The Lallantop

एक कविता रोज: आज हंसो हंसो जल्दी हंसो

'हंसो तुम पर निगाह रखी जा रही जा रही है'

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फोटो - thelallantop
आज हंसो हंसो जल्दी हंसो -रघुवीर सहाय हंसो तुम पर निगाह रखी जा रही जा रही है हंसो अपने पर न हंसना क्योंकि उसकी कड़वाहट पकड़ ली जाएगी और तुम मारे जाओगे ऐसे हंसो कि बहुत खुश न मालूम हो वरना शक होगा कि यह शख़्स शर्म में शामिल नहीं और मारे जाओगे हंसते हंसते किसी को जानने मत दो किस पर हंसते हो सब को मानने दो कि तुम सब की तरह परास्त होकर एक अपनापे की हंसी हंसते हो जैसे सब हंसते हैं बोलने के बजाए जितनी देर ऊंचा गोल गुंबद गूंजता रहे, उतनी देर तुम बोल सकते हो अपने से गूंज थमते थमते फिर हंसना क्योंकि तुम चुप मिले तो प्रतिवाद के जुर्म में फंसे अंत में हंसे तो तुम पर सब हंसेंगे और तुम बच जाओगे हंसो पर चुटकलों से बचो उनमें शब्द हैं कहीं उनमें अर्थ न हो जो किसी ने सौ साल साल पहले दिए हों बेहतर है कि जब कोई बात करो तब हंसो ताकि किसी बात का कोई मतलब न रहे और ऐसे मौकों पर हंसो जो कि अनिवार्य हों जैसे ग़रीब पर किसी ताक़तवर की मार जहाँ कोई कुछ कर नहीं सकता उस ग़रीब के सिवाय और वह भी अकसर हंसता है हंसो हंसो जल्दी हंसो इसके पहले कि वह चले जाएँ उनसे हाथ मिलाते हुए नज़रें नीची किए उसको याद दिलाते हुए हंसो कि तुम कल भी हंसे थे!

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