के लिए एक दिन ज्यादा मिलेगा. लेकिन यहां तो टीम इंडिया निराश हो गई. पर क्यों? क्योंकि BCCI ने मैच के बाद कहा कि उन्हें इस टेस्ट के लिए चार दिन के पैसे ही मिलेंगे, क्योंकि पांचवां दिन तो उन्होंने खेला ही नहीं.

इंडिया के 1968 न्यूज़ीलैंड टूर पर प्रमुख प्लेयर्स में से एक थे Erapalli Prasanna. फोटो ट्विटर से साभार
BCCI उस वक्त प्लेयर्स को दिहाड़ी यानी रोज के हिसाब से पैसे देता था. मतलब जितने दिन खेले, उतने दिन का पैसा. प्लेयर्स इस बात से बहुत नाराज हुए, लेकिन इससे बोर्ड पर कोई असर नहीं पड़ा. उन्होंने चार दिन के ही पैसे दिए.
# बिस्कुट से भरते थे पेट
उस दौर में टीम इंडिया के लिए खेले भगवत चंद्रशेखर ने अपनी ऑटोबायोग्राफी में भी इन बातों का जिक्र किया है. उन्होंने याद किया है कि कैसे उनके साथी विदेशी दौरों पर अपनी जेबों में बिस्कुट भर लेते थे, जिससे फूड अलॉवेंस के रूप में मिले पैसे बचा सकें. दिग्गज बिशन सिंह बेदी ने भी फंड की कमी से होने वाली समस्याओं पर बात की है.एक पुराने इंटरव्यू में साल 1981 में रिटायर हुए करसन घावरी ने कहा था,
'इसमें शिकायत जैसा कुछ नहीं है, क्योंकि तब पैसे थे ही नहीं. ऑस्ट्रेलिया में हुई कैरी पैकर की रेबेल सीरीज के बाद हमारे पैसे बढ़े. तब वह रकम हमें काफी ज्यादा लगी थी. ज्यादातर प्लेयर्स उन दिनों दूसरी नौकरियां भी करते थे, इसलिए देश के लिए खेलने में पैसे जैसी कोई बात नहीं थी.'जानने लायक है कि घावरी जब रिटायर हुए थे, तब एक टेस्ट खेलने के 10,000 रुपये मिलते थे.
टीम इंडिया के मौजूदा कोच रवि शास्त्री ने भी उस दौर की दुश्वारियों की चर्चा की है. उन्होंने याद किया है कि 1986 में ऑस्ट्रेलिया में ऑडी जीतने के बाद वे कार पाने के लिए कितने बेताब थे. बाद में जब वे इसे इस्तेमाल नहीं करते थे, तब वही कार किराए पर बॉलीवुड फिल्मों में दी जाती थी.

अपनी Audi के साथ Team India Coach Ravi Shastri (फोटो ट्विटर से साभार)
रवि शास्त्री जैसे स्थापित और बड़े नाम को अगर पैसों के लिए ऐसा सब करना पड़ता था, तो समझा जा सकता है कि बाकियों के लिए चीजें कितनी कठिन रही होगी.
# अब कितनी है कमाई?
टीम इंडिया की मौजूदा कमाई देखें, तो चीजों में जमीन-आसमान का फर्क आ चुका है. अब टीम को 250 डॉलर का डेली अलॉवेंस मिलता है. इसे हाल ही में बढ़ाया गया है. घरेलू सीरीज के दौरान टीम को रोज के 7,500 रुपये मिलते हैं. विदेशी टूर पर प्लेयर्स को 250 डॉलर का ट्रेवल अलॉवेंस भी मिलता है. इस अलॉवेंस का बिजनेस क्लास टिकट, रहने की सुविधा और लॉन्ड्री के खर्चों से कोई संबंध नहीं है. यह सब तो उन्हें मिलता ही है.न्यूज़ीलैंड दौरे पर विराट कोहली, मोहम्मद शमी से भी पीछे छूट गए