पेशे से पत्रकार रह चुकीं देवयानी संस्कृति, सिनेमा और साहित्य के बारे में लिखती हैं. आजकल शिक्षा के क्षेत्र में स्वतंत्र सलाहकार के रूप में काम कर रही हैं. इनकी कविताओं में शामिल अनुभव का एकांत आधुनिक भारतीय औरत के जीवन के बारे में बहुत कुछ कहता है. आज 'एक कविता रोज़' में देवयानी की नम कविताएं पढ़ें.
1.
बदनाम लड़कियाँ बदनाम लड़कियाँ
देर तक रहती हैं
लोगों की याद में
उनसे भी देर तक
याद रहते हैं उनके किस्से बरसों बाद
बीच बाजार
दिख जाती है जब
अपनी बेटी का हाथ थामे
अतीत से निकल कर चली आती
ऐसी कोई लड़की उसके आगे-आगे
चले आते हैं याद में
वे ही किस्से
और
ठिठक जाता है एक हाथ
पुरानी दोस्ती की याद में
उसकी ओर बढ़ने से
ठीक पहले *** 2.
रिक्त स्थानों की पूर्ति करो बचपन से सिखाया गया हमें
रिक्त स्थानों की पूर्ति करना
भाषा में या गणित में
विज्ञान और समाज विज्ञान में
हर विषय में सिखाया गया
रिक्त स्थानों की पूर्ति करना
हर सबक के अन्त में सिखाया गया यह
यहाँ तक कि बाद के सालों में इतिहास और अर्थशास्त्र के पाठ भी
अछूते नहीं रहे इस अभ्यास से घर में भी सिखाया गया बार-बार यही सबक
भाई जब न जाए लेने सौदा तो
रिक्त स्थान की पूर्ति करो
बाजार जाओ
सौदा लाओ काम वाली बाई न आए
तो झाड़ू लगा कर करो रिक्त स्थान की पूर्ति
माँ को यदि जाना पड़े बाहर गाँव
तो सम्भालो घर
खाना बनाओ
कोशिश करो कि कर सको माँ के रिक्त स्थान की पूर्ति
यथासम्भव
हालाँकि भरा नहीं जा सकता माँ का खाली स्थान
किसी भी कारोबार से
कितनी ही लगन और मेहनत के बाद भी कोई सा भी रिक्त स्थान कहाँ भरा जा सकता है
किसी अन्य के द्वारा
और स्वयं आप
जो हमेशा करते रहते हों
रिक्त स्थानों की पूर्ति
आपका अपना क्या बन पाता है
कहीं भी
कोई स्थान नौकरी के लिए निकलो
तो करनी होती है आपको
किसी अन्य के रिक्त स्थान की पूर्ति
यह दुनिया
एक बड़ा सा रिक्त स्थान है
जिसमें आप करते हैं
मनुष्य होने के रिक्त स्थान की पूर्ति
और हर बार कुछ कमतर ही पाते हैं स्वयं को
एक मनुष्य के रूप में
किसी भी रिक्त स्थान के लिए *** 3.
जुगनू रात के अँधेरों में
हम जुगनू पकड़ते थे
बंद मुट्ठी में हर जुगनू के साथ
हाथ में आ जाता था रात का अँधेरा भी
जुगनू मर्तबान में बंद
लड़ते रहते अँधेरे से
सुबह तक दम तोड़ देते थे
अँधेरा जमा होता गया
काँच की दीवारों पर जुगनू मर्तबान में बंद
लड़ते रहते अंधेरे से
सुबह तक दम तोड़ देते थे
अंधेरा जमा होता गया
कांच की दीवारों पर
*** 4.
संज्ञान जब आँखे खोलो तो
पी जाओ सारे दृश्य को
जब बंद करो
तो सुदूर अंतस में बसी छवियों
तक जा पहुँचो कोई ध्वनि न छूटे
और तुम चुन लो
अपनी स्मृतियों में
सँजोना है जिन्हें जब छुओ
ऐसे
जैसे छुआ न हो
इससे पहले कुछ भी
छुओ इस तरह
चट्टान भी नर्म हो जाए
महफूज हो तुम्हारी हथेली में जब छुए जाओ
बस मूँद लेना आँखें हर स्वाद के लिए
तत्पर
हर गंध के लिए आतुर
तुम *** अगर आप भी कविता/कहानी लिखते हैं, और चाहते हैं हम उसे छापें, तो अपनी कविता/कहानी टाइप करिए, और फटाफट भेज दीजिए lallantopmail@gmail.com पर. हमें पसंद आई, तो छापेंगे. और कविताएं पढ़ने के लिए नीचे बने ‘एक कविता रोज़’ टैग पर क्लिक करिए.
'हर स्वाद के लिए तत्पर, हर गंध के लिए आतुर, तुम'
'एक कविता रोज' में आज पढ़िए देवयानी भारद्वाज की कविताएं.
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फोटो - thelallantop
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