# रणजी ट्रॉफी इतिहास का सबसे क्लोज फाइनल.लेकिन हम इसे याद करेंगे उस टीम के जीवट के लिए जिसने मुंबई को वानखेडे में मात दी. रणजी ट्रॉफी के फाइनल में. और वो भी उस दौर में, जब मुंबई भूखे शेर की तरह रणजी ट्रॉफी दोबारा हासिल करने के लिए बेकरार थी.
# कपिल को जिंदगी भर याद रहने वाला छक्का, जो मारा था 18 साल के बालक ने.
# अपने करियर की महानतम पारियों में से एक खेलने के बाद भी असहाय रोने वाले वेंगसरकर.
# दो रन की हार के बाद तीन महीने तक बिना नींद रहने वाले दिग्गज का दर्द.
# या नतीजे से पहले टॉयलेट में विश्वविजेता कपिल का वेंगसरकर से कहना- एक बार तो जीतने दे.
साल 1991. 3 से 7 मई तक खेला गया रणजी ट्रॉफी का फाइनल. साल 85 में आखिरी बार रणजी जीतने वाली मुंबई बेताब थी. ट्रॉफी को फिर से लाने के लिए. सामने थी हरियाणा. दुनिया जीत चुके कप्तान कपिल देव और धाकड़ ऑलराउंडर चेतन शर्मा. इन दो टेस्ट प्लेयर्स के साथ थे अजय जडेजा. जिनका इंटरनेशनल डेब्यू अभी बाकी था. ये तीन हरियाणा के अमर-अकबर-एंथनी थे. माना कि नज़ीर घिसी-पिटी है लेकिन आज भी किसी तिकड़ी को स्थापित करने के लिए इससे बेहतर उदाहरण नहीं मिलता.
# लठ गाड़ दिया
हरियाणा ने टॉस जीता और वही किया जो अक्सर कमजोर टीमें करना चाहती हैं. पहले बैटिंग करो, कोशिश करो कि बड़ा स्कोर बनाकर सामने वाले को पहले से प्रेशर में डाल दो. ओपनर दीपक शर्मा ने लठ गाड़ दिया. जब उखाड़ा तो उनके नाम के आगे 199 रन लिखे जा चुके थे. अजय जडेजा और चेतन शर्मा ने 94 और 98 रन बनाए. हरियाणा की बैटिंग खत्म हुई तो 522 रन बन चुके थे. अब कपिल एंड कंपनी थोड़ी देर के लिए सांस ले सकती थी. मुंबई के लिए डेब्यू करने वाले एबे कुरुविला ने चार विकेट लिए.मुंबई बैटिंग करने उतरी. कुरुविला, राजू कुलकर्णी और विनोद कांबली. इनको छोड़ बाकी सबने ठीकठाक स्कोर किया. ये अलग बात है कि सब मिलकर भी हरियाणा के स्कोर के बराबर नहीं पहुंच पाए. हाईस्कोर रहा संजय पाटिल का. पाटिल जो नाइट वॉचमैन आए थे. 85 रन की यह पारी उनके फर्स्ट क्लास करियर की बेस्ट पारी रही. मुंबई 410 पर खेत रही. हरियाणा को पहली पारी में लीड मिल गई. पूरे 112 रन की.
दूसरी पारी में हरियाणा कुछ खास नहीं कर पाई. शायद ये पहली इनिंग की लीड का असर था. अजय बनर्जी के 60 रन हाईएस्ट रहे. पूरी टीम 242 पर साफ. 154 पर आठ विकेट गिराने के बाद बंबई को लंबा इंतजार करना पड़ा था. ऐसे में जब सलिल अंकोला की आउटस्विंगर हरियाणा के नंबर 11 योगेंद्र भंडारी के बल्ले को चूम, विकेट के पीछे खड़े चंद्रकांत पंडित के ग्लव्स से लगकर हवा में झूली, तो पहली स्लिप पर खड़े दिलीप वेंगसरकर ने उसे कुछ यूं लपका, जैसे लॉकडाउन के बाद खुली दुकानों से बोतलें लपकते मयकश. इट वाज लाइक अ मैटर ऑफ लाइफ एंड डेथ, जेंटलमैन.
सच है. उस आखिरी विकेट से काफी कुछ जुड़ा था. हर बनता रन मुंबई पर भारी पड़ रहा था. मुंबई को जीत के लिए 355 रन बनाने थे. मैच में लगभग ढाई सेशन और कुछ 60 ओवर्स बाकी थे. लक्ष्य आसान नहीं था. लेकिन मुंबई के पास इसके पीछे जाने के अलावा कोई चारा भी नहीं था. पहली पारी की लीड ने पहले ही ट्रॉफी हरियाणा की ओर बढ़ा दी थी.
# तेंडल्या लागला पाहिजे
मुंबई की बैटिंग शुरू हुई. ऑस्ट्रेलिया टूर के लिए इंडियन टीम का सेलेक्शन भी करीब था. यहां से मैच जिताने वाला बंदा ऑस्ट्रेलिया का टिकट हासिल कर लेता. रेस में कई लोग थे लेकिन इन तमाम लोगों में एक ऐसा भी इंसान था जिसका भविष्य इसी टिकट पर था. दिलीप वेंगसरकर. मुंबई की उस टीम का सबसे सीनियर बंदा. लॉर्ड्स के लॉर्ड वेंगसरकर 35 के हो चुके थे. करियर ढलान पर था. बल्ला बोलने से मना कर चुका था. अपनी सबसे पसंदीदा जगह, इंग्लैंड में भी वेंगसरकर से रन नहीं बने थे. यह फाइनल उनके लिए आखिरी मौका था.लेकिन वेंगसरकर के लिए सब इतना आसान नहीं था. उनके सामने खड़े थे कपिल देव. इंटरनेशनल लेवल पर तमाम ट्रॉफियां जीत चुके कपिल. जिनकी नज़र डोमेस्टिक क्रिकेट की सबसे बड़ी ट्रॉफी पर थी. रणजी ट्रॉफी. कपिल इसे हर हाल में अपने नाम करना चाहते थे. सेमीफाइनल में बंगाल के खिलाफ सेंचुरी के साथ उन्होंने पांच विकेट भी लिए थे. तो यहां क्यों ढील देते. अब तो मैच उनकी ओर झुक भी चुका था.
'तेंडल्या लागला पाहिजे, बस'इसका मतलब कुछ ऐसा लगाया जा सकता है,
'बस सचिन चल जाये'ये तो उन लोगों का हाल था जिन्हें अब भी उम्मीद दिख रही थी. बाकी तो मैदान छोड़कर जा चुके थे. लंच के बाद वेंगसरकर के साथ सचिन मैदान पर आए. अब आधे दिन में बंबई को 321 रन बनाने थे. कपिल भागते हुए आए और स्लोवर डाली. तेंडुलकर ने इसे पूरी ताकत के साथ सीधे बल्ले से खेला. बॉल गोली की तरह कपिल के सर के ऊपर से जाकर दर्शकों के बीच गिरी. ये ऐलान था, 'हल्के में नहीं लेने का'. कपिल ने बाद में इस छक्के के बारे में कहा था,
'यह महान क्लास वाला शॉट था और सचिन का कमाल सबके सामने था.'
# तो लागला आहे
लगभग चिल हो चुके हरियाणा के फील्डर्स को भी समझ आ गया कि मैच अभी बाकी है. इधर सचिन को पता था कि इतना चेज करना है तो दिमाग के साथ बल्ला भी चलाना होगा. उन्होंने लेफ्ट आर्म स्पिनर प्रदीप जैन को निशाना बनाया. गेंद प्रदीप के हाथ से छूटती और फिर फैंस के पास से लौटकर ही उन तक आती. चौके-छक्के बरसते रहे. हरियाणा के बोलर विकेट के तरसते रहे. कपिल ने चेतन शर्मा को वापस बुलाया. लेकिन जब सचिन रौ में हों तो क्या फर्क पड़ता है. उस मैच में बॉल बॉय रहे अमोल मुज़ुमदार ने क्रिकेट मंथली से कहा था,'मुझे सचिन द्वारा चेतन शर्मा को मारा गया एक शॉट अच्छे से याद है. चेतन तेज गेंदें फेंक रहे थे और वह काफी शार्प भी थे. उन्होंने नॉर्थ स्टैंड एंड से एक बॉल फेंकी और सचिन ने उसपर करारा प्रहार किया. फ्लैट बैट पर पड़ी बॉल मिडऑफ बाउंड्री से 20 फीट दूर, सीधे फैंस के बीच जा गिरी. सिर्फ गिरी नहीं, उसका सफर अभी बाकी था. वहां गिरने के बाद भी बॉल काफी दूर तक गई. इस शॉट ने माहौल बना दिया. लोग कहने लगे, तो लागला आहे. ये तो मार रहा है.'बात मुंबई में फैली और स्टेडियम फिर से भरने लगा. सचिन और वेंगसरकर ने 134 रन जोड़ डाले. इसमें सचिन के 96 रन थे, सिर्फ 75 बॉल्स में. इसी स्कोर पर वह एक फुलटॉस को उड़ाने के चक्कर में एक्स्ट्रा कवर पर लपके गए. आज के दौर में भले ही यह आम बात हो लेकिन उस दौरान किसी ने ऐसी बैटिंग देखनी तो दूर, इसके बारे में सुना तक नहीं था. सचिन के बाद आए कांबली ने 45 मारे. एक छोर से वेंगसरकर टिके थे लेकिन कांबली के बाद चंद्रकांत पंडित, राजू कुलकर्णी, सलिल अंकोला और संजय पाटिल, जल्दी-जल्दी लौट गए.
दूसरी बॉल, साइट स्क्रीन के ऊपर से छह रन. वेंगसरकर की सेंचुरी पूरी. ऑस्ट्रेलिया का टिकट पक्का. लेकिन काम अभी आधा था. दांव पर लगी ट्रॉफी अब भी 44 रन दूर थी. तीसरी बॉल, शॉर्ट थी. लेट कट, बॉल थर्ड मैन बाउंड्री के बाहर. चार रन. चौथी बॉल लॉन्ग ऑन बाउंड्री के ऊपर से होती हुई फैंस के बीच में. पांचवीं बॉल, और करारा प्रहार. वेंगसरकर के बल्ले से टकराकर उड़ी बॉल वानखेडे की छत पर लिखे टाटा इंटरप्राइजेज के टी से ठोकर खाकर वापस आई. ओवर की आखिरी बॉल स्ट्रेट बाउंड्री के बाहर गई और मिले चार रन. ओवर में 26 रन आ गए. अब जीत बस 24 रन दूर थी.
# वेंगसरकर का भरोसा
कपिल ने बॉल खुद पकड़ी. कुरुविला को आउट करने के लिए आए. एक सीधी फुलटॉस सीधे जाकर कुरुविला के पैर से टकराई. हरियाणा के प्लेयर्स श्योर थे कि ये आउट है, लेकिन अंपायर उनसे सहमत नहीं थे. कपिल बहुत जोर से गुस्साए, लेकिन क्या कर सकते हैं, ये ग्राउंड अंपायर की मिल्कियत होता है और वो वहां का मालिक. कुछ वक्त बाद वेंगसरकर ने एक बेहतरीन शॉट जमाया. बॉल लॉन्ग ऑफ बाउंड्री के बाहर जाती दिख रही थी. लेकिन राजेश पुरी ने ऐन वक्त पर डाइव मारी और तीन रन बचा लिए.लक्ष्य करीब था. ऐसे में कोई भी विशुद्ध बल्लेबाज ज्यादा से ज्यादा स्ट्राइक रखना चाहेगा. लेकिन वेंगसरकर को छह फुट छह इंच लंबे कुरुविला पर भरोसा था. उन्होंने कई बार ओवर की पहली ही बॉल पर सिंगल लेकर स्ट्राइक उन्हें दे दी. और कुरुविला उनके भरोसे पर खरे उतरे. उन्होंने अपना विकेट नहीं फेंका. दरअसल सिंगल्स के अलावा वेंगसरकर के पास कोई रास्ता नहीं था. कपिल ने नौ के नौ फील्डर बाउंड्री पर लगा रखे थे. ऐसे में स्कोरबोर्ड चलाए रखने के लिए सिंगल्स लेने ही थे.
# एक बार तो जीतने दे
स्क्वायर लेग पर खड़े वेंगसरकर वहीं ढह गए. बिलख-बिलखकर रोने लगे. किसी की हिम्मत नहीं हुई कि उन्हें चुप कराए. बहुत देर बाद टीम के 12वें प्लेयर प्रसाद देसाई गए और किसी तरह से वेंगसरकर को वापस लाए. इस बारे में प्रसाद ने बाद में इंडियन एक्सप्रेस से कहा था,'रणजी फाइनल हारना वर्ल्ड कप फाइनल हारने जैसा था. हम सबसे लिए वह बहुत बड़ी बात थी. ड्रेसिंग रूम में सन्नाटा था. जैसे कोई मर गया हो. जब दिलीप वापस आए, वह एकदम ब्लैंक थे. मैंने उनके लिए इलेक्ट्रॉल और नींबू-पानी बनाया. किसी की हिम्मत नहीं हुई कि उनसे आकर बात करे.लेकिन अंत में तो जो जीता वही सिकंदर होता है ना. और वेंगसरकर सिकंदर बनते-बनते रह गए.
दरअसल इस हार से वेंगसरकर को एक और झटका लगा था. पहली पारी में कपिल ने राउंड द विकेट आकर वेंगसरकर को बोल्ड मारा था. आउट करने के बाद उन्होंने बॉल को जमीन पर पटका और चेतन से कहा- तू आगे का देख ले. ये बात वेंगसरकर को चुभ गई. दूसरी पारी में वेंगसरकर ने कपिल को लॉन्ग ऑन के ऊपर से छक्का मारा. इस छक्के से वह मानो जता रहे थे कि बॉस कौन है.'

1991 Ranji Trophy Final में Haryana की जीत का ऐलान करता Indian Express अखबार (गूगल आर्काइव)
वेंगसरकर को हार, कपिल की बात से कही ज्यादा... लालचंद का फैसला तकलीफ दे रहा था. उन्होंने इंडियन एक्सप्रेस से कहा था,
'छह गेंदें (असल में 14) बाकी थीं एबे कोई बड़ा शॉट नहीं लगा रहा था. मुझे उम्मीद नहीं थी कि लालू (लालचंद) भाग पड़ेगा. इस हार के बाद मैं तीन महीनों तक सो नहीं पाया था. यहां तक कि जब मैं कुछ मैच देखने के लिए इंग्लैंड गया, तब भी यही हाल था. मेरी बीवी मुझसे पूछती थी कि मैं क्यों बिस्तर पर रात भर करवटें बदलता रहता हूं. मैंनेउससे कहा था- यह हार मुझे अभी भी तकलीफ देती है. मैं इससे उबर नहीं पा रहा.'इस हार से उबर पाना आसान था भी नहीं. सचिन-वेंगसरकर की बैटिंग के चलते किसी को यकीन नहीं था कि हरियाणा मैच बचा ले जाएगी. तभी तो एक ब्रेक के दौरान वानखेडे के कॉमन टॉयलेट में वेंगसरकर से मिले कपिल ने कहा था,
'एक बार तो जीतने दे.'जब वेंगसरकर ने कहा कि तुम लोग तो पहले से जीते हुए हो. कपिल बोले,
'नहीं, जब तक तुम क्रीज पर हो, तब तक पता नहीं रे.'
1983 वर्ल्ड कप फाइनल में मदन लाल और कपिल देव का ये किस्सा रोंगटे खड़े करने वाला है