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एक कविता रोज़: अलविदा कहना बड़ा मुश्किल रहा

आज एक कविता रोज़ में पढ़िए पंकज शर्मा की दो नज्में.

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फोटो - thelallantop

पंकज शर्मा की पैदाइश बदायूं की है. सोलह बरसों से इलेट्रॉनिक मीडिया में कार्यरत हैं. 'आज तक' के 'सो सॉरी' कार्यक्रम को लिखने और उसको आवाज़ देने की वजह से भी एक खास पहचान बनाई है. इसके साथ ही लिखने-पढ़ने और शाइरी का साथ छोड़ा नहीं है. एक कहानियों की किताब और एक उपन्यास प्रकाशित हो चुके हैं. नज्मों की किताब 'चांद तुम गवाह रहना' अभी बिल्कुल हाल ही में प्रभात प्रकाशन, नई दिल्ली से छपकर आई है. आज एक कविता रोज़ में पेश हैं इस किताब से ही दो नज्में...    

वो इश्क उसको भी था मुझसे मुस्कुराती थी बहुत जिंदगी के लफ्ज चुनकर गुनगुनाती थी बहुत वो किसी कोहसार से उछले हुए पानी सी थी जाने किस रूदाद का किस्सा वो रूमानी सी थी धूप को आगोश में ले शाम वो जब ओढ़ती थी तारी़खें ममनून होती थीं वो जब भी दौड़ती थी इक नजर को आह भरता माह मुज़्तर शम्स देखा उम्मतों के दिल में उसकी ख्वाहिशों का उन्स देखा मेरी ज़ानिब जब कभी पाज़ेब छनकाती थी वो जाने कितनी हसरतों का दिल जला देती थी वो मेरी खातिर जब कभी महकी हथेली की हिना कितने फतवे हो गए समझे बिना हक-आशना वो मेरी फिरदौस थी दीवान थी ईमान थी मेरी सारी नज़्मों कीए गजलों की वो ही जान थी अब ख्यालों में ही आती है बड़ी रंजूर है दुनिया और इस दुनियादारी से बहुत ही दूर है उसकी चाहत पारसा थी हक जताती थी बहुत इश्क उसको भी था मुझसे मुस्कुराती थी बहुत * कोहसार : पर्वत, पहाड़ रूदाद : कहानी ममनून : जरिए उम्मतों पीढ़ियां उन्स : प्रेम ह़क-आशना : सच्चाई से वाकिफ रंजूर : दुखी *** book cover मुश्किल मुझमें तेरा इश़्क यूं शामिल रहा अलविदा कहना बड़ा मुश्किल रहा कूचा-ए-मकतल में चलकर आए खुद दिल की ख्वाहिश दिल मेरा बिस्मिल रहा वक्त-ए-रुखसत मुस्कराता ही रहा मैं तुझको चाहा ये मेरा हासिल रहा बाद मेरे तुमने जब पूछा मुझे यूं लगा के इश्क भी कामिल रहा मुझमें तेरा इश़्क यूं शामिल रहा अलविदा कहना बड़ा मुश्किल रहा