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कौन है ये साइंटिस्ट जो ओलंपिक्स में गई और गोल्ड मेडल लेकर लौटी?

बिना किसी कोच टोक्यो ओलंपिक्स के मैदान में उतरी थीं आना केज़ेनहॉफ.

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गोल्ड मेडल जीतने के बाद Anna Kiesenhofer ने अपने दोनों हाथ हवा में फैला दिए. (फोटो: इंस्टाग्राम)

आना केज़ेनहॉफ. यह एक ऐसी महिला का नाम है, जिसने टोक्यो ओलंपिक्स में इतिहास रचा है. साइकलिस्ट आना केज़ेनहॉफ ने टोक्यो ओलंपिक्स में 137 किलोमीटर लंबी विमन रोड रेस में गोल्ड मेडल हासिल किया. उनका यह गोल्ड मेडल इसलिए स्पेशल है क्योंकि साइकलिस्ट होने के साथ-साथ केज़ेनहॉफ एक साइंटिस्ट भी हैं. एकेडेमिक्स की दुनिया में उनकी धमक है. ऑस्ट्रिया की केज़ेनहॉफ के पास विएना टेक्निकल यूनीवर्सिटी की डिग्री है. उन्होंने प्रतिष्ठित कैंब्रिज यूनीवर्सिटी से पढ़ाई की है. कैटेलोनिया पॉलिटेक्निक यूनिवर्सिटी से उन्होंने मैथमेटिक्स में पीएचडी भी की है. यही नहीं उनके पास कोई साइकिलिंग कोच भी नहीं है.

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केज़ेनहॉफ बिना किसी टीममेट के रेस में उतरी थीं. उनके सामने रोड रेस की दिग्गज एथलीट थीं. मसलन, डिफेंडिंग चैंपियन आना वान डर ब्रेगन, पहले इसी प्रतियोगिता में ब्रॉन्ज मेडल जीत चुकीं एलिसा लोंगो बोर्घिनी, लिजी डीगन और लीसा ब्रेन्योर. पूर्व विश्व चैंपियन अनेमिक वान व्यूटन ने भी इस रेस में हिस्सा लिया था. गोल्ड मेडल हासिल करने के बाद केज़ेनहॉफ ने इंस्टाग्राम पर अपनी प्रतिक्रिया दी. उन्होंने लिखा,


"उन लोगों का तहे दिल से शुक्रिया, जो पिछले कुछ बरसों और महीनों में मुझे प्रोत्साहित करते रहे. आप जानते हैं कि आप कौन हैं. और आप यह भी जानते हैं कि इस सफलता का एक-एक हिस्सा उन प्रमुख लक्ष्यों से ज्यादा कुछ अलग नहीं है, जो मैंने पिछले कुछ समय में अपने लिए तय किए. आखिरी कुछ दिन बेहद रोमांचक रहे."

जीत के बाद विश्वास ही नहीं हुआ

अंतरराष्ट्रीय मीडिया संस्थान CNN की रिपोर्ट के मुताबिक केज़ेनहॉफ साल 2017 में साइकलिंग प्रो बनीं और उनकी बदौलत साल 1896 के बाद पहली बार ऑस्ट्रिया को साइकलिंग का गोल्ड मेडल मिला. हालांकि, रेस शुरू होने से पहले केज़ेनहॉफ गोल्ड मेडल जीतने के लिए आश्वस्त नहीं थीं. आखिरी के चालीस किलोमीटर की शुरुआत होने से पहले, केज़ेनहॉफ काफी पीछे थीं. लेकिन इसके बाद उनकी साइकल ने जो गति पकड़ी, तो सीधे गोल्ड मेडल लेकर ही रुकी.

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गोल्ड मेडल जीतने के बाद साथी दूसरी विजेता एथलीट्स के साथ Anna Kiesenhofer. (फोटो: ट्विटर)
गोल्ड मेडल जीतने के बाद साथी दूसरी विजेता एथलीट्स के साथ Anna Kiesenhofer. (फोटो: ट्विटर)

जब केज़ेनहॉफ को यह एहसास हुआ कि उन्होंने गोल्ड मेडल जीत लिया है, तो उन्होंने अपने दोनों हाथ हवा में फैला दिए. उनकी आंखों में आंसू थे. दृढ़ निश्चय और खुशी के आंसू. CNN को उन्होंने बताया,


"मुझे विश्वास नहीं हो रहा था. यह अद्भुत था. लाइन क्रॉस करने के बाद भी मैं अपनी सफलता पर विश्वास नहीं कर सकी."

रेस के आखिरी हिस्से में केज़ेनहॉफ लगातार बढ़त पर रहीं. बाकी एथलीट्स उनसे बहुत पीछे थे. इस दौरान वे ऑस्ट्रिया में अपने घरवालों के बारे में सोचती रहीं. केज़ेनहॉफ के दिमाग में उन लोगों की तस्वीर बन रही थी, जिन्हें वे प्यार करती हैं. उन्हें लग रहा था कि ये लोग उन्हें देख रहे हैं और इन लोगों के लिए केज़ेनहॉफ को कुछ हासिल करना है. अपनी मां के बारे में केज़ेनहॉफ ने CNN को बताया,


"मेरी मां साइकलिंग के बारे में ज्यादा कुछ नहीं जानतीं. वो बस मुझे खुश देखना चाहती हैं. मुझे पता था कि मेरी मां मुझे टीवी पर देख रही हैं. इस बात ने रेस के दौरान मुझे बहुत प्रोत्साहित किया."

ऐसा नहीं है कि ओलंपिक्स से पहले भी आना केज़ेनहॉफ ने किसी कोच से ट्रेनिंग नहीं ली. वे पहले कई कोच से कोचिंग ले चुकी हैं. हालांकि, एक इंटरव्यू में उन्होंने बताया कि कोच रखना उन्हें पसंद नहीं आया. उन्होंने बताया कि वे आजाद नेचर की हैं. उन्हें अपनी रेस और न्यूट्रिशन प्लान करना खुद पसंद है. उन्होंने एक इंटरव्यू में बताया,

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"एक गणितज्ञ के तौर पर आपको अपनी समस्याएं खुद हल करने की आदत होती है. साइकलिंग के लिए भी मैंने यही तरीका अपनाया."

उन्होंने इस इंटरव्यू में यह भी बताया कि लोगों को अपने लक्ष्य को दिमाग में रखना चाहिए और उसके लिए लगातार मेहनत करनी चाहिए. आना केज़ेनहॉफ कहती हैं कि उन्हें आशा है कि उनकी कहानी दूसरों को प्रोत्साहित करेगी.

इस महिला साइंटिस्ट, मैथमेटिशियन की जीत उन सभी लोगों के मुंह पर ज़ोरदार तमाचा है, जो ये सोचते हैं कि गणित और स्पोर्ट्स लड़कियों के बस की बात नहीं. दोनों ही फील्ड को लड़कियों के लिए अनफिट बताने वालों को एक महिला के गोल्ड मेडल ने दिन में तारे दिखाने का काम किया है.


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