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रेप केस के दोषी को बरी करते हुए SC ने कहा- 'लड़की ने कभी अपराध माना ही नहीं'

यह वही मामला है जिसमें कलकत्ता हाईकोर्ट टिप्पणी करते हुए कहा था- “युवा लड़कियों को अपनी यौन इच्छाओं पर नियंत्रण रखना चाहिए”. इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने इस केस में हस्तक्षेप किया.

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20 अगस्त 2024 को सुप्रीम कोर्ट ने कलकत्ता हाई कोर्ट के फैसले को पलटते हुए आरोपी को दोषी ठहराया. (तस्वीर: इंडिया टुडे)

सुप्रीम कोर्ट ने POCSO एक्ट के तहत दोषी ठहराए गए एक शख्स को बरी कर दिया है. आरोपी अब पीड़िता का पति है. और दोनों अपने बच्चे के साथ पश्चिम बंगाल में रहते हैं. सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाते हुए कहा कि पीड़िता ने इस कृत्य को कभी अपराध नहीं माना था, जबकि कानूनी प्रक्रिया ने उसे ज्यादा परेशान किया.

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इंडिया टुडे में छपी खबर के मुताबिक मामला 2018 का है. उस वक्त पीड़िता की उम्र 14 साल थी. पीड़िता के घर वालों ने लड़की की गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज कराई. जांच में पता चला कि पीड़िता ने 25 साल के एक युवक के साथ शादी कर ली है और अब वह उसी के साथ रह रही है. इस पर पीड़िता के घरवालों ने युवक के खिलाफ POCSO एक्ट के तहत मामला दर्ज करा दिया. जिस पर निचली अदालत ने आरोपी व्यक्ति को दोषी करार देते हुए 20 साल की सजा सुना दी.

मामला कलकत्ता हाईकोर्ट तक पहुंचा, जहां कोर्ट द्वारा की गई टिप्पणी विवाद का कारण बन गई. कोर्ट ने विशेषकर कम उम्र लड़कियों पर टिप्पणी करते हुए कहा था,“युवा लड़कियों को अपनी यौन इच्छाओं पर नियंत्रण रखना चाहिए”. हाई कोर्ट की टिप्पणी की आलोचना को देखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में हस्तक्षेप किया. 

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NDTV में छपी खबर के मुताबिक, 20 अगस्त 2024 को सुप्रीम कोर्ट ने कलकत्ता हाई कोर्ट के फैसले को पलटते हुए आरोपी को दोषी ठहराया. हालांकि, कोर्ट ने उसे तुरंत सजा सुनाने के बजाय एक एक्सपर्ट कमेटी बनाने का आदेश दिया. 

इस कमेटी में NIMHANS (नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ मेंटल हेल्थ एंड न्यूरोसाइंसेज) और TISS (टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज) जैसे संस्थानों के सदस्यों के साथ बाल कल्याण अधिकारी भी शामिल हुए. कमेटी को पीड़िता की वर्तमान मानसिक स्थिति और सामाजिक स्थिति का मूल्यांकन करना था. और इसी साल अपनी रिपोर्ट सुप्रीम कोर्ट को सौंप दी. रिपोर्ट में बताया गया कि पीड़िता आरोपी से भावनात्मक रूप से जुड़ी हुई है और अपने परिवार को लेकर काफी संवेदनशील और ‘possessive’ है. 

सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस अभय ओका और जस्टिस उज्जवल भुइयां की बेंच ने इस फैसले की सुनवाई की. 3 अप्रैल 2025 को कोर्ट ने रिपोर्ट की समीक्षा की और शुक्रवार 23 मई को इस पर फैसला सुनाया. बेंच ने एक्सपर्ट कमेटी की रिपोर्ट के हवाले से कहा,

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“समाज ने पीड़िता को गलत ठहराया. कानून व्यवस्था ने भी उसकी कोई मदद नहीं की. पीड़िता के अपने परिवार ने भी उसका साथ नहीं दिया. इसके बाद उसे पति को सजा से बचाने के लिए संघर्ष करना पड़ा जिसने उसे सबसे अधिक परेशान किया.”

कोर्ट ने अनुच्छेद 142 के प्रयोग और आरोपी के रिहा करने पर कहा, 

“इस परिस्थिति में आरोपी को सजा देने से न्याय का उद्देश्य पूरा नहीं होगा, बल्कि इससे पीड़िता के परिवार को और अधिक नुकसान पहुंचेगा.”

कोर्ट ने यह भी सुझाव दिया कि पीड़िता को 10वीं की पढ़ाई पूरी करने के बाद आर्थिक सहायता या रोजगार दिया जाए.  

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