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वो मैच जिसमें बल्लेबाज़ को आउट देते ही अंपायर का करियर खत्म हो गया

कहानी टेस्ट क्रिकेट इतिहास में टाई हुए सिर्फ दो मैचों में से एक की.

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चेन्नई टेस्ट. फोटो: Getty Images
लगभग 150 सालों का क्रिकेट इतिहास. 2390 से ज़्यादा टेस्ट मैच. लेकिन टाई कितने हुए सिर्फ दो. उन दो में से एक आया भारत के खाते में. जबकि दोनों टेस्ट मैचों की दूसरी टीम रही ऑस्ट्रेलिया.
भारत और ऑस्ट्रेलिया के बीच 17 दिसंबर से चार मैच की टेस्ट सीरीज़ शुरू होने वाली है. उससे पहले आज हम आपको एक ऐसे मैच का किस्सा बताएंगे जिसमें बल्लेबाज़ को आउट देने के बाद एक अंपायर को अपना क्रिकेट करियर भी गंवाना पड़ गया था.
साल 1985/86 में ऑस्ट्रेलियन टीम टेस्ट सीरीज़ खेलने भारत आई.
ये कहानी है भारत-ऑस्ट्रेलिया के लीजेंड्स और उस ऐतिहासिक टेस्ट में अंपायरिंग कर रहे दो अंपायर दारा दोतीवाला और वी विक्रमराजू की.
तारीख थी 18 सितंबर की और साल था 1986. तीन मैचों की सीरीज़ का पहला मैच चेन्नई के चेपॉक स्टेडियम में खेला जाना था. इस मैदान की कंकरीट वाली पिच पर ऑस्ट्रेलियाई कप्तान एलन बॉर्डर ने टॉस जीता और पहले बैटिंग चुन ली.
डीन जोन्स और डेविड बून ने पहला विकेट गिरने के बाद मोर्चा संभाला. दोनों ने जमकर बैटिंग की और टीम को 200 रनों के पार पहुंचा दिया. दिन का खेल खत्म होने से पहले बून चेतन शर्मा की गेंद पर आउट हो गए.
लेकिन डीन जोन्स तो उस मैच में क्रिकेट इतिहास की ऐतिहासिक पारी खेलने वाले थे. डीन जोन्स पहले दिन 56 रन बनाकर लौटे. लेकिन अगले दिन उतरे तो और भी घातक होकर. उन्होंने अगले दिन भी जमकर बैटिंग की, कुल 503 मिनट तक भारतीय गेंदबाज़ उन्हें वापस पवेलियन नहीं भेज सके.
बल्लेबाज़ी करते-करते डीन जोन्स की हालत बद से बदतर हो गई थी. वो बेसुध से हो गए. लेकिन उन्होंने आउट होने से पहले दोहरा शतक बनाया और ऑस्ट्रेलिया को एक बड़ा स्कोर दे दिया. डीन जोन्स जब आउट होकर लौटे तो उन्हें सीधे अस्पताल ले जाना पड़ा. जहां पर उन्हें ड्रिप चढ़ाई गई.
जोन्स की कमाल से पहली पारी की मदद से ऑस्ट्रेलिया ने 574 रन बना दिए.
भारत की बल्लेबाज़ी आई तो श्रीकांत, मोहम्मद अज़हरूद्दीन, रवि शास्त्री ने अर्धशतक तो बनाए लेकिन बड़ा स्कोर नहीं बना सके. आखिर में कप्तान कपिल देव ने एक शतकीय पारी खेली और टीम इंडिया को 397 रनों तक पहुंचाया.
भारत पहली पारी में 177 रनों से पिछड़ गया. अब ऑस्ट्रेलियाई टीम दूसरी पारी खेलने उतरी. ऑस्ट्रेलियन टीम को उम्मीद थी कि हमारे पास 170 से ऊपर की बढ़त है और अगर हम 150 से ऊपर रन बनाते हैं तो फिर भारत के लिए 350 से ऊपर का स्कोर हासिल करना आसान नहीं होगा.
ऑस्ट्रेलियन्स ने किया भी वैसा ही. 170 के स्कोर पर 5 विकेट खोकर बॉर्डर ने अपने बल्लेबाज़ों को वापस आने का इशारा दे दिया. अब मैच का आखिरी दिन भारत को जीतने के लिए 348 रनों की दरकार.
गावस्कर और श्रीकांत ने पारी की शुरुआत की. गावस्कर ने अपने स्टाइल में धीमे रन बनाए. वहीं श्रीकांत ने तेज़ी से रन बटोरने शुरू कर दिए. भारतीय बल्लेबाज़ों के खेलने के तरीके से ये साफ लग रहा था कि वो मैच ड्रॉ के लिए नहीं खेल रहे हैं.
लेकिन 55 के स्कोर पर श्रीकांत के आउट होने के बाद भारत की पारी पटरी से उतर गई. गावस्कर और अमरनाथ के बीच साझेदारी तो हुई लेकिन थोड़ी धीमी. भारत ने 158 रन जोड़े. उसके बाद अमरनाथ चलते बने. अमरनाथ का विकेट गिरते ही भारत ने अगले 95 रन के अंदर गावस्कर, अज़हर, कपिल सबको खो दिया.
भारतीय टीम 253 रन पर पांच विकेट गंवा बैठी. अब मैदान पर थे चंद्रकांत पंडित और रवि शास्त्री. चंद्रकांत पंडित को किरन मोरे की जगह टीम में शामिल किया गया था. मोरे को फूड पॉइज़निंग हुई. जिसकी वजह से वो मैच शुरू होने के 50 मिनट बाद ही वापस लौट गए. चंद्रकांत पंडित उस वक्त बॉम्बे से आते थे. पंडित का करियर सिर्फ पांच मैचों का रहा. उसमें भी उनकी सबसे बड़ी पारी 39 रन की ही थी. लेकिन इस 39 रन की पारी ने भारत का वो इंटेंट दिखाया कि ये मैच अमर हो गया.
चंद्रकात पंडित ने आते ही रनों की गति बढ़ा दी. जिन भारतीय बल्लेबाज़ों का स्ट्राइक रेट 50,53,54 से ऊपर नहीं जा रहा था. चंद्रकांत ने उस स्ट्राइक रेट को 100 के पार पहुंचा दिया. अब भारत को जीत दिखने लगी थी. क्योंकि मैदान पर चंद्रकांत और शास्त्री ने मैच का रुख ही पलट दिया था. लेकिन अचानक 291 के स्कोर पर चंद्रकांत 39 रन बनाकर आउट हो गए.
Ravi Shastri
रवि शास्त्री ने उस मैच में शानदार बैटिंग की लेकिन मैच में जीत नहीं दिला सके. फोटो: Getty Images

चंद्रकांत का विकेट गिरा लेकिन शास्त्री ने हाथ खोल दिए. उन्होंने चौके-छक्कों की बरसात कर दी. वो आखिर तक मैदान पर जमे रहे. एक छोर पर विकेट गिरते और एक छोर से शास्त्री मैच बनाने की कोशिश में लग जाते. आखिरकार भारतीय पारी का 87वां ओवर आया. भारतीय टीम ने 9 विकेट गंवाकर ऑस्ट्रेलिया के स्कोर की बराबरी कर ली.
भारत ने मैच को अपनी झोली में डाला और गांठ लगाने की तैयारी में लग गया. स्ट्राइक पर थे मनिंदर सिंह और नॉन-स्ट्राइकर एंड पर रवि शास्त्री. भारत को पहली पारी में पिछड़ने के बाद मुकाबला जीतने के लिए बस एक रन की दरकार थी. गेंदबाज़ी पर थे ग्रेग मैथ्यूज़. और अंपायरिंग कर रहे थे वी विक्रमराजू. वो राजू जो अपने करियर के सिर्फ दूसरे इंटरनेशनल मैच में मैदान पर थे. हालांकि उन्हें टेस्ट मैच से पहले 20 सालों का लंबा अनुभव था लेकिन इंटरनेशनल मैच का प्रेशर तो अलग ही होता है.
मैदान पर इतनी प्रेशर सिचुएशन हर कोई टेंशन में था. ड्रेसिंग रूम में भी खिलाड़ी एकसुध मैच देख रहे थे.
मैथ्यूज़ के ओवर की पांचवी गेंद सीधे जाकर मनिंदर के पैड पर टकराई. भारतीय फैंस और खिलाड़ियों को कुछ समझ नहीं आया कि आखिर ये हुआ क्या. गेंद बैट पर लगी या फिर पैड पर. रवि शास्त्री ने मनिंदर को रुकने का इशारा किया. उधर ऑस्ट्रेलियंस ने ज़ोरदार अपील कर दी.
अंपायरिंग कर रहे अंपायर विक्रमराजू ने बिजली की स्पीड से भी तेज़ी से उंगली उठा दी.
भारतीय खिलाड़ियों और फैंस के चेहरे एकाएक उतर गए. भारत ने इतिहास रचने का मौका गंवा दिया. सीरीज़ में 1-0 की बढ़त भारत को सीरीज़ जिताती. लेकिन भारत 347 के स्कोर पर ऑल-आउट हुआ और मैच टाई पर खत्म हो गया.

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