एक कविता रोज: चीनी चाय पीते हुए
आज पढ़िए सच्चिदानंद वात्स्यायन 'अज्ञेय' की ये कविता.
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4 अप्रैल 2018 (अपडेटेड: 4 अप्रैल 2018, 10:04 AM IST)
हम माओं से बड़े लगे होते हैं. लड़ते हैं, झगड़ते हैं. और बुरे समय में उन्हीं की गोद में सर देकर राहत पा लेते हैं. पर पिताओं से एक अजीब सा रिश्ता रखते हैं. बहुत प्रेम करते हैं उनसे, पर कभी गले लग कर रोने की हिम्मत नहीं जुटा पाते. और जब बड़े हो जाते हैं, तो कभी-कभी अकेले पलों में बैठकर उनके बारे में सोचते हैं. आपने कभी चाय पीते हुए पिता के बारे में सोचा है?
चीनी चाय पीते हुए
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चाय पीते हुए
मैं अपने पिता के बारे में सोच रहा हूं. आपने कभी
चाय पीते हुए
पिता के बारे में सोचा है? अच्छी बात नहीं है
पिताओं के बारे में सोचना. अपनी कलई खुल जाती है. हम कुछ दूसरे हो सकते थे.
पर सोच की कठिनाई यह है कि दिखा देता है
कि हम कुछ दूसरे हुए होते
तो पिता के अधिक निकट हुए होते
अधिक उन जैसे हुए होते. कितनी दूर जाना होता है पिता से
पिता जैसा होने के लिए!
पिता भी
सवेरे चाय पीते थे
क्या वह भी
पिता के बारे में सोचते थे -
निकट या दूर?