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कहानी 18 साल के गुकेश की, जिन्होंने चाइनीज़ ग्रैंडमास्टर को पटक दुनिया जीत ली

डॉक्टर परिवार में जन्मे इस धुरंधर ने सात साल की उम्र में ही शतरंज खेलना शुरू कर दिया था. वो हफ़्ते में तीन दिन एक-एक घंटे तक प्रैक्टिस करते थे.

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12 साल की उम्र में गुकेश ने पांच गोल्ड मेडल जीते थे. ये मेडल 2018 की एशियन यूथ चेस चैंपियनशिप की अंडर-12 कैटेगरी में जीते. (फोटो- X/International Chess Federation)

तीन हफ्ते की कड़ी मशक्कत. बैक टू बैक 14 गेम. आखिरी गेम की 58वीं चाल. और शतरंज की दुनिया को मिल गया नया चैंपियन. नाम दोम्माराजु गुकेश (D Gukesh). उम्र महज 18 वर्ष. तमिलनाडु से आने वाले इस चेस के योद्धा का नाम अब पूरी दुनिया जान चुकी है. उसे वर्ल्ड चैंपियन कहा जाएगा. वो लड़का, जिसने वर्ल्ड चैंपियन बनने का सपना महज 11 वर्ष की उम्र में देखा था. और अब उसने ये सपना जी भी लिया है.

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लेकिन यहां तक पहुंचना इतना आसान नहीं था. गुकेश को लोग डी गुकेश के नाम से जानते हैं. 18 साल के इस लड़के का  का जन्म 29 मई, 2006 को चेन्नई में हुआ था. गुकेश के पिता डॉक्टर रजनीकांत नाक, कान और गले के सर्जन हैं. जबकि उनकी मां का नाम पद्मा है. वो एक माइक्रोबयॉलजिस्ट हैं.

डॉक्टर परिवार में जन्मे इस धुरंधर ने सात साल की उम्र में ही शतरंज खेलना शुरू कर दिया था. वो हफ़्ते में तीन दिन एक-एक घंटे तक प्रैक्टिस करते थे. गुकेश की लगन ने उनके चेस टीचर्स को काफी प्रभावित किया. जिसके बाद वो वीकेंड्स पर अलग-अलग टूर्नामेंट्स में भाग लेने लगे. यहीं से उनका फोकस और एटीट्यूड डेवलप हुआ. वर्ल्ड चैंपियन बनने के लिए हर बाधा को चीरना था. गुकेश के बचपन के कोच विष्णु प्रसन्ना बताते हैं,

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'बचपन से ही गुकेश का जीवन ऐसा रहा है. वो जो कुछ भी करता है, वो एक ही लक्ष्य के लिए है- विश्व चैंपियन बनना.'

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वीकेंड्स पर अलग-अलग टूर्नामेंट्स में भाग लेने लगे. यहीं से उनका फोकस और एटीट्यूड डेवलप हुआ.

इंडियन एक्सप्रेस को विष्णु ने बताया,

'गुकेश हमेशा अपने आयु वर्ग के अन्य खिलाड़ियों की तुलना में शतरंज के प्रति अधिक गंभीर रहा है. यहां तक कि 11 साल की उम्र में भी वो ऐसा ही था. मुझे तब भी लगता था कि ये लड़का वाकई में कुछ बनना चाहता है. वो शुरू से ही बहुत फ़ोकस्ड था. उसकी इच्छाशक्ति बहुत ऊंची थी. वो किसी और चीज़ के बारे में नहीं सोचता था. बस एक लक्ष्य पर ध्यान केंद्रित करता था. ये एक तरह का जुनून है. मैंने जितने भी बच्चों के साथ काम किया है, उनमें से किसी ने भी वो नहीं दिखाया जो उसने दिखाया है.'

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12 साल की उम्र में पांच गोल्ड मेडल जीते

2006 में पैदा हुआ ये लड़का 2015 में महज 9 साल का था. उसने एशियन स्कूल चेस चैंपियनशिप के अंडर-9 टूर्नामेंट में हिस्सा लिया. और जीत के आया. तीन साल का वक्त बीता. दिन-रात की मेहनत जारी रही. साल 2018 में अंडर-12 कैटेगरी टूर्नामेंट में हिस्सा लिया. वर्ल्ड यूथ चेस चैंपियनशिप में परचम लहराया. ये लड़का यहीं नहीं रुका. 12 साल की उम्र में पांच गोल्ड मेडल जीते. ये मेडल 2018 की एशियन यूथ चेस चैंपियनशिप की अंडर-12 कैटेगरी में आए.

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12 साल की उम्र में पांच गोल्ड मेडल जीते.

लेकिन गुकेश इससे एक साल पहले भी कारनामा कर चुके थे. मार्च 2017 में ये 34वें कैपेल-ला-ग्रांड ओपन में इंटरनेशनल मास्टर बने. 12 साल, सात महीने और 17 दिन की उम्र में गुकेश अब तक के तीसरे सबसे युवा ग्रैंडमास्टर बन गए थे. लेकिन इन उपलब्धियों से अलग, इनका फोकस वर्ल्ड चैंपियन बनने पर था.

विश्वनाथन आनंद को पीछे छोड़ा

कैलेंडर में आया 2023 का साल. गुकेश एक सेंसेशन बन चुके थे. अगस्त में वो 2750 रेटिंग पॉइंट्स तक पहुंचने वाले सबसे कम उम्र के खिलाड़ी बन गए. कैलेंडर में 30 दिन ही बीते थे. गुकेश आधिकारिक तौर पर विश्वनाथन आनंद को पीछे छोड़कर भारत के टॉप चेस प्लेयर बन गए. उन्होंने 36 साल टॉप पर रहे आनंद की कुर्सी पर कब्जा कर लिया.

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विश्वनाथन आनंद के साथ गुकेश.
‘कैंडिडेट्स’ में सबसे कम उम्र के विनर बने

एक और साल बदला. 2024 आया. गुकेश ‘कैंडिडेट्स’ में सबसे कम उम्र के विनर बने. ये वही टूर्नामेंट है जिसे जीतकर उन्हें डिंग लिरेन के खिलाफ वर्ल्ड चैम्पियनशिप में खेलने का मौका मिला. और गुकेश ने इस मौके को खूब भुनाया. लड़का वर्ल्ड चैंपियन बना. गुकेश ने इतनी छोटी से उम्र में कई इतिहास बना दिए हैं. भारत के सबसे युवा ग्रैंडमास्टर के नाम सिर्फ एक टैग नहीं है. दुनिया का सबसे कम उम्र का ग्रैंडमास्टर बनने का. जिससे वो मात्र 17 दिन से पीछे रह गए.

पर गुकेश को इसका कोई मलाल नहीं है. होना भी नहीं चाहिए, जो किया है वो भी तो ऐतिहासिक ही है. 12 दिसंबर को वर्ल्ड चैंपियन बनने के बाद गुकेश के पिता के कई वीडियोज सोशल मीडिया पर देखे गए. बेटे की जीत के लिए एक पिता क्या करता है, ये गुकेश ने जीत के बाद खुद ही बताया. वो बोले,

'हमेशा की तरह मैं यहां अपने पिता के साथ हूं. वो शतरंज से इतर, हर चीज़ का ध्यान रखते हैं, ताकि मैं अपने गेम पर पूरा ध्यान लगा सकूं.'

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12 दिसंबर को वर्ल्ड चैंपियन बनने के बाद गुकेश के पिता के कई वीडियोज सोशल मीडिया पर देखे गए.

और अंत में मां कैसे छूट सकती है. साथ नहीं है तो क्या हुआ. गुकेश ने कहा कि उनकी मां घर से अपने तरीके से उनका समर्थन कर रही थीं. और साथ ही समर्थन कर रहे थे अनगिनत भारतीय. जो अब इस वर्ल्ड चैंपियन का जश्न मना रहे हैं.
 

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